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सार्थक रहा संसद का मॉनसून सत्र

संसद का मॉनसून सत्र इस लिहाज से सार्थक कहा जायेगा कि इसमें आम जनजीवन से जुड़े कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित किये गये. इनमें खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण से संबंधित विधेयक पर तो मीडिया में खूब चर्चा हुई, लेकिन कुछ अन्य विधेयकों के बारे में पर्याप्त चर्चा नहीं हो पायी. ऐसे ही कुछ विधेयकों पर […]

संसद का मॉनसून सत्र इस लिहाज से सार्थक कहा जायेगा कि इसमें आम जनजीवन से जुड़े कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित किये गये. इनमें खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण से संबंधित विधेयक पर तो मीडिया में खूब चर्चा हुई, लेकिन कुछ अन्य विधेयकों के बारे में पर्याप्त चर्चा नहीं हो पायी. ऐसे ही कुछ विधेयकों पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज.

संसद का मॉनसून सत्र (पांच अगस्त से सात सितंबर तक) कामकाज के लिहाज से सार्थक साबित हुआ, क्योंकि इस दौरान खाद्य सुरक्षा, भूमि अधिग्रहण और मानव द्वारा गंदगी साफ करने की प्रथा के उन्मूलन करने जैसे महत्वपूर्ण विधेयक पारित किये गये. इस सत्र में हालांकि राजनीतिक दलों को सूचना प्राप्ति का अधिकार अधिनियम के दायरे से बाहर करने के लिए संशोधन सहित कुछ महत्वपूर्ण विधेयक पारित नहीं हो सके.

नागरिक संगठनों और कुछ सदस्यों के विरोध के कारण इसे संसद की स्थायी समिति के हवाले किया गया. अपील लंबित रहने तक विधायिका के सदस्यों की सदस्यता बहाल रहने के संबंध में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव भी पारित हो सका. इस अहसास ने, कि इससे राजनीतिक को आपराधिक तत्वों से मुक्त करने की लोगों की भावना आहत हो सकती है, कदम आगे बढ़ाने से रोकने का काम किया.

संसद में पारित महत्वपूर्ण विधेयक :

1. देश की करीब दो तिहाई आबादी को रियायती दर पर खाद्यान्न मुहैया कराने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक, 2013 पारित किया गया.

2. उचित मुआवजा और भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता, पुनर्वास एवं पुनस्र्थापन विधेयक, 2013 भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होनेवाले लोगों को राहत देने के लिए पारित किया गया.

3. कंपनी विधेयक, 2011-पारदर्शिता बढ़ाने, कॉरपोरेट सामाजिक जवाबदेह अनिवार्यता और कर्मचारियों छोटे निवेशकों के हितों का संरक्षण करने के लिए.

4. पेंशन कोष नियामक एवं विकास प्राधिकरण विधेयक, 2013 के जरिये लोगों की सेवानिवृत्ति के लाभ को बढ़ाने और क्षेत्र में 26 प्रतिशत विदेशी निवेश को अनुमति देने के लिए.

5. संसद (अयोग्यता रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2013 के जरिये सर्वोच्च न्यायालय के जेल या पुलिस हिरासत से चुनाव लड़ने पर रोक संबंधी फैसले को निष्प्रभावी करने के लिए.

6. गंदगी साफ करने के लिए कर्मचारी रखने पर प्रतिबंध लगाने और ऐसे कर्मचारियों के पुनर्वास विधेयक, 2012-इसका लक्ष्य शुष्क शौचालयों का उन्मूलन और मानव द्वारा सफाई पर रोक और सफाई करने वाले का पुनर्वास करना है.

राज्यसभा में पारित विधेयक :

1. विवाह कानून संशोधन विधेयक, 2010-तलाक का एक आधार मुहैया कराने के लिए असुधार योग्य विवाह का प्रावधान और तलाक को महिला उन्मुखी किया गया है.

लोकसभा में पारित विधेयक :

1. सड़कों पर विक्रय (फेरी लगानेवाले) (जीवनयापन संरक्षण एवं फेरी गतिविधि का नियमन) विधेयक 2012 – इसका उद्देश्य शहरों में फेरी लगा कर जीवनयापन करनेवालों को जीवनयापन के संरक्षण का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा मुहैया कराना है.

दोनों सदनों द्वारा पारित अन्य विधेयक :

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक 2012, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (संशोधन) विधेयक 2013 और वक्फ (संशोधन) विधेयक 2011.

