विभिन्न कारणों से गुदामार्ग द्वारा द्रवयुक्त मल का बार-बार होने की अवस्था को अतिसार (डायरिया) कहते हैं. आयुर्वेदीय दृष्टिकोण से यह छ: प्रकार का होता है:- 1वातज, 2पित्तज 3कफज 4त्रिदोषज 5भयज एवं शोकज 6़ आमज. चिकित्सकीय दृष्टिकोण से इसे आमातिसार एवं पक्वातिसार दो वर्गों में विभक्त कर चिकित्सा की जाती है.जाँच की विधि काफी सरल है:-जब मल (विष्टा) जल में डूब जाये तो आमातिसार एवं जब जल में तैरता रहे तो उसे पक्वातिसार कहते हैं। काफी द्रवयुक्त, ठोस अथवा कफ-मलयुक्त आती हो तो दुर्गन्धयुक्त, पीड़ा से साथ निकलने वाले मलको आम एवं इसके विपरीत हो तो उसे पक्व समझते हैं.
आमातिसार की चिकित्सा:-पीने के लिए जल में सुगन्धवाला, सोठ एवं सौफ मिलाकर देना लाभप्रद है. धान्यपंचक क्वाथ (बनाकर प्रात: एवं संध्या लें), विल्वादि चूर्ण (3 ग्राम- 2 बार प्रतिदिन लें), शुण्ठयादि चूर्ण (3 ग्राम- 4 बार प्रतिदिन लें), रामबाण रस (4 गोली- 4 बार प्रतिदिन शहद के साथ लें). यह वातज एवं कफज दोनो प्रकार के अतिसार में लाभप्रद है.
मल यदि बार-बार थोड़ा-थोड़ा (पीड़ा के साथ हो तो उसमें अभयापिप्पली कल्क खिलाना लाभप्रद है. इससे वेदना शान्त होती है एवं मल आना भी सामान्य हो जाता है।
पित्तज:-धनिया एवं सुगन्धवालायुक्त जल पिलाना लाभप्रद है.
चिकित्सा:- कुटजधन बटी 1 गोली- 4 बार जल के साथ, कुटजारिष्ट 4 चम्मच समान मात्र जल के साथ दो बार प्रतिदिन, कुटजावलेह 1 गोली- 2 बार, पीयूसवल्ली रस 1 गोली- 4 बार शहद के साथ लेना लाभप्रद है।
मल के साथ रक्त आने की स्थिति में वत्सकादिक्वाथ देना लाभप्रद है. साथ ही पीयूसवल्ली रस-500 मिली ग्राम ़रक्तपित्तकुलकण्डन, 500 मिली ग्राम की मात्र शहद में मिलाकर देना उत्तम चिकित्सा है. पैत्तिक अतिसार में बकरी का दूध काफी लाभप्रद है, क्योंकि इससे रक्त का आना बन्द हो जाता है एवं यह बल तथा वर्ण की वृद्घि करता है साथ ही पैत्तिक वेदना भी समाप्त हो जाती है.
पक्वातिसार:- बृ गंगाधरचूर्ण-3 ग्राम- 4 बार प्रतिदिन मट्ठा अथवा जल के साथ, कपरूररस 1 गोली – 3 बार प्रतिदिन जातीफल रस 1 गोली- 4 बार प्रतिदिन शहद से लेना लाभप्रद है।
भयज/शोकातिसार:-इसमें रोगी को भययुक्त एवं हंसाने एवं खुश करने का प्रयत्न करना चाहिए साथ ही चिकित्सा हेतु विल्वादिचूर्ण 3 ग्राम- 2 बार प्रतिदिन जल के साथ, हिग्वष्टक चूर्ण भोजन के साथ प्रथम ग्रास में मिलाकर खिलाना उत्तम चिकित्सा है।
ज्वरा अतिसार:-अतिसार के साथ ज्वर होने की स्थिति में आनन्द भैरव रस एवं रामबाण रस, प्रत्येक की एक-एक गोली जीरा के चूर्ण एवं शहद के साथ, कनकसुन्दर रस 1 गोली- 4 बार शहद के साथ देना लाभप्रद है। गुरुच्यादि क्वाथ में शहद मिलाकर 20 मिली – 4 बार पिलाना उत्तम है संजीवनी वटी 2 गोली- 2 बार मठ्ठा के साथ.
पथ्य:-दही, केला, मूंग की दाल की खिचड़ी, छाछ, नारियल पानी।
अपथ्य:-गरिष्ठ पदार्थ, मांस मछली, मिर्च मसाला युक्त चटपटे पदार्थ।
नोट:- अतिसार की अवस्था में मल के साथ रक्त प्रवाह यह शरीर में जलीय अंश की कमी का संकेत है. नजदीक के स्वास्थ्य केन्द्र से चिकित्सक के परामश के अनुसार औषधि का प्रयोग करना आवश्यक है.