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शौक का शॉर्टकट

पुरानी कार चलाने का शौक रखनेवालों ने सेकेंड हैंड कारों के बाजार को एक बेहतरीन कारोबार का रूप दे दिया है. लोग न सिर्फ बड़ी कीमत पर इन पुरानी लग्जरी कारों को खरीद रहे हैं, बल्कि साल, छह महीने में इन्हें बदल भी रहे हैं. लोगों का यह शौक भारत में सेकेंड हैंड लग्जरी कारों […]

पुरानी कार चलाने का शौक रखनेवालों ने सेकेंड हैंड कारों के बाजार को एक बेहतरीन कारोबार का रूप दे दिया है. लोग न सिर्फ बड़ी कीमत पर इन पुरानी लग्जरी कारों को खरीद रहे हैं, बल्कि साल, छह महीने में इन्हें बदल भी रहे हैं. लोगों का यह शौक भारत में सेकेंड हैंड लग्जरी कारों के व्यवसाय को अच्छी ग्रोथ दे रहा है.

अगर आप कार या मोटरसाइकिल के शौकीन हैं, तो एक बेहतरीन ड्राइव आपकी पूरी थकान दूर कर देती है. वैसे भी आजकल की तनाववाली जिंदगी में हमारा बैट्री बैकअप कमजोर हो गया है, जिसे रीचार्ज करने के लिए जल्द एक नयी ड्राइव की जरूरत पड़ जाती है. मुङो भी ऐसे ही रीचार्ज किया एक सवारी ने. जी नहीं, किसी ब्रांड न्यू या लांच होनेवाली सवारी ने नहीं, बल्कि कुछ साल पुरानी एक कार ने. जिस कार को मैंने एक खाली सड़क पर भगाया. वह कार थी जर्मन स्पोर्ट्स कार कंपनी पोश्रे की टार्गा.

बहुत ही जबरदस्त, तेज और रोमांचक. लेकिन इसके बारे में आज नहीं, आज बताता हूं उस ट्रेंड के बारे में जो हाल-फिलहाल काफी जोर पकड़ रहा है. यह ट्रेंड है शौक के शॉर्टकट का. दरअसल, दिल्ली में बिग बॉय टॉय नाम का एक शोरूम खुला है. इस शोरूम की खासियत यह है कि इसमें सेकेंड हैंड कारें बिकती हैं. अब सेकेंड हैंड कारों के शोरूम तो बहुत सारे खुल गये हैं. मारुति-महिंद्रा से लेकर जर्मन कार कंपनियां तक अपनी पुरानी कारों को बेचने के लिए शोरूम खोल कर बैठी हैं. मगर इस शोरूम की खासियत यह है कि यहां पर महंगी, एक्सक्लूसिव, लग्जरी कारें ही बिकती हैं. यानी 30-40 लाख से महंगी कारें. ये सेकेंड हैंड लग्जरी कारों का कारोबार है.

अब जब करोड़ों की कारों की बात हो रही है, तो फिर सेकेंड हैंड सुनने में थोड़ा अटपटा लगता है. इस वजह से शोरूम के मालिक इन्हें प्री-ओन्ड या प्री-लव्ड कारों का नया नाम दे दिया है. वैसे मुङो प्री-लव्ड नाम अच्छा लगता है, विदेशों में ये जुमला सुना था. सुन कर लगा कि ठीक ही कहा जा रहा है, अब वो वक्त तो रहा नहीं कि गाड़ियां केवल ट्रांसपोर्टेशन का जरिया रह गयी हों.

अब ये हमारी जिंदगी और पहचान का हिस्सा बन चुकी हैं और हममें से ज्यादातर अपनी गाड़ियों के प्यार में दीवाने होते हैं. ऐसे में प्री-लव्ड कार एक सटीक एक्सप्रेशन कहा जायेगा. खैर, यहां आकर मैं कुछ देर तो यहां खड़ी कारों को निहारता रहा, जिनमें फरारी और पोश्रे कारों की संख्या बहुत ज्यादा थी. देख कर लगा कि कब इन्हें चलाने के लिए ले जाऊं, लेकिन उसमें वक्त था. मैंने पहले जानने की कोशिश कि ये धंधा आखिर है क्या और कैसे पुरानी लग्जरी कारों का कारोबार चल रहा है. फिर एक के बाद एक किस्से सुनने को मिलने लगे, जिन्हें सुन कर लगा कि भारत में भी इतने पैसेवाले होते हैं! भारत में कार के शौकीनों की संख्या बढ़ रही है और स्टाइल स्टेटमेंट के पैमाने भी. ऐसे में उन ग्राहकों की संख्या बहुत बढ़ गयी है, जो लाखों या करोड़ों की कारों को खरीदना चाहते हैं और जल्दी-जल्दी बदलना भी चाहते हैं. यानी वे ग्राहक जिनके पास पैसा है और वे अपना शौक पूरा करना चाहते हैं, उनके लिए एक और रास्ता है.

जहां हर तरीके की कार को वे खरीदते हैं, जिसके लिए नयी कारों के बराबर पैसे नहीं देने पड़ते और फिर साल-छह महीने में अपनी कारों को बदलने की भी गुंजाइश होती है. ऐसे ही ग्राहकों के लिए इस तरीके के शोरूम के कॉन्सेप्ट की सोच आयी. जहां शौकीनों को थोड़ी सस्ती कीमत में पसंद की शाही सवारी मिल जाये. इसी लिए इस सेक्टर में काफी बढ़ोतरी हो रही है, क्योंकि न लोग सिर्फ नयी महंगी कारें खरीद रहे हैं, बल्कि जल्दी-जल्दी पुरानी बेच कर दूसरी गाड़ियां खरीद रहे हैं. अब हो सकता है कि ज्यादातर खरीददारी 30-40 लाख की कारों की हो रही हो, लेकिन शोरूम की मानें तो ऐसे लोगों की भी कमी नहीं जो करोड़ों की कार फटाफट खरीद लेते हैं.

शोरूम के मालिक के हिसाब से हर साल वे 40-50 फीसदी की ग्रोथ देख रहे हैं. शौकीनों का जोश ऐसा कि वे 15-15 मिनट में करोड़ों की कार की डील फाइनल कर रहे हैं. केवल फोटो देख कर भी गाड़ी को अपने लिए बुक कर रहे हैं. उन्हें केवल आफ्टर सेल्स सर्विस का भरोसा चाहिए. अगर उस पर उन्हें भरोसा है, तो वे फैसला लेने में देरी नहीं कर रहे. यहां कुछ घंटे बिता कर लगा कि कैसे हिंदुस्तानी कार मार्केट बदल रहा है, ग्राहक बदल रहे हैं. विदेशों में सेकेंड हैंड कार मार्केट काफी बड़ा है. औसत देखें, तो एक नयी कार पर लगभग तीन पुरानी कारों की बिक्री होती है. भारत में फिलहाल एक नयी कार पर एक सेकेंड हैंड बिक्री का औसत है. जाहिर है भारत में भी इस ट्रेंड की गुंजाइश है. इस तरीके के और भी शोरूम अब जरूर देखने को मिलेंगे. वैसे, मेरे मन में यह ख्याल भी आया था कि सेकेंड हैंड है तो सस्ती होगी ही, तो क्या मेरे जैसे लोग भी कुछ ले सकते हैं. लेकिन पसंद की कारों की कीमत के बारे में पूछा, तो सन्नाटे में आ गया और चुपचाप गाड़ियों को निहारने लगा.

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