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डॉन का कचचा चिट्ठा : डोजियर में इकबाल मिर्ची का अरबों का साम्राज्य

मिर्च बेचने से शुरू कर नशीले पदार्थो का देश का सबसे बड़ा तस्कर बन कर इकबाल मिर्ची ने अपराधों के इतिहास में एक खास मुकाम हासिल किया है. मुंबई के एक कोने की गरीबी से निकल कर उसने दुनिया के बेहतरीन शहरों में कारोबार और संपत्तियां अजिर्त कीं. उसके रसूख का अनुमान इस तथ्य से […]

मिर्च बेचने से शुरू कर नशीले पदार्थो का देश का सबसे बड़ा तस्कर बन कर इकबाल मिर्ची ने अपराधों के इतिहास में एक खास मुकाम हासिल किया है. मुंबई के एक कोने की गरीबी से निकल कर उसने दुनिया के बेहतरीन शहरों में कारोबार और संपत्तियां अजिर्त कीं.
उसके रसूख का अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि मुंबई पुलिस उस पर कोई आरोप साबित नहीं कर सकी थी. सबूतों के अभाव में ब्रिटेन से उसके प्रत्यर्पण की भारतीय कोशिशें भी असफल रहीं. उसकी मृत्यु के तीन बरस बाद जांच एजेंसियों ने उसकी संपत्तियों पर पुख्ता सबूत एक डोजियर में इकठ्ठा किया है. इन सबूतों के आधार पर मिर्ची की कहानी आज के समय में..
बचपन के दिनों में वह मिर्च और मसाला बेचा करता था और युवा होने पर मैनड्रैक्स ड्रग्स बेचने लगा. मोहम्मद इकबाल मेमन के शब्दों में वह व्यापारी था, लेकिन अधिकारियों के मुताबिक, वह भारत का सबसे बड़ा ड्रग कारोबारी था. मेमन की जो भी व्याख्या की जाये, उसके सफर की कहानी काफी मसालेदार रही है. जब वह बड़ा हो रहा था, तो उसे अपने परिवार के मिर्ची के कारोबार को लेकर उत्साह नहीं था और उसने इसे छोड़ दिया.
उसने 1960 में हाइस्कूल की पढ़ाई छोड़ कर टैक्सी ड्राइवर का काम करना शुरू कर दिया. हालांकि, उसे तत्काल अहसास हुआ कि जब वह ड्राइवर रहेगा, वह बंबई में बड़ा बनने के अपने सपने को पूरा नहीं कर पायेगा. इसलिए वह बंदरगाह के पास जाने लगा और कंटेनर से सामान चुरा कर बाजार में बेचने लगा. वह इस कारोबार के बड़े खिलाड़ी आमिर के सहायक के तौर पर काम करने लगा, लेकिन जल्द ही उसके व्यापार पर कब्जा कर लिया.
वह तेल, केमिकल, स्टील, बाल-बियरिंग और ऑटो पार्ट्स की तस्करी करने लगा और जल्द ही उसने इस स्थानीय नेटवर्क को स्थापित कर लिया. वह करीम लाला और वरदराजन मुदलियार गैंग के लिए भी काम करने लगा.
इकबाल मिर्ची सिर्फ बंदरगाह के कारोबार से ही नहीं जुड़ा रहा. मिर्ची के संबंध वैश्विक स्तर के ड्रग कारोबारी से बन गये और उसने अपने कारोबार का ध्यान ड्रग व्यापार की ओर कर दिया. ऐसा कहा जाता है कि मिर्ची ने मैनड्रैक्स के कारोबार को अपने नियंत्रण में लिया और यह भारत की छोटी कंपनियों में तैयार किया जाता था. वह इसे यूरोप और अफ्रीका के बाजार में भेजा करता था. उस समय एक मैनड्रैक्स टेबलेट की लागत 70 पैसे होती थी, लेकिन उससे उसे 200 रुपये तक मिलते थे. मैनड्रैक्स के अलावा मिर्ची गुजरात और राजस्थान से हेरोइन और हशीश को यूरोप और अमेरिका भेजा करता था.
