विधानसभा चुनाव परिणामों को राष्ट्रीय राजनीति का बैरोमीटर मानना अकसर गलत निष्कर्षो की ओर ले जाता है, लेकिन जब लोकसभा चुनाव नजदीक हों और पांच राज्यों में जनता सरकार चुनने के लिए वोट करने जा रही हो, तो ऐसा लोभ स्वाभाविक है. यही वजह है कि देश की दोनों प्रमुख पार्टियां इन विधानसभा चुनावों को सत्ता के सेमीफाइनल के तौर पर देख रही हैं. इतना ही नहीं, उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी आक्रामक मोरचाबंदी भी शुरू कर दी है. 2014 के चुनावी समर के लिए कांग्रेस और भाजपा की तैयारियों और रणनीतियों की पड़ताल करती विशेष आवरण कथा.
राहुल के भरोसे कांग्रेस की नैया
नयी दिल्ली: पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा के साथ ही कमोबेश 2014 के आम चुनाव का भी बिगुल बज चुका है. देश की दोनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां 2014 की बड़ी लड़ाई के लिए मोरचाबंदी करने में जुट गयी हैं. भले ही कांग्रेस ने भाजपा की तरह किसी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट नहीं किया हो, लेकिन जिस तरह से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने न सिर्फ सांगठनिक स्तर पर सक्रियता दिखायी है, बल्कि कांग्रेस चुनाव प्रचार के केंद्र में हैं, रैलियां कर रहे हैं, उससे साफ है कि 2014 के चुनाव की कमान कांग्रेस ने राहुल को सौंप दी है.
पिछले एक-डेढ़ माह से जिस तरह राहुल गांधी लगातार रैलियों को संबोधित कर रहे हैं, जनता से जुड़े मुद्दे उठा रहे हैं, यूपीए सरकार के कामकाज की सराहना करने के साथ ही देश में व्याप्त विभिन्न समस्याओं पर अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास करते दिख रहे हैं, उससे साफ है कि कांग्रेस चित्त भी मेरी, पट भी मेरी की रणनीति पर काम कर रही है.
राहुल गांधी द्वारा हाल के महीनों में रैलियों में कही गयी बातों पर गौर करें, तो उन्होंने उत्तर प्रदेश के रामपुर में आयोजित रैली में जनता को खाने का अधिकार देने और आरटीआइ देकर बंद दरवाजे खोलने की बात कही.भूमि अधिग्रहण कानून से किसानों को उनका हक देने का दावा किया. वे युवाओं और महिलाओं की भूमिका को रेखांकित करना भी नहीं भूले. उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने हमेशा युवाओं और महिलाओं को मौका दिया है. राहुल ने सांप्रदायिकता के प्रति भी लोगों को आगाह किया और कहा ‘भइया लड़ाई तो करायी जाती है.’ यहां से आगे बढ़ते हुए राहुल ने भाजपा पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा ने मुजफ्फरनगर को आग में झोंका, गुजरात में आग लगायी. उत्तर प्रदेश जलने के कगार पर है, कश्मीर में भी ऐसी ही कोशिश की जा रही है. इसके बाद राजस्थान की बारी है. कभी वे खाद्य सुरक्षा के सवाल पर अपनी मां सोनिया की वोट करने की इच्छा और विपक्षी दलों द्वारा महत्वपूर्ण विधेयक को रोके जाने की बात कह कर जनता से रूबरू होते नजर आये, तो कभी दादी इंदिरा गांधी की हत्या के वक्त उपजी मनोदशा की चरचा करते हुए लोगों के सामने अपने व्यक्तित्व का भावनात्मक पक्ष रखा. कभी उन्होंने मायावती पर दलित नेतृत्व न उभरने देने का आरोप लगाया. राहुल तमाम तरह के सवालों को उठा रहे हैं. भ्रष्टाचार के आरोपों से लगातार जूझती कांग्रेस (यूपीए) की तरफ से जब दागी सांसदों को बचाने के लिए अध्यादेश लाया गया, तो राहुल ने इस अध्यादेश को बकवास बता कर विदेशगये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रुसवा कर दिया. उन्होंने अध्यादेश को बकवास बता उसे फाड़ कर फेंकने की बात कह कर प्रधानमंत्री सहित पूरे कैबिनेट पर सवाल खड़ा कर दिया. राहुल गांधी प्रधानमंत्री से बढ़े नजर आये. कांग्रेसी नेताओं में इस बात की होड़ लग गयी कि वे आगे आकर यह बताएं कि वे राहुल के साथ हैं. कांग्रेस के मीडिया प्रभारी अजय माकन ने कहा कि राहुल की राय ही पार्टी की राय है.
