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शरीफ की ‘शराफत’ के साथ पाक अवाम

।। विवेक शुक्ला ।। (वरिष्ठ पत्रकार) – पाकिस्तान इतिहास के एक नये मोड़ पर खड़ा है. जनता ने चरमपंथियों के आगे न झुकते हुए अपना फैसला सुना दिया है. अब उसे उसकी उम्मीदों की एक नयी सुबह देने की जिम्मेवारी नयी सरकार पर होगी. जनता ने जहां नवाज शरीफ को सरकार चलाने का जनादेश दिया […]

।। विवेक शुक्ला ।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
– पाकिस्तान इतिहास के एक नये मोड़ पर खड़ा है. जनता ने चरमपंथियों के आगे न झुकते हुए अपना फैसला सुना दिया है. अब उसे उसकी उम्मीदों की एक नयी सुबह देने की जिम्मेवारी नयी सरकार पर होगी. जनता ने जहां नवाज शरीफ को सरकार चलाने का जनादेश दिया है, वहीं दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आयी पाकिस्तान तहरीक -ए-इंसाफ पार्टी के नेता इमरान खान भी पाकिस्तानी राजनीति का अहम चेहरा बन कर उभरे हैं. इन चुनावी नतीजों का पाकिस्तान और उसके पड़ोसी मुल्क भारत के लिए क्या है मतलब और नवाज शरीफ तथा इमरान खान के राजनीतिक सफर पर नजर डालता आज का विशेष. –

पाकिस्तानी संसद के तारीखी चुनावों में मुसलिम लीग (नवाज) ने फतेह दर्ज करके दो संदेश साफ तौर पर दे दिये. पहला, पाकिस्तानी अवाम इमरान खान के नया पाकिस्तान के नारे को पचा नहीं पाया. दूसरा, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के 1967 से चले आ रहे नारे- ‘रोटी, कपड़ा और मकान; इल्म, सेहत, सबको काम; दहशत से महफूज अवाम’ से भी अवाम ने दूरियां बना ली. मतलब साफ है कि पाक अवाम को कहीं न कहीं लगा कि नवाश शरीफ में ही उन्हें एक बेहतर भविष्य देने की कुव्वत है. वैसे भी पाकिस्तान के सबसे अहम पंजाब सूबे में मुसलिम लीग (नवाज) की सरकार का प्रदर्शन उम्दा रहा है. वहां नवाज शरीफ के अनुज शाहबाज शरीफ मुख्यमंत्री हैं. इन दोनों भाइयों पर भ्रष्ट होने का आरोप कभी किसी ने नहीं लगाया. दक्षिण एशिया के किसी आला नेता के लिए यह बड़ी बात ही है.

खैर, नवाज शरीफ की असली परीक्षा अब शुरू होगी, क्योंकि देश में मुद्रास्फीति बढ़ रही है और विकास की रफ्तार घट रही है. ग्रोथ रेट 3 फीसदी से घट गयी है. शरीफ को देश की आर्थिक सेहत सुधारने के साथ-साथ भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को भी गति देनी होगी. भारत को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा देने में ही दोनों मुल्कों के अवाम को लाभ होगा. हालांकि चुनाव के दौरान किसी भी सियासी जमात ने ऐसी इच्छा नहीं जतायी, जिससे कि भारत-पाकिस्तान के तिजारती रिश्तों में गर्मजोशी आये. किसी भी दल ने सत्ता में आने पर भारत को मोस्ट फेवर्ड नेशन (एमएफएन) का दर्जा देने का वादा नहीं किया. हालांकि पीपीपी ने यूरोपीय संघ से लेकर सार्क, आसियान वगैरह से व्यापारिक संबंधों को गति देने की बात कही, लेकिन पड़ोसी देश भारत को लेकर कहीं कोई जिक्र नहीं किया. उधर, कभी अमेरिका को कोसनेवाले इमरान खान अमेरिका और चीन के साथ संबंधों को मजबूत बनाने की वकालत करते रहे. बार-बार भारत आनेवाले इमरान खान ने भी भारत को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा देने का कहीं उल्लेख नहीं किया.

