श्रीहरिकोटा : भारत ने अपने पहले मंगल ग्रह परिक्रमा अभियान(एमओएम)के लिए ध्रुवीय रॉकेट को मंगलवार को यहां स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित करके इतिहास रच दिया. चुनिंदा देशों में शामिल होने के प्रयास के लिए भारत का यह पहला अंतर ग्रहीय अभियान है.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रक्षेपण यान पीएसएलवी सी25 का यह ऐतिहासिक प्रक्षेपण अपराह्न दो बजकर 38 मिनट पर चेन्नई से करीब 100 किलोमीटर दूर यहां स्पेसपोर्ट से किया गया. इस मौके पर प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री वी नारायणसामी, भारत में अमेरिका की राजदूत नैंसी पावेल, इसरो अध्यक्ष के राधाकृष्णन और अन्य वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे.
पीएसएलवी सी25 के एक्सएल संस्करण से वर्ष 2008 में देश के पहले चंद्र अभियान ‘चंद्रयान एक’ को प्रक्षेपित किया गया था. पृथ्वी की दीर्घवृत्ताकार कक्षा में 20-25 दिन तक चक्कर लगाने के बाद 450 करोड़ रुपये की लागत वाला यह यान 30 नवम्बर देर रात पौने एक बजे मंगल की नौ महीने की लंबी यात्रा पर रवाना होगा.
इसके लाल ग्रह की कक्षा में 24 सितम्बर 2014 को पहुंचने और उसकी दीर्घवृत्ताकार कक्षा में चक्कर लगाने की उम्मीद है. इसरो के मंगल अभियान का उद्देश्य देश की मंगल ग्रह पर पहुंचने की क्षमता स्थापित करने और मंगल पर मीथेन की मौजूदगी पर ध्यान केंद्रित करना है जो कि मंगल पर जीवन का संकेत है.
मंगल परिक्रमा यान में पांच वैज्ञानिक उपकरण लगे हैं जिनमें लाइमैन अल्फा फोटोमीटर, मीथेन सेंसर फार मार्स, मार्स एक्सोफेरिक न्यूट्रल कंपोजिशन एनालाइजर, मार्स कलर कैमरा और थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर शामिल है. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, अमेरिका की नासा, रुस की रॉसकॉसमॉस तीन अंतरिक्ष एजेंसियां हैं जिन्होंने मंगल ग्रह के लिए अपने अभियान भेजे हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मंगल मिशन के सफल प्रक्षेपण पर भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की प्रशंसा की साथ ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसरो अध्यक्ष के. राधाकृष्णन से फोन पर बात की और मंगल मिशन के सफल प्रक्षेपण पर उनकी टीम को बधाई दी. भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने भी इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी है.
मंगल ग्रह के बारे में जानने की उत्सुकता पूरी दुनिया को है. देश-दुनिया के खगोलविदों के बीच अध्ययन के लिए यह बेहद रोमांचक विषय रहा है. अमेरिका और रूस समेत कई यूरोपीय देश पिछले कुछ दशकों से मंगल ग्रह पर पहुंचने और वहां इनसान को बसाने की संभावनाओं का पता लगाने में जुटे हुए हैं.
इस अभियान में भारत भी शामिल होना चाहता है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का कहना है कि वह अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ से कम समय और लागत में अपने मिशन को अंजाम दे रहा है. आज दोपहर बाद भारतीय मंगल मिशन ‘मंगलयान’ को छोड़ने की तैयारी है. इसी अभियान के संबंध में जानकारी दे रहा है आज का नॉलेज..
मंगल और उसके वातावरण का अध्ययन करने के लिए भारतीय मंगल परिक्रमा अभियान (मार्स ऑर्बिटर मिशन) के तहत मानवरहित अंतरिक्ष यान ‘मंगलयान’ को आज दोपहर बाद रवाना किया जा सकता है. इस यान को पीएसएलवी-25 द्वारा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया जायेगा. उम्मीद की जा रही है कि यह अंतरिक्ष यान इस ग्रह के दोनों हिस्सों की जानकारी मुहैया करा पाने में सक्षम होगा.
भारत इस मिशन के जरिये दुनिया को यह संदेश देने के साथ ही यह भरोसा दिलाना चाहता है कि उसकी तकनीक इस लायक है, जिसके सहारे मंगल की कक्षा में अंतरिक्ष यान को भेजा जा सकता है. इसके अलावा, इस मिशन का कार्य मंगल पर जीवन की संभावनाओं का पता लगाना, इस ग्रह की तस्वीरें खींचना और वहां के पर्यावरण का अध्ययन करना है.
इस अभियान में अत्यधिक धन खर्च होने की आशंका जतायी गयी है, जिसके चलते इस अभियान की आलोचना भी की जा रही है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख के राधाकृष्णन के मुताबिक, सबसे अधिक लागत का यह प्रभावी मिशन मंगल तक पहुंच कर इस लाल ग्रह के परिपथ में परिक्रमा करने के साथ ही भारतीय क्षमताओं को दर्शायेगा.
दरअसल, इस अभियान को अक्तूबर माह के आखिर में ही अंजाम दिया जाना था, लेकिन प्रशांत महासागर में खराब मौसम के चलते इसे तकरीबन एक सप्ताह आगे बढ़ा दिया गया था. भारत प्रशांत महासागर से इस यान पर नजर रखना चाहता है. इसके लिए इस महासागर में दो जहाज तैनात किये जाने थे. जब यह यान प्रशांत महासागर के ऊपर से उड़ान भरेगा, तो ये जहाज इस यान के प्रक्षेपण के कुछ मिनटों बाद तक मंगलयान पर नजर रखेंगे.
चूके तो लंबा इंतजार
राधाकृष्णन के मुताबिक, मंगल ग्रह की खोज का ऐसा अवसर प्रत्येक 26 महीने में एक बार आता है. हमने देश में मौजूद श्रेष्ठ संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए इस कार्य का आगे बढ़ाने में पूरी ताकत लगा दी है, क्योंकि यदि हम आज (पांच नवंबर) चूक गये, तो इसका मतलब यह होगा कि देश के इस तरह के पहले मिशन के लिए हमें 2016-18 तक का इंतजार करना पड़ सकता है.
अंतरिक्ष यान के साथ कई प्रकार के प्रयोगों को अंजाम देने के लिए अनेक उपकरण भी भेजे जा रहे हैं. इन सभी उपकरणों का वजन तकरीबन 15 किलोग्राम है. इसरो के मुताबिक, मंगल की सतह, वायुमंडल और खनिज आदि की जांच के लिए पांच उपकरण भेजे जा रहे हैं. यह अंतरिक्ष यान मुख्य रूप से मंगल पर मीथेन गैस की मौजूदगी और उसकी मात्र के बारे में पता लगायेगा. मीथेन गैस को जीवन की संभावनाओं के लिए एक अहम कारक माना जाता है.
इसरो की ओर से यह बताया गया है कि लॉन्च होने के बाद मार्स सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा से बाहर निकलने के बाद करीब 10 महीने तक अंतरिक्ष में घूमता रहेगा. इस दौरान वह अपने प्रोपल्शन सिस्टम का इस्तेमाल करेगा और सितंबर, 2014 तक उसके मंगल की कक्षा तक पहुंच जाने की संभावना है.
मौलिक चिंता का विषय
भारत में भले ही हर गांव को पक्की सड़क से जोड़ने की योजना पूरी नहीं हुई हो, लेकिन देश का शीर्ष नेतृत्व और हमारे वैज्ञानिक मंगल पर इनसान को बसाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं. इतना ही नहीं, देश में करोड़ों की आबादी शौचालय की सुविधा से महरूम हो, तो ऐसे में इस तरह के अभियान पर अरबों रुपया पानी की तरह बहाना कुछ हद तक हास्यास्पद जरूर लगता है. 31 अक्तूबर, 2013 को ‘द हिंदू’ में इस संबंध में चिंता भी जतायी गयी है.
विकास अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने चिंता जतायी है कि उन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि आखिरकार भारत मंगल मिशन को इतनी तवज्जो क्यों दे रहा है, जबकि देश में आधे से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं और अब तक देश में आधे से अधिक परिवारों को सरकार समुचित शौचालय और स्वच्छ मौलिक सुविधाएं नहीं मुहैया करा पायी है.
इस अभियान के आलोचकों का तो यहां तक मानना है कि एशिया में अब तक किसी भी देश ने मंगल अभियान शुरू करने की हिम्मत नहीं जुटायी, तो भारत क्यों इस दिशा में आगे बढ़ रहा है. इसके जवाब में इसरो के मुखिया राधाकृष्णन का कहना है कि मंगल अभियान एक ऐतिहासिक जरूरत है, खासकर जब यहां पानी की खोज की जा चुकी है, तो इस ग्रह पर स्वाभाविक जीवन की संभावनाएं भी तलाशी जा सकती हैं.
मंगल की खोज का इतिहास

मेसोपोटामिया (इराक), भारत, चीन, मिस्र और ग्रीस के प्रारंभिक खगोलशास्त्रियों/ ज्योतिषियों ने आकाश में तारों की गति में नियमितताओं का वर्णन किया है. उन्होंने यह बताया था कि पांच ‘सितारे’ कुछ असामान्य किस्म के हैं, जिनका व्यवहार ठीक नहीं पाया गया था.
इन तारों के बारे में पीछे की ओर या प्रतिगामी चले जाने के बारे में बताया गया था. इन पांच ‘आश्चर्यजनक ग्रहों’ में शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि और बुध शामिल थे. प्राचीन भारतीय ग्रंथों में 3,010 ईसा पूर्व महाभारत काल में भी मंगल ग्रह का उल्लेख किया गया है.
प्राचीन मेसोपोटामिया के खगोलशास्त्रियों/ ज्योतिषियों ने खगोलीय प्रेक्षण के संकलित आंकड़ों को विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय घटना के साथ जोड़ने की कोशिश की थी. चीनी साम्राज्य के इतिहासकारों ने चौथी शताब्दी ईसा पूर्व मंगल ग्रह समेत अन्य ग्रहों के बारे में वर्णन किया था. प्राचीन यूनानियों ने भी ‘मंगल और अन्य ग्रहों’ का वर्णन किया था.
356 या 357 ईसा पूर्व के आसपास अरस्तू ने बताया था कि चंद्रमा मंगल ग्रह के सामने से गुजर रहा है. उन्होंने बताया था कि चंद्रमा के मुकाबले मंगल ज्यादा दूर हो सकता है. सोलहवीं शताब्दी में डेनमार्क, स्वीडन और जर्मनी के खगोलशास्त्रियों ने भी इस दिशा में अपनी खोज जारी रखी थी.
भले ही उन्होंने इसका कोई सिद्धांत नहीं दिया हो, फिर भी उस समय यूरोप के जाने-माने खगोलविद ब्राहे को आकाश में वस्तुओं की स्थिति को मापने के लिए नये उपकरण मुहैया करानेवाला इंजीनियर माना जाता है. आकाश में सुदूर स्थित तारों की दूरी को मापने के लिए उन्होंने कई आंकड़े मुहैया कराये थे. उनके अध्ययन के फोकस में अक्सर मंगल ग्रह रहा था, लेकिन कई प्रकार की विसंगतियों के चलते वे अपने प्रेक्षणों का कोई सिद्धांत नहीं दे पाये थे.
इस संबंध में वे कोपरनिकस के योगदान को जानते थे, लेकिन उसे अकल्पनीय पाया था. अपने जीवन के आखिरी दौर वर्ष 1600 में, जोहान्स केपलर ने इस दिशा में काफी मशक्कत की थी और उस समय तक मौजूद आंकड़ों को समझने के लिए 20 साल तक उनका अध्ययन किया था. वे उस खोज की प्रतिबद्धता से जुड़े थे, जिसके चलते ब्राहे उनसे नाराज थे.
