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चाहिए अच्छी सड़कें व 24 घंटे बिजली

बिहार विधानसभा चुनाव की फिजां तैयार हो चुकी है और राजनीतिक दल व उनके नेता अखाड़े में उतर चुके हैं. उनकी ओर से अपने-अपने स्तर से मुद्दे उठाये जा रहे हैं. ऐसे में प्रभात खबर ने आम जनता से यह राय जानने की कोशिश की कि उनकी राय में वे मुद्दे क्या हैं, जिसके आधार […]

बिहार विधानसभा चुनाव की फिजां तैयार हो चुकी है और राजनीतिक दल व उनके नेता अखाड़े में उतर चुके हैं. उनकी ओर से अपने-अपने स्तर से मुद्दे उठाये जा रहे हैं. ऐसे में प्रभात खबर ने आम जनता से यह राय जानने की कोशिश की कि उनकी राय में वे मुद्दे क्या हैं, जिसके आधार वे आने वाले विधानसभा चुनाव में वोट करेंगे. साथ ही यह भी वे किस आधार पर अपना उम्मीदवार चुनेंगे और पिछले एक साल में उन्होंने क्या महसूस किया.
इसके लिए प्रभात खबर ने प्रखंडों तक फैले अपने नेटवर्क का इस्तेमाल किया. आज पढ़िए सर्वे के नतीजे की पहली कड़ी, जो चुनावी मुद्दों पर लोगों की राय है. लोगों ने अच्छी सड़कें व 24 घंटे बिजली को पहले पायदान पर रखा है, जबकि किसानों व गांवों की बेहतरी को विधानसभा चुनाव का दूसरा बड़ा मुद्दा बताया है.
बेहतर सड़कें और 24 घंटे बिजली बिहार के लोगों की सबसे बड़ी आकांक्षा है. इसके बाद लोग किसानों और गांवों की बेहतरी को प्रमुख चुनावी मुद्दा मानते हैं. शहर का मसला लोगों की प्राथमिकता सूची में सबसे नीचे है. प्रभात खबर के सर्वे में यह तथ्य उजागर हुआ है.
मुद्दों में सबसे उपर
सर्वे में सबसे ज्यादा 55 फीसदी राय (पहली, दूसरी व तीसरी प्राथमिकता को जोड़कर)इस पक्ष में है कि अच्छी सड़कें और 24 घंटे बिजली विधानसभा में चुनावी मुद्दा होना चाहिए.
इसे पहली प्राथमिकता में रखने वालों की संख्या 18 फीसदी, दूसरी प्राथमिकता बताने वालों की संख्या 22 फीसदी और तीसरी प्राथमिकता बताने वालों की संख्या 16 फीसदी है. सिर्फ दो फीसदी ने इसे अपनी अंतिम प्राथमिकता बतायी है. यानी बिजली और सड़क को लोग बिहार में बड़े बदलाव के साथ अपनी जिंदगी की बेहतरी के वाहक के रूप में देख रहे हैं.
बिहार राष्ट्रीय औसत से पीछे : प्रति सौ वर्ग किमी क्षेत्रफल पर सड़कों की लंबाई के मामले में बिहार राष्ट्रीय औसत से आगे है, लेकिन प्रति लाख आबादी पर सड़क घनत्व के मामले में काफी पीछे है. यह स्थिति तब है, जबकि पिछले एक दशक में बिहार में 66500 किलोमीटर सड़कों का निर्माण या अपग्रेडेशन हुआ है. 5431 पुल-पुलिये भी बने हैं. सड़कों के जाल की वजह से आर्थिक हलचल बढ़ी है.
यही वजह है कि लोगों की उम्मीदें भी बढ़ी हैं. दूसरी तरफ, राज्य में प्रति व्यक्ति बिजली खपत के मोरचे पर ऊंची छलांग के बावजूद बिहार अभी भी देश में निचले पायदान पर है. वर्ष 2001 में बिहार में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 76 किलोवाट प्रति घंटा थी, जो अब बढ़ कर 302 किलोवाट प्रति घंटा हुई है. राष्ट्रीय औसत 1010 है. कमजोर आधारभूत संरचना की वजह से बिजली की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पाती.
