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एक बेहतर शहर की ओर

।। कन्हैया झा ।। दुनियाभर में शहरी आबादी के बढ़ने से अनेक चुनौतियां और समस्याएं सामने आ रही हैं. इस ओर वैश्विक ध्यानाकर्षण के मकसद से संयुक्त राष्ट्र की ओर से ‘वर्ल्ड हैबिटेट डे’ आयोजित किया जाता है. क्या है यह दिवस, क्यों आयोजित किया जाता है, क्या हैं चुनौतियां और क्या है इसका मकसद, […]

।। कन्हैया झा ।।

दुनियाभर में शहरी आबादी के बढ़ने से अनेक चुनौतियां और समस्याएं सामने रही हैं. इस ओर वैश्विक ध्यानाकर्षण के मकसद से संयुक्त राष्ट्र की ओर से वर्ल्ड हैबिटेट डे आयोजित किया जाता है. क्या है यह दिवस, क्यों आयोजित किया जाता है, क्या हैं चुनौतियां और क्या है इसका मकसद,

नयी दिल्ली : दुनियाभर में बढ़ती आबादी के मद्देनजर पर्याप्त संख्या में आवासों का अभाव देखा जा रहा है. शहरों में रहनेवाली एकतिहाई से ज्यादा आबादी ऐसे इलाकों में रहती है, जहां बहुत कम मूलभूत सुविधाएं मौजूद हैं. दुनियाभर में आवास से संबंधित समस्याओं की ओर ध्यान आकृष्ट किये जाने और इसका मुकम्मल उपाय किये जाने के मकसद से प्रत्येक वर्ष अक्तूबर माह के पहले सोमवार को वर्ल्ड हैबिटेट डे यानी विश्व आवास दिवस का आयोजन किया जाता है. आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र ने इसे पहली बार वर्ष 1986 में आयोजित किया था.

इस दिवस को आयोजित करने का मकसद शहरी निवासियों के मूलभूत मानवाधिकारों और पर्याप्त आवास व्यवस्था की समस्या को रेखांकित करना है. साथ ही, आनेवाली पीढ़ी को आवासीय समस्या की चुनौतियों से नहीं जूझना पड़े, इसके लिए पूरी दुनिया को इसकी सामूहिक जिम्मेदारी का एहसास कराना भी इसका मकसद है.

शहरी गतिशीलता

शहरों में वस्तुओं और सेवाओं की ज्यादा सुविधा मुहैया होने के चलते यहां आबादी का दबाव बढ़ता जा रहा है. इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने इस वर्ष वर्ल्ड हैबिटेट डे की थीम अरबन मोबिलिटी यानी शहरी गतिशीलता निर्धारित की है. यातायात के सतत माध्यमों के चलते शहरों में लोगों को सुगमता हो तो रही है, लेकिन सड़कों समेत पूरे आवासीय इलाकों में इससे समस्या बढ़ रही है.

इसलिए, कार या निजी वाहनों के मुकाबले लोगों के लिए रेलगाड़ियों, बसों समेत सार्वजनिक परिवहन के अन्य साधनों को अपनाने पर जोर दिया जाना चाहिए. साथ ही, आवासीय इलाकों में साइकिल और मोटरसाइकिल के लिए विशेष पथों समेत पैदल चलनेवालों के लिए अलग से फुटपाथ की व्यवस्था होनी चाहिए.

मोबिलिटी यानी इस गतिशीलता शब्द का व्यापक अर्थ है. परिवहन के जिन माध्यमों का हम इस्तेमाल करते हैं, इसका मतलब उससे कहीं व्यापक है. शहरी योजना और उसका प्रारूप कुछ इस तरह से बनाया जाना चाहिए, ताकि जो व्यक्ति जिस इलाके में कार्यरत हो, उसे आसपास के इलाकों में ही आवास मुहैया कराया जा सके. इसके लिए नये शहरों या इलाकों का निर्माण किया जाना चाहिए.

इससे शहरी आबादी का घनत्व नियंत्रण में रखा जा सकता है. लेकिन आज के समय में इन तथ्यों पर ज्यादा ध्यान देकर शहरी यातायात के ढांचे को मजबूत किया जा रहा है और उसकी लंबाई बढ़ायी जा रही है.

इसके बजट की आमदनी के चार प्रमुख स्नेत हैं. तकनीकी सहयोग के लिए बहुपक्षीय और द्वीपक्षीय साझेदारों का इसमें व्यापक योगदान है. स्थानीय प्राधिकरणों और अन्य साझेदारों समेत इसको अन्य कई स्नेतों से आमदनी हासिल होती है. साथ ही, संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट से भी इसे पांच फीसदी रकम की प्राप्ति होती है.

