।। व्यालोक ।।
जापान और दक्षिण कोरिया के सैन्य विमानों ने हाल ही में चीन द्वारा घोषित ‘हवाई रक्षा पहचान क्षेत्र’ में उड़ान भरी है. कुछ समय पूर्व अमेरिकी बमवर्षक विमानों ने भी इस इलाके से होकर उड़ान भरी थी. चीन ने इस पर आपत्ति जतायी है, जिसके बाद से यह स्थान और उससे जुड़े विवाद अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में छाये हुए हैं. क्या है इन स्थानों से जुड़ा विवाद, इसे ही बताने की कोशिश की गयी है आज के नॉलेज में..
बदलती हुई दुनिया में चीन अपनी बढ़ती ताकत की धमक दिखाने पर आमादा है. इस वक्त ड्रैगन अपने कई पड़ोसी देशों के साथ सीमा से जुड़े विवादों में घिरा है. चीन की जमीन की बढ़ती भूख ने उसे भारत ही नहीं, जापान, ताइवान, दक्षिण कोरिया आदि से भी सीमा विवाद में उलझा कर रख दिया है. वैसे तो इनमें से कई विवादों की भूमि दक्षिण चीन सागर में है, लेकिन चीन का सबसे गंभीर और तनावपूर्ण मतभेद जापान के साथ चल रहा है, जो पूर्वी चीन सागर के द्वीप-समूह (आर्कपेलागो) को लेकर है. इन द्वीपों को जापान में सेंकाकू और चीन में दियाओयूस कहा जाता है और दोनों ही देश इन पर अपना हक जताते हैं. वैसे यह पांच निर्जन द्वीपों और तीन रीफ (पानी में डूबे चट्टानी समूहों) का समूह है, लेकिन इसके मालिकाना हक को लेकर जापान, चीन और ताइवान इस पर दावा करते हैं. इसकी वजह से 2010 में भी जापान और चीन के बीच तनाव बढ़ा था और 2012 में जब चीन ने इनमें से तीन द्वीपों का राष्ट्रीयकरण कर दिया, तो मामला बेहद ही संवेदनशील हो गया था.
दशकों से चल रहा विवाद
इन द्वीपों के अधिकार को लेकर दोनों ही देशों के बीच असहमति पिछले कई दशकों से चली आ रही है, लेकिन पिछले सप्ताह शनिवार को चीन ने पूर्वी चीन सागर में नया वायु रक्षा क्षेत्र घोषित कर दिया है. गंभीर बात यह है कि घोषित किये गये इस हवाई क्षेत्र के कई इलाके ऐसे हैं, जिन पर जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और चीन दावा करते रहे हैं. चीनी सरकारी मीडिया के मुताबिक, इस इलाके से गुजरनेवाले सभी विमानों को अपनी पहचान बतानी होगी, दोतरफा रेडियो संचार कायम रखना होगा और अपनी राष्ट्रीयता के निशान को साफ-साफ अपने विमान पर अंकित करना होगा, वरना उन विमानों के खिलाफ आपात रक्षात्मक कार्रवाई की जायेगी. अब यह बात तो बिलकुल साफ है कि चीन की इस घोषणा से इस इलाके में अनावश्यक विवाद और तनाव के गहराने का खतरा पैदा हो गया है.
फिलहाल तनाव का कारण इस नये घोषित हवाई रक्षा क्षेत्र में आने वाले तीन द्वीप हैं. इनमें से दो द्वीपों पर अभी जापान का नियंत्रण है, लेकिन दावा चीन और जापान दोनों ही करते रहे हैं. इसी इलाके में आनेवाले एक ‘रीफ’ पर दक्षिण कोरिया अपना दावा करता है. ड्रैगन ने भले ही नये हवाई क्षेत्र को पूरी तरह से उचित और वैध बताया है, लेकिन इसका व्यापक विरोध हो रहा है. चीन की यह घोषणा दरअसल इसकी उस कोशिश का नतीजा है, जिसके तहत वह कोशिश कर रहा है कि जापान क्षेत्रीय विवाद को स्वीकार कर ले, क्योंकि 1970 के दशक के मध्य में दोनों ही देशों के बीच इस मुद्दे पर कभी बात न करने की सहमति बनी थी.
हवाई रक्षा क्षेत्र
मूल रूप से यह किसी देश के संप्रभु हवाई सीमा के बाहर का ‘बफर जोन’ होता है. अमेरिका और जापान के अलावा कई देशों ने अपनी सीमा से लगते हुए यह क्षेत्र निर्धारित किया है. कोई भी विदेशी विमान जो इस क्षेत्र में उड़ रहा है, उसे अपनी पहचान बतानी होगी, ताकि वह उस देश की हवाई सीमा में प्रवेश कर सके. यह एकतरफा ढंग से लागू किया जाता है, इसलिए इसका कोई कानूनी या नैतिक आधार नहीं है. यह पड़ोसियों के साथ बातचीत के बिना ही लागू किया जाता है और इसका उद्देश्य बस किसी देश को पहले से तैयार करना होता है, न उससे अधिक, न उससे कम.
इस कूटनीतिक विवाद की गरमी तब और बढ़ गयी, जब अमेरिका ने यह बयान दे दिया कि किसी सैन्य झड़प की स्थिति में वह जापान की मदद करेगा. इसके साथ ही, दक्षिण कोरिया और ताइवान ने भी अपनी चुप्पी तोड़ दी है और वे भी इस विवाद में कूद पड़े हैं.