स्ट्रीट वेंडर्स (जीविका सुरक्षा तथा स्ट्रीट वेंडिंग विनियम) विधेयक

हमारे देश में कई तरह के कारोबारी तरीके हैं. ठेलों और खोमचों पर गलियों और सड़क के किनारे सामान बेचनेवालों की संख्या देश में भले ही करोड़ों में हो, लेकिन इनके लिए कोई खास नियमकानून नहीं होने के चलते इन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

कई बार ये अपने स्थान से हटा दिये जाते हैं, जिससे इनका कारोबार तकरीबन पूरी तरह से चौपट हो जाता है. ऐसे कारोबारियों के लिए ही सरकार ने स्ट्रीट वेंडर्स (जीविका सुरक्षा तथा स्ट्रीट वेंडिंग विनियम) विधेयक को लोकसभा ने पारित किया है. विधेयक का उद्देश्य स्ट्रीट वेंडरों के लिए एक अनुकूल माहौल बनाना है, ताकि वे अपना काम गरिमा के साथ कर सकें. यह विधेयक करीब एक करोड़ परिवारों को आजीविका की सुरक्षा देने के उद्देश्य से तैयार किया है.

समाज में रेहड़ीपटरी वालों के योगदान के मद्देनजर, उन्हें कानून के समक्ष नागरिकों को बराबरी एवं कोई भी कारोबार करने के अधिकार के बारे में भारत के संविधान की भावना के अनुसार सम्मानित कार्य के लिए माहौल बनाने के जरिये सम्मानित आजीविका कमाने में समर्थ बनाने के लिए सरकार ने राष्ट्रीय शहरी रेहड़ीपटरी विक्रेता नीति, 2004 संशोधित की तथा राष्ट्रीय शहरी रेहड़ीपटरी विक्रेता नीति, 2009 बनायी है.

स्ट्रीट वेंडर्स (जीविका सुरक्षा तथा स्ट्रीट वेंडिंग विनियम) विधेयक 2012 स्ट्रीट वेंडरों के जीविका अधिकार, उनकी सामाजिक सुरक्षा, देश में शहरी स्ट्रीट वेंडिंग का विनियमन तथा इनसे जुड़े मामलों का प्रावधान है.

विधेयक पेश करते हुए आवास तथा शहरी उपशमन मंत्री डॉ गिरिजा व्यास ने कहा कि स्ट्रीट वेंडर्स शहरी अर्थव्यवस्था के प्रमुख अंग होते हैं. यह केवल स्वरोजगार का साधन है, बल्कि शहरी आबादी, विशेषकर आम आदमी को वहन करने योग्य लागत तथा सुविधा के साथ सेवा देना भी है.

स्ट्रीट वेंडर्स वे लोग हैं, जो औपचारिक क्षेत्र में नियमित काम नहीं पा सकते, क्योंकि उनका शिक्षा और कौशल का स्तर बहुत ही कम होता है. वे अपनी जीविका की समस्या मामूली वित्तीय संसाधन और परिश्रम से दूर करते हैं.

विधेयक का सफरनामा

आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय को केंद्रीय कानून बनाने के लिए रेहड़ीपटरी विक्रेताओं और उनके संगठनों से निरंतर अनुरोध प्राप्त हो रहे हैं, जो सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू हो.

इसलिए रेहड़ीपटरी विक्रेताओं के योगदान को राष्ट्रीय मान्यता देने के लिए तथा सभी राज्यों में रेहड़ीपटरी विक्रेताओं के लिए कानूनी ढांचे में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए रेहड़ीपटरी विक्रय के लिए केंद्रीय कानून बनाने की जरूरत महसूस की गयी. इस विधेयक को 6 सितंबर, 2012 को लोकसभा में पेश किया गया. 13 मार्च, 2013 को इसे राज्यसभा में पटल पर रखा गया.

स्थायी समिति ने इस विधेयक में 26 सिफारिशें की. 17 सिफारिशें मंत्रालय ने पूरी तरह स्वीकार कीं. तीन सिफारिशें आंशिक रूप से या संशोधन के साथ स्वीकार की गयीं.

विधेयक की खासियतें

1. प्रत्येक स्थानीय क्षेत्र में शहरी वेंडिंग प्राधिकार के गठन का प्रावधान.