यूएन हैबिटेट का इतिहास

संयुक्त राष्ट्र के गठन के प्रारंभिक दिनों में शहरीकरण और उससे जुड़े मुद्दों की समस्या इतनी ज्यादा नहीं थी कि उसे इसके एजेंडे में शामिल किया जाता. उस दौरान दुनिया की दोतिहाई आबादी ग्रामीणों क्षेत्रों में निवास करती थी. इस दिशा में पहली बार वर्ष 1978 में बैंकुवर (इसे हैबिटेट वन के नाम से जाना जाता है) की बैठक में ध्यान दिया गया, जब इसकी स्थापना की गयी.

इसकी स्थापना के दो दशक बीतने के बाद इसके कार्यक्रमों से विकास के मूल्यांकन के मकसद से तुर्की के इस्तांबुल में वर्ष 1996 में हैबिटेट टू का आयोजन किया गया. इसमें नयी सहस्त्रब्दी के लिए नये लक्ष्य भी निर्धारित किये गये थे. इसके 171 सदस्य देशों द्वारा अपनाये गये राजनीतिक दस्तावेज सिटी समिट को हैबिटेट एजेंडा के नाम से जाना जाता है. इसमें सौ से अधिक तथ्यों के बारे में प्रतिबद्धता जतायी गयी है और इसमें तकरीबन छह सौ अनुशंसाएं शामिल हैं.

चुनौतियां

यूनाइटेड नेशंस सहस्त्रब्दी घोषणापत्र ने दुनिया के शहरी गरीबी की गंभीर परिस्थितियों की पहचान की है. यूएनहैबिटेट के तहत वर्ष 2020 तक शहरी इलाकों की मलिन बस्तियों में रहनेवाले तक कम से कम 10 करोड़ लोगों को उन्नत सुविधाएं पहुंचाने के प्रति सदस्य देशों ने प्रतिबद्धता जतायी है.

भले ही 10 करोड़ की यह संख्या बहुत ज्यादा लग रही हो, लेकिन हकीकत यह है कि दुनियाभर में शहरी मलिन बस्तियों में रहनेवाले लोगों का यह महज 10 फीसदी हिस्सा ही है. यदि समुचित उपाय नहीं किये गये तो 2020 तक यह संख्या दुनिया में तीन अरब से ज्यादा हो सकती है.

यूएनहैबिटेट के अपने शोध से हासिल आंकड़ों ने इस चुनौती को और भी ज्यादा गंभीर बना दिया है. इसके मुताबिक दुनियाभर में मलिन बस्तियों की आबादी में पिछले तीन वर्षो में साढ़े सात करोड़ की बढ़ोतरी हुई है. जिस तरह से हमारे शहर विस्तार ले रहे हैं, उससे कई तरह की सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और पर्यावरण की प्रवृत्तियों में बदलाव रहा है.

इस सदी में वैश्विक समुदाय को इनसे पैदा होनेवाली चुनौतियों से जूझना पड़ेगा. वर्ष 1950 में, पूरी दुनिया की एकतिहाई आबादी शहरों में निवास करती थी. 50 वर्षो के बाद, यह अनुपात आधा हो गया और यह बढ़ ही रहा है. वर्ष 2050 तक दुनियाभर में दोतिहाई से ज्यादा आबादी शहरों में निवास करेगी.

शहर राष्ट्रीय उत्पादन और उपभोग के प्रमुख केंद्र हैं, जहां आर्थिक और सामाजिक प्रक्रियाओं से कई तरह के अवसरों का सृजन होता है. लेकिन साथ ही यहां बीमारियों, अपराध, प्रदूषण और गरीबी का भी सृजन होता है. ज्यादातर शहरों में, खासकर विकासशील देशों में तकरीबन 50 फीसदी से अधिक शहरी आबादी मलिन बस्तियों में जीवनयापन करती है, जिन्हें पर्याप्त आवास, पानी और साफसफाई की सुविधा उपलब्ध नहीं होती है.

(स्नेत: यूनाइटेड नेशंस)

पिछले पांच दशकों के दौरान, ज्यादातर देशों में शहरी आबादी में तेजी से बढ़ोतरी हुई है और इसके साथ ही मोटर वाहनों का इस्तेमाल भी काफी बढ़ गया है. मोटर वाहनों और परिवहन के अन्य साधनों की मांग बढ़ गयी है. इससे शहरों में केवल पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक मसलों से जुड़ी समस्याएं पैदा हो रही हैं, बल्कि वे अपने पैर फैलाती जा रही हैं.

शहरी यातायात से व्यापक मात्र में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सजर्न होता है. इससे पैदा होनेवाला वायु और ध्वनि प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है. गैरनियोजित परिवहन प्रणाली के चलते पैदा होनेवाली यातायात की समस्या यात्रियों और व्यापारिक ट्रांसपोर्टरों के लिए आर्थिक लागत और उसकी उत्पादकता को प्रभावित करने के लिए जिम्मेदार हैं.

विकासशील देशों के अनेक शहरों में ये चुनौतियां सबसे ज्यादा हैं. माना जा रहा है कि आगामी दशकों में इन इलाकों में वैश्विक जनसंख्या वृद्धि में तकरीबन 90 फीसदी की बढ़ोतरी होगी. यातायात प्रणाली में निवेश के लिए मांग बढ़ने से पहले से ही ये शहर इस तरह के संघर्ष से जूझ रहे हैं. इन्हें ट्रांसपोर्ट पॉवर्टी जैसे मसले से भी जूझना पड़ता है. लागत ज्यादा होने के चलते लाखों लोग पब्लिक या प्राइवेट ट्रांसपोर्ट के फायदों से वंचित रह जाते हैं. शारीरिक रूप से अशक्त और बुजुर्गो को तो और भी ज्यादा समस्याएं झेलनी पड़ती हैं. महिलाओं के लिए सुरक्षा भी एक गंभीर मसला बन गया है.

मोबिलिटी यानी गतिशीलता का तात्पर्य केवल यह नहीं है कि लंबीचौड़ी सड़कें बना दी जाएं. इसका तात्पर्य एक इस तरह के समुचित और सक्षम प्रणाली को मुहैया कराना है, जिससे युक्तिसंगत तरीके से ज्यादा से ज्यादा लोगों को यह सुविधा प्रदान की जा सके. इसके लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को निजी वाहन यानी कार के इस्तेमाल को हतोत्साहित करते हुए रेलों, बसों और साइकिलों के इस्तेमाल पर जोर देना होगा और अच्छी फुटपाथ का निर्माण करते हुए पैदल चलनेवालों को बेहतर सुरक्षा और सुविधा मुहैया करानी होगी.

इस तरह के इंतजाम होने चाहिए, ताकि लोग अपने कार्यस्थल, स्कूल, अस्पताल और अन्य जरूरी जगहों पर शीघ्रता से और सुरक्षित तरीके से आनेजाने में सक्षम हो पायें. गतिशीलता अधिकार हासिल होने से शहरी केंद्रों का पुनर्वासन हो सकता है. इससे उत्पादकता में तेजी आयेगी और एक ऐसे शहर का निर्माण होगा, जो निवेशकों से लेकर निवासियों को आकर्षित कर सकता है.

शहरी यातायात सतत विकास का केंद्र है. इस वर्ल्ड हैबिटेट डे के अवसर पर हम यह संकल्प लें कि अपने शहर को कुछ इस तरह बनाने में योगदान दें, जिसमें सभी के लिए राह सुगम हो.

वर्ल्ड हैबिटेट अवॉर्डस

वर्ष 1985 में यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल इयर ऑफ शेल्टर फॉर होमलेस (बेघरों को छत मुहैया कराने का संयुक्त राष्ट्र का अंतरराष्ट्रीय वर्ष) में योगदान देते हुए बिल्डिंग एंड सोशल हाउसिंग फाउंडेशन के तहत वर्ल्ड हैबिटेट अवार्डस की स्थापना की गयी थी.

मौजूदा आवासीय समस्याओं के लिए नवोन्मेषी और व्यावहारिक समाधान उपलब्ध करानेवाली वैश्विक परियोजनाओं को वार्षिक तौर पर पुरस्कार प्रदान किये जाते हैं.

चुने गये दोनों में से प्रत्येक विजेता को वर्ल्ड अरबन फोरम (सम वर्ष) और यूएनहैबिटेट गवर्निग काउंसिल को (विषम वर्ष) यह पुरस्कार दिया जाता है. अंतरराष्ट्रीय तौर पर ख्याति हासिल होने के साथ इस पुरस्कार के तहत प्रत्येक विजेता परियोजना को दस हजार डॉलर की रकम मिलती है. गौरतलब है कि पुरस्कार प्रदान किया जानेवाला पहला समारोह वर्ष 1986 में लंदन में आयोजित किया गया था.

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