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बिना बिचड़े, बिना पानी के धान की खेती

राहुल सिंहरांची जिले के ओरमांझी प्रखंड के कुच्चू गांव के किसान बालक महतो झारखंड में कृषि जगत के जाने-पहचाने नाम हैं. राज्य की राजधानी रांची के बड़े कृषि संस्थान कांके स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय व पलांडू स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के क्षेत्रीय केंद्र के ज्यादातर वैज्ञानिक बालक महतो के खेती को लेकर उनकी योग्यता […]

राहुल सिंह
रांची जिले के ओरमांझी प्रखंड के कुच्चू गांव के किसान बालक महतो झारखंड में कृषि जगत के जाने-पहचाने नाम हैं. राज्य की राजधानी रांची के बड़े कृषि संस्थान कांके स्थित बिरसा कृषि विश्वविद्यालय व पलांडू स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के क्षेत्रीय केंद्र के ज्यादातर वैज्ञानिक बालक महतो के खेती को लेकर उनकी योग्यता व योगदान के कारण अच्छे से जानते हैं.

इन संस्थाओं में उन्हें छात्रों को संबोधित करने के लिए भी बुलाया जाता है. खेती के क्षेत्र में पिछले कई सालों से बालक महतो नये-नये प्रयोग करते रहे हैं. इस बार उन्होंने एक ऐसा प्रयोग किया है, जिसकी सफलता राज्य के दूसरे किसानों के लिए मददगार हो सकती है और इसे अपना कर राज्य में धान उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है. उन्होंने इस बार प्रयोग के तौर पर बिना बिचड़ा तैयार किये और बिना खेत में पूरा पानी भरे सिर्फ नमी युक्त भूमि में धान की खेती की है और खेत की फसल देख कर ही यह साफ पता चला रहा है कि परंपरागत विधि से उसमें उपज ज्यादा होगी.

फिलहाल वे खेत के चारों कोने व बीच से एक वर्ग मीटर क्षेत्रफल से धान की कटाई कर उसका औसत निकाल रहे हैं कि परंपरागत या श्रीविधि की तुलना में इस विधि से कितना अधिक उत्पादन प्रति एकड़ भूमि पर हासिल किया जा सकता है. डीआरएस (डायरेक्टर राइस सोइंग) विधि से लगायी गयी धान के बारे में वे कहते हैं कि मानसून आने से पहले जून में दो बार खेत की जुताई कर दें. जब खेत में थोड़ी नमी हो जाये, तो पटा (खेत की मिट्टी का समतलीकरण करने वाला) चला दें. प्रति एकड़ 10 किलोग्राम के हिसाब से धान बीज को उपचारित कर रात भर भिंगाकर डाल दें. प्रति डिसमिल 500 ग्राम रासायनिक खाद या एक एकड़ में 50 किलोग्राम खाद डालें. बालक महतो बीज को उपचारित करने का तरीका बताते हुए कहते हैं : प्रति किग्रा बीज में दो एमएल गाउचो व 15 एमएल पानी मिलायें, इससे वह उपचारित हो जायेगा. वे 15 गुणा 15, 15 गुणा 20 व 20 गुणा 20 सेंटीमीटर पर धान रोप कर उससे मिलने वाले उत्पादन का आकलन करते हैं.

बालक महतो के खेत में धान के पौधे का घनत्व न सिर्फ सामान्य खेतों से बल्कि एसआरआइ (श्रीविधि) से लगाये गये धान की फसल से भी अधिक है. वे बताते हैं कि एसआरआइ में 10-12 दिन पानी फसल को नहीं मिलने पर वह बरबाद होने लगती है, लेकिन इस विधि में फसल उससे भी ज्यादा दिन तक जीवित रह सकती है. बालक बताते हैं कि एसआरआइ तकनीक की तुलना में इस तकनीक में समय भी तीन गुणा कम लगता है. वे खेत में प्रति एकड़ 50 किलोग्राम डीएपी व पोटाश डालने की भी बात कहते हैं. वे बताते हैं कि अपने धान के खेत में प्रति एकड़ 35 किलोग्राम डीएपी व 15 किलोग्राम पोटाश मिला कर वह डालते हैं. इसके अलावा खरपतवार नाशक के रूप में टोपस्टार दवा डालते हैं. यह दवा प्रति एकड़ 45 ग्राम की दर से डालनी होती है. बालक महतो के पास कृषि से जुड़े कई अत्याधुनिक उपकरण भी हैं.

बालक से सीखिए कृषि प्रबंधन
बालक का कृषि प्रबंधन इतना शानदार है कि यह कृषि अर्थव्यवस्था में रुचि रखने वाले किसी छात्र के शोध का विषय हो सकता है. फलों की खेती छोड़ वे हर तरह की फसलों की खेती करते हैं. चाहे वह अनाज हो, दलहन, तिलहन हो या सब्जियों की तरह-तहर की किस्म. साथ ही वे पशुपालन, मछलीपालन भी करते हैं. उनके सारे काम एक-दूसरे से जुड़े हैं और वे एक-दूसरे के लिए मददगार होते हैं. उनके खेत के आसपास बड़े-बड़े कुएं हैं, जिसमें मछली भी पालते हैं और उससे सिंचाई भी करते हैं. उनके यहां हमेशा 100 मुरगे-मुरगियां रहती हैं. उनके पास एक छोटा गोशाला भी है, जिसमें 16 गायें हैं. बालक बताते हैं एक-एक मुरगे-मुरगी की कीमत उसके तैयार होने पर पांच हजार रुपये तक मिल जाती है. उसी तरह गाय 50 से 60 हजार रुपये तक में बिक जाती है. बैलों की भी ठीक -ठाक कीमत मिल जाती है. डेयरी की गाड़ी हर दिन बालक के घर आकर दूध ले जाती है.

1976 में रांची के ही बूटी इलाके से विस्थापित होने के बाद कुच्चू इलाके में बसने के समय उन्होंने तीन एकड़ के आसपास जमीन खरीदी, लेकिन आज सिर्फ खेती की कमाई से उनके पास 20 एकड़ जमीन हो गयी है. बालक महतो सरकारी योजनाओं का भरपूर लाभ उठाते हैं. इस बार उन्होंने सिर्फ दो लाख रुपये का आलू बीज बेचा. एक ओर जहां लोग सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलने का रोना रोते हैं, वहीं बालक ऐसी योजनाओं का भरपूर लाभ उठाते हैं. उनके खेत में सेड नेट व पॉली हाउस लगे हुए हैं, जिसमें वे अलग-अलग फसल उपजाते हैं. राष्ट्रीय बागवानी मिशन की योजनाओं व अनुदान पर उपकरण व अन्य संसाधन देने की योजना का भी वे लाभ लेते हैं. आलू या अन्य बीजों व फसलों को वे तैयार होने के बाद सरकारी गोदाम में किराया देकर रखते हैं और बिक्री के समय निकाल लेते हैं. उनके खेतों में स्प्रिंकलर व ड्रिप इरीगेशन सिस्टम भी लगा हुआ है. बालक से बहुत सारे किसान खेती भी सीखते हैं और तकनीकी व सरकारी मदद के लिए भी मार्गदर्शन लेते हैं.

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