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दुनिया की आबादी से भी ज्यादा मोबाइल कनेक्शन!

पिछले करीब दो दशक में जिस एक चीज ने पूरी दुनिया में लोगों के जीवन में एक किस्म की क्रांति का सूत्रपात किया है, वह है मोबाइल फोन. आज मोबाइल फोन जिंदगी का कितना अहम हिस्सा बन गया है, इसे दुनिया में मोबाइल कनेक्शन की तेजी से बढ़ती संख्या से समझा जा सकता है. संयुक्त […]

पिछले करीब दो दशक में जिस एक चीज ने पूरी दुनिया में लोगों के जीवन में एक किस्म की क्रांति का सूत्रपात किया है, वह है मोबाइल फोन. आज मोबाइल फोन जिंदगी का कितना अहम हिस्सा बन गया है, इसे दुनिया में मोबाइल कनेक्शन की तेजी से बढ़ती संख्या से समझा जा सकता है.

संयुक्त राष्ट्र की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल कनेक्शनों की संख्या इस साल के अंत तक दुनिया की आबादी को पार कर जायेगी. इस रिपोर्ट के बहाने दुनियाभर में मोबाइल कनेक्शनों के प्रसार पर नजर डालता आज का नॉलेज.

कभी माल्थस ने विश्व जनसंख्या के बहुगणितीय तरीके से बढ़ने की आशंका जतायी थी. माल्थस के निष्कर्ष तो सच साबित नहीं हुए, लेकिन दुनिया में एक चीज है, जिसकी संख्या बहुगणितीय गति से भी ज्यादा तेज गति से आगे बढ़ रही है. जी हां, हम बात कर रहे हैं, मोबाइल फोन कनेक्शन की.

सन् 2005 में दुनिया में कुल मोबाइल फोन कनेक्शन या सब्स्क्रिप्शन की संख्या विश्व की आबादी की तुलना में करीब एक तिहाई थी.

उस वक्त विश्व जनसंख्या करीब साढ़े छह अरब थी, जबकि मोबाइल कनेक्शन की संख्या दो अरब से कुछ ही ज्यादा (2.2 अरब) थी, लेकिन महज आठ वर्षो में जहां विश्व जनसंख्या काफी तेजी से आगे बढ़ती हुई सात अरब से कुछ ऊपर पहुंची है, मोबाइल फोन सब्स्क्रिप्शन की संख्या ने लंबी छलांग लगाते हुए लगभग विश्व जनसंख्या की बराबरी कर ली है और संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय टेलीकम्युनिकेशन संघ की नयी रिपोर्ट की मानें, तो वर्ष 2013 के अंत तक दुनिया में कुल मोबाइल फोन कनेक्शनों की संख्या इनसानों की कुल संख्या के पार चली जायेगी.

क्या कहती है रिपोर्ट

अंतरराष्ट्रीय टेलीकम्युनिकेशन यूनियन की रिपोर्ट के मुताबिक अगर मोबाइल फोन कनेक्शनों की संख्या की वृद्धि दर इसी तरह बनी रही, तो इस साल के अंत तक कनेक्शनों की संख्या इनसानों की संख्या से आगे निकल जायेगी.

रिपोर्ट का कहना है कि इस वक्त दुनिया में कुल 6.8 अरब मोबाइल फोन कनेक्शन हैं, जिसे 7.1 अरब लोगों के बीच साझा किया जा रहा है. कुल मोबाइल सब्स्क्रिप्शन में आधे से ज्यादा हिस्से के साथ एशिया प्रशांत क्षेत्र बाकी दुनिया से कहीं आगे हैं.

एशिया प्रशांत क्षेत्र में इस वक्त विश्व के 6.8 अरब मोबाइल कनेक्शनों में से 3.5 अरब मोबाइल कनेक्शन हैं. हालांकि इस रिपोर्ट से यह भी जाहिर होता है मोबाइल कनेक्शनों के मामले में विकसित और विकासशील देशों के बीच खाई अभी भी मौजूद है.

मोबाइल कनेक्शन की वृद्धि दर पर लगाम

विश्व मोबाइल पेनेट्रेशन के 100 प्रतिशत के करीब पहुंचने का असर मोबाइल बाजार पर भी पड़ा है और दुनिया भर में मोबाइल उपभोक्ता वृद्धि दर में गिरावट दर्ज की जा रही है. विश्व में मोबाइल फोन कनेक्शन प्रति सौ व्यक्ति पर जहां 96 पर आ गया है, वहीं विकासशील और विकसित देशों में यह क्रमश: 89 और 128 है.

आंकड़े बताते हैं कि अब मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ाने की गुंजाइश काफी कम बची है और इसे मोबाइल बाजार वृद्धि की लगातार गिरती दर में भी देखा जा सकता है. विकसित देशों में जहां यह वृद्धि दर गिर कर 3.7 प्रतिशत पर आ गयी है, वहीं विश्व वृद्धि दर 5.4 फीसदी पर है.

मोबाइल कनेक्शन में वृद्धि मूलत: विकासशील देशों में हो रही है, जहां इसमें 6.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की जा रही है. यह वृद्धि दर आठ साल पहले वर्ष 2005-06 और 2006-2007 की तुलना में काफी कम है. अंतरराष्ट्रीय टेलीकॉम संघ के आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2005-2006 में विकसित देशों में मोबाइल कनेक्शनों की वृद्धि दर करीब 13 फीसदी के पास थी, तो वहीं विकसित और विकासशील देशों के लिए यह आंकड़ा क्रमश: 23 फीसदी और 33 फीसदी के आसपास था.

