चार साल की उम्र से स्टेज फरफॉरमेंस देनेवाली सुनिधि ने 11 वर्ष में फिल्मों में गाना शुरू कर दिया था. वे अपनी इस जर्नी को बहुत खूबसूरत करार देती हैं. उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि इतना प्यार, नेम-फेम मिलेगा. प्रस्तुत हैं उनसे खास बातचीत के अंश.
आजकल के गीत-संगीत पर अश्लीलता का आरोप लगता रहता है. आप क्या कहेंगी?
गानों में अश्लीलता देखना मेरी प्राथमिकता नहीं, बल्कि गानों को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करना मेरी कोशिश रहती है. मुङो लगता है कि हर दौर का गीत संगीत इस तरह की आलोचना का शिकार रहा है.
नये गायकों को आप क्या कहना चाहेंगी?
मौजूदा दौर के गायकों में शास्त्रीय संगीत के प्रति कम रुचि है. उन सभी से मैं यह बात कहना चाहूंगी कि शास्त्रीय संगीत ही सभी प्रकार के संगीत का आधार है. इसलिए शास्त्रीय संगीत सीखने के बाद ही वेस्टर्न या दूसरी विधाएं सीखनीं चाहिए. अच्छा गायक बनने के लिए आपका बेस मजबूत होना जरूरी है और यह बेस शास्त्रीय संगीत ही देता है.
क्या आप हमेशा से गायिका बनना चाहती थीं?
बचपन में तो डांस में गायकी से अधिक रु चि लेती थी, लेकिन मम्मी-पापा और उनके दोस्तों को लगा कि मैं अपनी गायकी में निखार लाकर अच्छी गायिका बन सकती हूं. इसके लिए मुझसे ज्यादा मम्मी-पापा ने मेहनत की. खास कर पापा. वे हर कदम पर मेरे साथ थे. हमेशा मुङो गाइड किया. पापा ने मुङो मंच पर हरकत में रहना सिखाया. ये सब बहुत धीरे-धीरे हुआ. पहले मैं स्टेज पर बहुत शरमाती थी. पापा ने कहा कि जिस तरह से घर पर डांस करते हुए गाती हूं,स्टेज पर भी किया करो. अब तो सब कुछ बदल गया है. अब तो मैं भूल ही जाती हूं कि मैं स्टेज पर हूं. मैं अपने आपको महसूस कर गा पाती हूं. मैं आनंद महसूस करती हूं. स्टेज पर परफॉर्म करना बहुत खुशी देता है.
हर दिन एक नया गायक इंडस्ट्री में आ रहा है लेकिन श्रेया घोषाल और आपकी प्रतिद्वंद्विता पुरानी है. इस पर क्या कहेंगी?
प्रतिद्वंद्विता तो होनी ही चाहिए. अगर प्रतिद्वंद्विता नहीं होगी तो आप और अधिक अच्छा करने की कैसे सोचेंगे. वैसे मैं और श्रेया अलग-अलग तरह के गाने गाते हैं. उनमें जो गुण हैं, वो मेरे में नहीं है और जो मुझमे जो हैं, शायद उनमे न हो. इसलिए मेरी और उनकी कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं है. इंडस्ट्री बहुत बड़ी है. यहां सभी के लिए काम है. गाने की जैसी डिमांड होती है, वैसी आवाज को मौका मिलता है और सभी की आवाज अलग- अलग है.
यह साल खत्म होने जा रहा है. गायिका के तौर पर इस साल आपका सबसे यादगार लम्हा?
ऑडियंस के सामने लाइव परफॉरमेंस देना हमेशा ही यादगार होता है. इसका एहसास ही अलग होता है. वैसे इस बार यूके टूर के दौरान लंदन के अल्बर्ट हॉल में भारतीय फिल्मों के 100 साल पूरे होने की खुशी में जो कंसर्ट हुआ, वह परफॉरमेंस बहुत ही यादगार मौका रहा. बेयॉन्स के अंगरेजी गाने को जब मैंने गुनगुनाया, तो दर्शकों का जोश देखते ही बन रहा था. यह हमेशा याद रहेगा.