।। दक्षा वैदकर ।।
आपने ऐसे कई लोग देखे होंगे, जो चोटी पर पहुंचते हैं, तो अपने साथ सीढ़ी भी ऊपर खींच लेते हैं. ऐसे लोग कभी अच्छे लीडर नहीं बन सकते. ऐसा इसलिए क्योंकि वे हर अधीनस्थ को अपना प्रतिद्वंद्वी मानते हैं.इस तरह के लीडर अपनी कंपनी को अपने नाखूनों से पकड़ कर लटके रहते हैं और अपने वारिसों को तैयार करने के बजाय उनका पूरा ध्यान प्रतिद्वंद्वियों को दूर भगाने पर ही रहता है. यह नेतृत्व करने का एक मूर्खतापूर्ण तरीका है, क्योंकि वे हमेशा एक पीढ़ी के भीतर ही बर्बाद हो जायेंगे. वे अपने गुणों को किसी को सीखा नहीं पायेंगे.
एक लीडर को पिता की तरह होना चाहिए, जो अपने बच्चों को अपने कंधे के बराबर आता देख खुश होते हैं. मैंने पिता और बेटे में बहुत स्वस्थ प्रतियोगिता देखी है. मुझे मेरे पापा की वह बात याद आ रही है, जब मेरे भाई ने पंजा लड़ाने में उन्हें हरा दिया था. हार जाने की वजह से निराश होने के बजाय उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया था. वे अपनी हार के बारे में सभी को खुद बता रहे थे.
वे रात को खाने की टेबल पर सभी से कह रहे थे कि किस तरह उनके बेटे ने उनको हराया. उन्होंने सभी को यह भी बताया कि अब बेटे की ऊंचाई उनसे अधिक हो गयी है. सिर्फ इतना ही नहीं, अब तो वह उनसे भी ज्यादा भारी सामान अपने कंधों पर उठा सकता है.
मैं इन घटनाओं को इसलिए याद कर रही हूं, क्योंकि लीडरशिप का इससे अच्छा उदाहरण हो ही नहीं सकता. यह ऐसी लीडरशिप है, जो अपने नीचे के लोगों के बारे में अच्छा सोचती है, जो नीचे हाथ कर लोगों को अपनी ओर खींचती है और उन्हें ज्यादा ऊंचाई तक पहुंचाने का प्रयास करती है. यह अपने वारिस तैयार करती है. अपने गुणों को खुद तक सीमित रख कर उन्हें मरने नहीं देती है.
हम सभी को ऐसा लीडर बनने की कोशिश करनी चाहिए. हम ऐसे कोच बनें, जो दूसरे खिलाड़ियों को प्रशिक्षित करें, जो रिकॉर्ड तोड़ें. हम ऐसे युवाओं को नौकरी दें, उन्हें काम सिखाएं, जो हमसे भी बेहतर सुपरवाइजर बनें. हम ऐसे टीचर बनें, जो कई डॉक्टर, इंजीनियर्स देश को दे सके.
बात पते की..
– अपनी अधीनस्थों को अपना प्रतिद्वंद्वी कभी न समङों. उन्हें हर वह चीज सिखाएं, जो आपको आती है. वे आगे बढ़ेंगे, तो आपका ही नाम होगा न.
– अच्छा लीडर वह नहीं होता, जो केवल खुद अच्छा काम करे. अच्छा लीडर वह होता है, जो अपने जैसे अनेक लोगों को तैयार कर दे.