रिपोर्ट. झालसा के मध्यस्था केंद्र में पति-पत्नी विवाद के 30 फीसदी मामलों में समझौता
* प्रेमपूर्वक रहनेवाले दंपतियों की सूची में गिरिडीह भी
* रांची व धनबाद में सिविल व क्रिमिनल से अधिक वैवाहिक विवाद दर्ज
रांची : झारखंड के धनबाद जिले में सबसे ज्यादा पति-पत्नी विवाद के मामले सामने आये हैं. राजधानी रांची की भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति है. झारखंड विधिक सेवा प्राधिकार (झालसा) की ओर से स्थापित मध्यस्थता केंद्र में धनबाद और जमशेदपुर में सिविल, क्रिमिनल से ज्यादा वैवाहिक विवाद के मामले दर्ज कराये गये. आंकड़े बताते हैं कि राज्य के तीन जिलों गढ़वा, गिरिडीह और लातेहार में एक भी मामला दर्ज नहीं कराया गया है. यानी मध्यस्था केंद्र के आंकड़े के अनुसार यहां के दंपती प्रेम से रहते हैं, इस कारण उनके विवाद के बीच मामले नहीं आये.आंकड़ों पर गौर करें, तो पति-पत्नी विवाद इतने जटिल हैं कि सिर्फ 30 प्रतिशत मामलों में समझौता हो पाया है.
70 फीसदी मामले अनसुलङो रह गये. फिलहाल वैवाहिक विवाद से संबंधित 10 प्रतिशत मामले मध्यस्थता केंद्रों में लंबित हैं. मध्यस्थता केंद्र स्थापित होने से लेकर अप्रैल 2013 तक वैवाहिक विवाद से संबंधित कुल 2612 मामले दर्ज कराये गये. इनमें से सिर्फ 675 मामलों में ही आपसी सहमति से समझौता हो पाया. 1861 मामलों में पति-पत्नी के बीच समझौता नहीं हो पाया है.
हाइकोर्ट समेत 22 जिलों में मध्यस्थता केंद्र
झालसा की ओर से हाइकोर्ट समेत 22 जिलों में विवादों के निबटारे के लिए मध्यस्थता केंद्र बनाये गये हैं. इसमें सिविल, क्रिमिनल के साथ-साथ विवाह संबंधी विवाद आपसी सहमति से सुलझाये जाते हैं. इन केंद्रों में विशेषज्ञ दोनों पक्षों की बातें सुन कर आपसी सहमति से मामले को सुलझाने का प्रयास करते हैं. नेशनल लीगल सर्विसेस ऑथोरिटी (नालसा) के निर्देश पर राज्य में इस प्रकार के मध्यस्थता केंद्र स्थापित किये गये हैं.
धनबाद में 920 और रांची में 740 मामले हुए दायर
धनबाद स्थित मध्यस्थता केंद्र में पति-पत्नी के विवाद से संबंधित कुल 920 मामले दायर हुए. इनमें से सिर्फ 151 मामले में ही समझौता हो पाया. यहां पर क्रिमिनल के 882 और सिविल के सिर्फ 392 मामले दर्ज कराये गये. इसी प्रकार रांची में विवाह संबंधी विवाद के दर्ज 740 मामलों में से केवल 208 मामलों में ही समझौता हो पाया है. यहां क्रिमिनल के 621 और सिविल के 259 मामले दर्ज कराये गये.
विवाद की वजह
पति-पत्नी से तलाक लेने को लेकर त्नप्रेम विवाह के बाद परिवार की ओर से दर्ज मुकदमों को समाप्त कराना. त्न दहेज के नाम पर पत्नी को प्रताड़ित करना. त्न तलाक के बाद संतान पर हक जताने को लेकर.
पति-पत्नी के अवैध संबंध को लेकर.