22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पर्यावरण के रक्षक होते हैं चमगादड़

अमेरिका के एक वैज्ञानिक डॉ कांबले ने अपने 14 साल के प्रयोग के आधार पर बताया है कि चमगादड़ मलेरिया फैलानेवाले मच्छरों के दुश्मन हैं. इसीलिए दुनिया भर से मलेरिया के समूल नाश के लिए चमगादड़ पालन पर जोर दिया जाना चाहिए. उनका मानना है कि चमगादड़ की एक प्रजाति का एक अकेला चमगादड़ तीन […]

अमेरिका के एक वैज्ञानिक डॉ कांबले ने अपने 14 साल के प्रयोग के आधार पर बताया है कि चमगादड़ मलेरिया फैलानेवाले मच्छरों के दुश्मन हैं. इसीलिए दुनिया भर से मलेरिया के समूल नाश के लिए चमगादड़ पालन पर जोर दिया जाना चाहिए. उनका मानना है कि चमगादड़ की एक प्रजाति का एक अकेला चमगादड़ तीन हजार से भी ज्यादा मच्छर एक घंटे में चट कर जाता है.

चमगादड़ उड़नेवाले कीड़े-मकोड़ों की आबादी पर रोक लगाने का काम बखूबी करता है. जहां मच्छरों की तादाद बहुत अधिक है वहां भूरे रंग की प्रजाति का चमगादड़ एक घंटे में कम से कम 600-1200 मच्छरों को खा जाता है. इसी कारण वैज्ञानिकों की सिफारिश पर अमेरिका के हर शहर में बैट हाउस तैयार कर चमगादड़ पालन का काम शुरू हो गया है. जहां तक भारत का सवाल है, यहां कुछ ठोस नहीं हो रहा. हां, अंडमान-निकोबार में चमगादड़ों पर काफी शोधकार्य चल रहे हैं, लेकिन इससे ज्यादा कुछ नहीं.

फिल्मों में अकसर किसी दृश्य को डरावना दिखाने के लिए चमगादड़ को दिखाया जाता है. मगर डरावना दिखनेवाला चमगादड़ स्वभाव से बेहद सरल होता है. यह एकमात्र उड़नेवाला स्तनपायी है, जो आदमी की परछाई से भी दूर रहता है, पर अंधविश्वासों तथा कुछ मिथक के कारण इनसान इनका दुश्मन बन गया है. इन्हीं अंधविश्वासों के चलते हॉलीवुड में वैंपायर को लेकर कई फिल्में बनीं और चमगादड़ों का नाम ही ‘वैंपायर’ पड़ गया.

सच तो यह है कि हमारे पर्यावरण के संतुलन में चमगादड़ों की बड़ी भूमिका है, लेकिन चिंता की बात है कि चमगादड़ों की तादाद दुनिया भर में घटती जा रही है. पर्यावरणविदों का मानना है कि मच्छरों से होनेवाली बीमारियां मलेरिया, मेनेजाइटिस, चिकनगुनिया, डेंगू जिस तरह मानव जीवन के लिए खतरा बनती जा रही हैं, उसके पीछे भी इनकी घटती तादाद बड़ा कारण है. मच्छरों के लिए चमगादड़ काल समान है. वहीं खेत-खलिहानों को नुकसान पहुंचानेवाले कीड़े-मकोड़ों को भी चट कर ये चमगादड़ बड़ा उपकार करते हैं.

विश्वविख्यात पर्यावरणविद् पीटर रूमल ने 2009 में चमगादड़ों को बचाने की मुहिम में जुटने की बात की थी. उनका कहना था कि एक चमगादड़ एक रात में कम-से-कम 2500 मच्छरों को खाता है. वहीं छोटे-मोटे कीड़े-मकोड़ों को खाकर चमगादड़ पर्यावरण की रक्षा करता है. हाल में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में हो रहे एक शोध से पता चला है कि चमगादड़ों की एक बस्ती रात भर में 150 टन से भी ज्यादा मच्छर और कीट-पंतगों का सफाया कर देती हैं. लेकिन अंधविश्वास के चलते बड़ी संख्या में चमगादड़ों का संहार किया जा रहा है.

पूर्वोत्तर भारत, थाईलैंड, बाली, इंडोनेशिया में चमगादड़ का मांस खाने का भी चलन है. मादा चमगादड़ साल में एक, कभी-कभी दो चमगादड़ ही पैदा करती है. इनकी उम्र 25-40 साल की होती है. दुनिया भर में चमगादड़ों की 1100 प्रजातियां हैं, जिनमें से महज तीन प्रजातियां वैंपायर यानी खून चूसनेवाली हैं.

वह भी इनसान का खून नहीं, बल्किमुर्गी, बत्तख, सुअर, कुत्ते, घोड़ों और बिल्लियों का. बाकी सारी प्रजातियों के चमगादड़ कीड़े-मकोड़े, फल, मेंढक, मछली और फूलों का पराग भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं. अगर चमगादड़ कभी किसी इनसान की ओर बढ़ते भी हैं, तो हमला करना उनकी मंशा नहीं, बल्किहमारे आसपास उड़ रहे मच्छरों को खाना उनका लक्ष्य होता है. कारण चमगादड़ों में प्रतिध्वनि के आधार पर काम करनेवाला सोनार सिस्टम है. इसकी वजह से ये अपनी आवाज के मच्छरों तथा कीड़े-मकोड़ों से टकरा कर आनेवाली प्रतिध्वनि की मदद से आहार ढूंढ़ते हैं.
स्नेत : पर्यावरण डाइजेस्ट

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें