-संजय कुमार सिन्हा-
कोचीन विश्वविद्यालय के विज्ञान और तकनीक विभाग में रिसर्च प्रोफेसर डॉ जोसेफ मकोलिल पिछले पांच दिनों से भूख-हड़ताल पर थे. उन्हें पिछले 32 माह से वेतन नहीं दिया गया था. अब डॉ जोसेफ को 20 महीने का वेतन दे दिया गया है. कोचीन विश्वविद्यालय में इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनो मेटेरियल्स एंड डिवाइस (आइयूसीएनडी) की स्थापना का श्रेय डॉ जोसेफ को ही जाता है.
भारत रत्न से सम्मानित वैज्ञानिक प्रो सीएनआर राव ने एक साक्षात्कार में कहा था कि भारत में विश्व स्तर की कोई भी शोध संस्था नहीं है. शोधकर्ताओं को प्रोत्साहित करने की कोई ठोस योजना नहीं है. राव का यह कथन केरल के वैज्ञानिक डॉ जोसेफ मकोलिल के संदर्भ में बिल्कुल सटीक बैठता है. डॉ जोसेफ ने कोचीन विश्वविद्यालय के विज्ञान और तकनीक विभाग (कोचीन यूनिवर्सिटी साइंस एंड टेक्नोलॉजी-कुसैट) में इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनो मेटेरियल्स एंड डिवाइस (आइयूसीएनडी) की स्थापना की थी. सेंटर की रूपरेखा बनाने और योजनाओं को क्रियान्वित करने का श्रेय उन्हीं को जाता है. पर, दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि विश्वविद्यालय सिंडिकेट डॉ जोसेफ को आइयूसीएनडी और उससे जुड़े शोध कार्यो से दूर रखने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाता रहा है.
उनका वेतन 2011 से बकाया था. मीडिया रिपोर्टो और मानवाधिकार संगठनों के आगे आने के बाद विश्वविद्यालय ने अब उन्हें 20 महीने का बकाया वेतन दे दिया है. पर, साथ ही सेंटर छोड़ने का भी आदेश दिया है.डॉ जोसेफ अपने बकाया वेतन की मांग को लेकर पिछले पांच दिनों से भूख हड़ताल पर थे. वेतन मिलने के बाद उन्होंने अनशन समाप्त कर दिया है. यह डॉ जोसेफ की छह महीनों में चौथी भूख-हड़ताल थी.
प्रबंधन की मिलीभगत : विश्वविद्यालय प्रबंधन का डॉ जोसेफ के प्रति रवैया हमेशा पक्षपातपूर्ण रहा है. दिसंबर 2012 में डॉ एम आर अनंतरमन को सेंटर का निदेशक बनाया गया था. डॉ जोसेफ ने प्रभात खबर को भेजे ई-मेल में बताया कि उन्हें हटाने के लिए वीसी डॉ रामचंद्रन थेकेदथ, निदेशक अनंतरमन और रजिस्ट्रार डॉ ए रामचंद्रन ने आपसी मिलीभगत करके एक फरजी पेपर का इस्तेमाल किया, जिसके आधार पर उनकी सैलरी रोक दी गयी थी.
प्रबंधन से टकराव : विश्वविद्यालय प्रबंधन का कहना है कि डॉ जोसेफ उसके स्टाफ नहीं हैं और न ही अभी किसी रिसर्च प्रोजेक्ट से जुड़े हैं. कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के रजिस्ट्रार ए रामचंद्रन के अनुसार, डॉ जोसेफ अगस्त 2013 तक सेंटर से जुड़े हुए थे. लेकिन उन्हें किसी प्रोजेक्ट पर नहीं रखा गया था. उनसे पिछले दो सालों में किये गये कार्य पर रिपोर्ट दाखिल करने को कहा गया था. डॉ जोसेफ रिपोर्ट नहीं दाखिल कर रहे हैं. वहीं, डॉ जोसेफ का पक्ष है कि उन्होंने 2008-09 में इंटर यूनिवर्सिटी फॉर नैनो मेटेरियल्स एंड डिवाइस की स्थापना की सारी रूप-रेखा प्रस्तुत की थी. सेंटर ने 2009 में काम करना भी शुरू किया. उन्हें उप निदेशक का पद दिया गया. फिर सिंडिकेट ने उनकी नियुक्ति को नियमित करने और उन्हें एसोसिएट प्रोफेसर या रीडर का पद देने का प्रस्ताव रखा. लेकिन विश्वविद्यालय प्रबंधन ने सिंडिकेट के निर्णय को नहीं माना.
