आसमान की तरफ देखो जरूर मगर अपनी अभिलाषाओं की उड़ान के लिए. याद रहे तुम जमीन पर खड़े हो. अपने पांव कभी जमीन से ऊपर मत उठने देना वरना जब गिरोगे, तो जमीन भी नसीब नहीं होगी.
शारदा देवी ने कहा कि ज्ञान के मामले में हमेशा ऊपर देखो. आगे बढ़ने की सोचो, लेकिन जिंदगी में आर्थिक स्थिति व ऐश-ओ-आराम के मामले में नीचे देखो और सोचो तुम कितने लोगों से बेहतर हो. कितने ऐसे बच्चे हैं, जिन्हें खाने-पहनने को नसीब नहीं होता. जिन्हें दो जून की रोटी नहीं मिलती, तो वे भर पेट खाने की तो सोच ही नहीं सकते. जिनके पास पहनने को कपड़े नहीं हैं, जो तमाम तरह के खाने के लिए तरसते रहते हैं, वहां ऊपर मत देखो. फ्रस्टेशन होगा और किसी भी तरह वो सारी सुख-सुविधाएं प्राप्त करना चाहोगे, जिसके लिए तुम कोई भी रास्ता अपनाने के लिए तैयार रहोगे. तुम्हें हमेशा दुख ही रहेगा कि उसके पास फलां चीज है मेरे पास नहीं. तुम्हें कुंठा ही मिलेगी. इसलिए जो है, जितना तुम्हारे पास है, उसमें संतोष करना सीखो. आसमान की तरफ देखो जरूर मगर अपनी अभिलाषाओं की उड़ान के लिए. याद रहे तुम जमीन पर खड़े हो. अपने पांव कभी जमीन से ऊपर मत उठने देना वरना जब गिरोगे, तो जमीन भी नसीब नहीं होगी. उड़ने के लिए आकाश की ऊंचाई है, लेकिन खड़े होने के लिए पांवों को जमीन ही चाहिए.
हम आपकी बात ध्यान रखेंगे दादी मां. साविन ने कहा. एक बात तो माननी ही पड़ेगी कि अभी भी गांवों में प्रदूषण नहीं है. जहां हम गये थे, वहां मुङो बिल्कुल नहीं लगा. तभी झरना ने कहा देखो पापा इतने सारे बच्चे आ रहे हैं. लगता है किसी स्कूल की छुट्टी हुई है, लेकिन स्कूल तो गांव से बहुत दूर है, तो यहां बस क्यों नहीं चलती. कुछ बच्चे साइकिल से, कुछ रिक्शे पर और कुछ पैदल ही जा रहे हैं. झरना बेटी अभी साविन दीदी ने कहा ना कि यहां प्रदूषण नहीं है, अगर यहां ढेर सारी गाड़ियां चलने लगे, तो यहां भी प्रदूषण बढ़ जायेगा और यहां स्कूल दूर तो हैं पर फिर भी बहुत दूर नहीं हैं और इससे बच्चों की एक्सरसाइज हो जाती है. पैदल चलने और साइकिल चलाने से बच्चे फिट और हेल्दी रहते हैं. एक तुम लोग हो, जो कहीं बाहर जाना ही नहीं चाहते. न पैदल चलते हो, न साइकिल चलाते हो. ना ही बाहर खेलने जाते हो. बस! टीवी व कंप्यूटर के अलावा कुछ सूझता ही नहीं जैसे तुम्हारी दुनिया उसके बाहर है ही नहीं. तुम्हें पता है अब तो यहां इतनी सारी दुकानें खुल गयी और सब चीजें यहां मिलने लगीं. पहले हर चीज के लिए शहर जाना पड़ता था. वहां के लिए बस चलती थीं. अब तो सब कुछ यहीं मिल जाता है. बस! प्रोफेशनल कॉलेज नहीं हैं. राशि ने कहा. ठीक है ताई जी अब मैं भी वहां खूब साइकिल चलाया करूंगी और जो गेम सीख कर आयी हूं सबको सिखाऊंगी. ठीक है झरना. जल्दी से अच्छी बच्ची बन जाओ. राशि बोली.
फिर रिमझिम ने कहा कि दादी मां मैंने एक डिसीजन लिया है. इस साल मेरा एमएस पूरा हो जायेगा. मैं यहां भी महीने में एक बार दो दिन के लिए आऊंगी और फ्री चेकअप करूंगी. इससे गांव भी आती रहूंगी और इस बहाने मैं कुछ अच्छा काम यानी सोशल सर्विस भी कर लूंगी और हम कोर्स कंप्लीट करते वक्त जो ओथ लेते हैं कि सबकी सेवा करेंगे, वो ओथ भी पूरी कर सकूंगी.गांव की महिलाओं को इलाज के लिए इतनी दूर जाने में जो प्रॉब्लम होती है वो बच जायेगी. दादी मां आप कहती हैं ना, कि कुछ भी बनने से पहले एक अच्छा इनसान बनो और घरवालों का नाम रोशन करो, तो मैं पूरी कोशिश करूंगी कि मेरी वजह से आपको कभी कोई शर्मिदगी ना उठानी पड़े, बल्कि आपका नाम हो, घर का नाम हो. हम बच्चों को उस जगह के बारे में और वहां की भलाई के बारे में सोचना चाहिए, जहां से हम और हमारा परिवार जुड़ा है.
वीना श्रीवास्तव
लेखिका व कवयित्री
इ-मेल: veena.rajshiv@gmail.com