वर्ष 1986 में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने मुंबई के बाहर एक फार्म हाउस पर छापा मारा और बड़े पैमाने पर मैनड्रैक्स टेबलेट, हेरोइन और हशीश बरामद किया. यह फार्म हाउस कथित तौर पर मिर्ची का था, लेकिन आधिकारिक रूप से इसका उसके साथ कोई संबंध स्थापित नहीं हो पाया. इसके तत्काल बाद मिर्ची ने अपना ठिकाना दुबई बना लिया, जहां उसने होटल बनाया, जिसमें एक इंपीरियल सूट्स है. इसके अलावा भी उसने अन्य कई कारोबार शुरू किये.
उसने भारत के कई शहरों में संपत्ति खरीदी. उसने अपने शिपिंग के कारोबार को बढ़ाया और इसका ऑफिस उसने लंदन, जोहांसबर्ग, लुसाका, नैरोबी, मोजांबिक और कनाडा में खोला. वह व्यापार में पूरी तरह सक्रिय रहा और यही वजह है कि मुंबई पुलिस उसके खिलाफ कोई मामला नहीं बना पायी. कई पुलिस अधिकारी फिशरमैन व्हॉर्फहोटल जाते रहते थे. एक खुफिया अधिकारी ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि मिर्ची मुंबई में आजाद जिंदगी जी रहा था.
मिर्ची के इशारों पर नाचती थी मुंबई
मिर्ची का नाइटक्लब फिशरमैन व्हार्फ अंडरवर्ल्ड के लिए बैठकों का पसंदीदा स्थान था और यहां कई झगड़े होते थे. इस क्लब में पुलिस, नौकरशाह और सिनेमा जगत के लोग भी आते थे. इस क्लब में शराब और खून बहते थे और पूरी मुंबई मिर्ची के इशारों पर नाचती थी. 1990 के दशक में मिर्ची की सालाना आय 1,500 करोड़ रुपये आंकी गयी.
कुछ लोग मानते हैं कि वह दाऊद का विश्वासपात्र था और उसके ड्रग्स के कारोबार को संभालता था, लेकिन यह बात कभी साबित नहीं हो सकी. वहीं कुछ दूसरे लोगों का कहना है कि वह सभी गैंगस्टरों से समान दूरी बना कर रखता था. एक ओर गैंगस्टर एक-दूसरे के खून के प्यासे थे, वहीं मिर्ची ने अपने कारोबार को इस दौरान मजबूत किया. मिर्ची का नाम तब बदनाम हुआ, जब उसका नाम 1993 के मुंबई धमाकों से जुड़ा. इस धमाके के कई आरोपियों ने मिर्ची का नाम लिया और पूछताछ के दौरान उसने नाम के आखिरी शब्द को टाइगर मेमन से मिलता बताया. हालांकि, दोनों रिश्तेदार नहीं थे.
उस समय तक पुलिस को मिर्ची की पहुंच का अंदाजा लग गया था. उसका व्यापार लगभग सभी महादेशों तक फैल चुका था. उसी साल खाड़ी के एक अखबार को दिये इंटरव्यू में मिर्ची ने खुद को एक मॉडल बिजनेसमैन बताया. उसने कहा कि वह एक पारिवारिक आदमी है और वह पार्टी से दूर रहता है और शाम का समय घर पर बिताता है. उसकी दो पत्नियां हैं, हाजरा मेमन और हीना कौसर. हीना कौसर से ही उसके तीन बच्चे हैं. हीना कौसर फिल्म मुगल-ए-आजम के निर्देशक के आसिफ की बेटी हैं.
1995 में लंदन से पकड़ा गया
तब तक भारत की मिर्ची पर पकड़ कमजोर हो चुकी थी. वर्ष 1994 में मिर्ची के चावल मिल के प्रबंधक अमर सुवर्ना उसके खिलाफ पुलिस के पास पहुंच गया. मिर्ची ने कथित तौर पर मुंबई में उसे गोली मरवा दी. भारत ने तत्काल उसके प्रत्यर्पण की अपील दाखिल कर दी. उस समय इंटरपोल ने उसके खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी कर दिया था और अप्रैल 1995 में स्कॉटलैंड यार्ड की पुलिस ने उसके लंदन स्थित आवास पर छापा मारा और उसे पकड़ लिया. हालांकि, मिर्ची के खिलाफ लगाये गये आरोप साबित नहीं हो पाये और वहां की अदालत ने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए प्रत्यर्पण की मांग खारिज कर दी. स्कॉटलैंड यार्ड की मिर्ची के खिलाफ जांच 1999 में खत्म हो गयी और जांच में उसके खिलाफ किसी प्रकार के आपराधिक क्रियाकलाप के सबूत नहीं मिले. आखिर मिर्ची को निदरेष घोषित कर दिया गया.
