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28,000 नदियों के भूत !

चीन में पहली बार जल स्नेतों की गणना हुई है. चीन के सरकारी दस्तावेजों में बरसों से यह कहा जा रहा है कि देश में कोई 100 वर्ग किलोमीटर आगौर वाली 50,000 नदियां हैं. यह आंकड़ा जिन नक्शों और अंदाजों से बना था, वे सन 1950 के थे. सन 2009 में चीनी सरकार ने पहली […]

चीन में पहली बार जल स्नेतों की गणना हुई है. चीन के सरकारी दस्तावेजों में बरसों से यह कहा जा रहा है कि देश में कोई 100 वर्ग किलोमीटर आगौर वाली 50,000 नदियां हैं. यह आंकड़ा जिन नक्शों और अंदाजों से बना था, वे सन 1950 के थे. सन 2009 में चीनी सरकार ने पहली बार अपने सभी जल स्रोतों की गणना करवाई. इसमें तीन साल लगाकर कोई आठ लाख सर्वेक्षकों ने देश भर में घूम-घूम कर जल स्नेतों का ब्यौरा लिया. उनका पूरा विवरण लिखा.

इसमें पता चला है कि आज चीन में केवल 22,909 ऐसी नदियां हैं जिनका आगौर 100 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा है. यानी चीन पिछले पचास साल में अपनी कोई 28,000 नदियां खो चुका है. अधिकारियों का कहना है कि पुराने नक्शे और अंदाजे बहुत विश्वसनीय नहीं थे. लेकिन वे भी मानते हैं कि इसमें जलवायु परिवर्तन का ही नहीं, जल स्नेतों और मिट्टी की बर्बादी का भी हाथ है. इस गणना से वह कीमत भी पता चलती है, जो चीन अपनी बदहवास आर्थिक तरक्की के लिए चुका रहा है.

गणना में कुछ और भी चौंकानेवाले तथ्य सामने आये हैं. जैसे पहले माना जाता था कि चीन में कोई 8,700 जलाशय हैं. लेकिन अब पता चला है कि इनकी असली गिनती 98,002 है. यह भी पता चला है कि चीन की बाढ़ से निपटने की क्षमता बहुत कम है. हर साल लाखों लोग बाढ़ की चपेट में आते हैं. चीन की दो तिहाई आबादी ऐसी जगहों में रहती है, जहां बाढ़ का खतरा हमेशा बना रहता है. दस में से नौ शहर भी ऐसे ही इलाको में बसे हैं. पिछले ही साल राजधानी बीजिंग में बाढ़ से 70 जानें गयी थीं और कोई 16 लाख लोगों का जीवन अस्तव्यस्त हो गया था. सन 1998 में यांगत्जे नदी की घनघोर बाढ़ ने 3,000 लोगों को लील लिया था और 22 करोड़ लोगों को किसी न किसी तरह अपनी चपेट में ले लिया था.

पिछले कुछ सालों में बड़ी, सदानीरा नदियां भी सूखने लगी हैं. यांगत्जे और हुवांग-हो एशिया की सबसे बड़ी नदियां मानी जाती हैं.अब बाढ़ के मौसम में तो ये उबलती हैं लेकिन सूखे मौसम में इनमें बहाव ही नहीं रहता. यांगत्जे की घाटी में 2011 की गर्मी में 50 साल का सबसे भारी सूखा पड़ा था. इसी नदी पर चीन ने दुनिया का एक सबसे बड़ा बांध थ्री गॉज्रेस बांध बनाया है. इस अकाल के बाद इस बांध के नदी पर असर को लेकर कई सवाल उठे थे.

हुवांग-हो नदी तो पिछले कुछ सालों में समुद्र तक पहुंचने से पहले ही सूखने लगी है. सरकार ने दक्षिण में यांगत्जे नदी का पानी निकाल कर सूखे उत्तरी चीन की तरफ भेजने की योजना बनायी है. इसकी लागत होगी 3,41,000 करोड़ रुपये! उत्तरी चीन में नदियां तेजी से सूखने लगी हैं. अब उनमें पानी केवल बरसात के मौसम रहता है. इसके कई कारण बताये जा रहे हैं. पर अब पानी तो यांगत्जे जैसी महानदी में भी कम ही रहता है. यह रोग तो बड़ी-छोटी सभी नदियों में लग गया है.

बाढ़ को काबू करने के लिए नदियों का बहाव जगह-जगह पर रोका गया है. इससे उनका सहज पानी का लेन-देन बदला है. फिर जलवायु परिवर्तन से बारिश का ढर्रा भी कुछ तो बदला है. सूखा ज्यादा पड़ने लगा है. जिन हिमनदों से कुछ नदियां बहती हैं वे भी गलने लगे हैं. नदियों से बेइंतहा पानी निकाला जाने लगा है, नदियों में प्रदूषण भी बढ़ा है.

हुवांग-हो का पानी तो अब इतना दूषित है कि उसका इस्तेमाल पीने के लिए नहीं होता है. इस साल मार्च के महीने में शंघाई और जियाशिंग शहरों में एक और नदी से 12,000 से ज्यादा मरे सूअर निकाले गये थे. किसी बड़े पुशपालक ने एक किस्म के वायरस से मरे इन सूअरों को नदी में फेंक दिया था. इससे शहरों को दिया जानेवाला पीने का पानी बुरी तरह दूषित हो गया था. विकास के इस ढांचे में जीते जागते नदी-पहाड़ गायब हो रहे हैं. क्या इनके भूत हमें डराते नहीं?

(‘गांधी-मार्ग’ पत्रिका से साभार)

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