पीपीपी ने अपने नारे को अपने घोषणापत्र से लेकर अपनी सभाओं तक में खूब उछाला, पर उसे इसका लाभ नहीं हुआ. पीपीपी ने अवाम से ‘आसमान से तारे तोड़ कर लाने’ जैसे वादे किये, लेकिन उसके पिछले पांच सालों के प्रदर्शन से जनता संतुष्ट नहीं थी. इसलिए जनता ने उसे न केवल खारिज किया, बल्कि इमरान की पार्टी से भी कम सीटों पर विजय दी. उसे सफलता उसके गढ़ ग्रामीण सिंध में ही मिली.

* भारत के साथ संबंध
इन चुनावों की एक बढ़िया बात यह रही कि इसमें किसी भी दल ने भारत-विरोधी भावनाएं नहीं भड़कायीं. हां, कश्मीर का मुद्दा उठता रहा. उम्मीद की जा सकती है कि शरीफ के वजीरे आजम बनने पर भारत और पाकिस्तान के संबंध बेहतर होंगे. शरीफ ने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिल कर इस बाबत ठोस पहल की थी. हालांकि यह भी सच है कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल में ही कारगिल युद्ध हुआ था.

शरीफ ने वादा किया था कि अगर उनकी पार्टी सत्तासीन हुई, तो संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव और भारत-पाक के बीच 1999 के लाहौर समझौते के मुताबिक कश्मीर मसले का हल खोजने की कोशिश करेंगे. उम्मीद करनी चाहिए कि वे अपने वादे पर कायम रहेंगे. वैसे, कश्मीरियों के साथ वादे करने में पीपीपी पीछे नहीं रही. राष्ट्रपति जरदारी ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में जाकर ऐलान किया कि पाकिस्तान कश्मीरियों के साथ खड़ा है.

इसके बावजूद उनकी पार्टी का सूपड़ा लगभग साफ हो गया. इमरान खान ने कई सभाओं में कहा कि कश्मीरी आतंकवाद से त्रस्त है पाकिस्तान, पर उनकी पाकिस्तान तहरीके-ए-इंसाफ पार्टी की राय रही कि कश्मीर मसले के हल के लिए दोनों पड़ोसी मुल्कों के बीच आपसी बातचीत का सिलसिला जारी रखना होगा. बहरहाल, चुनाव के नतीजों से साफ हो गया कि कश्मीर मुद्दे पर एक खास राय रखने से किसी को कोई वोट नहीं मिलेगा. अवाम तो वोट उसके हक में ही देगा, जिससे उसे यकीन होगा कि वह उसे रोटी, कपड़ा और मकान देगा.

* किसे फिक्र अल्पसंख्यकों की

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पाकिस्तान के कयाम से चंद दिनों पहले 11 अगस्त, 1947 को मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था, पाकिस्तान में सभी मजहबों के अनुयायियों को अपने मजहब को मानने की छूट होगी. हिंदू अपने मंदिरों में जाकर पूजा कर सकेंगे. मुसलमान मसजिदों में जा सकेंगे. हालांकि वक्त गुजरने के साथ पाकिस्तान के हुक्मरानों ने जिन्ना के उन अलफाजों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया.

नयी संसद के लिए हुए चुनावों में 11 सीटें अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित हैं. निवर्तमान संसद में 11 में से 10 सीटों पर हिंदू, एक पर ईसाई काबिज थे. चार-चार सीटें पीपीपी और मुसलिम लीग (नवाज) के खाते में थी और क्रमश: दो और एक सीट मुसलिम लीग और मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के पास. पीपीपी और मुसलिम लीग (नवाज) के घोषणापत्रों में अल्पसंख्यकों को लेकर सांकेतिक रूप से ही चर्चा की गयी है.

शरीफ ने दावा किया है कि इसलाम और मुल्क के आईन के मुताबिक, अल्पसंख्यकों को जिंदगी के सभी क्षेत्रों में मुसलमानों के बराबक हक मिलता रहेगा. हालांकि इसमें माना कि अल्पसंख्यकों की जानमाल को खतरा बढ़ा है. कुछेक वादे भी किये गये हैं, कि पार्टी की सरकार बनी तो ईसाइयों को अपने स्कूल चलाने की इजाजत होगी. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और शिक्षण संस्थानों में अल्पसंख्यकों के लिए सीटें आरक्षित की जाएंगी.

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने भी अल्पसंख्यकों के लिए नौकरियों में आरक्षण का वादा किया. मुसलिम लीग ने एक वादा यह भी किया कि एक कानून बनाया जायेगा, जिससे कि कोई भी इनसान दबाव में धर्मांतरण न करे. अब देखना होगा कि शरीफ की सरकार अपने वादों पर कितना अमल करती है.

अगर शुरुआती दौर के पाकिस्तान को छोड़ दिया जाये तो वहां पर गैर-मुसलमानों के लिए स्पेस घटता गया. किसी भी सरकार ने उनके हक में बड़े कदम नहीं उठाये. उदाहरण के रूप में पाकिस्तान की पहली कैबिनेट के हिंदू सदस्य जोगेंद्र नाथ मंडल और मुल्क का तराना लिखनेवाले जगन्नाथ आजाद को पाकिस्तान छोड़ना पड़ा. बाद के दौर में पाकिस्तान का राष्ट्रीय गीत हफीज जालंधरी ने लिखा.

पीपीपी को लेकर हमेशा कहा जाता रहा है कि वह अल्पसंख्यकों के हकों को लेकर बाकी दलों से ज्यादा संवेदनशील है. उसने दावा किया था कि सत्तारूढ़ होने पर इसलामाबाद राजधानी क्षेत्र की एक संसदीय सीट अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित की जायेगी. अब उन्हें इंतजार करना होगा अपने दावे को हकीकत में बदलने के लिए.

तहरीक ए इंसाफ पार्टी और मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) को भी इंतजार करना होगा. इन्होंने भी अल्पसंख्यकों के साथ छोटे-मोटे वादे किये. बहरहाल, अच्छी बात यह है कि पड़ोसी मुल्क में लोकतंत्र की बयार चल रही है. उम्मीद करनी चाहिए कि पड़ोसी के खुशहाल होने से दोनों मुल्कों के रिश्ते बेहतर होंगे.

* नवाज शरीफ के सितारे फिर बुलंद
पाकिस्तान मुसलिम लीग (पीएमएल) के वरिष्ठ नेता एवं पाकिस्तान के दो बार प्रधानमंत्री रह चुके मियां नवाज शरीफ का जीवन उतार-चढ़ावों से भरा रहा है.

मियां नवाज शरीफ का जन्म 25 दिसंबर, 1949 को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के लाहौर में एक रईस परिवार में हुआ था. उनके पिता मियां मुहम्मद शरीफ इत्तेफाक ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के मालिक थे. नवाज शरीफ की प्रारंभिक शिक्षा संत एंटोनी हाइस्कूल, लाहौर में हुई. गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से स्नातक डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की.

* लायन ऑफ पंजाब
1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने नवाज शरीफ परिवार के स्टील के कारोबार का राष्ट्रीयकरण कर दिया. इस घटना ने उन्हें राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया और वे पाकिस्तान मुस्लिम लीग के सदस्य बन गये. 1981 का साल नवाज शरीफ के लिए बेहद महत्वपूर्ण साल रहा, जब जनरल जिया उल हक की मार्शल ला की सरकार के दौर में पंजाब राज्य का वित्तमंत्री बनाया.

वित्त मंत्री रहते हुए उन्होंने विकास फंड का करीब 70 फीसदी ग्रामीण इलाकों के लिए आवंटित किया. बाद में वे पंजाब प्रांत के खेलकूद मंत्री भी बने. 1985 में हुए पार्टी विहीन चुनाव में नवाज शरीफ को नेशनल और प्रांतीय एसेंबली में भारी बहुमत हासिल हुआ. 9 अप्रैल, 1985 को वे पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री बने. 31 मई, 1988 को राष्ट्रपति जनरल जिया उल हक द्वारा एसेंबली भंग कर दिये जाने के बाद नवाज शरीफ कार्यकारी मुख्यमंत्री नियुक्त किये गये.

1988 के आम चुनाव के बाद वे फिर से मुख्यमंत्री बने. नवाज शरीफ की पंजाब में लोकप्रियता का आलम यह है कि यहां लोग उन्हें लायन ऑफ पंजाब के नाम से बुलाते हैं. उनके भाई शहबाज शरीफ भी राजनीति में सक्रिय है और अभी पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री है.

* 1990 में पहली बार बने पीएम
अक्तूबर, 1990 में हुए चुनाव में इसलामी जम्हूरी इत्तेहाद (आइजेआइ) की जीत के बाद 6 नवंबर, 1990 को नवाज शरीफ ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. पर वे अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और अप्रैल, 1993 में राष्ट्रपति गुलाम इशहाक खान द्वारा बर्खास्त कर दिये गये.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सरकार को बहाल कर दिया, लेकिन उन्हें 18 जुलाई, 1993 को राष्ट्रपति के साथ इस्तीफा देना पड़ा. उनके इस कार्यकाल में प्राइवेट सेक्टर की मदद से उद्योगों के विकास के लिए उल्लेखनीय प्रयास किये गये. इसके बाद 1993 के आम चुनाव में उनकी पार्टी को पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने पराजित कर दिया. हालांकि शरीफ को नेशनल एसेंबली में विपक्ष का नेता चुना गया और नवंबर, 1996 में एसेंबली भंग होने तक वे इस पद पर रहे.

* 1997 में दूसरी बार बने पीएम
पाकिस्तान मुसलिम लीग फरवरी, 1997 में हुए आम चुनाव में फिर विजय रही और नवाज शरीफ 17 फरवरी, 1997 को दूसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने. 12 अक्तूबर, 1999 को जनरल परवेज मुशर्रफ द्वारा सैन्य तख्तापलट किये जाने तक वे इस पद पर बने रहे. नेशनल एसेंबली में पूर्ण बहुमत के कारण नवाज शरीफ ने पाकिस्तान के संविधान में ऐतिहासिक बदलाव करते हुए प्रधानमंत्री और नेशनल एसेंबली भंग करने के राष्ट्रपति के अधिकारों को खत्म कर दिया.

शरीफ के कार्यकाल में पाकिस्तान ने वैश्विक दबावों को दरकिनार करते हुए 28 मई, 1998 को परमाणु परीक्षण भी किया और पहला परमाणु शक्ति संपन्न इसलामिक राष्ट्र बन गया. हालांकि प्रधानमंत्री के रूप में दूसरे कार्यकाल के दौरान नवाज शरीफ और पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सज्जाद अली शाह के बीच कई मसलों पर विवाद सामने आये.

* कारगिल की कड़वी याद
नवाज शरीफ के इस दूसरे कार्यकाल में ही फरवरी, 1999 में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस से वाघा बॉर्डर के जरिये पाकिस्तान गये और लाहौर समझौते पर हस्ताक्षर किया. हालांकि मई, 1999 में भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बेहद कटु हो गये, जब पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल सेक्टर में भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया.

* देश से निकाला गया
नवाज पर आरोप लगा कि उन्होंने श्रीलंका से आ रहे जनरल परवेज मुशर्रफ के विमान का अपहरण करने और आतंकवाद फैलाने की कोशिश की. बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सन् 2000 में पाकिस्तान के एंटी टेरोरिज्म कोर्ट ने नवाज शरीफ को भ्रष्टाचार के अपराध में दोषी करार दिया. सऊदी अरब की मध्यस्तता से शरीफ को जेल से बचा कर सऊदी अरब के जेद्दा नगर में निर्वासित किया गया.

इस संबंध में अमेरिका के पूर्व विदेश उपमंत्री स्ट्रॉब टैलबॉट ने बीबीसी से बातचीत में याद दिलाया, ‘नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने की तैयारी कर रहे है, इस मौके पर याद आता है कि 1999 में अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने मुशर्रफ से बात करके नवाज शरीफ की जान बचायी थी.’

बाद में 23 अगस्त, 2007 को पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने नवाज शरीफ को पाकिस्तान वापस आने की इजाजत दी. वे 10 सितंबर, 2007 को सात सालों के निर्वासन के बाद इसलामाबाद लौटे, पर उन्हें एयरपोर्ट से ही तुरंत जेद्दा वापस भेज दिया गया. अंतत: 25 नवंबर, 2007 को वे अपने परिवार के साथ लाहौर लौटे. उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई मामले निचली अदालतों में अब भी चल रहे हैं.

* दोनों बेटे बिजनेस में
नवाज शरीफ को दो पुत्र और दो पुत्रियां हैं. चारों की शादी हो चुकी है. उनके बड़े पुत्र हुसैन नवाज सऊदी अरब में रहते हैं और पारिवारिक बिजनेस से जुड़े हैं, जबकि उनके दूसरे पुत्र हसन नवाज लंदन में रहते हैं और वहां पारिवारिक बिजनेस से जुड़े हैं. शरीफ की क्रिकेट में भी रुचि है और वे 1973-74 में पाकिस्तान रेलवे की ओर से प्रथम श्रेणी मैच में हिस्सा भी ले चुके हैं.

* कुछ अहम तथ्य
– ऐतिहासिक है यह चुनाव
पाकिस्तान के 66 वर्षो के इतिहास में पहली बार किसी चुनी हुई सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया और उसके बाद लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता हस्तांतरण के लिए देश में आम चुनाव हुए. इस चुनाव में आम मतदाताओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. मतदाताओं के उत्साह को देखते हुए वोट डालने की अवधि एक घंटा बढ़ा दी गयी. कुल करीब 60 फीसदी रिकार्ड मतदान की खबर है. शनिवार को ही नेशनल एसेंबली के साथ-साथ चार प्रांतों की एसेंबलियों के लिए भी वोट पड़े. वोटिंग की समाप्ति के बाद शनिवार को ही इनकी गिनती शुरू कर दी गयी.

– चरमपंथियों की हुई पराजय
रिकार्ड मतदान को चरमपंथियों की हार के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि चुनाव प्रचार की तरह ही मतदान के दिन भी तालिबान आतंकवादियों ने जमकर हिंसा की. खबरों के मुताबिक कराची और पेशावर समेत कई जगहों पर हुए बम धमाकों में 32 से ज्यादा लोगों की मौत हो गयी और 200 से ज्यादा लोग घायल हो गये, लेकिन देश में लोकतंत्र की चाहत रखनेवाले मतदाताओं के उत्साह पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ा.

* नयी सरकार की चुनौतियां
तालिबान आतंकवादियों की हिंसा का जवाब मतदाताओं ने तो दे दिया है, अब नयी सरकार को इस चुनौती को स्वीकार करना होगा. मतदाताओं का संदेश साफ है, उसे आतंकवाद नहीं, विकास चाहिए. इसलिए नयी सरकार को अब अपना ध्यान देश के पुनर्निर्माण पर केंद्रित करना होगा. नवाज शरीफ की पार्टी मुसलिम लीग (एन) का घोषणापत्र उन्नति और शांति का एक सकारात्मक दस्तावेज है. उम्मीद की जानी चाहिए कि पार्टी अपने इस वादे को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ेगी. भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते को मजबूत करना दोनों देशों के हित में होगा.

* भारत के साथ रिश्तों पर असर
नवाज शरीफ ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में भारत-पाक रिश्तों को सुधारने की पहल की थी. इसके तहत 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बस से पाकिस्तान गये थे और लाहौर समझौते पर हस्ताक्षर किया था. हालांकि इसके कुछ महीने बाद ही कारगिल में पाक सैनिकों ने भारत पर हमला कर दिया था.

वैसे कई विश्लेषकों का मानना है कि इस हमले के लिए मुख्य रूप से तत्कालीन सैन्य प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ जिम्मेवार थे. चुनाव प्रचार के दौरान नवाज शरीफ ने वादा किया है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आयी तो संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव और 1999 के लाहौर समझौते के मुताबिक कश्मीर मसले का हल खोजने की कोशिश करेंगे. उम्मीद करनी चाहिए कि वे अपने वादे पर कायम रहेंगे.

* इमरान की मंजिल अभी दूर
पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ के नेता एवं पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के सबसे सफल कप्तान रहे इमरान खान बीते कई वर्षों से देश की राजनीति में अपनी पकड़ बनाने का प्रयास कर रहे थे. इसके लिए उन्होंने सिलसिलेवार रैलियां कीं और साइबर मीडिया का भी सहारा लिया. इस दौरान उन्होंने वादा किया कि वे पाकिस्तान की राजनीति से भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म कर देंगे.

क्रिकेट और सामाजिक कार्यो से हासिल लोकप्रियता के अलावा सियासी रैलियों एवं अन्य प्रयासों के दम पर उन्होंने शहरी मध्यवर्ग का ध्यान अपनी ओर खींचा. इस दौरान उन्हें कुछ ऐसे नेताओं का सहयोग भी मिला, जो अपनी पार्टियों में संतुष्ट नहीं थे. लेकिन इन प्रयासों के बावजूद वे सत्ता तक नहीं पहुंच सके, हालांकि नेशनल एसेंबली के चुनाव में उनकी पार्टी अंतिम नतीजे मिलने तक सत्तारूढ़ पीपीपी से आगे चल रही थी.

* राजनीति में कदम
इमरान खान ने पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (न्याय के लिए आंदोलन) नामक राजनीतिक पार्टी की स्थापना अप्रैल, 1996 में की और इसके अध्यक्ष बने. वे पिछले चुनाव में इस पार्टी की ओर से निर्वाचित एकमात्र संसद सदस्य थे. उन्होंने नवंबर, 2002 से अक्तूबर, 2007 तक नेशनल असेंबली के सदस्य के रूप में मियांवाली का प्रतिनिधित्व किया.

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* सबसे सफल क्रिकेट कप्तान
39 वर्ष की आयु में इमरान ने पाकिस्तान की प्रथम और एकमात्र विश्व कप जीत में अपनी टीम का नेतृत्व किया. उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में 3,807 रन और 362 विकेट का रिकॉर्ड बनाया है, जो उन्हें आल राउंडर्स ट्रिपल हासिल करनेवाले छह विश्व क्रिकेटरों की श्रेणी में शामिल करता है. इससे पहले इमरान 1971 से 1992 तक पाक क्रिकेट टीम के प्रमुख आलराउंडर रहे. 1982 से 1992 के दौरान उन्होंने टीम का नेतृत्व किया.

* सामाजिक कार्य
1992 में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद करीब चार वर्षों तक इमरान ने अपने प्रयासों को केवल सामाजिक कार्यो तक केंद्रित रखा. 1991 में ही उन्होंने अपनी मां के नाम पर एक धर्मार्थ संगठन, शौकत खानम मेमोरियल ट्रस्ट, की स्थापना की. ट्रस्ट के प्रथम प्रयास के रूप में, खान ने पाकिस्तान के पहले कैंसर अस्पताल की स्थापना की, जिसका निर्माण खान द्वारा दुनिया भर से जुटाये गये दान और फंड से किया गया. उन्होंने अपनी मां की स्मृति से प्रेरित होकर, जिनकी मृत्यु कैंसर से हुई थी, 29 दिसंबर, 1994 को लाहौर में शौकत खानम मेमोरियल कैंसर अस्पताल और अनुसंधान केंद्र नामक एक धर्मार्थ कैंसर अस्पताल खोला.

* जन्म एवं शिक्षा
इमरान अहमद खान नियाजी का जन्म 25 नवंबर, 1952 को हुआ. वे शौकत खानम और इकरमुल्लाह खान नियाजी की संतान हैं. पंजाब प्रांत के लाहौर में बसे इमरान के पिता मूलत: मियांवाली के पश्तून नियाजी शेरमनखेल जनजाति से थे. इमरान एक मध्यमवर्गीय परिवार में अपनी चार बहनों के साथ पले-बढ़े. उन्होंने लाहौर में ऐचीसन कॉलेज, कैथेड्रल स्कूल और इंग्लैंड में रॉयल ग्रामर स्कूल वर्सेस्टर में शिक्षा ग्रहण की. 1972 में उन्होंने दर्शन, राजनीति और अर्थशास्त्र के अध्ययन के लिए केबल कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में दाखिला लिया, जहां से उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की. वे 1974 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की क्रिकेट टीम के कैप्टन भी रहे. इमरान की मां भी एक ऐसे परिवार से थीं, जिनमें कई क्रिकेटर थे.

16 मई, 1995 को इमरान खान ने एक उच्च-वर्गीय अंगरेज रईस जेमिमा गोल्डस्मिथ के साथ विवाह किया. इस शादी से उन्हें दो पुत्र हुए, सुलेमान ईसा (18 नवंबर, 1996 को जन्म) और कासिम (10 अप्रैल, 1999 को जन्म). हालांकि 22 जून, 2004 को खान दंपति ने तलाक ले लिया, क्योंकि गोल्डस्मिथ के लिए पाकिस्तानी जीवन अपनाना मुश्किल था. इमरान खान अब इसलामाबाद में रहते हैं, जहां उन्होंने लंदन के अपने फ्लैट की बिक्री से प्राप्त धन से एक फार्म हाउस का निर्माण किया है.

– मीडिया की नजर में पाक चुनाव
-* लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भरोसा
पाकिस्तान के मतदाता भले ही सत्तापक्ष से नाराज थे, लेकिन वे चाहते थे कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया आगे बढ़े. यही वजह है कि पाकिस्तानी मतदाताओं ने अरसे से इंतजार में बैठी लोकतंत्र-विरोधी ताकतों से इस बार कोई गुहार नहीं लगायी. हालांकि सड़क पर उतरे दलों के चुनावी प्रचारों के बीच नेता मीडिया से ऐसा कुछ नहीं कह पाये, जिससे अंदाजा लगाया जाये कि पाकिस्तान कट्टरपंथ की चुनौतियों को समझते हुए स्वीकार करता है और आनेवाले दिनों में वह इसका माकूल जवाब देने के लिए तैयार है.
-डॉन का संपादकीय

* बेहतर प्रशासन को तवज्जो
पाकिस्तान के ज्यादातर जागरूक मतदाताओं ने बेहतर प्रशासन को तवज्जो दी है. इसीलिए केंद्र के साथ ही खैबर पख्तूनख्वा में सत्ताधारी दलों का सूपड़ा साफ हो गया है. यह पाकिस्तान की नयी सरकार के लिए भी एक सबक की तरह है, जिससे वह सीख लेकर पाकिस्तान में बेहतर प्रशासन की व्यवस्था करे.
– बीबीसी ऊदरू

* सबसे ज्यादा धांधलीवाला चुनाव
पाकिस्तान का चुनाव आयोग अहिंसक चुनाव कराने में अक्षम है. यही वजह है कि यह आम चुनाव पाकिस्तान के इतिहास में सबसे ज्यादा धांधलीवाला चुनाव साबित हुआ है.
– शाहिद मसूद, वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार

* 342 सदस्यीय नेशनल एसेंबली की 272 सीटों के लिए हुआ मतदान
* 70 शेष सीटें महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए हैं जहां मनोनयन होगा
* 137 सीटें चाहिए, चुनाववाली 272 सीटों में साधारण बहुमत के लिए
* 8.61 करोड़ कुल मतदाता थे, जिनमें करीब 60 फीसदी ने किया मतदान
* 5000 के करीब उम्मीदवार चुनाव मैदान में आजमा रहे थे किस्मत

हमें अल्लाह का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उसने हमारी पार्टी को आपकी यानी पाक अवाम की खिदमत का एक मौका दिया है. आइए, दुआ करें कि अल्लाह हमें वह ताकत दे, जिससे कि हमने जो वादे किये हैं, उन्हें हम पूरा कर सकें. दूसरी कुछ पार्टियों ने हमें गालियां दी और हमने मुल्क के लिए गालियां सुनीं. हम उनकी गालियों को फरामोश करते हैं. अल्लाह उन्हें माफ करे. मैं सभी पार्टियों से गुजारिश करता हूं कि वे हमारे साथ आयें और मुल्क की समस्याओं को हल करने की कोशिश करें.

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