इतना ही नहीं इस सवाल पर बुलाई गयी कैबिनेट की बैठक में न सिर्फ इस अध्यादेश को वापस ले लिया गया, बल्कि इससे संबंधित बिल को भी वापस लिया गया. इस तरह राहुल गांधी ने साफ संदेश दिया कि कांग्रेस दागियों के साथ खड़ी नहीं हो सकती. इस बयान के समय को लेकर सवाल उठाये जाने और प्रधानमंत्री से टकराव की स्थिति सामने आने पर राहुल गांधी ने कहा कि मेरी मां (कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी) ने मुझसे कहा कि जिन शब्दों का मैंने इस्तेमाल किया, वे गलत थे. हो सकता है कि जो शब्द मैंने, कहे वे कठोर रहे हों, लेकिन मेरी भावना गलत नहीं थी, मैं युवा हूं. यहां तक कि राहुल गांधी ने खुद पंजाब की रैली में सफाई दी कि सच बोलने का कोई सही समय नहीं होता. वहीं लगे हाथों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को अपना राजनीतिक गुरु बता कर प्रधानमंत्री के साथ किसी भी तरह के मतभेद को सिरे से खारिज किया.
राहुल गांधी द्वारा रैलियों में दिये गये भाषण से इतना तो साफ हो गया है कि भले ही कांग्रेस 2014 के चुनाव में घोषित रूप से राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश न करे, लेकिन चुनाव राहुल और मोदी के इर्द-गिर्द ही केंद्रित रहेगा. भले ही राहुल मोदी पर व्यक्तिगत आरोप न लगायें, लेकिन भाजपा सहित अन्य दलों के खिलाफ (इनमें सहयोगी दल भी शामिल हैं) अपने तरकश के हर उस तीर का इस्तेमाल करेंग, जिससे कांग्रेस को फायदा हो सकता है. एक तरफ राहुल जनता से कांग्रेस को वोट देने की अपील कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ यह संदेश भी दे रहे हैं कि उनका लक्ष्य सिर्फ 2014 के चुनाव में कांग्रेस को जीत दिलाना नहीं है, बल्कि राष्ट्र निर्माण की सोच तैयार करना है. इसलिए वे न सिर्फ जनता को अपने पाले में करने के लिए राज्यों का लगातार दौरा कर रहे हैं, बल्कि पांच राज्यों में होनेवाले विधानसभा चुनावों में टिकट चाहनेवालों के लिए जिस तरह का पैमाना राहुल ने बनाया है, उससे साफ जाहिर होता है कि अनुकंपा और जोड़-तोड़ के आधार पर टिकट पाने का जमाना उनकी पार्टी में खत्म हो गया है. अब उन्हें ही टिकट मिलेगा जिसकी छवि साफ-सुथरी हो, और जो पार्टी से जुड़ा हो न कि पार्टी के किसी नेता से.
चुनावी माहौल में कराये जा रहे जनमत सर्वेक्षणों में कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले पीछे दिखाये जाने से भी कांग्रेसी नेताओं में हताशा नहीं है. उन्हें लग रहा है कि मोदी के इर्द-गिर्द जिस तरह का छद्म भाजपा ने बनाया है, वह चुनाव आते-आते टूटेगा. और मोदी को गुजरात से बाहर निकलते हुए देश के सवालों का भी जवाब देना होगा. इसके साथ ही कांग्रेस चुनाव पूर्व और चुनाव पश्चात गंठबंधन को लेकर आश्वस्त है. कांग्रेस को लग रहा है उसे चुनाव में पहले के मुकाबले ज्यादा सीटें आयेंगी और जनता मोदी के नेतृत्ववाले भाजपा को नकारेगी. लेकिन, लगे हाथों कांग्रेसी रणनीतिकार इस सवाल पर भी मंथन कर रहे हैं कि बहुमत न मिलने या बहुमत के जादुई आंकड़े तक न पहुंच पाने की स्थिति मे गंठबंधन के सहयोगियों को कैसे जुटाया जायेगा. लोकसभा चुनावों की रणभेरी बज गयी है और कांग्रेस अपने मजबूत विकेट पर खेलने की तैयारी कर रही है.