बाद में एक इंटरव्यू में मिर्ची ने कहा कि भारत सरकार मेरे खिलाफ जो भी कहती है, वह झूठ का पुलिंदा है. ड्रग्स, हत्या और आतंकवाद के सारे आरोप झूठे हैं. मेरा पहला अपराध यह है कि मैं मुसलिम हूं और मेरा दूसरा अपराध यह है कि मैं एक सफल मुसलिम कारोबारी हूं.
लंदन में मिर्ची एसेक्स के पॉश इलाके में रहता था और उसके पड़ोसी उसे मिलनसार और अच्छे व्यक्ति के तौर पर याद करते हैं. जीवन के आखिरी वर्षो में मिर्ची अपना नाम इन आरोपों से दूर करने के लिए बैचेन था. उसने भारत आने की बात की थी, लेकिन बदले में न्यायिक सुरक्षा चाहता था. वर्ष 2012 में ‘स्टार न्यूज’ को दिये इंटरव्यू में उसने कहा कि उसे अपनी जन्मभूमि की बहुत याद आती है और वापस आने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार है.
हालांकि, भारत सरकार ने उसके आवेदन को अस्वीकार कर दिया. वर्ष 2013 में दिल का दौरा पड़ने से लंदन में उसकी मौत हो गयी. उसकी मौत के दो साल बाद प्रवर्तन निदेशालय ने 6 से अधिक देशों से मिर्ची के आतंक को फंडिंग और हवाला कारोबार करने को लेकर संपर्क किया. ऐसा लगता है कि मौत के बाद भी मिर्ची ने अधिकारियों के लिए जीवनभर का मसाला छोड़ दिया है.
(स्नेत : द वीक)
अजीत कुमार दुबे एवं मैथ्यू टी जॉर्ज
कोई भी रसोइया अकेले रसोई नहीं बनाता. अमेरिकी आहार एवं कथा लेखक लॉरी कोल्विन ने इसे ही स्पष्ट करते हुए लिखा है, ‘अपने बिल्कुल एकांत पलों में भी रसोई में काम करनेवाला कोई रसोइया अपने पूर्वजों से घिरा रहता है.’ इकबाल मुहम्मद मेमन ने भी मुंबई के नल बाजार में एक रसोइये के रूप में अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत की थी.
उसकी विशेषज्ञता नान-चाप बनाने में थी, जो शोरबेदार मटन और चपाती से बनता है. बाद में वह मसालों का व्यापारी बन बैठा. उसका जीवन मिर्च और काली मिर्च के दानों में सिमट आया और इसी से उसे उसका मसालेदार नाम भी मिला. 14 अगस्त, 2013 को जब लंदन में हार्ट अटैक से उसकी मृत्यु हुई थी, तब अखबारों की सुर्खियों ने इकबाल मिर्ची या सिर्फ मिर्ची के उपनाम से ही उसका जिक्र किया.
मिर्ची ने एक भाग्यशाली और खतरों से सुरक्षित जीवन व्यतीत किया और यहां भी वह अकेला न था. उसने जो भी काम किया, उसमें उसकी पूर्व की आत्माओं ने उसकी निगरानी करना जारी रखा. लेकिन मिर्ची हमेशा यही कहता रहा कि मैं एक वैधानिक कारोबारी हूं और अपना धंधा अकेले ही किया करता हूं.
यह एक अलग चीज है कि उसकी इस बात पर बहुत कम लोग यकीन करते थे. अफवाहें तो यही बताती हैं कि मसाले के कारोबार के बाद वह करीम लाला और वरदराजन मुदालियर का शागिर्द बन कर तस्करी के धंधे में उतर गया. फिर उसने तस्करी की चीजें उतारने के लिए अपनी ही टीम खड़ी की और अक्तूबर 1982 में पहली दफा गिरफ्तार हुआ. बाद में वह मादक पदार्थो, खास कर मैनड्रैक्स की तस्करी में जुट गया.
