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ख्याल किडनी का

आंकड़ों पर गौर कीजिए, देश में करीब 20 लाख रीनल (किडनी) फेल्योर के मरीज हैं, हर साल करीब एक लाख रीनल फेल्योर के मरीज अंतिम स्टेज में होते हैं. साथ ही लगभग 9 लाख किडनी के मरीज को डायलिसिस की जरूरत होती है, लेकिन डायलिसिस की सुविधाओं के अभाव में वे मौत के मुंह में […]

आंकड़ों पर गौर कीजिए, देश में करीब 20 लाख रीनल (किडनी) फेल्योर के मरीज हैं, हर साल करीब एक लाख रीनल फेल्योर के मरीज अंतिम स्टेज में होते हैं. साथ ही लगभग 9 लाख किडनी के मरीज को डायलिसिस की जरूरत होती है, लेकिन डायलिसिस की सुविधाओं के अभाव में वे मौत के मुंह में समा जाते हैं. आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि यह रोग कितना गंभीर है, लेकिन चिकित्सक की मानें, तो इस रोग की शुरुआत में पहचान हो जाये, तो मरीज को इस कष्टकारी रोग से बचाया जा सकता है. दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ दीपक महाजन बता रहे हैं कि कैसे रखें ख्याल किडनी का.

डॉ संदीप महाजन

एसोसिएट प्रोफेसर, नेफ्रोलॉजी विभाग, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, (एम्स)नयी दिल्ली

विश्वस्तर पर कैंसर व हृदय संबंधी रोगों के बाद मृत्यु का कारण बननेवाली तीसरी बड़ी बीमारी ‘किडनी रोग’ ही है. सिर्फ देश में हर वर्ष दो लाख से अधिक किडनी फेल होने के मामले सामने आते हैं. हर साल करीब डेढ़ लाख मरीज किडनी खराब होने की स्थिति में अस्पतालों में दाखिल होते हैं, जिन्हें या तो ‘डायलिसिस’ या ‘किडनी प्रत्यारोपण’ की जरूरत होती है. चूंकि यह उपचार महंगा है, इसलिए केवल 5-10 फीसदी मरीज ही इलाज करवा पाते हैं. बाकी समुचित इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं. क्र ॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के हर दस में से सात मरीजों में किडनी के रोगों का कारण डायबिटीज, हाइपरटेंशन और मोटापा पाया गया है.

समङों रोग की गंभीरता को क्रॉनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) को क्र ॉनिक रीनल डिजीज भी कहते हैं. इसके तहत किडनी के काम करने की क्षमता में धीरे-धीरे कमी आती है. यही कारण है कि अकसर इससे प्रभावित लोगों में रोग की शुरुआत के कोई घातक लक्षण दिखाई नहीं देते. चिंता की बात यह है कि पीड़ित लोगों में इस रोग के प्रति जानकारी का अभाव है. वे नियमित जांच व जीवनशैली में आवश्यक सुधार करने में लापरवाही बरतते हैं. बढ़ती उम्र, मोटापा, हाइपरटेंशन व डायबिटीज का बुरा असर किडनी की कार्यप्रणाली पर पड़ता है.

कैसे कार्य करती है किडनी
किडनी मूलत: शरीर का खून साफ कर पेशाब बनाती है. यह शरीर में अम्ल व क्षार की उचित मात्रा बनाये रखती है. यह पोटैशियम, सोडियम, क्लोराइड, मैग्निशयम, फॉस्फोरस व बाइकाबरेनेट की मात्रा यथावत बनाये रखती है. मानव शरीर में सामान्यत: दो किडनी होते हैं. यह रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर पीठ के भाग में स्थित होता है. इसका आकार काजू जैसा होता है. यह सामान्यत: 10 सेंटीमीटर लंबा, पांच सेंटीमीटर चौड़ा व चार सेंटीमीटर मोटा होता है. इसका वजन सामान्यत: 150 से 170 ग्राम होता है.

कैसे पहचानें किडनी रोग को
पेशाब में प्रोटीन आना, ब्लड में लगातार यूरिक एसिड की ज्यादा मात्रा व किडनी फिल्टरेशन में कमी, किडनी से संबंधित रोग के मुख्य लक्षण हैं. किडनी की बीमारियों के समय रहते इसका पता लग जाने से न केवल बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है, बल्कि इससे मरीज में हृदय रोगों की आशंका भी कम हो सकती है.

नियमित स्क्रीनिंग जरूरी
किडनी रोग में एंड-स्टेज रीनल डिजीज (इएसआरडी) वह स्थिति है, जब मात्रा किडनी प्रत्यारोपण व डायलिसिस ही उपाय रह जाता है. देश में इएसआरडी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. अभी सभी प्रयोगशालाओं में जांच के समय ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन रेट (जीएफआर) की जानकारी दी जाती है, जिससे डॉक्टरों को मरीज के किडनी की स्थिति के बारे में अधिक सूचनात्मक जानकारी मिल जाती है. ऐसे मरीज, जो डायबिटीज व हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं, उन्हें भी अपनी किडनी के बारे में बेहतर जानकारी मिलती रहती है. आमतौर पर ‘क्रॉनिक किडनी डिजीज’ की पहचान ब्लड टेस्ट में क्रिएटनिन की पहचान से होती है. इसकी अधिकता कम जीएफआर को बताती है, जो किडनी के अपशिष्ट पदार्थो को शरीर से बाहर करने की कम क्षमता को दरसाता है. किडनी संबंधी रोगों में लक्षणों की पहचान काफी देर से होती है. यही कारण है कि पता चलने तक स्थिति गंभीर बन चुकी होती है. जिन परिवारों में मधुमेह, हाइपरटेंशन या किडनी के रोगों का इतिहास रहा है, वहां ‘किडनीक्रॉनिकडिजीज’ के मामले अधिक होते हैं. ऐसे में उनके लिए नियमति स्क्रीनिंग करानी जरूरी है. जांच की प्रक्रि या सरल है और शुरू में पहचान होने से आप समस्या को गंभीर बनने से रोक सकते हैं. प्रभावित किडनी की गुणवत्ता को लंबे समय तक बरकरार रख सकते हैं. टेस्ट प्रक्रि या में चंद मिनटों का ही समय लगता है.

लाएं जीवनशैली में बदलाव
यदि रोग की पहचान शीघ्र हो जाती है, तो जीवनशैली में बदलाव से व चुनिंदा दवाओं से किडनी के क्रियाकलापों को लंबे समय तक ठीक रखा जा सकता है. किडनी के रोगों में खान-पान का काफी महत्व होता है. समय पर पहचान होने पर स्थिति को गंभीर बनने से रोका जा सकता है. इस प्रक्रिया में मरीज को सबसे पहले सोडियम (नमक), पोटैशियम, फलों का रस, कैल्शियम व फॉस्फोरस के सेवन की मात्रा कम कर देनी चाहिए. साथ ही प्रोसेस्ड फूड का सेवन कम करें, तो बेहतर होगा. अंतिम स्थिति में पहुंचने पर मरीज डायलिसिस या प्रत्यारोपण पर निर्भर रहता है. रोगी घर पर या किसी डायलिसिस केंद्र या अस्पताल में डायलिसिस करवा सकते हैं. जब किडनी का रोग अंतिम अवस्था रीनल डिजीज की स्थिति में पहुंच जाता है, तो प्रत्यारोपण ही सही विकल्प माना जाता है. प्रत्यारोपण संभव नहीं होने पर डायलिसिस का विकल्प अपनाया जाता है.

डायलिसिस के विकल्प
अस्पताल में हीमोडायलिसिस के तहत एक मशीन व डायलाइजर यानी कृत्रिम किडनी के जरिये शरीर में से व्यर्थ पदार्थ व द्रव बाहर निकाले जाते हैं. पहले शरीर में से रक्त निकाला जाता है और फिर इसे साफ किया जाता है. डायलाइजर की मदद से इसे फिर से शरीर में चढ़ाया जाता है. सामान्य एचडी पूरा करने में चार घंटे का समय लगता है.

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