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हाशिये पर के लोगों के लिए वरदान है आधार

-गवर्नेस, सेवाएं और जनवितरण प्रणाली में हो सकेगा आमूल-चूल परिवर्तन- यूपीए सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना यूआइडी (आधार) एक बार फिर चर्चा में आयी, जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने दो अलग-अलग फैसलों में बताया कि सरकारी सेवाएं प्राप्त करने के लिए इसे अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता. हालांकि केंद्र ने भी साफ कर दिया है कि […]

-गवर्नेस, सेवाएं और जनवितरण प्रणाली में हो सकेगा आमूल-चूल परिवर्तन-

यूपीए सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना यूआइडी (आधार) एक बार फिर चर्चा में आयी, जब सुप्रीम कोर्ट ने अपने दो अलग-अलग फैसलों में बताया कि सरकारी सेवाएं प्राप्त करने के लिए इसे अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता. हालांकि केंद्र ने भी साफ कर दिया है कि वह संसद में विधेयक लाकर इसे वैधानिक मान्यता देगी.

यूआइडीएआइ के संस्थापक डायरेक्टर जेनरल और वतर्मान में झारखंड के मुख्य सचिव रामसेवक शर्मा के अनुसार, दुनिया के सबसे बड़े आइडी प्रोग्राम आधार से भारत के नागरिकों को कई तरह के लाभ होंगे और साथ ही भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लग सकेगा. पेश है वरिष्ठ पत्रकार और झारखंड स्टेट न्यूज डॉट कॉम के संपादक मनोज प्रसाद द्वारा आरएस शर्मा से की गई लंबी बातचीत की पहली किस्त.

-आधार क्या है?

आधार 12 अंकों की व्यक्तिगत पहचान संख्या है, जो भारत सरकार की तरफ से यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी (यूआइडीएआइ) द्वारा जारी की जाती है. यह संख्या भारत में कहीं भी पहचान और पता के प्रमाण के रूप में करेगा. उम्र और लिंग में बिना किसी भेदभाव के कोई भी व्यक्ति जो भारत का नागरिक है और यूआइडी की सत्यापन प्रक्रिया (वेरीफिकेशन प्रोसेस) से संतुष्ट होता है, वह आधार में नामांकन (इनरोल) करा सकता है. हर व्यक्ति को केवल एक बार ही आधार में पंजीकरण कराने की जरूरत होती है. किसी व्यक्ति को दिया जाने वाला आधार नंबर अपने आप में यूनिक होगा और आजीवन वैध रहेगा. आधार नंबर के जरिये आप कई सेवाओं जैसे बैंकिंग, मोबाइल फोन कनेक्शन आदि और दूसरी सरकारी और गैर-सरकारी सेवाएं भी प्राप्त कर सकते हैं.

-इसके उद्देश्य क्या हैं?

इसके उद्देश्यों पर चर्चा करने से पहले, मैं आधार के संदर्भ में कुछ बात करना चाहता हूं. भारत में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिनके पास औपचारिक रूप से कोई पहचान पत्र नहीं है. इससे वे कई तरह की सेवाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं. वे बैंक में खाता नहीं खोल सकते, ट्रेन में आरक्षण नहीं ले पाते और जरूरी दस्तावेजों के अभाव में मोबाइल कनेक्शन तक नहीं ले पाते. दूसरे शब्दों में, किसी आइडी के अभाव में वे कई तरह की सेवाएं लेने से वंचित रह जाते हैं. देश के सभी नागरिकों को यूनिक आइडी देकर आधार इस गैप को भर सकता है. पिछले दो सालों में आधार को कई तरह की सेवाओं को प्राप्त करने के लिए एक वैध दस्तावेज के रूप में देखा जा रहा है.

