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यह सरकार है या सर्कस!

।। अनुज कुमार सिन्हा ।। हेमंत सोरेन की अगुवाई में जब झारखंड मुक्ति मोरचा, कांग्रेस और राजद की सरकार बनी, तो एक उम्मीद जगी थी. लगा था कि सरकार में शामिल दल और राजनेता इतिहास (13 साल का) से सबक लेंगे. काम करेंगे और इस धारणा को गलत साबित करेंगे कि झारखंड के राजनेताओं में […]

।। अनुज कुमार सिन्हा ।।

हेमंत सोरेन की अगुवाई में जब झारखंड मुक्ति मोरचा, कांग्रेस और राजद की सरकार बनी, तो एक उम्मीद जगी थी. लगा था कि सरकार में शामिल दल और राजनेता इतिहास (13 साल का) से सबक लेंगे. काम करेंगे और इस धारणा को गलत साबित करेंगे कि झारखंड के राजनेताओं में विजन का अभाव है, वे सिर्फ बयानबाजी करते हैं और काम करना नहीं चाहते, भ्रष्टाचार में लिप्त रहते हैं, भाई-भतीजावाद करते हैं, ट्रांसफर-पोस्टिंग से पैसा कमाते हैं. पांच माह बीत गये. अब तक ऐसा कुछ नहीं दिखा.

सब कुछ वैसा ही हो रहा है, जो पहले हुआ करता था. खुद मुख्यमंत्री अपनी पीड़ा व्यक्त कर चुके हैं कि रजिस्ट्री कार्यालय में बिना पैसा दिये काम नहीं होता, पुलिस वसूली में लगी रहती है, आदि. ऐसा महसूस होता है कि युवा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हाथ बंध गये हैं. हालात से बेचैन हैं, पर कुछ कर नहीं पा रहे. झारखंड जहां था, वहीं खड़ा दिखता है. इसका बड़ा कारण है, सरकार में शामिल दलों का अलग-अलग राग अलापना. रोज नयी-नयी मांग रखना. नयी मुसीबत खड़ा करना.

राज्य का खर्च लगातार तेजी से बढ़ रहा है, पर आय नहीं बढ़ रही. राज्य चलाने के लिए पैसा चाहिए, वेतन-पेंशन के लिए पैसे चाहिए, विकास के लिए पैसे चाहिए, पुल-सड़क बनाने के लिए पैसे चाहिए, स्कूल-कॉलेजों को पैसे चाहिए. पैसा कहां से आयेगा, इसका रास्ता कोई दल नहीं बताता. दलदल में झारखंड फंसता जा रहा है. नीतियां नहीं बन रहीं. सिर्फ बयानबाजी. तालमेल दिखता नहीं. हर मुद्दे पर आपसी मतभेद.

रोज सरकार गिराने की धमकी. सरकार बना कर झामुमो, कांग्रेस या राजद में से किसी ने एक-दूसरे पर उपकार नहीं किया है, अहसान नहीं किया है. यह वक्त की जरूरत थी. अगर सरकार बनायी है, तो उसे ढंग से चलाने की जिम्मेवारी भी किसी एक दल की नहीं, सभी दलों की है. सरकार को चुनौती विपक्ष नहीं, बल्कि सहयोगी दल ही दे रहे हैं.

सरकार बनने के समय आशंका थी कि सत्ता मिलते ही झामुमो के नेता और कार्यकर्ता अनियंत्रित हो जायेंगे. उनका उत्पात बढ़ जायेगा. ऐसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि झामुमो के नेता या कार्यकर्ताओं ने धैर्य और अनुशासन का परिचय दिया. झामुमो के मंत्रियों के बयान संयमित रहे. वे किसी विवाद में नहीं रहे. कहीं उत्पात नहीं मचा. मारपीट या तोड़-फोड़ की राजनीति नहीं की. खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बोलने में, व्यवहार/आचरण में शालीनता बरती है. राजद सरकार का सहयोगी दल है. उसके मंत्री भी अनुशासित रहे हैं. सार्वजनिक बयान संयमित रहा है. अगर विरोध भी किया, तो दायरे में रह कर.

इसी सरकार में एक ऐसा भी दल है, जिसके मंत्रियों ने सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. एक मंत्री हैं, जो समाज को बांटने में लगे हैं. उनका काम ही है विवाद खड़ा करना. बिना सोचे- समझे घोषणा करना उनकी दिनचर्या में है. एक अन्य मंत्री हैं, जो अपने विभाग के अफसरों से गाड़ियों में पेट्रोल भरवाते हैं. अफसरों को धमकाते हैं. पसंद के अफसर खोजते हैं. बेहतर अफसर खोजें, मांगें, तो किसी को आपत्ति नहीं होगी, लेकिन जब ऐसे अफसरों की मांग कई मंत्री करने लगते हैं, जो भ्रष्टचार के लिए ही जाने जाते हैं, तो मंत्रियों की नीयत पर सवाल उठता है. ऐसे ही राजनेता/दल से आजिज होकर दिल्ली में आम आदमी पार्टी का उदय हुआ. उसके बावजूद ऐसे मंत्रियों के आचरण में, काम करने के तरीके में बदलाव नहीं दिखता.

एक विभाग में तो एक ही पद पर कई चिकित्सकों का तबादला कर दिया गया है. कैसे हो रहा है ये सब और इसके पीछे मंशा क्या है? तबादला के बदले पहले रखवा लेते हैं. कई मंत्रियों के बेटे का राज चल रहा है. एक बेटे कहते हैं : मेरा हिस्सा रख दो, बाकी काम के लिए डैड से बात कर लेना. दूसरे मंत्री के बेटे कहते हैं : विभाग तो मैं ही चलाता हूं. जो काम कराना है, मेरे पास आइए. अगर इस प्रकार से राज्य में शासन चले, तो जनाक्रोश भड़कना स्वाभाविक है. अगर राजनेता अभी भी नहीं चेतते हैं, तो जनता किसी दल/नेता को माफ करनेवाली नहीं है. जनता का यह गुस्सा चुनाव के दौरान झारखंड में भी दिख सकता है.

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