बॉटनी के क्षेत्र में विश्व में इंडिया का गौरव बढ़ानेवाले जीवाश्म वैज्ञानिक बीरबल साहनी बचपन से होनहार थे और अपनी उपलब्धियों से रॉयल सोसायटी इंग्लैंड में फेलो भी चुने गये. होनहार बिरवान के होत चिकने पात वाली कहावत वानस्पतिक वैज्ञानिक बीरबल साहनी के लिये एकदम फिट बैठती है.
बीरबल साहनी का जन्म नवंबर, 1891 को पश्चिमी पंजाब के शाहपुर जिले के भेरा नामक एक छोटे से व्यापारिक नगर में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है. उनका परिवार वहां डेरा इसमाइल खान से स्थानांतरित हो कर बस गया था. भारत में जीवाश्म खोज में उनका महत्वपूर्ण योगदान है.
पिता से मिली प्रेरणा
बीरबल साहनी पिता से काफी प्रभावित थे. प्रोफेसर साहनी अपने अनुसंधान कार्य में कभी हार नहीं मानते थे, बल्कि कठिन–से–कठिन समस्या का समाधान ढूंढ़ने के लिये सदैव तत्पर रहते थे. उन्होंने केवल छात्रवृत्ति के सहारे शिक्षा प्राप्त की. बुद्धिमान और होनहार बालक होने के कारण उन्हें छात्रवृत्तियां प्राप्त करने में कठिनाई नहीं हुई. बीरबल साहनी की प्रारंभिक शिक्षा यूनिवर्सिटी ऑफ लाहौर और पंजाब यूनिवर्सिटी में हुई. पिता प्रोफेसर रुचिराम साहनी ने उच्च शिक्षा के लिये इंग्लैंड भेजा. इंग्लैंड से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे भारत आ गये और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में बॉटनी के प्रोफेसर बने.
संस्थापक एवं प्रथम मानित निदेशक
सितंबर, 1939 में बीरबल साहनी को अध्यक्ष बना कर पुरावानस्पतिज्ञों की एक समिति अनुसंधान हेतु गठित हुई थी. इसकी प्रथम रिपोर्ट 1940 एवं अंतिम रिपोर्ट 1950 में प्रकाशित हुई. 3 जून, 1953 को आठ वैज्ञानिकों के नाम से एक न्यास की स्थापना भारतीय सोसायटी पंजीकरण धारा-21 के अंतर्गत हुई। इसका उद्देश्य पुरावनस्पति विज्ञान पर प्रो बीरबल साहनी एवं सावित्री साहनी के मूल शोध में एकत्रित किये गये जीवाश्म संग्रह एवं एक संदर्भ पुस्तकालय के गठन हेतु फंड जुटाना था. अंतत: बीरबल साहनी पुरावानस्पति विज्ञान संस्थान की स्थापना 10 सितंबर, 1946 को हुई.
बीरबल साहनी (वानस्पतिक वैज्ञानिक)
जीवनकाल : (1891-1949)