यह कोई छिपी बात नहीं है कि चीन के संबंध ताइवान और दक्षिण कोरिया से बहुत सौहाद्र्रपूर्ण नहीं रहे हैं. जापान ने अपनी सैन्य शक्ति को दुरुस्त करने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ भी अपनी बातचीत तेज कर दी है. फिलहाल, जापान के सम्राट सपरिवार भारत यात्र पर भी आये हुए हैं और यह ऐलान भले ही कर दिया गया हो कि वह केवल द्विपक्षीय संबंधों की ही बात करेंगे, लेकिन कहीं-न-कहीं चाइनीज करी तो उबलेगी ही. आखिर, भारत का भी चीन के साथ सीमा-विवाद नया तो है नहीं.
गहरा सकता है तनाव
जापान ने चीन के राजदूत को बुला कर इस कदम को वापस लेने को कहा है, लेकिन चीन ने भी बदले में जापानी राजदूत को तलब कर टोक्यो को ‘गैर-जिम्मेदाराना बयान’ देने से बचने के लिए कहा है. अमेरिका इस मामले में जापान के साथ नजर आ रहा है. वैसे भी चीन की उभरती ताकत और विश्वशक्ति की ओर तेजी से बढ़ते कदम ने अमेरिकी नीति-नियंताओं की पेशानी पर बल तो डाल ही दिये हैं. अमेरिका भी चीन की बढ़ती ताकत पर लगाम डालने के लिए बहाने की ही तलाश में है. तभी तो, अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने इसे ‘पूरे पूर्वी चीन सागर को असंतुलित करनेवाला’ कदम बता दिया है. साथ ही, जापान से मित्रता जताने के लिए अमेरिकी बमवर्षक विमान भी पिछले सप्ताह इस इलाके से उड़े. दक्षिण कोरिया और जापान के विमानों ने भी इस इलाके से उड़ान भर कर जता दिया है कि वे चीनी दावे को नहीं मानने के मूड में हैं और इलाके में तनाव अभी और गहरा सकता है.
चीन द्वारा घोषित हवाई रक्षा क्षेत्र का कुछ हिस्सा दक्षिण कोरियाई हिस्से (लियोडो) को भी पार कर जाता है, जिससे इसमें एक और दावेदार का प्रवेश हो गया है. दक्षिण कोरिया ने साफ कर दिया है कि वह चीन के ऐसे किसी दावे को नहीं मानेगा और लियोडो पर अपने क्षेत्रीय नियंत्रण को अपरिवर्तनीय मानता है. ताइवान ने भी अपनी संप्रभुता और सीमा की रक्षा किसी भी कीमत पर करने की बात कही है और इससे मामला और भी गहरा गया है. दुनिया के बदलते सत्ता-समीकरण और अपनी ताकत की पहचान ने चीन के मंसूबों को हवा दी है, इसमें कोई संदेह नहीं है. वह जानता है कि अमेरिकी ऊंट इराक और अफगानिस्तान की रेत में तो फंसा ही है, इसके अलावा भी दुनिया का चौधरी अपनी कई समस्याओं में घिरा है.
ड्रैगन की बढ़ती भूख ने उसे अपने पड़ोसियों के साथ कई जगह पर सीमा-विवाद में उलझा रखा है. नये निजाम के अनुसार अगर जमीन उसकी, ताकत जिसकी है, तो चीन अगर इसे आजमा रहा है, तो कैसा शक? चीन को शायद यह लगने लगा है कि वह अमेरिका और उसके मित्रों को चुनौती दे सकता है और वह शायद इसी की जांच करने के लिए समय-समय पर इस तरह की हरकतें करता रहता है.
भारत को लेकर चीन की चिंता
भारत की स्वदेशी तकनीक से निर्मित विमानवाहक पोत और द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जापान के सबसे बड़े युद्धक पोत को चीन अपने लिए खतरा मान रहा है. चीन की सरकारी मीडिया में आयी एक खबर में आरोप लगाया गया है कि कुछ देश बीजिंग की शक्ति को संतुलित करने के लिए नयी दिल्ली का समर्थन कर रहे हैं. ‘ग्लोबल टाइम्स’ की वेबसाइट के एक लेख में कहा गया है कि भारत के ‘आइएनएस विक्रांत’ और जापान के हेलीकॉप्टर वाहक का सेना में शामिल किया जाना चीन के लिए चेतावनी की तरह है. शंघाई इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल स्टडीज के सेंटर फॉर एशिया-पैसिफिक स्टडीज के सहायक शोधार्थी लियू जोंग्यी ने एक लेख में लिखा है, कुछ चीनी विद्वानों का कहना है कि भारत को अब भी पोत निर्माण के लिए महत्वपूर्ण तकनीक हासिल करनी है और वह पोत की मरम्मत और उसमें सुधार के लिए अन्य देशों पर निर्भर रहेगा.
विवाद के द्वीप
यह द्वीपसमूह (आर्कपेलागो) पांच निर्जन द्वीपों और तीन ‘रीफ’ का समूह है. जापान, चीन और ताइवान इन पर दावा करते हैं. इन पर जापान का नियंत्रण है और वे जापानी प्रशासक प्रांत का हिस्सा हैं. जापानी व्यापारी कुन्योकी कुरिहारा तीन द्वीपों के मालिक थे, पर उन्होंने सितंबर, 2012 में इन सभी को जापानी प्रशासन को बेच दिया. इन द्वीपों की वजह से 2010 में भी जापान और चीन के बीच गहरा राजनयिक विवाद हो चुका था.