21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

अंतरिक्ष से शब्द कौंधते हैं

आजादी के तुरंत बाद उभरे कवियों में कैलाश वाजपेयी का नाम अहम है. उनकी कविताएं भावनाओं का एक विलक्षण संसार रचती हैं. तकरीबन छह दशक से अपने लेखन से हिंदी साहित्य को संपन्न कर रहे साहित्य अकादमी प्राप्त कवि कैलाश वाजपेयी से प्रीति सिंह परिहार की बातचीत के प्रमुख अंश. आपके लेखन की शुरुआत कैसे […]

आजादी के तुरंत बाद उभरे कवियों में कैलाश वाजपेयी का नाम अहम है. उनकी कविताएं भावनाओं का एक विलक्षण संसार रचती हैं. तकरीबन छह दशक से अपने लेखन से हिंदी साहित्य को संपन्न कर रहे साहित्य अकादमी प्राप्त कवि कैलाश वाजपेयी से प्रीति सिंह परिहार की बातचीत के प्रमुख अंश.

आपके लेखन की शुरुआत कैसे हुई?
बहुत सारे कारण हैं जो बताये नहीं जा सकते. हम जब 14 वर्ष के थे, हमारे बड़े भाई उत्साहित थे कि हम किसी बेहतर गायन शैली में अपने आप को मांजे. लेकिन, जब वह अस्पताल के स्पेशल वार्ड में थे, एक रात हमें कहा गया कि हम उनके पास रहेंगे. उस रात उन्होंने हमारा हाथ पकड़ कर कहा कि तुम बाबा कबीर दास का कोई भजन गाओ. हमने बाबा कबीर का एक भजन-‘मन फूला फूला फिरे जगत में, कैसा नाता रे’, गाना शुरू किया. अंतिम पंक्ति आते-आते उनकी पकड़ ढीली पड़ गयी और उनका शरीर शांत हो गया. उस रात की घटना ने हमारे मन पर गहरा घाव किया. बाद में हमने पाया कि हम शायद छंदबद्ध पंक्तियों में अपनी पीड़ा व्यक्त कर सकते हैं. और यही हमारी कविताई का प्रारंभ बिंदु है.

आपकी सामाजिक पृष्ठभूमि का अपनी रचनाशीलता का किस तरह का संबंध पाते हैं?
हाई स्कूल के बाद हम घर छोड़ कर हॉस्टल चले गये. सन पचास से लेकर आज तक बाहर ही बाहर रह रहे हैं. कानपुर के डीएवी कॉलेज के छात्रवास से लखनऊ विश्वविद्यालय चले गये. छात्रवासों में रहे. सन् 1960 में जब हमारी डॉक्टरेट पूरी हो चुकी थी, बंबई रेडियो से एक कवि गोष्ठी का निमंत्रण मिला और अपना सामान छात्रवास में ही छोड़ कर बंबई चले गये. वहां नौकरी मिल गयी. कोई दस महीने तक टाइम्स ऑफ इंडिया में काम किया. लेकिन 10 से 5 की यह नौकरी हमारे स्वभाव के अनुकूल न लगी हमको. हम बच्चन जी के बहुत निकट थे.

उन दिनो वे दिल्ली में हिंदी अधिकारी थे, हमने बंबई से उनसे फोन करके पूछा, तो उन्होंने कहा, ‘जो काम अपने मन के अनुकूल न हो वो नहीं करना चाहिए. मैं स्वयं अध्यापन छोड़ कर यहां आ तो गया हूं, लेकिन मेरा मन भीतर से बहुत प्रसन्न नहीं रहता. तुम तो जिंदगी शुरू करने जा रहे हो, इसलिए त्यागपत्र दे दो. आगे के भविष्य का रास्ता अपने आप खुलेगा.’ इस तरह हमने वह नौकरी छोड़ दी और लखनऊ लौट गये. रघुवीर सहाय का घर लखनऊ में ही है. वह आये हुए थे, कहने लगे कि दिल्ली आ जाओ. हम उनके साथ तो नहीं आये, लेकिन कुछ दिनों बाद एक गोष्ठी में दिल्ली आये और यहां एक होटल में ठहरे हुए थे.

