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बरकरार है लालू की लोकप्रियता

– विवेक चंद्र – आनेवालों की बढ़ती तादाद बताती है लालू प्रसाद से मिलने वालों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है. हर तबके से उनके चाहनेवाले दूर-दूर से आ रहे हैं. ये सब अपने किराये से पहुंच रहे हैं. उपहार ला रहे हैं. इनकी यात्रा किसी ने प्रायोजित नहीं की है. कई लोग […]

– विवेक चंद्र –

आनेवालों की बढ़ती तादाद बताती है

लालू प्रसाद से मिलने वालों की संख्या में इजाफा होता जा रहा है. हर तबके से उनके चाहनेवाले दूर-दूर से आ रहे हैं. ये सब अपने किराये से पहुंच रहे हैं. उपहार ला रहे हैं. इनकी यात्रा किसी ने प्रायोजित नहीं की है. कई लोग तो ऐसे भी हैं, जिन्हें मिलने का अवसर नहीं मिला.

रांची : यह बिरसा मुंडा केंद्रीय कारा के बाहर का नजारा है. यह हर दिन का नजारा है. बिहार के गांव-देहात से आये लोगों की हसरत एक ही है- साहब यानी लालूू प्रसाद से किसी तरह देखा-देखी हो जाये.

जिनसे मुलाकात हो जाती है वे खुद को किस्मत वाला समझते हैं और जिनसे नहीं हो पाती वे दोबारा-तिबारा आने का हौसला दिखाते हैं. चारा घोटाले में सजा मिलने के बाद लालू प्रसाद 30 सितंबर से यहां बंद हैं. लालू से मिलने वालों में केवल वीआइपी ही नहीं हैं.

बड़ी संख्या में आम लोगों भी उनसे मिलने आ रहे हैं. बिहार के सुदूर गांवों से आने वाले लोगों की तादाद काफी है. उनमें से हर दिन पचास से ज्यादा लोग लालू से भेंट नहीं हो पाने के चलते लौट जाते हैं. लोग अपने नेता से मिलने की तमन्ना लिये पहुंच रहे हैं. और वह भी अपनी जेब से पैसा खरचकर. वहां बिहार के हर इलाके से लोग आ रहे हैं. कोसी हो या मिथिलांचल.

खांटी भोजपुरिया क्षेत्र हो या मगध का इलाका. हर दिन जेल गेट पर गरीबों की खड़ी भीड़ हसरत के साथ लालू से मिलने पहुंच रही है. पर्व-त्योहार में अपने घर पर रहने के बदले वे लालू के साथ एक घड़ी बिताना चाहते हैं. जेल जाने के बाद लालू प्रसाद के भविष्य को लेकर सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर अनिश्चितता बनी हुई थी. कोई उन्हें फिनिश्ड बता रहा था, तो किसी की नजर में उनका लौटना मुश्किल था. कोई पार्टी के तहस-नहस होने की भविष्यवाणी कर रहा था.

मगर तमाम आशंकाओं के उलट उनसे मुलाकातियों की तादाद उनकी लोकप्रियता की ओर इशारा करती है. क्या वे मजबूती के साथ अपनी पुरानी जमीन पर लौट रहे हैं? उनको लोगों की सहानुभूति मिल रही है?

इन सवालों को समझने के लिए हमने बात की हिंदू कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल से. वह जेल में लालू प्रसाद से मुलाकात कर शुक्रवार को दिल्ली लौट गये. इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल को यही बात समझ में नहीं आती कि जेल में बंद लालू प्रसाद से आम लोग मिलने के लिए भला क्यों पहुंच रहे हैं? इस आकर्षण ने उन्हें सैकड़ों किलोमीटर की दूरी नपवा दी.

रतन कहते हैं-सामाजिक न्याय आंदोलन के चैंपियन हैं लालू प्रसाद. मास लीडर हैं. उनके नेतृत्व में लड़ी गयी लड़ाई का फल आज भले दूसरे लोग चख रहे हों पर लालू प्रसाद की भूमिका अब और बढ़ गयी है. बिहार के गरीबों में उनके जेल जाने से मायूसी है. लालू प्रसाद से क्या आपकी बात हुई? उन्होंने कुछ कहा भी? मूल रूप से मुजफ्फरपुर के रहने वाले रतन लाल ने कहा-वह निराश नहीं हैं. आत्मविश्वास से भरे हैं.

आरा के वीर कुंअर सिंह विश्वविद्यालय से एम कॉम कर रहे मुसलिम अंसारी दोबारा लालू प्रसाद से मिलने की योजना बना रहे हैं. पिछले महीने की 17 तारीख को अपने सात दोस्तों के साथ गाड़ी रिजर्व कर रांची गये थे. अंसारी कहते हैं- लालू जी ने हमें बोलने की ताकत दी. सामंती समाज मे इज्जत व सम्मान दिलाया.

उनके जेल जाने से गरीब लोग एकजुट हो गये हैं. सासाराम के विजय मंडल अब तक तीन दफे रांचीके होटवार जेल में लालू प्रसाद से मिल चुके हैं. चौहत्तर आंदोलन में शामिल रहे मंडल कहते हैं-लालू प्रसाद केजेल जाने के बाद रोहतास के दिनारा में दो नवंबर को राजद की मीटिंग हुई. उसमें पार्टी सांसद जगदानंद सिंह और रामकृपाल यादव भी आये थे.

दिनारा में 1990 के बाद ऐसी पहली मीटिंग थी जिसमें इतनी भीड़ जुटी. रोहतास जिला राजद के अध्यक्ष मंडल का दावा है कि पार्टी पूरी तरह एकजुट है. शौकत अली होटवार जेल के बाहर लगातार रो रहा है. रोते-रोते उसकी आंखें सूज गयी हैं. वह बिहार के ब्रह्मपुरा से लालू प्रसाद से मिलने पिछले एक महीने में तीन बार रांची आ चुका है. पर उसकी मुलाकात नहीं हो सकी. तीसरे प्रयास में जब वह मिलने में नाकाम रहा तो हताश हो गया और फूट-फूटकर रोने लगा. इंटर में पढ़ने वाले शौकत की जिद है कि वह लालू प्रसाद से मिलने फिर रांची आयेगा. वह उन्हें गरीबों का मसीहा मानता है.

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