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बांग्लादेश के कपड़ा मजदूरों को राहत

-संजय कुमार सिन्हा- बांग्लादेश में रेडिमेड वस्त्र उद्योग में काम करने वाले मजदूरों की दयनीय दशा के बारे में हमेशा खबरें छपती रही हैं. उनके काम करने की स्थितियां विश्व में सर्वाधिक खतरनाक हैं. अपने काम के एवज में वे दुनिया में सबसे कम भुगतान पाते हैं. इस मुद्दे को लेकर पिछले कुछ महीनों से […]

-संजय कुमार सिन्हा-

बांग्लादेश में रेडिमेड वस्त्र उद्योग में काम करने वाले मजदूरों की दयनीय दशा के बारे में हमेशा खबरें छपती रही हैं. उनके काम करने की स्थितियां विश्व में सर्वाधिक खतरनाक हैं. अपने काम के एवज में वे दुनिया में सबसे कम भुगतान पाते हैं. इस मुद्दे को लेकर पिछले कुछ महीनों से लगातार धरना-प्रदर्शन-हड़ताल किये जा रहे थे. इस दिशा में कुछ सफलता भी मिली है. यूरोप और अमेरिका की बड़ी रिटेलर कंपनियों ने कई समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, जिससे कारखानों में सुरक्षा उपाय बेहतर किये जा सकेंगे. साथ ही बांग्लादेश की सरकार ने भी मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी में 77 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है. इससे बांग्लादेश में मजदूरों के बेहतर जीवन होने की उम्मीद जगी है, हालांकि ये वेतन बढ़ोतरी दूसरे मुल्कों के मुकाबले अभी भी नाकाफी हैं.

भारत का पड़ोसी देश बांग्लादेश जहां अगले साल भारत की ही तरह आम चुनाव होने हैं, सियासी हलचलों की वजह से चर्चा में है. भय, अनिश्चितता के माहौल में बांग्लादेशी अवाम जीने को मजबूर हैं. देश में हड़तालों का दौर जारी है. बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के नेतृत्व में 18 विपक्षी पार्टियां आम चुनावों में भाग नहीं लेने की जिद पर अड़ी हैं. जबकि सत्तारूढ़ अवामी लीग 1971 के युद्ध अपराधों के लिए दोषी सैन्य अफसरों पर कार्रवाई कर रही है. इस निराशाजनक माहौल के बीच बांग्लादेश की गारमेंट इंडस्ट्री के लिए अच्छी खबरें आयी हैं. पहला तो यह कि दुनिया की बड़ी रिटेल कंपनियां बांग्लादेश की गारमेंट इंडस्ट्री में प्रयुक्त होने वाले सुरक्षा मानकों की जांच पर सहमत हो गयी हैं. और दूसरा, बांग्लादेश की सरकार ने गारमेंट इंडस्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की माहवार न्यूनतम मजदूरी में 77 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है. ये दोनों कदम बांग्लादेश के फल-फूल रहे गारमेंट इंडस्ट्री को नयी ऊंचाई देंगे. पर सवाल यह उठता है कि क्या इन उपायों से बांग्लादेश के गारमेंट इंडस्ट्री की खामियों को दूर किया जा सकेगा?

उत्पादन बढ़ा, पर लाभ घटा

बांग्लादेश का कपड़ा उद्योग इसकी अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग है. पांच हजार से अधिक कपड़े के कारखाने हैं. इंडोनेशिया के ढ़ाई हजार और वियतनाम के दो हजार कारखानों की तुलना में ये बहुत अधिक है. एशिया के किसी भी प्रतिद्वंदी देश के मुकाबले यहां का श्रम सस्ता है. यही नहीं, अगर श्रमिकों की मजदूरी में तीन गुनी बढ़ोतरी भी की जाये, तो भी वे दूसरे मुल्कों के मुकाबले सस्ते श्रमिक ही रहेंगे. चीन, भारत और श्रीलंका से उत्पादित होने वाले सारे कपड़े को मिला दें, तो उतने कपड़े की सिलाई करके अकेले बांग्लादेश यूरोपियन यूनियन को भेजता है, जो कर मुक्त है. बांग्लादेश से सस्ते कपड़ों की मांग में जिस तरह वृद्धि हो रही है, उससे अगले 20 सालों में कपड़ा उद्योग का आकार चार गुना हो जायेगा. गारमेंट इंडस्ट्री में 40 लाख से अधिक लोगों को सीधे-सीधे रोजगार मिला है, जिनमें अधिकांश महिलाएं हैं. इससे साफ समझा जा सकता है कि गारमेंट इंडस्ट्री बांग्लादेश के लिए एक तरह से लाइफलाइन है. पर वास्तव में स्थिति खराब है. इसे केवल कारखानों में लगने वाली आग या दुघर्टनाओं के आलोक में ही नहीं देखा जा सकता है. सच्चई यह है कि उत्पादन या आउटपुट तो बढ़ा है, पर मुनाफा घटा है. पिछले पांच वर्षो में औसत गारमेंट के मूल्य में 12 प्रतिशत की कमी (स्थानीय मुद्रा में) आयी है. बांग्लादेशी अर्थव्यवस्था के जानकार और अमेरिकन अर्थशास्त्री फोरेस्ट कुकसन के अनुसार, फैक्टरी मालिकों ने अपने निवेश पर 20 से 50 प्रतिशत का लाभ कमाया है. यह उनके लिहाज से अनुकूल दिखता है, पर वे भी गारमेंट इंडस्ट्री से हाथ खींचना चाहते हैं. खास कर स्थानीय फैक्टरी मालिक. घरेलू बैंकों से पैसा लेने के लिए आपको अपनी जेबें ढ़ीली करनी पड़ेगी. यही कारण है कि टेक्सटाइल फर्मे द्वारा कर्ज लेने की दर 18 प्रतिशत है.

फिर भी यह तो तय है कि आने वाले वर्षो में बांग्लादेश में गारमेंट इंडस्ट्री का आकार बड़ा होगा, पर इसके बावजूद कुछ स्थानीय फैक्टरी मालिक अपनी कारखानों को बेचने की योजना बना रहे हैं. हाल के दिनों में बांग्लादेशी कपड़ा मालिकों द्वारा विदेशों में घर खरीदना यह संकेत करता है कि वे इस बिजनेस से हाथ समेटना चाहते हैं. अब यदि सरकार फैक्टरी मालिकों को मजदूरों का वेतन बढ़ाने के लिए बाध्य करती है, जैसा कि किया भी गया है, तब वे अपने कारखानों में सुरक्षा उपायों पर कम से कम निवेश करना चाहेंगे. अगर ऐसा होता है, तो राणा प्लाजा में हुए हादसे के बाद सुरक्षा उपाय बढ़ाने के जो प्रयास हो रहे थे, उसे गहरा धक्का लग सकता है.

आइएलओ की रिपोर्ट

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन) ने बांग्लादेश की गारमेंट इंडस्ट्री पर एक रिपोर्ट पेश की है. यह रिपोर्ट कपड़ा कारखानों में एक के बाद एक हुए हादसों को देखते हुए तैयार की गयी है. संभवत: विश्व के सबसे भयंकर औद्योगिक हादसे राणा प्लाजा फैक्टरी कांप्लेक्स के ढहने में 1135 लोगों के मरने के बाद आइएलओ ने इस रिपोर्ट को तैयार करना जरूरी समझा. आइएलओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया के दूसरे सबसे बड़े गारमेंट निर्यातक देश बांग्लादेश को वस्त्र उद्योग में व्यापक स्तर पर सुधार लाने की जरूरत है, ताकि मजदूरों का रहन-सहन बेहतर हो सके और आर्थिक विकास को और गति दी जा सके. रिपोर्ट में संगठन ने साफ कहा है कि काम करने की स्थितियां और सुरक्षित बनायी जानी चाहिए. साथ ही वेतन भी बढ़ाये जाने चाहिए. बीबीसी की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि बांग्लादेश के गारमेंट फैक्टरी में काम करने वाले मजदूर कंबोडिया, वियतनाम, भारत और पाकिस्तान के मुकाबले काफी कम वेतन पाते हैं. सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि पिछले 30 वर्षो में गारमेंट इंडस्ट्री में काम करने वाले मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी में महज तीन बार ही मामूली बढ़ोतरी की गयी है. आइएलओ ने कहा कि बांग्लादेश के गारमेंट इंडस्ट्री में सुधार सबसे बड़ा निवेश होगा, इससे न केवल निर्यात में बढ़ोतरी होगी, बल्कि नयी नौकरियों का भी सृजन होगा.