रघुवीर जी भी उस गोष्ठी में थे. उन्होंने कहा कि होटल में मत रहो. मोतीबाग में हमारे पास सरकारी आवास है, तुम चाहो तो हमारे पास आकर रह सकते हो. हम सूटकेस लेकर रघुवीर जी के घर आ गये. दूसरे ही दिन शाम को रघुवीर जी हमें अपने साथ मोतीबाग-1 में, जहां वात्स्यायन जी रहते थे, लेकर गये. वात्स्यायन जी ने स्नेहपूर्वक हमारा स्वागत किया . कपिला जी ने स्नेह के साथ हम लोगों को आहार दिया. कपिला जी को शायद हमारा व्यवहार पसंद आया होगा, उन्होंने कहा,‘मैं तुम्हारे लिए यहीं मोतीबाग में आस-पास एक कमरा खोजे देती हूं. तुम यहीं रहो और वात्स्यायन जी (जिन्हें वह अइया जी कहती थीं) के पास आ जाया करो.’ वात्स्यायन जी का घर बड़ा भारी ग्रंथागार था. हम, क्योंकि स्वाभाव से अध्यवसायी रहे हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय में रिसर्च के दिनों में करीब 16 घंटे पुस्तकालय में ही रहते थे, हमको उनका प्रस्ताव अच्छा लगा. उन्होंने दो से तीन दिन में अपने ही घर के निकट एक कमरा खोज दिया. वो हमारी बेकारी के भी दिन थे. उन दिनों हम या तो रघुवीर जी के साथ आकाशवाणी आ जाते या वात्स्यायन जी के पास बैठकर कुछ ज्ञान लाभ करते थे. इस तरह कोई छह महीने हम बेकार रहे, लेकिन सौभाग्य यह रहा कि बड़े-बड़े साहित्यकार और प्रबुद्ध लोग, जिनमें वात्स्यायन जी के साथ दिनकर जी, मैथिलीशरण गुप्त, विष्णु प्रभाकर, लोहिया जी और डॉ देवराज भी थे, सबका स्नेह मिला और उनसे बहुत कुछ सीखा भी हमने.

कविता की रचना प्रक्रिया के बारे में बताएं?
हमारा मन ठोस चीजों को देखता है, लेकिन उसके पीछे एक अंतर्मन है, उसमें बाहर के परिदृश्य की जो छाया पड़ती है, उससे एक घुमड़न पैदा होती है. ऐसे में समाज में जहां कहीं विसंगति, विकृति या विद्रूपता दिखती है, वो भीतर कुरेदती है. अगर आप औसत आदमी की तुलना में अधिक संवेदनशील हैं, तो ज्यादा तड़पेंगे. अगर आपको भीतर की पीड़ा को अभिव्यक्त करना आता है , तो अंतरिक्ष से शब्द कौंधते हैं और आप एक पंक्ति लिखने को विवश होते हैं. हालांकि, रचना प्रक्रिया को परिभाषित नहीं किया जा सकता.

आपने निबंध भी लिखे हैं और डाक्यूमेंट्री भी बनायी हैं. कौन सी विधा ज्यादा प्रभावी लगती है ?
जितनी अधिक प्रभावशाली कविता होती है, उतना और कुछ नहीं हो सकता. देखिए, पांच कलाएं हैं, उनमें काव्य कला को श्रेष्ठ माना गया है. हंस कुमार तिवारी की ललित कलाओं पर एक किताब है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि किसी भी बाहरी उपादान का सहारा लिये बिना कविता जन्मती है और एक कंठ में नाच कर दूसरों के कंठ में चली जाती है. इसलिए वह सर्वश्रेष्ठ विधा है.

आपकी अपनी सबसे प्रिय रचना कौन सी है?
रचनाएं तो सभी प्रिय हैं. लेकिन प्रबंधात्मक काव्य ‘डूबा सा अनडूबा तारा’, जो मैंने बहुत छटपटाहट में भ्रूण हत्याओं पर लिखा था, सबसे अधिक प्रिय है.

आपकी कविताओं में प्रकृति, चिंतन, दर्शन की गहरी उपस्थिति की कोई खास वजह?
पांच वर्ष से लेकर 14 वर्ष की आयु तक हम ननिहाल में रहे. वहां यमुना और बेतवा नदियों का संगम है. हमारे नाना थोड़े संपन्न लोगों में थे. घर के पीछे एक बड़ा मैदान था, जहां उन्होंने दो गायें पाल रखी थीं. वहां कई सेवक भी थे, जो उस मैदान में बनी कोठरियों में सपरिवार रहते थे. हमको उनके बच्चों के साथ खेलने, उन लोगों के जीवन को नजदीक से देखने के कारण विपन्नता भी मालूम है और संपन्नता भी. रोज शाम हम मिल कर नदी में नहाने जाते थे. नदी के उस पार के खेत से तरबूज और खरबूज चुरा कर खाने में मजा आता था. लेकिन, एक शाम हमारा एक साथी उस पार गया और लौट नहीं सका. वैसे ही जैसे हमारे भाई चले गये. यही वजह है कि हमारी कविता में दुख भी आता है. हमारे नाना में दार्शनिक तत्व थे, पिता में सूफियाना भाव था. इस तरीके से हमारी परवरिश में हमें यह सब चीजें मिलीं. और शायद यह भाग्यचक्र में था कि हम श्रेष्ठ लेखकों, चिंतकों और संन्यासियों के संपर्क में आये. सबसे ज्यादा प्रभाव जे कृष्णमूर्ति का पड़ा. वृंदावन के अखंडानंद और बनारस में कोढ़ पीड़ितों का इलाज करनेवाले स्वामी रामजी से संपर्क हुआ. कुछ से हम सहमत हुए, कुछ के प्रति क्रिटिकल भी. इनसे भी कुछ चीजें आयी हों शायद.

पुरस्कारों को कितना अहम मानते हैं ?
कोई लेखक पुरस्कार के लिए नहीं लिखता. अपना अनुभव यह है कि हर पुरस्कार एक ज्यादा बड़ी चुनौती बन कर आता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें