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देश का गौरव बिहार योग विद्यालय

।।स्वामी निरंजनानंद सरस्वती।। बिहार योग विद्यालय, मुंगेर न सिर्फ बिहार, बल्कि भारत का गौरव है. यह 50 वर्ष पूरे कर अपनी स्वर्ण जयंती मना रहा है. स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने इस भूमि से जिस ‘योग क्रांति’ का आगाज किया, वह आज दुनिया के कोने-कोने में फैल चुकी है और मुंगेर की धरती अंतरराष्ट्रीय योग केंद्र […]

।।स्वामी निरंजनानंद सरस्वती।।

बिहार योग विद्यालय, मुंगेर न सिर्फ बिहार, बल्कि भारत का गौरव है. यह 50 वर्ष पूरे कर अपनी स्वर्ण जयंती मना रहा है. स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने इस भूमि से जिस ‘योग क्रांति’ का आगाज किया, वह आज दुनिया के कोने-कोने में फैल चुकी है और मुंगेर की धरती अंतरराष्ट्रीय योग केंद्र बन गयी है. 23 अक्तूबर से यहां विश्व योग सम्मेलन शुरू हो रहा है.

परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती द्वारा स्थापित गंगा दर्शन योगाश्रम के कारण मुंगेर आज देश-दुनिया में योग नगरी के रूप में जाना जाता है. वर्ष 1963 में स्थापित ‘बिहार स्कूल ऑफ योग’ स्वामी सत्यानंद की अमर कृति है. यहां प्रेम, भाईचारा, अध्यात्म, स्वस्थ एवं रोग-मुक्त जीवन जीने का संदेश दिया जाता है. इस संस्थान की स्थापना में स्वामी सत्यानंद को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. किंतु अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति से उन्होंने मुंगेर में उसी स्थल पर योगाश्रम बनाया, जो राजा कर्ण के स्वर्ण दान स्थल के कारण कर्णचौड़ा के नाम से प्रसिद्ध था. स्वामी जी ने 1964 में वसंत पंचमी को अपने परम गुरु परमहंस स्वामी शिवानंद जी महाराज की स्मृति में जो अखंड दीप प्रज्ज्वलित किया था, वह आज भी अनवरत जल रहा है.

स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने गंगा दर्शन योगाश्रम के संदर्भ में कहा था कि ‘सन 1950 में मैं अपने गुरु स्वामी शिवानंद जी के साथ रामेश्वरम गया था. मंदिर में शिवलिंग के सामने नतमस्तक होते ही मुङो एक अद्भुत दृश्य दिखलायी दिया. किसी नदी के किनारे एक छोटी-सी पहाड़ी और उस पहाड़ी पर बने अनेक भवन. गंगा दर्शन योगाश्रम रामेश्वरम में प्राप्त उस दिव्य दर्शन का ही साकार रूप है. वह दर्शन झलक मात्र नहीं था. मुङो इस स्थान की एक-एक चीज बारीकी में दिखायी दी. इसलिए मैं स्वयं को कर्ता कभी नहीं मानता, मैं सिर्फ एक यंत्र हूं जिसके माध्यम से अद्भुत कृत्य संपन्न किये जा रहे हैं.’ स्वामी सत्यानंद पहली बार सन 1956 में मुंगेर आये और कष्टहरणी घाट के समीप स्थित आनंद भवन में ठहरे थे, जो आज ‘पादुका दर्शन’ के नाम से प्रसिद्ध है. मुंगेर प्रवास के दौरान ही उन्होंने योगाश्रम का वह टीला देखा जो रामेश्वरम में आये दृश्य को साकार कर रहा था. उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर स्थित बिहार स्कूल ऑफ योग का नाम भी उन्होंने गंगा दर्शन रखा था. क्योंकि इस स्थल से पावन गंगा का बड़ा ही अलौकिक दर्शन होता है. पुराण में भी कहा गया है कि जिस भूमि पर गंगा दक्षिण से उत्तर की ओर बहती है, वह स्वर्ग से भी बड़ा है.

योग मित्र मंडल की स्थापना : स्वामी सत्यानंद के गुरु स्वामी शिवानंद ने महासमाधि लेने से पूर्व यह आदेश दिया था कि तुम्हें योग को जन-जन में विस्तारित करना है. स्वामी शिवानंद के सपनों को साकार करने व योग के प्रसार के लिए स्वामी सत्यानंद ने 1961 में अंतरराष्ट्रीय योग मित्र मंडल की स्थापना की और योग के प्रचार का संकल्प लिया. 1963 में स्थापित यह विद्यालय पूरे 50 वर्ष के लंबे सफर को पूरा कर अपनी स्वर्ण जयंती मना रहा है. योग आज जीवन शैली के रूप में प्रचलित हो गया है. बिहार योग विद्यालय में महिला एवं बच्चों को भी अलग-अलग रूप से जोड़ा गया. महिलाओं के लिए जहां योग को सुलभ बना कर महिला योग मित्र मंडल बनायी गयी, वहीं युवा योग मित्र मंडल व बाल योग मित्र मंडल की स्थापना हुई. आज एक लाख से अधिक बाल योग मित्र मंडल के बच्चे पूरे देश में हैं, जो स्वावलंबन, सेवा व समर्पण की भावना से काम कर रहे हैं. देश और दुनिया को योग से साक्षात्कार कराने वाले मुंगेर में तीसरी बार 23 से 27 अक्तूबर तक विश्व योग सम्मेलन का आयोजन होगा. इसमें विश्व के 36 देशों के लोग भाग लेंगे.

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