केवल आइएलओ की रिपोर्ट ही नहीं, विश्व की कई संस्थाओं ने बांग्लादेश की गारमेंट इंडस्ट्री में लचर सुरक्षा व्यवस्था और मजदूरों के हितों की अनदेखी पर गहरी चिंताएं जाहिर की हैं. ब्रिटेन की एक संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि यदि सुरक्षा उपाय बेहतर नहीं किये जाते हैं, तो राणा प्लाजा और ताजरीन फैशन में हुई दुर्घटनाएं फिर से घट सकती हैं. एक दूसरी रिपोर्ट में बताया गया कि छह में एक फैक्टरी जिन्होंने वॉलमार्ट के साथ करार किया है, वे सुरक्षा मानकों पर खरे नहीं उतरे.

हड़ताल से भी कुछ खास फायदा नहीं

हालांकि बांग्लादेश सरकार ने गारमेंट इंडस्ट्री में काम करने वाले मजदूरों के न्यूनतम वेतन में 77 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है, पर यह वास्तव में ऊंट के मुंह में जीरे के समान है. महीनों से हजारों की संख्या में मजदूर सड़कों पर उतरे थे. कई दिनों तक 300 से ऊपर फैक्टरियों में कामकाज ठप पड़ा था. मजदूर मासिक न्यूनतम मजदूरी 38 डॉलर को 100 डॉलर करने की मांग कर रहे थे. पर सरकार ने केवल 77 प्रतिशत की वृद्धि की, जो लगभग प्रति माह 68 डॉलर (5300 टका) बैठता है. इसके पहले 2010 में भी महीनों तक आंदोलन चला था, उस समय सरकार ने झुकते हुए न्यूनतम वेतन को लगभग दोगुना कर दिया था. इस बार जब हड़ताल किये गये, तो फैक्टरी मालिकों ने वेतन में 20 प्रतिशत बढ़ोतरी की बात कही, जिसे मजदूरों ने मानने से इनकार कर दिया. केयर 2 संस्था से जुड़े केविन मैथ्यूज के अनुसार, हालांकि यह बढ़ोतरी अधिक दिखती है, पर वास्तव में इसके बावजूद बांग्लादेश के कपड़ा उद्योगों में काम करने वाले श्रमिक दुनिया में सबसे कम मजदूरी पाते हैं.

महंगाई के अनुपात में मजदूरी नाकाफी

दुनिया में चोटी के वस्त्र निर्यातक देशों पर हुए एक नये अध्ययन में बताया गया है कि महंगाई के आधार पर मजदूरों के वेतन की बात की जाये, तो अधिकांश देशों में यह लगातार गिर रहा है. इसमें केवल बांग्लादेश ही नहीं है, बल्कि मेक्सिको जैसे देश भी शामिल हैं. क्रय क्षमता (परचेजिंग पावर पैरिटी) के आधार पर देखें, तो बांग्लादेशी कपड़ा मजदूरों की मजदूरी में 2001-2011 के बीच 2 प्रतिशत की गिरावट आयी है. मेक्सिको में तो यह गिरावट 30 प्रतिशत तक है. यह जानना दिलचस्प होगा कि इसी दौर में चीन में कपड़ा उद्योग में मजदूरी में 125 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. इससे साफ समझा जा सकता है कि दुनिया की बड़ी रिटेलर कंपनियां बांग्लादेश और कंबोडिया क्यों जा रही हैं.

