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बाजार को चाहिए मजबूत नेतृत्व

– सुनीलकुमारसिन्हा – डायरेक्टर,इंडियारेटिंग्स अब सरकार अर्थव्यवस्था को लेकर कोई कदम उठायेगी यह सही है कि राजनीतिक परिणामों का बाजार की सेहत पर असर पड़ता है. चार राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद बाजार में चमक दिखी, लेकिन उसमें इन परिणामों का कितना असर हुआ, इस पर गौर करना होगा. दरअसल, शुक्रवार को अमेरिकी […]

– सुनीलकुमारसिन्हा –

डायरेक्टर,इंडियारेटिंग्स

अब सरकार अर्थव्यवस्था को लेकर कोई कदम उठायेगी

यह सही है कि राजनीतिक परिणामों का बाजार की सेहत पर असर पड़ता है. चार राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद बाजार में चमक दिखी, लेकिन उसमें इन परिणामों का कितना असर हुआ, इस पर गौर करना होगा. दरअसल, शुक्रवार को अमेरिकी बाजार ऊंचे स्तर पर बंद हुआ था.

संभव है कि भारतीय बाजार में आयी उछाल का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी हो. अमेरिका और यूरोप के बाजारों का असर सभी देशों के बाजारों पर पड़ता है. लेकिन राजनीतिक परिणामों से ऐसा लगता है कि अब सरकार अर्थव्यवस्था को लेकर कोई कदम उठायेगी.

बाजार पर राजनीतिक कारणों के अलावा कई अन्य कारकों का प्रभाव पड़ता है. एक बात स्पष्ट है कि राजनीतिक नेतृत्व से बाजार पर असर पड़ता है, खासकर तब, जब बाजार को लगे कि नीतियां सुधरेंगी और आनेवाले समय में आर्थिक सुधार की गति तेज होगी.

निश्चित तौर पर मजबूत नेतृत्व और फैसले लेने की क्षमता से न सिर्फ निवेशक, बल्कि बाजार में भी गति आती है.

चाहे सरकार किसी दल की हो. निवेशक बेहतर माहौल और नीतियों के आधार पर निवेश करते हैं. मौजूदा सरकार के कार्यकाल के दौरान आर्थिक विकास दर में कमी आयी है. राजनीतिक कारणों से सरकार आर्थिक सुधार के अहम फैसले नहीं ले पायी, इससे नीतिगत स्तर पर ठहराव आ गया और निवेशकों का भरोसा भारतीय बाजार के प्रति कम हुआ.

भले ही इसके कारण वैश्विक हों, लेकिन सरकार के कामकाज से भी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है. लेकिन जब मौजूदा सरकार के पास समय नहीं है, वह भी तब, जब विधानसभा चुनाव के परिणाम उसके पक्ष में नहीं आये हैं.

ऐसे समय में आर्थिक सुधारों को क्रियान्वित करना और नीतियों को लोकसभा से पारित कराना और भी मुश्किल होगा. विपक्षी दल मांग करेंगे कि मौजूदा जनादेश को देखते हुए सरकार महत्वपूर्ण फैसले लेने का काम आनेवाली सरकार पर छोड़ दे. वहीं सत्ताधारी दल चाहेगा कि कुछ ऐसे कदम उठाये जायें, जिससे माहौल बेहतर हो और आनेवाले समय में इसका फायदा पार्टी को मिले. लेकिन जैसा पहले देखा गया है कि महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध रहा है, वही गतिरोध की स्थिति इस जनादेश के बाद बनी रहेगी. मेरा मानना है कि मौजूदा सरकार के सामने जो भी दिक्कतें रही हों, चाहे उसकी राजनीतिक वजह हो, लेकिन रोजगार और आर्थिक विकास सबकी प्राथमिकता रहती है. बिना आर्थिक विकास के कल्याणकारी योजनाओं को भी क्रियान्वित करने में दिक्कतें आती हैं. देखा गया कि विधानसभा चुनाव में युवाओं ने जम कर हिस्सा लिया. युवाओं के लिए रोजगार और शिक्षा सबसे अहम मुद्दे हैं और राजनीतिक परिणामों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. आज का युवा जवाबदेह और काम करनेवाली सरकार चाहता है. अगले साल होनेवाले लोकसभा चुनाव में युवा सभी पार्टियों के एजेंडे में प्रमुख होंगे. लेकिन देखनेवाली बात होगी कि युवाओं को किस नेता की बात कितनी वास्तविक लगती है और कौन इनका भरोसा जीतने में कामयाब होता है. एक बात तय है कि लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद आर्थिक मोरचे पर सरकार को सुधार की गति तेज करनी होगी, ताकि निवेशकों का भरोसा जीता जा सके. ऐसे समय में जब 6 महीने बाद आम चुनाव होना है, सरकार से कड़े आर्थिक फैसले लेने की उम्मीद नहीं की जा सकती है.

1 मजबूत नेतृत्व और फैसले लेने की क्षमता से न सिर्फ निवेशक, बल्कि बाजार में भी गति आती है. चाहे सरकार किसी की हो. निवेशक बेहतर माहौल और नीतियों के आधार पर ही निवेश करते हैं.

2 मौजूदा सरकार के कार्यकाल के दौरान आर्थिक विकास दर में कमी आयी. राजनीतिक कारणों से सरकार आर्थिक सुधार के अहम फैसले नहीं ले पायी, इससे नीतिगत स्तर पर ठहराव आ गया और निवेशकों का भरोसा भारतीय बाजार के प्रति कम हुआ.

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