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बायोचर से ग्रीनहाउस गैस का हल

पारंपरिक तरीके से की जानेवाली खेती से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सजर्न का समाधान हो सकता है. खेती के इस्तेमाल में लायी जानेवाली मिट्टी में काफी तादाद में बायोचर और उसका मिश्रण बनाया जा सकता है. इसमें पाये जानेवाले सूक्ष्मजीवियों की गतिविधियों से नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सजर्न को कम किया जा सकता है. ‘साइंस डेली’ की […]

पारंपरिक तरीके से की जानेवाली खेती से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सजर्न का समाधान हो सकता है. खेती के इस्तेमाल में लायी जानेवाली मिट्टी में काफी तादाद में बायोचर और उसका मिश्रण बनाया जा सकता है. इसमें पाये जानेवाले सूक्ष्मजीवियों की गतिविधियों से नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सजर्न को कम किया जा सकता है.

साइंस डेली की एक खबर में बताया गया है कि नाइट्रोजन खादों के प्रभावी इस्तेमाल के लिए भी यह मददगार है. सेंटर फॉर एप्लाइड जीयोसाइंस, यूनिवर्सिटी ऑफ ट्यूबिनजेन के पर्यावरण विज्ञानियों ने इस तरीके से दुनियाभर में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सजर्न में कमी किये जाने की संभावना जतायी है.

दरअसल, सूखे पेड़पौधों को खेतों में सड़ा कर जोतने से बड़ी मात्र में कार्बन निकलता है, जिसे बायोचर कहते हैं. यह ग्रीनहाउस गैसों को मिट्टी में ही सोख कर उसकी क्षमता बढ़ा देता है. बायोचर का उत्पादन ऑर्गेनिक सामग्रियों के उच्च तापमान में थर्मोकेमिकल अपघटन के द्वारा होता है.

बायोचर का सतही गुण मिट्टी के पोषक तत्वों को बचाता है. दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वहां के निवासियों ने बायोचर के इन्हीं गुणों के चलते पेड़पौधों से हजारों वर्ष तक अधिकतम उत्पादन हासिल किया था.

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