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दूसरा सचिन मिलना नामुमकिन है

।।अनुज सिन्हा।।(वरिष्ठ संपादक, प्रभात खबर) अक्तूबर 10, 2013 को टीवी से लेकर न्यूज एजेंसियों पर ब्रेकिंग न्यूज चली. सचिन तेंडुलकर ने टेस्ट से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है. इस खबर ने बहुतों को नहीं चौंकाया. संकेत तो कई माह से मिल रहे थे. टीम इंडिया का दक्षिण अफ्रीका दौरा स्थगित होना. वेस्टइंडीज की […]

।।अनुज सिन्हा।।
(वरिष्ठ संपादक, प्रभात खबर)

अक्तूबर 10, 2013 को टीवी से लेकर न्यूज एजेंसियों पर ब्रेकिंग न्यूज चली. सचिन तेंडुलकर ने टेस्ट से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है. इस खबर ने बहुतों को नहीं चौंकाया. संकेत तो कई माह से मिल रहे थे. टीम इंडिया का दक्षिण अफ्रीका दौरा स्थगित होना. वेस्टइंडीज की टीम को दो टेस्ट के लिए भारत बुलाना, ऐसे ही संकेत थे कि ये सब सचिन की विदाई के लिए हो रहा है. सचिन कुछ बोल नहीं रहे थे. फिर 10 अक्तूबर को दिल की बात कह दी. जब सचिन ने संन्यास की घोषणा की, तो उनके आलोचकों को भी दुख हुआ. ऐसा इसलिए क्योंकि क्रिकेट के इतिहास/भविष्य में दूसरा सचिन नहीं दिखता.

शायद ही कोई रिकॉर्ड हो, जिसमें सचिन न हों. यहां सचिन के उन गुणों पर चर्चा करेंगे, जिनसे सचिन महान बने. क्रिकेट के प्रति समर्पण- गहरा लगाव. क्रिकेट तो सचिन का जीवन है. जो किया मन से किया, सौ फीसदी किया. कड़ी मेहनत. छोटा मैच हो या बड़ा, किसी को हल्के में नहीं लिया. ऐसा कभी नहीं देखा-सुना कि नेट प्रैक्टिस छोड़ कर सचिन बाहर घूम रहे हैं. क्रिकेट की किताब बुक शॉट खेलने में माहिर, दुनिया के किसी भी गेंदबाज की बखिया उधेड़ने की क्षमता. वे चाहते तो बिना प्रैक्टिस के भी मैदान में उतर सकते थे, पर ऐसा कभी नहीं किया. वे मानते रहें कि ‘प्रैक्टिस मेक्स ए पर्सन परफेक्ट.’ अगर एक गलती हुई तो उसे वह दोहरायें नहीं जाये, इसका ख्याल रखा.

1999 का वर्ल्ड कप याद कीजिए. सचिन खेल रहे थे. खबर मिली कि उनके पिता का निधन हो गया है. दौरा छोड़ कर उन्हें मुंबई लौटना पड़ा. पिता के अंतिम संस्कार में भाग लिया. फिर लगा कि टीम इंडिया/देश को उनकी जरूरत है. वर्ल्ड कप खेलने लौट गये. केन्या के खिलाफ पहले मैच में ही 101 गेंदों पर नाबाद 140 रन बनाये. इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि सचिन मानसिक तौर पर कितने मजबूत हैं. सौ शतक, टेस्ट, वन डे में सबसे ज्यादा रन, ढेरों रिकॉर्ड, क्रिकेट के भगवान. फिर भी घमंड नहीं. विनम्रता से लबरेज. विवाद में नहीं पड़ कर सिर्फ क्रिकेट पर अपना ध्यान केंद्रित करना सचिन का गुण रहा है. कुछ मैचों में रन नहीं बनाने पर आलोचना भी हुई, संन्यास का दबाव बढ़ा, सचिन इससे चिंतित/विचलित हुए बगैर बल्ले से जवाब देने में लगे रहे. बार-बार रिजल्ट के जरिये यह बताते रहे कि उन पर उम्र का असर नहीं पड़ा है. लगातार बोल्ड आउट होने पर जब सचिन पर अंगुली उठी, तो उन्होंने अपनी कमी को दूर करने के लिए सलाह ली. अपने लंबे कैरियर में सचिन ने दुनिया के सैकड़ों तेज गेंदबाजों को ङोला. इनमें रिचर्ड हैडली, इमरान खान, शोएब अख्तर, मैकग्राथ, मैक्डरमोट, कोर्टनी वाल्श जैसे गेंदबाज प्रमुख हैं. चोट भी लगी, घायल हुए. कई बार तो चोट इतनी गंभीर थी कि लगा, सचिन अब खेल नहीं पायेंगे लेकिन कमिटमेंट, इच्छाशक्ति, जज्बा, कड़ी मेहनत उस चोट पर भारी पड़ा. सच में वे जीवट खिलाड़ी रहे हैं.

1989 में जब सचिन सिर्फ 16 साल के थे, पाकिस्तान दौरे पर वनडे मैच रद्द होने के बाद प्रदर्शनी मैच चल रहा था. मुश्ताक को सचिन ने पीटा. स्पिन के जादूगर अब्दुल कादिर ने सचिन को सिर्फ इतना ही कहा-बच्चों को क्यों मार रहे हो, मुझे मारो. अगला ओवर सचिन को कादिर ने फेंका. सचिन ने तय कर लिया कि कादिर का क्या करना है. कादिर के उस ओवर की छह गेंदों पर सचिन ने 6, 0, 4, 6, 6, 6 रन बनाये. यानी सचिन में बल्ले से जवाब देने का गुण बचपन से ही रहा है.

कप्तानी में वे फेल ही रहे. जब लगा कि कप्तानी से उनके खेल पर असर पड़ रहा है, तो छोड़ दी. कप्तान कोई भी रहा हो, कितना भी जूनियर क्यों न रहा हो, सचिन ने अनुशासन नहीं तोड़ा. जब भी लगा कि कप्तान को सुझाव देना है, सीनियर होने के नाते कप्तान का मनोबल बढ़ाया, नये खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ाया. हर जीत के बाद चाहे वह वर्ल्ड कप चैंपियनशिप का फाइनल हो या आइपीएल, पूरी टीम की सराहना करने, मनोबल बढ़ाने में सचिन हमेशा आगे रहे. ऐसे गुणों के कारण दूसरा सचिन तेंडुलकर मिलना लगभग असंभव है.

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