विश्वविद्यालय की मनमानी : डॉ जोसेफ ने बताया कि वीसी, रजिस्ट्रार और दूसरे अधिकारी अपने निजी फायदे के लिए सिंडिकेट का दुरूपयोग कर रहे हैं. डॉ जोसेफ आइयूसीएनडी काउंसिल के सदस्य भी हैं. पर जनवरी 2010 से लेकर अब तक फैकल्टी काउंसिल की कोई मीटिंग नहीं हुई है. वह बताते हैं कि वह कुसैट से पोस्ट डॉक्टरेट फेलो के रूप में जुड़े थे. उन्होंने आइयूसीएनडी, सेंटर ऑफ एडवांस्ड मेटेरियल्स, सेटर ऑफ अल्टरनेटिव एनर्जी सर्विसेज, सेंटर ऑफ एक्सेलेंस इन एडवांस मेटेरियल्स, नोबेल लौरेट्स प्रोग्राम की पूरी योजना प्रस्तुत की. साथ ही नैनो प्रोजेक्ट (नैनो स्ट्रक्चर पॉलिमर इंक फॉर डिवाइसेज एप्लीकेंश) भी तैयार किया, उसका प्रजेंटेशन दिया. इस प्रोपोजल पर विश्वविद्यालय को 18 करोड़ रुपये फंड भी दिये गये. एक बार फंड मिलने के बाद विश्वविद्यालय अधिकारी उनके साथ बाहरी जैसा बरताव करने लगे. उन्हें अपमानित किया जाने लगा. डॉ जोसेफ ने बताया कि उनके अकादमिक कैरियर की अपूरणीय क्षति हुई है. उनके रिसर्च और प्रोजेक्ट पर दूसरे फैकल्टी काम कर रहे हैं.
डॉ जोसेफ का परिचय : इनका जन्म एक साधारण कृषक परिवार में हुआ. प्राथमिक शिक्षा के बाद घर की जिम्मेदारी संभालते हुए खेतों में मजदूरी भी की. जिस स्कूल में चपरासी की नौकरी करने गये, वहीं हेडमास्टर ने दाखिला दिया. भौतिकी में बीएससी और एमएससी करने के बाद डॉ जोसेफ ने अप्लाइड केमिस्ट्री में पीएचडी की. फिर आइआइटी मुंबई से नैनो टय़ूब्स वाले इलेक्ट्रोकेमिकल बायोसेंसर की डिजाइन पर पोस्ट डॉक्टरेट की. 1998-99 में आइआइएस, बेंगलुरु से पॉलिमर वेब गाइड्स और थिन फिल्म डिवाइसेज पर काम करते हुए पोस्ट डॉक्टरेट किया. वह इटली के पोलो नाजियोनेल डि बायोइलेक्ट्रानिको ऑफ नैनो वर्ल्ड इंस्टीटय़ूट में विजिटिंग साइंटिस्ट भी रहे. 2001-02 में वह येरूशलम के हिब्रू विश्वविद्यालय में भी विजिटिंग साइंटिस्ट रहे. उनके शोध का विषय नैनो टेक्नोलॉजी, नैनो मेटेरियल्स, नैनो डिवाइसेज, नन लीनियर ऑप्टिक्स, पॉलिमर नैनो कंपोजिस्ट, बायोसेंसर आदि रहे हैं.