।।अनुज सिन्हा।।
(वरिष्ठ संपादक, प्रभात खबर)
बड़ी अजीब बात है कि उस देश (भारत) में प्याज का संकट हो गया है, जो पूरी दुनिया में प्याज का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है. प्रकृति की मार, सरकार की नीति और राजनीति ने प्याज का न सिर्फ महत्व बढ़ा दिया है, बल्कि राजनीति में बड़ी उठा-पटक का रास्ता भी खोल दिया है. इसी प्याज की राजनीतिक ताकत 1980 में दिखी थी. 1975 में लगी इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए चुनाव में जिस इंदिरा गांधी की सरकार को जनता पार्टी ने सत्ता से बाहर कर दिया था, वही इंदिरा गांधी प्याज को मुद्दा बना कर 1980 में सत्ता में लौटी थीं. जनता पार्टी की हार का बड़ा कारण प्याज का दाम बढ़ना था. प्याज ने 1998 के चुनाव में दिल्ली और राजस्थान की सरकार बदल दी थी. 2014 में देश में लोकसभा का चुनाव होना है. कांग्रेस (यूपीए) चिंतित है कि कहीं यह प्याज उसके पतन का कारण न बन जाये.
देश में 60 रुपये से लेकर 90 रुपये प्रति किलो तक बिकनेवाला प्याज राजनीतिक मुद्दा बनता जा रहा है. सरकार जानती है कि इस पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो परेशानी होगी. इसीलिए केंद्र सरकार ने तीन लाख टन प्याज के आयात का निर्णय लिया है. पाकिस्तान, चीन और कुछ अन्य देशों से प्याज का आयात होगा. दूरदृष्टि के अभाव में प्याज का संकट हुआ है. देश में महाराष्ट्र सबसे ज्यादा प्याज (32.6 फीसदी) उपजाता है. कर्नाटक (17.6), गुजरात (10) और बिहार (7 फीसदी) का भी अच्छा योगदान है. असमय वर्षा से प्याज की फसल की बर्बादी हुई है. इसलिए हालात तब तक नहीं सुधर सकते, जब तक नयी फसल नहीं आ जाती या विदेशों से प्याज नहीं आ जाता. आज भारत दूसरे देशों से प्याज मंगा रहा है, पर यही भारत प्याज का बड़ा निर्यातक है. 2011-12 में भारत ने 15,52,904 मैट्रिक टन प्याज का निर्यात किया. काश, सरकार की नीति स्पष्ट होती तो यह नौबत नहीं आती.
सरकार को देखना होगा कि प्याज का उत्पादन कैसे बढ़ाया जाये. पूरी दुनिया में प्याज की जितनी खपत है, उसकी 19.25 फीसदी मांग की पूर्ति भारत करता है. प्याज उत्पादन में चीन के बाद भारत का स्थान है. भारत पहले स्थान पर भी आ सकता है, अगर सरकार प्रति हेक्टेयर प्याज की उपज को बढ़ाने पर जोर दे. भारत ने प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने पर कभी काम ही नहीं किया है. स्थिति यह है कि कोरिया में जहां प्रति हेक्टेयर 63.84 टन, अमेरिका में 55.26 टन, स्पेन में 46.51 टन, जापान में 45.52 टन, नीदरलैंड में 45.1 टन प्याज का उत्पादन होता है, वहीं भारत में प्रति हेक्टेयर सिर्फ 14.2 टन. यानी कोरिया से चौथाई भी नहीं. इस पर गौर करना होगा. बेहतर बीज, प्रशिक्षित किसान, बेहतर खाद, समय पर पानी और खेती की आधुनिक तकनीक से भारत में प्याज का उत्पादन दोगुना-तिगुना किया जा सकता है.
प्याज का अधिक उत्पादन कर भारत विदेशी मुद्रा कमा सकता है. लेकिन इस क्षेत्र पर सरकार ने अधिक ध्यान नहीं दिया है. 1980-81 में 2.5 लाख हेक्टेयर में प्याज की खेती होती थी. 2011-12 में यह रकबा बढ़ कर 10.4 लाख हेक्टेयर हो गया. यानी किसानों की रुचि बढ़ी और उसने प्याज की खेती को बढ़ाया, पर तकनीकी जानकारी नहीं होने के कारण पिछड़ गये. 1980-81 में भारत में एक हेक्टेयर में 9961 किलोग्राम प्याज होता था, तीस साल बाद भी वह दोगुना भी नहीं हो सका. एक हेक्टेयर में सिर्फ 15106 किलोग्राम प्याज उपज रहा है. यह वह क्षेत्र है जहां सरकार को विशेष ध्यान देना होगा, तभी प्याज की न सिर्फ किल्लत दूर होगी, बल्कि भारत बड़ी मात्र में प्याज का निर्यात भी कर पायेगा.
प्याज तो हर घर के लिए जरूरी है. भारत में प्याज की खपत भी अच्छी है. दुनिया में जहां एक व्यक्ति एक साल में 6.2 किलो प्याज खाता है, वहीं भारतीय 8.2 किलो प्याज खा जाते हैं. इसलिए अगर प्याज की कीमत बढ़ती है, तो इसकी तीखी प्रतिक्रिया होती है, सत्ता तक चली जाती है. सरकार को एहसास है, इसलिए चुनाव तक विपक्ष जहां इस मुद्दे को जिंदा रखना चाहेगा, वहीं सरकार इसकी कीमत घटाने के लिए पूरी ताकत लगा देगी.