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देर से सोनेवाले बच्चे पढ़ाई में फिसड्डी

लॉस एंजिलिस:एक कहावत है – अर्ली टु बेड एंड अर्ली टु राइज, मेक्स ए मैन हेल्दी-वेल्दी एंड वाइज. अब यह बात रिसर्च में भी साबित हुई है. रात में देर से सोने वाले टीनएजर्स पढ़ाई-लिखाई में फिसड्डी होते हैं. ऐसे बच्चों को भावनात्मक परेशानियों से भी जूझना पड़ता है. यह खुलासा नये अध्ययन में हुआ […]

लॉस एंजिलिस:एक कहावत है – अर्ली टु बेड एंड अर्ली टु राइज, मेक्स ए मैन हेल्दी-वेल्दी एंड वाइज. अब यह बात रिसर्च में भी साबित हुई है. रात में देर से सोने वाले टीनएजर्स पढ़ाई-लिखाई में फिसड्डी होते हैं. ऐसे बच्चों को भावनात्मक परेशानियों से भी जूझना पड़ता है. यह खुलासा नये अध्ययन में हुआ है. रिसर्च के दौरान यह बात सामने आयी कि इनके मुकाबले जो बच्चे जल्दी सो जाते हैं, उनकी एकेडमिक परफॉर्मेस बेहतर होती है.

11:30 से पहले सो जायें : यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया के साइकॉलजी डिपार्टमेंट के स्टूडेंट और रिसर्च टीम के हेड लॉरेन के मुताबिक, जो बच्चे रात में 11:30 बजे के बाद बिस्तर पर जाते हैं, स्कूल में उनका ग्रेड प्वाइंट बेहद खराब होता है. इन्हें इमोशनल दिक्कतों से भी दो-चार होना पड़ता है. हाई स्कूल, ग्रेजुएशन और कॉलेज जाने के दिनों में भी इन्हें काफी मुश्किलें होती हैं.

मदद करें अभिभावक : अध्ययन दल के मुखिया लॉरेन ने अभिभावकों से कहा कि वे बच्चों में जल्दी सोने की आदत डालें. उन्होंने कहा कि वैसे काफी-कुछ इस पर भी निर्भर करता है कि टीएनएजर्स के फ्रेंड सर्कल के लोग कब सोते हैं.

2700 किशोरों पर अध्ययन : रिसर्च के दौरान 13 से 18 साल के बीच के तकरीबन 2,700 टीन एजर्स के सोने के घंटों की स्टडी से जुड़े आंकड़े जुटाये गये.

यह अध्ययन अमेरिका के नेशनल लॉन्गिट्यूडिनल स्टडी ऑफ अडोलसेंट हेल्थ की ओर से 1995 और 1996 में की गयी थी. इसके बाद 2001-02 में जब स्टडी में शामिल बच्चे और बड़े हो गये तो इनसे जुड़ी जानकारियां जुटायी गयीं. इस अध्ययन का मकसद यह पता लगाना था कि क्या बच्चों के सोने के वक्त का उनकी एकेडमिक परफॉर्मेस पर कोई असर पड़ता है.

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