इसलिए ब्राहे ने केपलर के साथ किसी प्रकार के आंकड़ों का आदान-प्रदान नहीं किया था, लेकिन मंगल से संबंधित आंकड़े इतने जटिल थे कि वे भी उसमें पूरी तरह उलङो हुए थे. इसलिए उस पर उनके साथ काम किया था.
केपलर ने पाया था कि मंगल की कक्षा को समझने के लिए बेहतर तरीका कोपरनिकस की हेलियोसेंट्रिक थ्योरी हो सकती है. माना जाता है कि 1609 में ब्राहे की मृत्यु के बाद केपलर ने मंगल और गति के तीन नियमों की व्याख्या करने की कोशिश की थी. दुनियाभर में उसके बाद से खगोलविदों ने निरंतर शोधकार्य जारी रखा.
क्या है मंगलयान

दरअसल, ऑर्बिटर एक मिशन है, न कि ‘नासा’ की भांति कोई ‘रोवर.’ एक बात और गौर करने लायक है कि यह यान मंगल ग्रह पर उतरेगा नहीं, बल्कि इसकी कक्षा में घूमते हुए ही उसका अध्ययन करेगा. इसकी कक्षा 375 किमी गुणा 80,000 किमी की होगी. यानी जब यह यान मंगल के सबसे नजदीक होगा, तो उससे उसकी दूरी तकरीबन 375 किमी होगी.
‘मंगलयान’ इसी कक्षा में से तमाम वैज्ञानिक जानकारियों की जांच-पड़ताल करेगा. इसके लिए उसमें पांच उपकरण लगे हैं- अल्फा फोटोमीटर, मीथेन सेंसर, मैक्स एक्जोसफेरिक कंपोजिशन एनेलाइजर, कलर कैमरा और थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर. यह यान मंगल के अपने रास्ते में चांद के ऊपर से गुजरते हुए पृथ्वी व चंद्रमा और फिर मंगल की सतह की तस्वीरें खींचेगा. इसरो के इस मिशन की एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मंगल पर मीथेन गैस की मौजूदगी के संकेतों के बारे में पता लगाना है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि किसी भी ग्रह पर जीवन के पनपने के लिए मीथेन एक बुनियादी आधार है. मीथेन के संकेत मिलने पर यह पड़ताल की जा सकती है कि क्या मंगल पर कभी जीवन था या कभी भविष्य में पनप सकता है.
मंगल के कुछ तथ्य
मंगल ग्रह के बारे में कहा जाता है कि यहां कंपकंपा देने वाली ठंड, धूल भरी आंधी का गुबार और बवंडर उठता रहता है. पृथ्वी की तरह यहां की धरती जीवन से भरी हुई नहीं है, लेकिन मंगल की भौगोलिक स्थिति काफी अच्छी है.
खासकर गरमियों में यहां सबसे ज्यादा तापमान 27 डिग्री सेल्सियस तक रहता है और सर्दियों में यह -133 डिग्री तक चला जाता है. माना जाता है कि मंगल पर सौर परिवार का सबसे बड़ा पर्वत भी है. यहां घाटियां इतनी बड़ी हैं कि यदि यह हमारी पृथ्वी पर होती, तो यह अमेरिका के न्यूयॉर्क से लॉस एंजिल्स के बीच तक फैली होती. यहां की सतह की बात करें, तो यह रूखी और पथरीली है.
प्रकृति के इन अजूबों के साथ-साथ मंगल पर एक दिन में अतिरिक्त 37 मिनट भी होते हैं. मंगल पर एक वर्ष पृथ्वी के 687 दिनों के बराबर है. अब तक के साक्ष्यों से यह भी जानकारी मिली है कि इस ग्रह पर जमीन खिसकने की घटनाएं भी पृथ्वी के मुकाबले ज्यादा होती हैं.