दुनिया की 39 फीसदी आबादी ऑनलाइन

दुनिया में मोबाइल फोन कनेक्शनों की संख्या जहां विश्व आबादी को पार करने के मुहाने पर खड़ी है, वहीं इंटरनेट कनेक्शनों की संख्या में वृद्धि का दौर जारी है. रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 2.7 अरब लोग फिलहाल ऑनलाइन हैं. यानी दुनिया की कुल 39 फीसदी आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है.

हालांकि इंटरनेट इस्तेमाल के मामले में विकसित और विकासशील देशों के बीच का अंतर साफ देखा जा सकता है. विकसित देशों में जहां ऑनलाइन आबादी 77 प्रतिशत है, वहीं विकासशील देशों में यह अभी 31 प्रतिशत पर ही है. इंटरनेट इस्तेमाल करने के मामले में यूरोप बाकी दुनिया से कहीं आगे है और यहां प्रति 100 की आबादी पर इंटरनेट का इस्तेमाल करनेवालों की संख्या 75 है. वहीं अमेरिकी महाद्वीप में 100 में से 61 लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं.

इंटरनेट का इस्तेमाल करने के मामले में अफ्रीका महाद्वीप काफी पीछे नजर आ रहा है. यहां सिर्फ 16 फीसदी लोग ही इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे हैं, जो एशिया प्रशांत क्षेत्र की तुलना में आधे से भी कम है.

इंटरनेट के इस्तेमाल में जेंडर गैप की बात को भी यह रिपोर्ट सामने लाती है. रिपोर्ट का कहना है कि वैश्विक स्तर पर जहां 37 फीसदी महिलाएं ऑनलाइन हैं, वहीं पुरुषों में यह संख्या 41 फीसदी है. विकासशाल देशों में जहां 98 करोड़ पुरुष इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, वहीं ऐसा करनेवाली महिलाओं की संख्या 82.6 करोड़ ही है. हालांकि, विकसित देशों में यह जेंडर गैप कम है.

वहां इंटरनेट इस्तेमाल करनेवाले कुल 48.3 करोड़ पुरुषों की तुलना में 47.5 करोड़ महिलाएं इंटरनेट का इस्तेमाल करती हैं. अगर घरों की संख्या के आधार पर बात करें, तो दुनिया में 75 करोड़ घरों में इंटरनेट कनेक्शन है, जो कुल घरों का 41 प्रतिशत है. यूरोप इस मामले में 77 फीसदी के साथ सबसे आगे है, तो सात फीसदी घरों में इंटरनेट कनेक्शन के साथ अफ्रीका दुनिया में सबसे पीछे है.

इस रिपोर्ट से यह बात भी निकल कर आती है कि दुनिया में मोबाइल ब्रॉडबैंड कनेक्शनों की संख्या में काफी तेजी से बढ़ोतरी हो रही है और 2013 तक इसके दो अरब हो जाने की संभावना है. 2007 में मोबाइल ब्रॉडबैंड कनेक्शनों की संख्या जहां 26.8 करोड़ थी, वहीं 2013 में यह बढ़ कर 2.1 अरब हो चुकी है. यही एक जगह है, जहां अफ्रीका से अच्छे संकेत आते दिख रहे हैं. अफ्रीका में पिछले तीन वर्षो में मोबाइल ब्रॉडबैंड कनेक्शन 2 फीसदी से बढ़ कर 11 फीसदी हो गया है.

इ-कचरे के ढेर पर विश्व

इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की खपत में वृद्धि के साथ ही विश्व में इ-कचरे की समस्या भी बढ़ती जा रही है. जब यह कहा जा रहा है कि दुनिया में मोबाइल कनेक्शनों की संख्या विश्व जनसंख्या के पार जा सकती है, तो इ-कचरे की चिंता लाजिमी है. शोध बताते हैं कि एक मोबाइल फोन की औसत आयु भले पांच से सात साल हो, पर आम उपभोक्ता एक साल से 18 महीने के भीतर इसे बदल लेता है.

यह अनुमान लगाया जाये कि इस वक्त दुनिया में तीन से साढ़े तीन अरब मोबाइल सेट हैं, तो माना जा सकता है कि अगले दो वर्षो में कम से कम इतने ही नये मोबाइल फोन सेट बाजार में आयेंगे और पुराने को कचरे में फेंका जायेगा. मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए यह बेहद खतरनाक होगा. इसलिए जरूरत इस बात की है कि मोबाइल कचरे के निपटान की समुचित व्यवस्था की जाये.

रेडिएशन का बढ़ता खतरा

हालांकि अब तक किये गये शोधों के आधार पर यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि मोबाइल फोन से निकलनेवाले रेडिएशन से मानव स्वास्थ्य पर क्या और किस तरह का प्रभाव पड़ता है, लेकिन लगातार आते शोध मोबाइल फोन रेडिएशन से स्वास्थ्य को पैदा होनेवाले खतरों की बात जरूर करते रहे हैं.

मोबाइल फोन माइक्रोवेब रेंज के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों का इस्तेमाल करते हैं. 2011 में इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आइएआरसी) ने मोबाइल फोन रेडिएशन को आइएआरसी के स्केल में ग्रुप बी में रखा था.

यानी यह संभावना जतायी गयी थी कि इससे कैंसर पैदा हो सकता है. हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक इसका स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ता है. फिर भी मोबाइल रेडियेशन के प्रति सतर्क रहने और इस दिशा में लगातार शोध जारी रखने की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता है.
।। अवनीश मिश्र ।।

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