।।दक्षा वैदकर।।
हम अपने पेट की भूख शांत करने के लिए समय-समय पर कुछ-न-कुछ खाते रहते हैं. सुबह का नाश्ता, लंच, शाम का नाश्ता, रात का खाना, बीच-बीच में चाय, कॉफी, जूस और न जाने क्या-क्या. अगर हम आधा दिन कुछ नहीं खाते, तो परेशान हो जाते हैं कि इतनी देर हो गयी, अभी तक पेट में अन्न का दाना नहीं गया. हम लोगों को कहते हैं कि अभी तक मैंने कुछ खाया ही नहीं है, मैं काम में मन कैसे लगाऊं? यह सच है और जरूरी भी है.
खाना हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन क्या हमने कभी गौर किया है कि जिस तरह हमारे गरदन के निचले हिस्से को काम करता रखने के लिए हमें खाने की जरूरत है, उसी तरह हमारे गरदन के ऊपरी हिस्से यानी दिमाग को भी काम करते रहने के लिए खुराक की जरूरत है. इस बात को समझे कि जिस तरह शारीरिक भूख को शांत करना जरूरी है, उसी तरह मानसिक भूख को भी शांत करना बेहद जरूरी है. आज ऐसे कई लोग हमारे आसपास हैं, जो हताश हैं, नकारात्मक हैं, दुखी हैं, जीने की उम्मीद खो चुके हैं. इन सभी के बारे में एक मजेदार बात यह है कि ये वो लोग हैं, जो अपने दिमाग और नजरिये को किसी भी तरह से खुराक देने का तीव्रता से विरोध करते हैं. इन्हें प्रेरणा व सूचना की सख्त जरूरत होती हैं, लेकिन ये सेमिनार में जाने, अच्छी पुस्तकें पढ़ने, प्रेरणादायक रिकॉर्डिग सुनने से इनकार करते रहते हैं.
ये लोग बहाने कुछ इस तरह बनाते हैं, उदाहरण के तौर पर आपने किसी सफल व्यक्ति के बारे में कहा कि वह तो बहुत सकारात्मक है और खुश रहता है, तो वे लोग जवाब देंगे, ‘हां, यह सच है कि वह सकारात्मक व खुश है, लेकिन वह पांच लाख रुपये हर महीने कमा रहा है. यदि मैं भी उसकी तरह पांच लाख कमाऊं, तो मैं भी सकारात्मक व खुश हो जाऊंगा.’ असफल लोगों को लगता है कि सामनेवाला पांच लाख कमाता है इसलिए सकारात्मक व खुश है, जबकि सच्चाई यह होती है कि वह पांच लाख इसलिए कमाता है, क्योंकि उसका नजरिया सकारात्मक है और वह खुश रहता है. यदि आपको भी सफल होना है, तो नजरिया सकारात्मक करना होगा. अपने दिमाग को रोजाना खुराक देनी होगी.