1960 के दशक में पहली बार अंतरिक्ष यान यहां उतरा था. 1990 के आखिर तक मंगल के सतह की पूरी तस्वीर खींची जा चुकी थी. मंगल का वातावरण पृथ्वी के मुकाबले पतला है और इसमें सबसे ज्यादा हिस्सा है कॉर्बन डाईऑक्साइड का. फिलहाल इस ग्रह पर ऑक्सीजन मौजूद तो है, लेकिन इसकी मात्र बहुत कम है.
चीन के साथ नहीं कोई प्रतिस्पर्धा
इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन का मानना है कि 5 नवंबर से आरंभ हो रहा भारत का ‘देसी’ मंगल अभियान चीन के साथ अंतरिक्ष के क्षेत्र में किसी तरह की प्रतिस्पर्धा को लेकर नहीं शुरू की गयी है. इसरो की ओर से बताया गया है कि चीन ने मंगल से जुड़े ऐसे किसी अभियान का अभी तक कोई प्रयास भी नहीं किया है.
राधाकृष्णन के मुताबिक, किसी के साथ हमारी कोई होड़ नहीं है. प्रत्येक देश की अपनी एक दिशा है और सभी का अपना अलग नजरिया हो सकता है. इसलिए किसी के साथ होड़ लगाने जैसी कोई बात नहीं है. हम हमेशा अपने साथ दौड़ कर रहे हैं, ताकि हम उन क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल कर सकें, जिनका निर्धारण हमने अपने लिए कर रखा है. अगर भारत मंगल कक्षक अभियान में सफल होता है तो अमेरिका, रूस और यूरोप के बाद ऐसा करने वाला यह चौथा देश होगा.
चीन ने इसकी कोशिश की थी, लेकिन यह उसका अपना मंगल अभियान नहीं था. उसने रूस के साथ मिल कर अभियान चलाया था. वर्ष 2011 में इसमें दिक्कतें भी आयीं. यह पृथ्वी का कक्षक नहीं छोड़ सका. इसलिए अभी तक उन्होंने इसकी कोशिश नहीं की है. लेकिन यदि हम सफल हो जाते हैं, तो भारत ऐसा करने वाला चौथा देश होगा.
हालांकि, इस अभियान की सफलता के लिए हमें सितंबर, 2014 तक का इंतजार करना होगा. उस समय मंगल कक्षक अभियान के अंतरिक्ष यान को मंगल के कक्षक में प्रवेश कर जाने की उम्मीद है. इस जटिल अभियान की दिशा में एक -एक कदम बढ़ाने को इसकी प्रगति के तौर पर देखा जा सकता है.
ग्रहों का प्राचीन भारतीय दर्शन
आधुनिक वैज्ञानिकों की ही भांति प्राचीन भारतीय खगोलविद भूकेंद्रीय ब्रह्मंड को मानते थे. जैसे, पृथ्वी इसके केंद्र में है और सूर्य इसके कई अन्य ग्रहों की तरह ही एक ग्रह है. ऋगवेद में सूर्य, चंद्रमा, पंच ग्रहों और 27 आकाशिय पिंडों समेत 34 खगोलिय पिंडों का जिक्र किया गया है.
पांचों ग्रहों को पांच देवताओं की भांति वर्णित किया गया है. लेकिन पौराणिक काल के खगोलविदों ने नौ ग्रहों (सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु) के बारे में बताया है. प्राचीन साहित्यों में भी इनमें से कुछ ग्रहों की खगोलिय विशेषताओं का वर्णन किया गया है.
उदाहरण के तौर पर, बुध हरे रंग का दिखाई देता है, शुक्र सफेद रंग का, मंगल लाल रंग का, बृहस्पति पीले रंग का और शनि काले रंग का दिखाई देता है.
वैदिक ज्योतिष में मंगल को नौ ग्रहों के समूह का मुखिया बताया गया है. इसे ‘युद्ध के देवता’ के तौर पर वर्णित किया गया है. इसे स्वाभाविक तौर पर ‘लड़ाकू’ और उग्र तेवर का बताया गया है. साथ ही, इस ग्रह को साहस, बहादुरी, धैर्य, आत्म-विश्वास और नेतृत्व क्षमताओं से युक्त बताया गया है.