दूसरे, कहीं भी ऑनलाइन सत्यापन की सुविधा के कारण अब सेवाएं किफायती, पारदर्शी और उन तक पहुंच आसान हो सकी है. बिजनेस कॉरेसपोंडेंस मोबाइल फोन के जरिये ग्राहकों को बैंकिंग सेवाएं उपलब्ध करा सकते हैं और उनकी पहचान को आधार के जरिये पुख्ता कर सकते हैं. आधार की सबसे बड़ी खासियत है कि यह सब्सिडी या कई तरह की कल्याणकारी योजनाओं मसलन पीडीएस, सामाजिक सुरक्षा पेंशन आदि में फर्जीवाड़ा या जाली पहचान पर रोक लगाता है. हम सभी जानते हैं कि ऐसे फर्जीवाड़ा से योजनाएं सही लोगों तक नहीं पहुंच पातीं और ऐसे कार्यक्रमों में भ्रष्टाचार बढ़ता जाता है. इसलिए आधार का उद्देश्य देश में एक आइडी प्लेटफॉर्म तैयार करना है, जिसका दायरा व्यापक है और जिससे गवर्नेस और सेवाएं बेहतर होती हैं और लोगों की इन सेवाओं तक पहुंच आसान हो सकती है.

-क्या भारत के सभी राज्य और संघ शासित प्रदेश यूआइडी के पक्ष में हैं?

हां, सभी राज्य यूआइडी के पक्ष में हैं. किसी भी राज्य ने यह नहीं कहा है कि वह इस प्रोजेक्ट को लागू नहीं करेगा. कुछ ने तो पहले ही इसे अपना लिया है, तो कुछ देर से इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं. राज्यों ने आधार के जरिये बेहतर गवर्नेस की संभावनाओं को समझा है और वे अपने सिस्टम के लिए इस पर काम करना शुरू कर दिया है.

-यूआइडीएआइ कैसे काम करता है और किस तरह आधार के बड़े डाटा को सुरक्षित रखता है?

यूआइडीएआइ योजना आयोग से जुड़ा हुआ है और इसे भारत के नागरिकों के लिए विशिष्ट पहचान पत्र (यूनिक आइडी) देने का काम सौंपा गया है. इसका गठन एक प्राधिकरण के रूप में किया गया है, जिसका नेतृत्व एक चेयरमैन करते हैं. डायरेक्टर जनरल और मिशन डायरेक्टर इस प्राधिकरण के सीइओ हैं. इसमें फुलटाइम सैकड़ों लोग जुड़े हुए हैं जिनमें से आधे सरकारी नौकरी में हैं और शेष कई तरह के क्षेत्रों जैसे आइटी, मैनेजमेंट और प्रोसेस एक्सपर्ट के पेशेवर हैं.

-पिछले चार सालों में यूआइडीएआइ ने अपने अस्तित्व में आने से लेकर अब तक एक तय समय सीमा में प्रोजेक्ट को पूरा करने को लेकर आश्वस्त किया है. इस पूरे सिस्टम में कइयों की भागीदारी रही है, जैसे राज्य सरकारें, इनरोलमेंट एजेंसियां, सर्टिफिकेशन एजेंसियां, उपकरण उपलब्ध कराने वाली कंपनियां, सॉफ्टवेयर कंपनियां, प्रिंटर्स, इंडिया पोस्ट और बैंक आदि.

-तकनीक के स्तर पर बात करें, तो यूआइडीएआइ के पास विश्व की सबसे परिष्कृत तकनीक है और इसके द्वारा नागरिकों से जुड़ी डाटा को जिस तरह प्रोसेस किया जा रहा है, दुनिया में पहले कहीं नहीं हुआ. यह जनगणना और बायोमेट्रिक दोनों मामलों में परिष्कृत गणना करता है. इसने खुली स्रोत वाली तकनीकों (ओपेन सोर्स टेक्नोलॉजी) का प्रयोग किया है जो कि सामान्यत: अधिक टिकाऊ और सस्ते (लगभग मुफ्त) हैं.

-क्या यूआइडी का डाटा हैक किया जा सकता है? यूआइडी के डाटा को सुरक्षित रखने के लिए क्या कदम उठाये गये हैं?

