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नयी पहल से बदलेगी प्रज्ञा केंद्रों की सूरत : राजेश

झारखंड में 2007 में नेशनल इ-गवर्नेस कार्यक्रम के तहत दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में लोगों को कई तरह की सुविधाएं उनके दरवाजे पर उपलब्ध करवाने की योजना पर काम शुरू हुआ. इसकी शुरुआत जितनी उत्साहजनक थी, परिणाम वैसा नहीं रहा. पीपीपी मॉडल पर काम होने के कारण सरकार खुद हर जिम्मेवारी लेने से कतराती है. […]

झारखंड में 2007 में नेशनल इ-गवर्नेस कार्यक्रम के तहत दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में लोगों को कई तरह की सुविधाएं उनके दरवाजे पर उपलब्ध करवाने की योजना पर काम शुरू हुआ. इसकी शुरुआत जितनी उत्साहजनक थी, परिणाम वैसा नहीं रहा. पीपीपी मॉडल पर काम होने के कारण सरकार खुद हर जिम्मेवारी लेने से कतराती है. वहीं प्रज्ञा केंद्र संचालक सुविधाओं का रोना भी रोते हैं. इन्हीं बिंदुओं पर कॉमन सर्विस सेंटर (प्रज्ञा केंद्र) प्रोजेक्ट के क्षेत्रीय को-आर्डिनेटर राजेश प्रसाद से विभिन्न मुद्दों पर राहुल सिंह ने बात की. प्रस्तुत है प्रमुख अंश :

राज्य में कितने प्रज्ञा केंद्र चल रहे हैं. कितनों का काम ठीक ढंग से चल रहा है?

राज्य में 4400 प्रज्ञा केंद्र खोलने की योजना है. इसमें लगभग 2800 पंचायतों में प्रज्ञा केंद्र खोले गये हैं. यहां इंटरनेट के माध्यम से ग्रामीणों को बहुत सारी सुविधाएं प्रदान की जा रही है. ऑनलाइन जाति, निवासी, आय, जन्म व मृत्यु प्रमाण पत्र निर्गत किया जा रहा है. रांची जिले में इ-डिस्ट्रिक्ट की सुविधा उपलब्ध है. यहां शहरी क्षेत्र में भी लोगों को हर तरह का सर्टिफिकेट जारी किया जा रहा है. साथ ही इ-फाइलिंग व इ-रिटर्न भी भरा जा रहा है.

प्रज्ञा केंद्रों पर आधार रजिस्ट्रेशन केंद्र भी खोले गये हैं. साथ पंचायत बैंक की सुविधा भी उपलब्ध करवायी जा रही है. इसकी क्या स्थिति है?

राज्य में अबतक 350 प्रज्ञा केंद्रों पर आधार केंद्र की सुविधा उपलब्ध करवायी गयी है. इसके अच्छे नतीजे देखने को मिल रहे हैं. लोगों को इससे आधार रजिस्ट्रेशन में काफी सहूलियत हो गयी है. इसके अलावा 850 पंचायतों में पंचायत बैंक की सुविधा उपलब्ध करवायी गयी. पिछले डेढ़ सालों में ऐसे बैंक से लगभग 1500 करोड़ रुपये का ट्रांजेक्शन हुआ है. यह महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जिसके तहत ग्रामीणों को उनके दरवाजे पर ही वित्तीय सेवा उपलब्ध करवायी जा रही है.

कैदियों को प्रज्ञा केंद्र के माध्यम से इ-मुलाकात की सुविधा भी उपलब्ध करवाये जाने की सुविधा है. यह कितने प्रखंडों में है?

इ-मुलाकात के लिए मुलाकाती को एक दिन पहले शुल्क जमा करना होता है. उसके बाद उसे जेल में बंद अपने परिचित कैदी से मुलाकात करायी जाती है. फिलहाल हमलोग यह सुविधा 35-40 प्रखंडों में उपलब्ध करवा रहे हैं.

इन उपलब्धियों से अगर हटकर बात करें, तो प्रज्ञा केंद्र अब भी बहुत तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं. प्रज्ञा केंद्र संचालक नेट कनेक्टिविटी व सेवा प्रदाता कंपनी से तालमेल नहीं होने का रोना रोते हैं. बहुत सारे प्रज्ञा केंद्र संचालक निष्क्रिय पड़े हुए हैं. क्यों?

यह सही है कि इंटरनेट कनेक्ट होने में दिक्कत है. हमलोगों ने इस परेशानी को गंभीरता से लिया है. इसलिए राज्य के हर प्रज्ञा केंद्र में इंटरनेट सेवा उपलब्ध करवाने के लिए वाइ-मैक्स लगाने का सरकार ने फैसला लिया. यह सिस्टम जहां लगता है, उसके कुछ किलोमीटर दायरे में इंटरनेट सेवा काम करती है. राज्य ने इसके लिए छह करोड़ रुपये बीएसएन को भुगतान भी कर दिया है.

बावजूद इसके बीएसएनएल द्वारा सभी जगहों पर वाइ-मैक्स नहीं लगाया गया है. हमारे विभाग की इस मुद्दे पर निरंतर बीएसएनएल से बात हो रही है और हमलोग उस पर इसके लिए दबाव भी बना रहे हैं. हालांकि अबतक 800-900 पंचायतों में वाइमैक्स लग चुका है. फिलहाल प्रज्ञा केंद्र संचालक डाटा कार्ड से काम करते हैं, जिसकी गति जब शहर में धीमी रहती है, तो वहां गांव में उसके तेजी से काम करने के बारे में सोचना बेमानी होगी.

इस चुनौती को देखते हुए सरकार ने एक नयी पहल की है. नेशनल आप्टिकल फाइबर नेटवर्क (एनओएफएम) के तहत जहां झारनेट की सुविधा है, वहां दो जीवी वेंडविथ की इंटरनेट सेवा उपलब्ध करवायी जायेगी. इसके लिए भारत सरकार की कंपनी भारत ब्राडबैंड लिमिटेड काम कर रही है.

इंटनरेट के अलावा बिजली की दिक्कत बड़ी समस्या है. इससे कैसे निबटेंगे?

बिजली की समस्या से निबटने के लिए राज्य सरकार ने हाल में एक सकारात्मक पहल की है. अब हर पंचायत भवन में एक केवी का सोलर प्लांट लगाया जायेगा. हमें लगता है कि इससे बिजली की समस्या से बहुत हद तक छुटकारा मिल जायेगा. झारखंड जैसे पहाड़ी व वन आच्छादित राज्य में सुदूर स्थित गांवों में बिजली पहुंचाना बड़ी चुनौती है, जिसके विकल्प के रूप में सोलर सिस्टम से निबटने में मदद मिलेगी.

प्रज्ञा केंद्र संचालक (वीएलक्ष्) पर्याप्त कमाई नहीं होने का रोना रोते हैं. जबकि प्रज्ञा केंद्र के माध्यम से कई तरह की सेवाएं उपलब्ध करवाने का प्रावधान है. यह तो आय का अच्छा स्नेत हो सकता है. फिर दिक्कत कहां है?

देखिए. इस परियोजना की शुरुआत में ही प्रज्ञा केंद्र संचालकों के संदर्भ में आय को लेकर एक आदर्श स्थिति की परिकल्पना की गयी थी. विभाग की सोच रही है कि औसतन हर प्रज्ञा केंद्र संचालक कम से कम 10 हजार रुपये की कमाई हर महीने कर ले. इस स्तर को अभी हमलोग छू नहीं सके हैं. 500-600 ऐसे प्रज्ञा केंद्र संचालक होंगे जो इतनी कमाई कर लेते होंगे, लेकिन ज्यादातर अभी इस स्तर तक नहीं पहुंच सके हैं.

अच्छी आय नहीं होने से काम के प्रति उदासीनता का खतरा रहता है, लेकिन तकनीक को लेकर की गयी नयी पहल से उम्मीदें बंधी हैं. हमलोग सर्विस सेंटर एजेंसी (सेवा प्रदाता कंपनी) को इसके लिए रेवेन्यू सपोर्ट भी दे रहे हैं. उम्मीद कर सकते हैं कि आगामी दिनों में इसके अच्छे नतीजे सामने आयेंगे.

इ-डिस्ट्रिक्ट सर्विस सिर्फ रांची जिले में है. दूसरे जिले को इससे जोड़ने की क्या योजना है?

रांची को इ-डिस्ट्रिक्ट सेवा के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत चुना गया था. इसके लिए देश के हर राज्य को एक-दो जिले चुनने थे. झारखंड में रांची चुना गया था. पायलट प्रोजेक्ट सफल रहा है. हम उम्मीद करते हैं दूसरे जिले भी अगले एक साल में इस परियोजना से जुड़ जायेंगे. देवघर में हमलोग इ-नागरिक सेवा भी उपलब्ध करवा रहे हैं.

एक समस्या यह भी है कि प्रज्ञा केंद्र संचालक अपने घर में ही केंद्र चला रहे हैं. यह स्थिति वैसी पंचायतों में भी है जहां पंचायत भवन बन गये हैं?

हां, यह स्थिति है. लेकिन हाल में सरकार की ओर से निर्देश दिया गया है कि वैसे पंचायत भवन जो पूरे हो गये हैं, वहां प्रज्ञा केंद्र शिफ्ट किया जाये. फिलहाल 1200 पंचायत भवन में प्रज्ञा केंद्र चल रहे हैं. जल्द ही नये बने भवनों में भी प्रज्ञा केंद्र शिफ्ट किये जायेंगे. महज प्रज्ञा केंद्र के लिए वैसी पंचायतें जहां बिजली की सुविधा है, वहां पंचायत भवन के लिए बिजली ट्रांसफारमर लगाया गया है.

आप लोग सेवा प्रदाता कंपनी पर किस तरह नियंत्रण रखते हैं?

सेवा प्रदाता कंपनी (एससीए) व प्रज्ञा केंद्र संचालक (वीएलक्ष्) के दिन-प्रतिदिन के काम में हमारा कोई हस्तक्षेप नहीं होता है. क्योंकि यह पब्लिक -प्राइवेट पार्टनरशिप प्रोजेक्ट है. हां, अगर हमें जनहित में कोई शिकायत मिलती है तो हमलोग उस दिशा में पहल करते हैं.

क्या प्रज्ञा केंद्र संचालकों को कानून-व्यवस्था की समस्या से भी जूझना पड़ता है?

कानून-व्यवस्था की समस्या भले ही राज्य में हो, लेकिन प्रज्ञा केंद्र संचालकों को इससे फिलहाल तो नहीं जूझना पड़ रहा है. अबतक उनके साथ कोई घटना नहीं घटी है, न ही कभी छिनैती ही हुई है. बल्कि नक्सल प्रभावित इलाके में इसके अच्छे नतीजे इस रूप में आये कि स्थानीय युवाओं को रोजगार का एक माध्यम मिल गया.

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