लखनऊ: नाम है ज्ञान देवी, उम्र 18 साल और जुनून है पढ़ाई का. नाम के अनुरूप जज्बा ऐसा कि बीए प्रथम वर्ष की पढ़ाई के लिए वह रोजाना नदी पार कर कॉलेज पहुंचती है. नदी पार करते समय किताबों-कॉपियों का बस्ता उसके सिर पर रहता है.
उत्तर प्रदेश में बांदा के नरैनी क्षेत्र के टेढ़ापुरवा में ज्यादातर निषाद बिरादरी के लोग आबाद हैं. यहां लगभग सभी निरक्षर हैं. गांव में कोई चिट्ठी आती है, तो पढ़वाने के लिए उन्हें दूसरे गांव जाना पड़ता है. अशिक्षा के इस अंधेरे में ज्ञान देवी के कारण यहां एक आशा की किरण फूटी है.
कामयाबी के नजदीक
ज्ञान ने जब पढ़ने की ठानी, तो उसने किसी की नहीं सुनी. आज वह अपने इरादों में काफी हद तक कामयाब भी दिख रही है. आठवीं कक्षा तक पढ़ाई उसने पड़ोसी गांव बसराही के स्कूल में की. इसके बाद इंटरमीडिएट नरैनी से किया. इस वर्ष वह बीए प्रथम वर्ष की छात्र है. अपने गांव से नरैनी जाने के लिए उसे रोजाना बागै नदी पार करनी होती है.
आर्थिक स्थिति ठीक नहीं
गरीब परिवार से ताल्लुक रखनेवाली ज्ञान के घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है. बीमारी के कारण मां दो साल पहले ही गुजर चुकी हैं. पिता साहूकारों के कर्जदार हैं. उसके तीन बहन और दो भाई हैं, लेकिन उन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा. ज्ञान का कहना है कि वह पढ़ाई जारी रखेगी, भले ही उसे कितनी भी परेशानियां क्यों न ङोलनी पड़ें. उसे उम्मीद है कि उसकी मेहनत का उसे एक न एक दिन फल जरूर मिलेगा.