और बाद में, उसे अंडरवर्ल्‍ड डॉन दाऊद इब्राहिम के पैसों का प्रबंधक भी बताया गया. हालांकि, डी-कंपनी से उसके संबंधों के सबूत कभी नहीं मिल सके, लेकिन इतना तो माना ही जाता था कि अंडरवर्ल्‍ड दुनिया में उसका जाल सुनियोजित ढंग से बिछा था. अपने फॉरेन नारकोटिक्स किंगपिन डेजिग्नेशन एक्ट के अंतर्गत अमेरिका ने उसे एक अहम विदेशी मादक पदार्थ व्यापारी माना. संयुक्त राष्ट्र ने उसे ‘10 सबसे बड़े मादक पदार्थ व्यापारी’ की सूची में शामिल किया. पर, क्या वह किन्हीं बड़े माफिया सरदारों के साथ भी संबद्ध था? यदि हां, तो कितनी गहराई से? इनके उत्तर किसी के पास नहीं हैं.
मुंबई धमाकों के लिए धन मुहैया कराने का आरोप
1980 के दशक के उत्तरार्ध में इकबाल मेमन ने भारत छोड़ दिया और फिर बाहर ही रहा. लेकिन, 1993 के श्रृंखलाबद्ध विस्फोटों ने यह पूरा परिदृश्य बदल कर रख दिया. मिर्ची पर इन विस्फोटों के लिए धनराशि देने के आरोप लगे. भारत सरकार ने उसके पीछे अपने जासूस लगा दिये.
मिर्ची को इंग्लैंड के एसेक्स में छह शयनकक्षों के एक घर में पाया गया और भारत सरकार उसे अदालतों तक घसीट लायी, लेकिन वह उस पर कोई आरोप सिद्ध न कर सकी. इस तरह, मिर्ची ने एक स्वतंत्र व्यक्ति की भांति अपने बिस्तर पर प्राण त्यागे, जो उसकी राह पर चलनेवाले किसी व्यक्ति के लिए एक सौभाग्य की बात थी.
लेकिन, इकबाल मिर्ची की मृत्यु की बाद भी उसे लेकर उसकी विडंबनाओं का अंत नहीं हुआ. मिर्ची के विषय में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा तैयार की गयी एक फाइल अंगरेजी पत्रिका ‘द वीक’ के पास है, जो मुंबई के वर्ली में उसके द्वारा चार भूखंडों/ मकानों के विक्रय से संबद्ध है. यह सौदा 2010 में 1,000 करोड़ रुपयों में पक्का हुआ था, ऐसा उस फाइल में दर्ज है. इस पैसे को बेनामी कंपनियों के माध्यम से पूरी दुनिया में पहुंचा कर अचल संपत्तियों में निवेश किया गया.
153 पृष्ठों की मिर्ची की फाइल में संपत्ति का विस्तृत ब्योरा
16-17 अगस्त, 2015 को प्रधानमंत्री द्वारा की गयी संयुक्त अरब अमीरात की यात्र के दौरान नरेंद्र मोदी ने वहां के अधिकारियों को दाऊद इब्राहिम की संपत्ति के विषय में एक फाइल सौंपी. जानकार सूत्रों का कहना है कि मिर्ची फाइल के कुछ अंश दाऊद वाली फाइल में भी शामिल हैं. ऐसा बताया जाता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने इस फाइल की तैयारी की व्यक्तिगत रूप से देखरेख की थी. प्रधानमंत्री की संयुक्त अरब अमीरात की यात्र में उनके साथ डोभाल भी गये थे, जिस दौरान, ऐसा बताया गया कि, मोदी ने अधिकारियों से अनुरोध किया कि वहां दाऊद इब्राहिम की निजी तथा बेनामी संपत्तियां जब्त कर ली जायें.
153 पृष्ठों की मिर्ची की फाइल तीन हिस्सों में बंटी हुई है, जिसमें 17 पृष्ठों का पहला भाग वर्ली की संपत्ति के विक्रय से संबद्ध है. दो पृष्ठों का दूसरा भाग एक ऐसे सौदे के विषय में है, जिसकी बातचीत अभी चल ही रही है, जबकि बाकी पृष्ठों में 31 सूचीबद्ध अनुलग्नकों में बंटे इनके विस्तृत सबूत संलग्न हैं.
इस फाइल में वर्ली की संपत्ति का जिक्र इस तरह है- ‘जिस संपत्ति का सीएस नंबर 1 है, उसका रकबा 5,747.54 वर्ग मीटर है, जबकि जिस जमीन की सीएस संख्या 1/1 है, उसका रकबा 384.62 वर्ग मीटर है. इनके अलावा राबिया मेंशन, मरियम लॉज, सी व्यू और समुद्र महल नाम के चार मकानों का भी जिक्र है. पता 170, लाला लाजपत राय रोड, वर्ली, मुंबई के रूप में दिया गया है.
फाइल के अनुसार, ‘ये चार इमारतें रॉकसाइड इंटरप्राइजेज द्वारा इसके साझीदार इकबाल मिर्ची (अब मृत) तथा शमारुख अली मुहम्मद की मार्फत सर मुहम्मद यूसुफ ट्रस्ट से सितंबर 1986 में खरीदी गयी थीं.’ शमारुख को इस ट्रस्ट के न्यासियों से उसके घनिष्ठ संबंधों की वजह से एक पक्षकार बनाया गया.
1993 में मिर्ची को एक भगोड़ा घोषित किये जाने के बाद समुद्र महल को छोड़ कर तीन इमारतें भारतीय दंड संहिता, 1973 तथा स्मगलर्स ऐंड फॉरेन एक्सचेंज मैनीपुलेटर्स एक्ट, 1976 के तहत जब्त कर ली गयीं. 2 मार्च, 1999 को मिर्ची ने सर मुहम्मद यूसुफ ट्रस्ट के न्यासियों को इन इमारतों का केयरटेकर नियुक्त किया. 31 अगस्त, 2004 को मुंबई के तत्कालीन चीफ एडिशनल मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट सीबी हवेलिकर ने इन इमारतों को जब्ती की प्रक्रिया से मुक्त कर दिया. इसके तत्काल बाद मिर्ची ने इन्हें बेचने की पेशकश कर दी, मगर जायदादों की जटिलता तथा मिर्ची की संलिप्तता की वजह से ज्यादा खरीदार सामने नहीं आये.
मुंबई स्थित जॉय होम क्रिएशंस लिमिटेड ने इस खरीदारी के लिए प्रकटत: एक प्रारंभिक अनुबंध पर हस्ताक्षर तो किये, पर इस सौदे को अंतिम रूप नहीं दिया. बाद में, वाधवा समूह ने इसे 1,000 करोड़ रुपयों में ‘सनब्लिंक रियल एस्टेट प्राइवेट लिमिटेड’ की मार्फत पक्का किया और इसके सुगम हस्तांतरण हेतु सनब्लिंक ने जॉय होम क्रिएशंस के साथ एक सहमतिपत्र पर भी हस्ताक्षर किये.
बांद्रा पश्चिमी के सनी सुरेश बठीजा तथा मेहुल के अनिल बवीशी सनब्लिंक के वर्तमान निदेशक हैं, किंतु जानकार सूत्रों का कहना है कि एक प्रभावशाली कांग्रेसी राजनीतिज्ञ- जो मुंबई के पूर्व निगम सदस्य तथा कई बार विधानसभा सदस्य भी रह चुके हैं- इस कंपनी के अथवा इसके एक बड़े हिस्से के मालिक हैं.
प्रवर्तन निदेशालय की फाइल ने सनब्लिंक के सौदे पर दो वजहों से लाल निशान लगाये- हुमायूं सुलेमान मर्चेट (जिनके पास मिर्ची की पॉवर ऑफ अटॉर्नी थी) ने हारून रशीद यूसुफ (अध्यक्ष, सर मुहम्मद यूसुफ ट्रस्ट) की सहायता से इस संपत्ति को किराये पर दी गयी प्रदर्शित किया, ताकि विभिन्न शुल्कों की देनदारी के लिए उसकी कीमत करा ली जाये तथा 1,000 करोड़ रुपयों के कालेधन की कीमत हस्तांतरित की जा सके.
यह फाइल कहती है कि यूसुफ तथा मर्चेट ने एक मुआवजे के बदले झूठे दस्तावेज और किरायों की झूठी रसीदें तैयार कीं. बदले में यूसुफ को 25 करोड़ रुपये तथा निर्मित क्षेत्र का 5,000 वर्गफीट और मर्चेट को 50 करोड़ रुपये मिले. इसमें अन्य कानूनी फर्मो के नाम भी दिये गये हैं, जिन्होंने ‘विक्रय के इस सौदे से हासिल अवैधानिक धनराशि के प्रबंधन में मदद पहुंचायी.’
बेनामी/विवादित संपत्ति के सौदे की प्रक्रिया और संदेह
इस फाइल का दूसरा हिस्सा एक ‘बेनामी संपत्ति का ब्यौरा देता है, जो डॉ फरहम यूरिक ईरानी (प्रभादेवी में स्थित एक फर्टिलिटी क्लिनिक) के नाम प्रदर्शित है, जो इस दस्तावेज की तफसील के परे, दरअसल इकबाल मिर्ची की ही है.’ यह फाइल यह भी कहती है कि मिर्ची का छोटा पुत्र, जुनैद मेमन ‘इस संपत्ति को बेचने की प्रक्रिया में लगा है.’
यह संपत्ति विवादित है, क्योंकि ईरानी के विभिन्न संबंधियों ने इस पर अपनी दावेदारी कर रखी है. यह केंद्रीय सरकार द्वारा एक पोस्ट ऑफिस के लिए भी सुरक्षित है. फाइल कहती है कि ‘ईरानी की संलिप्तता से’ जुनैद ने मुंबई में वैनटेज इंटरप्राइजेज लिमिटेड की स्थापना की. इस कंपनी को इस विवादित संपत्ति से निपटना है.
फाइल के मुताबिक, यह भूखंड ‘बांद्रा के डंडा खाता में निबंधन उपजिला बांद्रा, तालुका साउथ सालसेट, जिला बंबई उपनगर में है, जिसकी राजस्व सर्वेक्षण संख्या 184 और रकबा लगभग 2,362 वर्ग मीटर है.’
प्रकटत:, इस संपत्ति पर विवाद को सुलझाने के लिए ईरानी ने मिर्ची की मदद मांगी. मिर्ची ने ईरानी को एक अघोषित रकम का भुगतान इस सहमति पर किया कि विवादों का समाधान हो जाने पर वे दोनों इस संपत्ति की कीमत बांट लेंगे. अभी इस संपत्ति की कीमत 200 करोड़ लगायी गयी है.
इस फाइल में प्रवर्तन निदेशालय ने चेतावनी दी है कि ‘विवाद/ मुकदमे की वजह से इस संपत्ति की कीमत काफी कम दिखाते हुए इसे किसी भी पल किसी ताकतवर बिल्डर लॉबी के हाथों बेच दिया जायेगा और उसकी कीमत के बड़े हिस्से को हवाला के जरिये दुबई भेज दिया जायेगा. यह सारा काम ईरानी के साथ जुनैद के द्वारा किया जा रहा है.’
संपत्ति की बिक्री से हासिल 1000 करोड़ रुपये कहां गये?
तो वर्ली की संपत्ति बिक्री से हासिल धन का क्या हुआ? प्रवर्तन निदेशालय (इडी) को पूरा भरोसा है कि दुबई के रास्ते पैसा भारत से बाहर से भेज दिया गया. डोजियर के अनुसार, ‘लेन-देन का 1000 करोड़ रुपया हवाला चैनलों से दुबई भेजा गया, और फिर वहां से ऑफशोर कंपनियों, हवाला और बैंकिंग चैनलों के जरिये यूरोप भेज दिया गया. इसके मुख्य लाभार्थी हाजरा इकबाल मेमन (मिर्ची की पहली पत्नी), जुनैद इकबाल (मिर्ची का दूसरा बेटा) और आसिफ इकबाल मेमन (मिर्ची का बड़ा बेटा) थे.’
हाजरा, आसिफ और जुनैद ने इस धन का इस्तेमाल दुबई, ब्रिटेन, साइप्रस, तुर्की, स्पेन और मोरक्को में संपत्ति खरीदने में किया. कुछ संपत्तियां उनके नाम पर हैं, जबकि कुछ फर्जी कंपनियों और मिर्ची की एकमात्र बेटी नादिया जावेद मलिक के नाम पर है. नादिया पाकिस्तानी है.
प्रवर्तन निदेशालय ने मिर्ची परिवार द्वारा किये गये कुछ रियल इस्टेट डील और लेन-देन को रेखांकित किया है. सबसे बड़ी खरीददारी में से एक दुबई में की गयी. ‘मनखूल क्षेत्र में प्लॉट 317-1039 में मिडवेस्ट अपार्टमेंट’ जुलाई, 2010 में 93 मिलियन यूएइ दिरहम में खरीदा गया. एक अमीराती से खरीदी गयी इस संपत्ति का साझा मालिकाना हाजरा, आसिफ और जुनैद के नाम है.
फिर, जुनैद ने तुर्की में एक फर्जी कंपनी, माहे, सेशेल्स में पंजीकृत ओसनिक होल्डिंग्स कॉरपोरेशन, के जरिये 10 संपत्तियां खरीदी. इस लेन-देन को पॉवर ऑफ अटॉर्नी के माध्यम से किया गया, जिसे फुल्या कवास नामक तुर्की अटॉर्नी को दिया गया था. डॉजियर में इस लेन-देन के बारे में कई दस्तावेज दिये गये हैं, जिनमें रियल्टरों, वकीलों और जुनैद के बीच इ-मेल के जरिये हुए संवाद भी शामिल हैं.
ब्रिटेन में दो संपत्तियां संयुक्त अरब अमीरात में पंजीकृत मिहाज इंवेस्टमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के जरिये खरीदी गयीं. एसेक्स में विग्हम हाउस 3.5 मिलियन पाउंड में तथा रीडिंग में पोर्टलैंड हाउस 6.5 मिलियन पाउंड में खरीदा गया. मिर्ची परिवार के पास ब्रिटेन में 15 अन्य भवन और ऑस्ट्रेलिया में दो भवन हैं. डोजियर में महाराष्ट्र में ज्ञात 13 संपत्तियों का विवरण भी है.
जिन दो लेन-देन को खास तौर से चिह्न्ति किया गया है, वे हैं- 24 जुलाई, 2010 को जुनैद को दिया गया 19.34 करोड़ और नादिया को साइप्रस के अल्फा बैंक लिमिटेड द्वारा दिया गया 1.43 मिलियन स्विस फ्रैंक का ¬ण. प्रवर्तन निदेशालय का मानना है कि यह ¬ण ‘वर्ली में बेची गयीं चार बिल्डिंगों से मिली राशि के आधार पर’ दिया गया था. जांच के दायरे में 15 बैंक खाते भी हैं, जिनमें पांच ब्रिटेन के हैं और 10 भारत से.
भारत और विदेशों में निवेश सिर्फ मिर्ची परिवार तक ही सीमित नहीं रहा था. अरशद मेमन, फिरोज मेमन और परवीन मेमन, जिनकी पहचान मिर्ची परिवार के ‘मुख्य वकीलों’ के रूप में की गयी है, ने दो संपत्तियां न्यूजीलैंड, छह संपत्तियां महाराष्ट्र और एक गोवा में खरीदीं. आरोप है कि यह सभी वर्ली की बिक्री से मिले धन से की गयी हैं.
संपत्तियों के बाद डोजियर में उन कंपनियों की सूची दी गयी है जिन्हें हाजरा, आसिफ और जुनैद ने ‘बुरे लेन-देन को छुपाने’ के लिए बनाया था. इस सूची में सात कंपनियां भारत से, 17 ब्रिटेन से, पांच संयुक्त अरब अमीरात से और सात अन्य विदेशी द्वीपीय कंपनियां हैं. एक द्वीपीय कंपनी, कंट्री प्रोपर्टी लिमिटेड, ब्रिटिश वजिर्न आइलैंड्स में स्थित है, जो सेशेल्स की तरह ही एक टैक्स हेवेन है.
क्या इस लेन-देन का डी-कंपनी से कोई ताल्लुक है?
यही वह धन था जिसके कारण मिर्ची परिवार बाहर निकल गया. वर्ष 2013 के शुरू में भारतीय गुप्तचर एजेंसियों को सूचना मिली थी कि भारत का सबसे वांछित अपराधी दाऊद इब्राहिम अपनी वित्तीय गतिविधियों का प्रसार यूरोप में कर रहा है, ताकि वह आतंकियों योजनाओं के लिए अधिक धन जुटा सके. इंटेल ने बताया था कि दाऊद यूरोप में रियल इस्टेट में निवेश कर रहा है.
डॉन के आतंक को वित्तीय सहायता देने के नेटवर्क को तबाह करने के लिए रिसर्च एंड एनालिसिस विंग ने यूरोप में अपने लोगों को सक्रिय कर दिया. एक जासूस ने मिर्ची परिवार द्वारा लंदन में कीमती रियल इस्टेट खरीदने से संबंधित कुछ सूचनाएं जुटायीं, पर संपत्ति का सही विवरण का पता नहीं चल सका था. जासूस अपने काम में लगा रहा और अंतत: उसे एक नगरपालिका में एक व्यक्ति मिल गया जिसके जरिये वह लंदन के एक इलाके में उसने संपत्ति की पहचान कर ली. रॉ ने तुरंत इस सूचना को इडी और इंटेलिजेंस ब्यूरो के साथ साझा किया. बहुत जल्दी ही इन एजेंसियों ने करीब10 देशों में डी-कंपनी की संपत्तियों की जानकारी जुटा ली.
भारत में ग्रेटर मुंबई नगर निगम ने डी-कंपनी और मिर्ची परिवार के संपत्ति निवेशों की पहचान करने में बहुत मदद की. फिलहाल, पुलिस शहर के सांताक्रुज और बांद्रा जैसे पॉश इलाकों में संपत्ति की खरीद पर निगाह रखे हुए है. एक सूत्र के अनुसार डी-कंपनी के सरगनाओं की संपत्ति पर अधिक नजर रखी जा रही है.
दिलचस्प है कि महाराष्ट्र के आतंक विरोधी दस्ते (एटीएस) के एक पूर्व प्रमुख पर मिर्ची परिवार के साथ लेन-देन का संदेह है. कुछ सूत्रों ने बताया कि एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को एटीएस से हटाने के पीछे यह एक कारण था.
इडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने द वीक को बताया कि एक वरिष्ठ राजनेता ने मिर्ची परिवार की खूब मदद की है. अधिकारी के अनुसार, ‘इस राजनेता ने अनेक अवसरों पर मिर्ची और उसके परिवार से पैसा लिया और उनके धन को दूसरी जगह पहुंचाया. उसके पास इनकी गतिविधियों की बहुत जानकारी थी’.
अधिकारी ने जानकारी दी कि उक्त राजनेता ने कई बार लेन-देन की जगह निर्धारित की और कुछ अवसरों पर कूरियर का काम भी किया. वित्तीय इंटेलिजेंस की एक इकाई ने कुछ साल पहले उसकी मिली-भगत के बारे में एलर्ट कर दिया था, और वह रिपोर्ट लगभग उसी समय दी गयी, जब इडी को उस राजनेता पर नजर रखने के लिए कहा गया था.
अधिकारी ने यह भी जानकारी दी कि ‘पूर्ववर्ती कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे एक कांग्रेसी नेता की भूमिका की जांच भी हो रही है. दिलचस्प है कि डोजियर परवीन फिरोज मेमन की इस प्रकार पहचान करता है- हाजरा इकबाल मेमन के वकील, जो उसके हित में और उसकी ओर से भारत में काम कर रहे हैं. वह राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सदस्य है तथा पंचगनी नगरपालिका की एक कॉरपोरेटर है.
इस डोजियर का एक दिलचस्प पहलू यह है कि इसमें मिर्ची की दूसरी पत्नी हीना कौसर का कोई उल्लेख नहीं है. यह बीते जमाने की सिने कलाकार है. रिपोर्ट का अनुमान है कि मिर्ची की संपत्तियों को लेकर उसके आसिफ और जुनैद से तकरार चल रहा था. वर्ष 2011 में उसने अदालत से मिर्ची का पासपोर्ट वापस करने और उसका नाम मामलों से हटाने की गुहार लगायी थी.
बेटों से विवाद के बावजूद हीना मिर्ची पर भरोसा रखती थी तथा अंतिम समय तक उसके साथ खड़ी रही थी. क्या इससे आपको आश्चर्य हो रहा है? आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए. हीना प्रसिद्ध फिल्मकार एवं मुगले-आजम (1960) के निर्देशक के आसिफ की बेटी है.
(‘द वीक’ से साभार)
(अनुवाद : विजय नंदन एवं समय डेस्क)

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