आसनसोल: आसनसोल नगर निगम के जन प्रतिनिधियों और निगम आयुक्त सह महकमाशासक शिल्पा गौरीसरिया के बीच चल रहा शीत युद्ध मंगलवार को निर्णायक मुकाम पर पहुंच गया. श्रीमती गौरीसरिया को प्रन्नति देकर उन्हें राज्य उच्च पथ प्राधिकार (स्टेट हाइवे ऑथोरिटी) का वित्त निदेशक बनाया गया है. यह संस्था लोक निर्माण विभाग के अधीन है. इसका कार्यालय राज्य मुख्यालय है. इनके स्थान पर साउथ 24 परगना जिले के डीपीडी व राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अमिताभ दास को नियुक्त किया गया है. यह स्पष्ट नहीं है कि श्री दास को निगम आयुक्त का दायित्व मिलेगा या पूर्णकालिक निगम आयुक्त की पदास्थापना होगी.
फ्लैश बैक
जबसे श्रीमती गौरीसरिया ने निगम आयुक्त का प्रभार लिया था, जन प्रतिनिधियों के साथ उनका टकराव शुरू हो गया था. शुरूआत कर्मियों के वेतन भुगतान में हुये विलंब से हुई. इसके बाद श्रीमती गौरीसरिया ने नियमों के आधार पर कार्यो का निष्पादन करने की नीति अपनायी. इसके कारण निगम में चल रही कई अनियमितताओं पर रोक लगने लगी. यहां तक कि मौखिक स्तर से होनेवाले विकास कार्यो पर रोक लग गयी. उन्होंने विभिन्न फाइलों पर नियमों का हवाला देकर स्पष्टीकरण मांगना शुरू किया. उन्होंने कई विकास कार्यो का स्पॉट निरीक्षण की भी बात कही. नियमों का हवाला देने के कारण कई सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं पर भी असर पड़ने लगा.
सदन की अवमानना
निगम बोर्ड में पारित योजनाएं भी जब बाधित होने लगी तो निगम चेयरमैन जितेंद्र तिवारी ने इसे बोर्ड की अवमानना माना. उन्होंने मेयर परिषद को पत्र लिख कर सूचित किया कि नियमों के अनुसार ही योजनाएं लायी जाये ताकि निगम आयुक्त के पास फाइलें न रुके. निगम बोर्ड की बैठक में सलाहकार के रुप में वरीय अधिकारी उपस्थिति रहने लगे. मेयर परिषद के लिए कई परेशानियां शुरू हो गयी. निगम के कई अधिकारियों की परेशानी बढ़ गयी. स्थिति औरविस्फोटक हो गयी.
फिर आया क्लाईमेक्स
दोनों पक्षों के बीच चल रहा शीतयुद्ध क्लाईमेक्स तब आया जब सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं के तहत वृद्धावस्था, विधवा व विकलांग पेंशन भुगतान पर रोक लग गयी. इसको आधार बना कर जनगणना के मुद्दे पर चल रही बैठक में जन प्रतिनिधियों ने हंगामा किया तथा निगम आयुक्त को बैठक के बीच से उठ जाना पड़ा. उसी दिन चेयरमैन श्री तिवारी, मेयर परिषद सदस्य रवि उल इस्लाम, मेयर परिषद सदस्य अभिजीत घटक, पार्षद आदि ने जिलाशासक ओंकार सिंह मीणा को पत्र लिख कर उनकी कार्य प्रणाली का विरोध किया तथा हस्तक्षेप करने का आग्रह किया. हालांकि श्री मीणा ने इसे उनके दायित्व से अलग बताया.
शहरी मंत्री का दौरा निर्णायक
राज्य के शहरी मंत्री फिरदास हकीम उर्फ बॉबी हकीम का दौरा इस शीतयुद्ध के लिए निर्णायक साबित हुआ. निगम के जन प्रतिनिधियों ने उन्हें पूरे प्रकरण की जानकारी दी. उनका कहना था कि सामाजिक योजनाओं की बंदी से आम जनता के बीच गलत संदेश जा रहा है. नियमानुसार कार्य करना जनाकांक्षा के साथ तालमेल नहीं हो रहा है. इधर प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि कई बार श्रीमती गौरीसरिया ने मंत्री श्री हाकिम से निगम के दायित्व से मुक्त करने का आग्रह किया था. उनका तर्क था कि वे महकमाशासक और निगमायुक्त दोनों पदों के लिए पर्याप्त समय नहीं दे पा रही है.
आयुक्त पर निर्णय नहीं
मेयर तापस बनर्जी ने कहा कि उन्हें भी तबादले की जानकारी मिली है. निगमायुक्त के दायित्व के बारे में स्पष्ट निर्देश नहीं है. उन्होंने शहरी विकास विभाग को पत्र लिख कर आग्रह किया है कि निगम को पूर्णकालिक आयुक्त दिया जाये. निगम के पास विकास की बड़ी संख्या में योजनायें हैं तथा अतिरिक्त प्रभार में इन दायित्वों का निर्वाह संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि यदि दुर्गापुर नगर निगम के आयुक्त को भी दायित्व दिया जाता है तो विकास कार्य बाधित होगा. उन्होंने कहा कि उनके पास अधिकृत जानकारी नहीं है. शीघ्र ही स्थिति स्पष्ट हो जायेगी.
निगम कार्यालय में राहत
निगम आयुक्त के तबादले की सूचना मिलने के बाद निगम के अधिकारियों व जन प्रतिनिधियों ने राहत की सांस ली है. जन प्रतिनिधियों का तर्क है कि कुछ योजनआओं पर कार्य शुरू हो जायेगा तथा जनता को राहत मिलेगी. अधिकारियों के लिए राहत की बात यह थी कि उन्होंने कई कार्य जन प्रतिनिधियों के निर्देश के आधार पर की थी. जांच होने पर उनके लिए परेशानी हो सकती थी. वे जन प्रतिनिधियों व आयुक्त के बीच दुविधा में फंसे हुये थे.