दूसरे क्रम पर किसान व गांव
बिहार की करीब 89 फीसदी आबादी गांवों में रहती है और 75 फीसदी लोग खेती-किसानी पर निर्भर हैं. सर्वे में प्रथम तीन प्राथमिकताओं के साथ 50 फीसदी राय उभरी है कि विधानसभा चुनाव का मुद्दा किसानों और गांवों की बेहतरी हो. 24 फीसदी लोगों ने इस मुद्दे को अपनी पहली प्राथमिकता (सबसे ऊपर) बतायी है. किसानों और गांवों की बेहतरी की चिंता इस रूप में भी उजागर होती है कि प्राथमिकता के अंतिम पायदान पर भी चार फीसदी लोगों ने राय रखी है. इसे दूसरी व तीसरी प्राथमिकता बताने वालों की संख्या क्रमश: 15 फीसदी व 11 फीसदी है.
चुनौती : कृषि में सरकारी निवेश की वजह से खाद्यान्न का उत्पादन और उत्पादकता तो बढ़ी है, लेकिन जीएसडीपी में हिस्सेदारी घटी है. अनाज की सरकारी खरीद में पारदर्शिता का अभाव किसानों के लिए बड़ी समस्या है. भूमि सुधार व सिंचाई क्षमता का विस्तारबड़ी चुनौती है. जातिगत सर्वेक्षण के मुताबिक बिहार में 1.25 करोड़ ग्रामीण परिवार (70.59 }) दिहाड़ी मजदूर हैं, जबकि देश में ऐसे परिवार 9.16 करोड़ (51.14 }) हैं. गांवों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए बिजली व सड़क आधारभूत संरचना के दो महत्वपूर्ण फैक्टर हैं. करीब 14 हजार गांवों में अभी भी बिजली नहीं है.
विकास : 45} ने दी तरजीह
विकास को मुद्दा के रूप में रखने वाले प्रथम तीन प्राथमिकता वालों की तादाद 45 फीसदी है. 19 फीसदी लोगों ने इसे मुद्दों के क्रम में प्रथम प्राथमिकता बताया है, जबकि दस फीसदी लोगों ने इस पर कोई राय जाहिर नहीं है. तीन फीसदी की राय में यह मुद्दा उनके लिए अंतिम पायदान यानी नौवें नंबर पर है.
प्रति व्यक्ति आय में पीछे : विकास को आर्थिक ग्रोथ और प्रति व्यक्ति आय पर परखा जाये, तो डेढ़ दशक में आर्थिक ग्रोथ ऋणात्मक से निकल कर 9.45 } हुआ है. पर प्रति व्यक्ति आय के मामले में बिहार राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे है. उच्च विकास दर को गरीबी उन्मूलन में उतारना होगा, क्योंकि गरीबी की दर अभी भी 33.7 } है, जो राष्ट्रीय औसत 21.9 }से ज्यादा है.
चौथे क्रम पर भ्रष्टाचार से मुक्ति
भ्रष्टाचार को लेकर भले ही हंगामा मचता रहा हो, लेकिन लोगों ने चुनावी मुद्दा के लिहाज से सड़क, बिजली, कृषि और विकास से इसे नीचे रखा है. 40 फीसदी लोगों की राय में भ्रष्टाचार से मुक्ति मुद्दा होना चाहिए. उनमें भी इसे पहली, दूसरी और तीसरी प्राथमिकता बताने वालों की संख्या करीब-करीब बराबर (क्रमश: 13, 13 और 14 फीसदी) है. लेकिन, सिर्फ दो फीसदी ने इसे अंतिम पायदान पर रखा है.
मौजूदा स्थिति : बिहार ने भ्रष्टाचारियों की संपत्ति जब्त करने वाला कड़ा कानून बनाया है. पिछले दस साल में 783 सरकारी कर्मी भ्रष्टाचार में पकड़े गये. 487 कर्मी बरखास्त किये गये.
शिक्षा व स्वास्थ्य पर बराबर राय
शिक्षा और स्वास्थ्य सीधे तौर पर जीवन से जुड़े हुए हैं. 36 फीसदी लोगों की राय में यह मुद्दा होना चाहिए. पहली, दूसरी और तीसरी प्राथमिकता बताने वाले 12-12 फीसदी लोग हैं. सिर्फ दो फीसदी लोगों ने इसे मुद्दों में अंतिम प्राथमिकता में रखा है.
स्थिति में बदलाव : शिशु मृत्यु दर 61 से घट कर 42 और मातृ मृत्यु दर 312 से घट कर 208 हो गया. लेकिन, अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी है. दूसरी तरफ, 6-14 आयु वर्ग के सिर्फ 1.72 फीसदी बच्चे स्कूलों से बाहर, लेकिन पढ़ाई की गुणवत्ता बड़ी चुनौती है.
सुशासन यानी गुड गवर्नेस
32 फीसदी लोगों की पहली तीन प्राथमिकताएं सुशासन को प्रमुख चुनावी मुद्दा बनाने की हैं. दस-दस फीसदी लोगों ने इसे पहली और दूसरी प्राथमिकताएं बतायी हैं, जबकि 12 फीसदी के लिए यह तीसरी प्राथमिकता है.
कानून-व्यवस्था : सातवां स्थान
सर्वे में लोगों ने बेहतर कानून व्यवस्था को चुनावी मुद्दे के रूप में सातवें स्थान पर रखा है. इसे प्रAथम तीन प्राथमिकताएं बताने वालों की संख्या 27 फीसदी है. कानून-व्यवस्था को लेकर लोगों की संजीदगी को समझने के लिए यह भी देखना होगा कि 19 फीसदी लोगों के लिए यह प्राथमिकता में सबसे नीचे है. लेकिन, यह बड़े तबके के बीच एक मुद्दा के रूप में कायम है, क्योंकि सिर्फ दो फीसदी ने इसे अंतिम पायदान पर रखा है.
औद्योगिकरण में पीछे
23 फीसदी लोग चाहते हैं कि उद्योग-रोजगार विधानसभा चुनाव का मुद्दा बने. यानी नौ मुद्दों के क्रम में लोगों ने इसे आठवें स्थान पर रखा है. सिर्फ छह फीसदी लोगों के लिए यह प्रथम प्राथमिकता का मुद्दा है. बिहार के विभाजन के बाद बहुत कम औद्योगिक इकाइयां राज्य में बचीं थीं. 28 पुराने चीनी मिलों में से 18 बीमार हैं. 2011-12 में देश में कुल 2.18 लाख कारखाने थे, जिनमें बिहार में 3232 (देश में हिस्सेदारी सिर्फ 1.49 }) थे. जीएसडीपी में उद्योग की हिस्सेदारी सिर्फ 18.4 } है, जो राष्ट्रीय औसत 31 } से काफी कम है.
शहरों को बेहतर बनाना
सर्वे के नतीजे बता रहे कि लोगों के लिए यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. सिर्फ 18 फीसदी ने इसे चुनावी मुद्दा बनाने के बारे में राय जाहिर की. वजह यह भी है कि सर्वे में छोटे कस्बों को शामिल किया गया था. सिर्फ 4.2 फीसदी ने इसे पहले पहली प्राथमिकता बतायी.
जुलाई, 2015 के तीसरे सप्ताह में प्रभात खबर की ओर से अपने नेटवर्क के माध्यम से राज्य के सभी 534 प्रखंडों के 4373 लोगों के बीच सर्वे कराया गया. उनसे तीन सवाल पूछे गये थे- (1) चुनाव के मुद्दे क्या हों, (2) आप किस आधार पर उम्मीदवार चुनेंगे और (3) पिछले एक साल में क्या बदलाव हुए. इस बात का ध्यान रखा गया कि सभी वर्गो व समुदायों तथा महिलाओं की आनुपातिक भागीदारी हो. सर्वे में भागीदार लोगों की बड़ी संख्या छोटे कस्बों, प्रखंड व जिला मुख्यालयों में रहने वाले लोगों की है. इसमें बड़े शहरों को शामिल नहीं किया गया है.

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