एनडीए का मिशन 272+
नयी दिल्ली: वक्त शाम के 6 बज कर 25 मिनट. तारीख, 13 सितंबर. स्थान, भाजपा मुख्यालय का कांफ्रेंस हॉल. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के दाखिल होते ही शंख बजने लगते हैं. यह 2014 के चुनावी संग्राम के लिए भाजपा का औपचारिक आगाज था. भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने ऐलान किया कि नरेंद्र मोदी भाजपा की तरफ से पीएम पद के उम्मीदवार होंगे. मोदी ने उस समय कहा था, एनडीए के साथियों ने टेलीफोन करके आशीर्वाद दिया है. लेकिन, खुद एनडीए के चेयरमैन और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी इस मौके पर अनुपस्थित थे. वे पार्टी की ओर से पीएम पद के उम्मीदवार का ऐलान पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों तक टालना चाहते थे. हालांकि, आडवाणी ने सारे गिले-शिकवे भुला कर एक महीने के बाद ही मोदी के पक्ष में तारीफों के पुल बांधते हुए कहा कि अगर मोदी प्रधानमंत्री बनते हैं, तो उन्हें खुशी होगी. इसके बाद कहा जा सकता है कि मोदी ने एनडीए के निर्विवाद पीएम पद के उम्मीदवार बनने में सफलता प्राप्त कर ली है.
दरअसल, मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने का रुझान इस साल जून महीने में उन्हें भाजपा की चुनाव प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष चुने जाने के साथ ही दिख गया था. गौरतबल है कि मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने चुनावी जंग जीतने के लिए 20 समितियों का गठन किया है. एक ओर जहां टीम मोदी में लगभग सभी छोटे-बड़े नेताओं को शामिल किया गया है, तो दूसरी ओर कार्यकर्ताओं को व्यस्त रखने के लिए बूथ स्तर (एक बूथ 10 यूथ) पर कई कार्यक्रमों की योजना बनायी गयी है. पार्टी उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने पिछले मंगलवार को कहा कि आगामी आम चुनाव में एनडीए का मुख्य प्रतिद्वंद्वी यूपीए है और चुनावी संग्राम में तीसरा मोर्चा कहीं नहीं है.
11 अगस्त को हैदराबाद की रैली में मोदी के भाषण से मिशन 2014 के लिए सियासी जमीन तैयार करने की उनकी रणनीति की झलक मिल गयी थी. उन्होंने हैदराबाद की रैली में गैर कांग्रेसी पार्टियों से अपील करते हुए कहा था कि वे केंद्र में कांग्रेसनीत यूपीए सरकार को हटाने और वंशवादी शासन को खत्म करने के लिए एकसाथ आयें. उन्होंने इस संबोधन के जरिये एक साथ दो तीर चलाये. एक, एनडीए का कुनबा बढ़ाने और दूसरा, मुख्य प्रतिद्वंद्वी नेता कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को सीधे निशाने पर लेने का. आगामी आम चुनाव में लगभग आधे मतदाता युवा होंगे. ऐसे में मोदी और राहुल के
बीच जुबानी जंग की शुरुआत भी हो चुकी है. राहुल गांधी ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि चुनाव के बाद नया यूपीए एक युवा सरकार का साक्षी बनेगा. 19 अक्तूबर को मोदी ने पलटवार करते हुए कहा कि ‘यूपीए सरकार युवाओं के लिए किये गये अपनी सरकारों के काम गिनाये.’ इन सबके अलावा, मोदी अपनी जनसभाओं में यूपीए सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार, महंगाई, विदेश नीति, आंतरिक सुरक्षा, अल्पसंख्यक नीति सहित अन्य मुद्दों को लेकर जबरदस्त हल्ला बोलते नजर आ रहे हैं. अल्पसंख्यक सुरक्षा और 2002 दंगों जैसे मसलों को लेकर कांग्रेस के आरोपों पर जवाब देने के लिए खुद राजनाथ सिंह या पार्टी के दूसरे बड़े नेता व प्रवक्ता सामने आ रहे हैं.