सुरक्षा उपायों पर सहमति

बांग्लादेश के कपड़ा उद्योग के लिए राहत की बात यह है कि सरकार दुर्घटनाओं को रोकने और सुरक्षा उपायों को बेहतर करने के मुद्दे पर ज्यादा संवेदनशील हुई है. बांग्लादेश की सरकार और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने रेडिमेड गारमेंट सेक्टर में सुरक्षा उपायों के लिए मिलकर काम किया है. आइएलओ के डायरेक्टर जेनरल गाइ राइडर ने कहा कि रेडिमेड गारमेंट इंडस्ट्री बांग्लादेश के आर्थिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, पर साथ ही सुरक्षा उपाय और मजदूरों के रहन-सहन पर भी उतना ही ध्यान दिया जाना जरूरी है. यूनाइटेड किंग्डम और हॉलैंड जैसे देशों ने आइएलओ के जरिये करोड़ों रुपये दिये हैं. बांग्लादेश में हालैंड के राजदूत गर्बेन जोएर्ड डि जोंग के अनुसार, राणा प्लाजा और ताजरीन में हुई दुर्घटनाएं इस बात की प्रतीक हैं कि बांग्लादेश के गारमेंट इंडस्ट्री में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है. बांग्लादेश की इस स्थिति को समझते हुए दुनियाभर के कई ब्रांड, यूनियन, रिटेलर फायर एंड बिल्डिंग सेफ्टी पर सहमत हुए हैं. कुल मिलाकर सुरक्षा उपायों पर तीन तरह के समझौते सामने आये हैं, जिससे उम्मीद की जा सकती है कि अब राणा प्लाजा जैसी घटनाएं नहीं होंगी. ये हैं यूरोपियन रिटेलरों के नेतृत्व में द एकॉर्ड ऑन फायर एंड सेफ्टी इन बांग्लादेश, वॉलमार्ट के प्रभाव वाले द एलायंस फॉर बांग्लादेश वर्कर सेफ्टी और खुद बांग्लादेश सरकार की त्रिपक्षीय कार्य योजना शामिल है. हालांकि ये समझौते सामने आये हैं, पर आइएलओ के कंट्री डायरेक्टर श्रीनिवास रेड्डी के अनुसार, अभी सभी समूहों की स्टीयरिंग कमिटी से हरी झंडी मिलनी बाकी है. अगर ऐसा होता है, तो बांग्लादेश के गारमेंट इंडस्ट्री के लिए मील का पत्थर साबित होगा. बांग्लादेश विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर मेहदी अहमद अंसारी के मुताबिक नये एग्रीमेंट में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि फैक्टरियों के जांच के लिए एक रिव्यू पैनल के गठन की बात भी कही गयी है.

समझौते में बहुत कुछ

100 से ऊपर यूरोपियन ब्रांड जिसमें हेंज एंड मारित्ज, एबी, जारा पैरेंट, प्राइमार्क शामिल हैं उन्होंने पांच साल के लिए बाध्यकारी समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसके मुताबिक पहले दो साल वे कंपनी के ऑर्डर को बनाये रखेंगे और साथ ही फैक्टरी के रखरखाव में भी वे सहयोग करेंगे. अमेरिका की दो दर्जन कंपनियां (वॉलमार्ट और गैप के नेतृत्व में) ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, जिसके तहत वे फैक्टरी की जांच और उसके रखरखाव में होने वाले खर्चो में निवेश करेंगे. एक तरफ यूरोपियन समझौते के दायरे में 1600 फैक्टरियां आयेंगी, वहीं अमेरिकी समझौते में 600 कंपनियां.

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