आज जब पूरी दुनिया इंटरनेट से जुड़ी हुई है, ऐसी स्थिति में हैकिंग, डाटा की चोरी और साइबर हमला जैसे खतरे होते हैं. हालांकि इस संदर्भ में यही कहा जा सकता है कि इस तरह के खतरों को कम से कम करने के लिए अधिक से अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत है. यूआइडीएआइ ने अपने डाटा को सुरक्षित करने के लिए कई तरह की तकनीक और उसके कई बेहतर तरीकों को अपनाया है. यूआइडीएआइ के कुछ और महत्वपूर्ण कार्य है, जिसके तहत उसी डाटा को ऑनलाइन रखा जाता है, जिससे कि यूआइडी काम कर सके और दूसरे महत्वपूर्ण डाटा को ऑफलाइन रखा जाता है. बायोमेट्रिक डाटा (फिंगरप्रिंट और पुतलियों की स्कैनिंग) इसका एक उदाहरण है. बायोमेट्रिक से डाटा लेने के बाद, वास्तविक निशान (रॉ इमेज) को ऑफलाइन रखा जाता है और इस प्रकार वह किसी भी हैकर से दूर रहता है.

बायोमेट्रिक डाटा से जुड़ी सूचनाओं का इस्तेमाल किया जाता है और फिर इसे विशेष तकनीक से उड़ा दिया जाता है. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि लगातार सावधानी पूर्वक डाटा की कोडिंग की जा रही है. यूआइडीएआइ के डाटा सेंटर में कोई भी डाटा बिना कोडिंग के नहीं है. इसके अलावा इस तक पहुंचने से रोकने के लिए पुख्ता नियंत्रण है. इन सभी तकनीकों और प्रक्रियाओं को अपनाकर मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यूआइडीएआइ में भारत के नागरिकों का डाटा पूरी तरह सुरक्षित है.

क्या यूआइडीएआइ देशी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर रहा है या यह आयातित है?

‘आयातित सॉफ्टवेयर’ का कांसेप्ट मेरे लिए बहुत स्पष्ट नहीं है. मैं यह जोड़ना चाहूंगा कि यूआइडीएआइ के कई कार्यो के लिए अधिकांशत: खुली स्रोत वाले सॉफ्टवेयरों (ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर) का इस्तेमाल किया गया है. शुरुआत में ही बेहद सतर्कता के साथ इसे चुना गया. खुली स्रोत वाले सॉफ्टवेयरों के इस्तेमाल से स्वामित्व की कुल लागत घटती है और यह सस्ता भी होता है. हालांकि यूआइडीएआइ ने फिंगरप्रिंट और पुतलियों की स्कैनिंग संबंधी प्रक्रिया (ताकि इससे विशिष्टिता बनी रहे) के लिए खुद के स्वामित्व वाली सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया है. ऐसा किया जाना जरूरी था, क्योंकि यूआइडीएआइ के बायोमेट्रिक डाटा प्रोसेसिंग के लिए ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर उपलब्ध नहीं था.

-इस महत्वाकांक्षी परियोजना की अनुमानित लागत क्या है?

यह एक अच्छा प्रश्न है. यूआइडी प्रोजेक्ट की लागत को लेकर कई तरह के अनुमान लगाये गये हैं. यह 25 हजार करोड़ से लेकर 1.5 लाख करोड़ तक बताया जा रहा है. सच्चई यह है कि इस प्रोजेक्ट की कुल लागत 14 हजार करोड़ की है. 120 करोड़ की आबादी वाले देश में यह प्रति व्यक्ति 120 रुपया बैठता है. अब इसे इस रूप में समङों. यूआइडीएआइ प्रति व्यक्ति नामांकन (इनरोलमेंट) के लिए 40 रुपया खर्च करता है (यूआइडी इसे रजिस्टार को भुगतान करता है, जो कि अधिकांश राज्य सरकार द्वारा दी जाती है). इनरोलमेंट की कुल लागत करीब पांच हजार करोड़ होगी. इसके बाद यूआइडीएआइ को आधार पत्र को छापना और इसे सभी नागरिकों को भेजना होता है. इस पर प्रति पत्र 25 रुपये खर्च होते हैं (पत्र की छपाई पर 2.15 रुपया और इंडिया पोस्ट से भेजने पर 22 रुपया). इस पर करीब तीन हजार करोड़ रुपये की लागत आयेगी. शेष छह हजार करोड़ रुपये अन्य तकनीकों और मैनपावर पर खर्च होगी.

कुल मिलाकर देखें, तो यह दुनिया के किसी भी हिस्से में सर्वाधिक सस्ता आइडी प्रोग्राम है. यही नहीं, यह दुनिया का सबसे परिष्कृत आइडी प्रोग्राम है और भारत ने जिस तरीके से डिजिटल ऑनलाइन आइडी तैयार की है, वैसा दुनिया के किसी देश ने नहीं किया है. दूसरे शब्दों में कहें, तो यूआइडीएआइ तकनीक पर बिना किसी समझौते किये कम से कम लागत के साथ काम कर रहा है. लागत बढ़ने और समय पर काम पूरा न होने जैसी कोई बात नहीं है. यूआइडीएआइ ने 2014 तक 60 करोड़ लोगों को यूआइडी देने का वादा किया है और संभवत: वे इससे भी आगे जायेंगे. उन्होंने अभी 45 करोड़ को पूरा कर लिया है और प्रतिदिन दस लाख की दर से बढ़ रहे हैं. नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ पब्लिक फिनांस (राष्ट्रीय सार्वजनिक वित्त संस्थान) ने इस प्रोजेक्ट की लागत को लेकर एक अध्ययन किया है और यूआइडीएआइ के जरिये लागू होने वाले केवल कुछ ही कार्यक्रमों पर उन्होंने अनुमानित आरओआइ (रिटर्न ऑन इनवेस्टमेंट) 52 प्रतिशत बताया है. कृपया देखें http://planningcommission.nic.in/reports/genrep/rep_uid_cba_paper.pdf सरकार ने लाभुकों के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण में आधार को प्रयोग करने का निर्णय लिया है. क्यों ?

प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना में कई तरह के लाभ जैसे सब्सिडी, मजदूरी, छात्रवृत्ति या पेंशन आदि को आधार के जरिये लाभुकों के खाते में हस्तांतरित की जाती है. इस रूप में देखें, तो आधार का कई तरह से प्रयोग किया जा सकता है. पहला, यदि आपके पास बैंक खाता नहीं है, तो आधार के जरिये आप खाता खोल सकते हैं. दूसरे, यह आधार का इस्तेमाल पैसा ट्रांसफर करने के पते के रूप में करता है. यह आश्वस्त करता है कि केवल आप ही के खाते में पैसा जाये. तीसरा, आधार के जरिये आप पैसा निकाल भी सकते हैं यानी घर बैठे बैंकिंग की सुविधा. यह इस बात को भी आश्वस्त करता है कि केवल आप ही पैसा निकाल सकते हैं क्योंकि निकासी के समय आपकी उपस्थिति के साथ-साथ आपके फिंगर प्रिंट की जरूरत होती है. कुल मिलाकर किसी के खाते में पैसा जमा करने से लेकर निकासी तक का सारा ब्योरा रहता है. इस प्रकार योजना के क्रियान्वयन को लेकर कोई झंझट ही नहीं है और पैसे के उपयोग के संदर्भ में हमें किसी से भी कोई सर्टिफिकेट लेने की जरूरत नहीं है. पैसे को सफलतापूर्वक लाभुकों के खाते में हस्तांतरित किया जा चुका है. प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण और आधार से जुड़ी सेवाओं में सबसे कम जिस पर चर्चा हुई है, वह है पोर्टबिलिटी, जिसकी सुविधा ग्राहकों को दी जाती है. आपने एलपीजी पोर्टबिलिटी के बारे में सुना होगा. मैं आपको बताता हूं कि कैसे पोर्टबिलिटी ग्राहकों को यह अधिकार देता है कि वे सेवा प्रदाता कंपनियों को अपनी इच्छा के अनुसार चुन सकते हैं. इससे न केवल उनकी मनमानी रुकेगी, बल्कि भ्रष्टाचार पर भी प्रहार होगा.

यदि आपके पास सब्सिडी आधारित मूल्यों पर खाद्यान्न प्राप्त करने के लिए राशन कार्ड है और आपका डीलर आपको राशन नहीं देता है, तब आप क्या करेंगे? आप सप्लाइ इंस्पेक्टर, निगरानी समिति से शिकायत करते हैं, पर फिर भी आपका काम नहीं होता? आपको राशन नहीं मिल पाता और डीलर का काम पहले की तरह चलते रहता है. दूसरी ओर, मान लीजिए कि आपको सही मूल्यों पर राशन देने वाले डीलर को चुनने की आजादी होती तो? यदि आपके गांव का डीलर आपको राशन नहीं दे रहा है, तो आप नजदीक के गांव के डीलर से राशन ले सकते हैं. वास्तव में, पोर्टबिलिटी से आप राज्य के किसी भी डीलर से राशन ले सकते हैं. यदि आपके पास राशन कार्ड है और आप दुमका से रांची आ गये हैं, तो भी आप राज्य के किसी भी जनवितरण प्रणाली की दुकान से सब्सिडी मूल्य पर राशन ले सकते हैं. वर्तमान तकनीक और मॉडल में यह सब नहीं है. लेकिन आधार से जुड़ी जनवितरण प्रणाली में आप इसे पाने के लिए आश्वस्त रहेंगे क्योंकि आपकी पहचान और राशन पाने की योग्यता सब कुछ ऑनलाइन है. इसी तरह, आप राज्य में किसी भी बिजनेस कॉरेसपोंडेंट से मनरेगा की मजदूरी प्राप्त कर सकते हैं. यह कुछ ऐसा ही है जैसे आप किसी भी बैंक के किसी भी एटीएम से डेबिट कार्ड के जरिये पैसा निकालते हैं, चाहे डेबिट कार्ड किसी भी बैंक ने जारी किया हो. सेवा प्रदाता कंपनी जो किसी व्यक्ति विशेष की तुलना में अधिक शक्तिशाली होता है, ऐसी स्थिति में ग्राहकों को चुनाव करने का अधिकार देने से बड़ा बदलाव आ सकता है. इससे ग्राहकों को लाभ होगा, जिससे निश्चित रूप से भ्रष्टाचार घटेगा और उनकी मनमानी रुकेगी. पोर्टबिलिटी के कुछ उदाहरण हैं जिन पर काम हुआ है जैसे मोबाइल नंबर पोर्टबिलिटी और अब एलपीजी पोर्टबिलिटी. आधार की योजना है कि उन जगहों पर पोर्टबिलिटी लायी जाये, जहां तकनीकी कारणों से यह संभव नहीं था. सरकार को इससे दो तरह से लाभ होता है. पहला कि नकली और फर्जी तत्वों को खत्म किया जाता है, जिससे वितरण प्रणाली सुधरती है. सरकार इन बचतों के जरिये और अधिक लोगों को लाभ पहुंचा सकती है. दूसरा, यदि सब्सिडी मामले को ही देखें, तो (जैसे सब्सिडी दर पर एलपीजी सिलेंडर लेना) तो मूल्यों में हेरा-फेरी नहीं होगी और न ही सब्सिडी वाले सिलेंडर गैर सब्सिडी वाले लोगों (होटलों और रेस्तरां आदि में प्रयोग के लिए) को मिलने का कोई स्कोप है. केवल एलपीजी में सब्सिडी के दुरूपयोग को देखे, तो इससे प्रतिवर्ष 15 हजार करोड़ की चपत लगती है. पूरे देश में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना लागू होने से इस लिकेज को लगभग शून्य किया जा सकेगा.

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