पिछले रविवार आम चुनाव के मद्देनजर एनडीए उम्मीदवारों के पक्ष में तकनीकी मदद के लिए आगे आये बेंगलुरु के 1,500 सॉफ्टवेयर इंजीनियर स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए भाजपा सूचना व संचार प्रचार समिति की कमान संभाल रहे पीयूष गोयल ने कहा कि यूपीए के कारण देश का भविष्य खतरे में है. यह समय युवाओं और आइटी पेशेवरों के लिए एनडीए उम्मीदवारों के पक्ष में उठ खड़े होने का है.
फिलहाल, भाजपा सत्ता का सेमीफाइनल माने जा रहे चार राज्यों- छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में पूरी ताकत झोंक रही है. वैसे दिल्ली में सीटों के बंटवारे को लेकर अकाली दल के साथ शुरुआती खींचतान बनी हुई है. इसे समय रहते नहीं सुलझाया गया, तो इसकी तपिश 2014 के आम चुनाव में पंजाब में भी महसूस की जा सकती है, जो एनडीए की सेहत के लिए सही नहीं होगा. उल्लेखनीय है कि राज ठाकरे के मनसे के साथ भाजपा के मेल-मिलाप की खबरों से शिव सेना भी आंखें तरेर रही है.
तमाम मीडिया सर्वेक्षणों में भाजपा की अगुवाईवाले एनडीए गंठबंधन को भले ही बढ़त मिली हो, लेकिन 272 के बहुमत के आंकड़े से वह 90-100 सीटें दूर खड़ी नजर आता है. राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता अरुण जेटली के अनुसार, ‘मजबूत एनडीए के लिए मजबूत भाजपा की जरूरत है. सीटों के लिहाज से चुनाव पूर्व व बाद सहयोगियों की जरूरत होगी. अगर भाजपा मजबूत नहीं होगी, तो हम मजबूत एनडीए की आशा नहीं कर सकते.
अगर भाजपा कमजोर होगी तब स्वभाविक है कि हम अन्य सहयोगियों की अपेक्षा नहीं कर सकते.’ गौरतबल है कि फिलहाल एनडीए में भाजपा के अलावा अकाली दल, शिव सेना, आरपीआइ(अठावले), एनसीपी मेघालय और हरियाणा जनहित कांग्रेस शामिल है. पार्टी के वरिष्ठ नेता रविशंकर प्रसाद कहते हैं, ‘2014 आम चुनाव के बाद आप देखेंगे कि हमारे पुराने सहयोगी दल फिर से एनडीए के खेमे में वापस लौटेंगे.’ इस मसले पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह को चमत्कार की आशा है. वे कहते हैं, ‘विधानसभा चुनावों के बाद आप चमत्कार देखेंगे. चुनाव से पहले और बाद में गंठबंधनों में जबरदस्त बदलाव दिखेगा.’ एनडीए के विस्तार के लिए भाजपा की तेलुगू देशम पार्टी, एआइएडीएमके, असम गण परिषद, वाइएसआर कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी आदि से भीतरखाने बातचीत चलने की खबर है. लेकिन, अभी तक भाजपा से बगावत कर कनार्टक में पार्टी खड़ी करनेवाले पूर्व मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने ही औपचारिक तौर पर आडवाणी को पत्र लिख कर एनडीए का सहयोगी बनने की इच्छा जतायी है. साफ है कि मिशन 2014 के सियासी सफर पर निकली भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती अपने कारवां में अन्य घटक दलों को शामिल करना है.