2. स्ट्रीट वेंडिंग से जुड़ी गतिविधियों जैसे बाजार का निर्धारण, वेंडिंग क्षेत्र की पहचान, स्ट्रीट वेंडिंग योजना की तैयारी तथा स्ट्रीट वेंडरों के सर्वेक्षण में भागीदारी पूर्वक निर्णय लेने के लिए अनेक वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व हो.

3. बिल में सभी मौजूदा स्ट्रीट वेंडरों के सर्वेक्षण और प्रत्येक पांच वर्ष में पुनर्सर्वेक्षण की व्यवस्था है.

4. सर्वे में चिह्न्ति सभी वर्तमान स्ट्रीट वेंडर वेंडिंग क्षेत्र में शामिल होंगे.

5. वेंडिंग जोन की क्षमता से अधिक जहां चिह्न्ति स्ट्रीट वेंडर्स हैं, वहां टीवीसी लॉटरी के माध्यम से उस वेंडिंग जोन के लिए प्रमाणपत्र जारी करेगी.

6. अब तक जिन्हें वेंडिंग सर्टिफिकेट/लाइसेंस जारी किये गये हैं, वे सर्टिफिकेट में दर्ज अवधि तक उस श्रेणी के स्ट्रीट वेंडर माने जायेंगे.

7. सर्वे पूरा होने तथा स्ट्रीट वेंडरों को सर्टिफिकेट जारी होने तक किसी स्ट्रीट वेंडर को वहां से हटाया नहीं जायेगा.

8. यदि किसी रेहड़ीपटरी और खोमचे वाले को प्रमाणपत्र जारी होने के बाद उसका निधन हो जाता है या वह स्थायी रूप से अशक्त हो जाता है, तो उसके परिवार के सदस्य यानी उसकी पत्नी या निर्भर बच्चे को रेहड़ीपटरी और खोमचे चलाने का अधिकार होगा.

9. रेहड़ीपटरी वालों के स्थान में परिवर्तन अंतिम उपाय के रूप में होगा.

10. नोवेंडर क्षेत्र की घोषणा खास नियमों के आधार पर की जाये, जैसेसर्वेक्षण के तहत पहचाना गया कोई मौजूदा सामान्य बाजार को नोवेंडिंग जोन घोषित नहीं किया जायेगा.

11. इस विधेयक में स्ट्रीट वेंडरों के लिए प्रोत्साहन उपायों, कर्जे की उपलब्धता, बीमा और सामाजिक सुरक्षा से जुड़े अन्य कल्याणकारी योजनाओं, क्षमता निर्माण कार्यक्रम, अनुसंधान, शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का प्रावधान किया गया है.

विवाह विधि (संशोधन) विधेयक 2010

विवाह विधि (संशोधन) विधेयक 2010 को राज्य सभा में पारित कर दिया गया. लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है. विधेयक में हिंदू विवाह अधिनियम-1955 और विशेष विवाह अधिनियम-1954 में कई संशोधन किये गये हैं. इस विधेयक में तलाक के बाद हिंदू महिलाओं को पति की अचल और पैतृक संपति में हिस्सा देने का प्रावधान किया गया है.

तलाक होने पर पति की संपत्ति में पत्नी और बच्चों का अधिकार भी होगा. तलाक की स्थिति में पत्नी को पति की अचल संपत्ति से मिलनेवाले हिस्से के अनुपात या मात्र कोर्ट द्वारा तय किया जायेगा. तलाक के सभी पहलुओं पर विचार कर न्यायाधीश फैसला करेंगे कि पत्नी को कितना गुजारा भत्ता दिया जाना चाहिए. फैसले से असंतुष्ट होने पर उसे ऊपरी अदालतों में चुनौती देने की व्यवस्था की गयी है.

बच्चों के भरणपोषण का अनुपात तय करने के लिए अदालत को भी ज्यादा अधिकार दिये गये हैं. संशोधित विधेयक में पति या पत्नी में से कोई भी तलाक के लिए आवेदन कर सकता है.

लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन विधिमान्यकरण) विधेयक

संसद ने लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक-2013 को पारित कर दिया. लोकसभा में 6 सितंबर, 2013 को इस विधेयक को पारित किया गया. राज्यसभा इस विधेयक को पहले ही अपनी मंजूदी दे चुका है. इस विधेयक के माध्यम से जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 के खंड 62 में जरूरी संशोधन किया गया है.

संशोधित कानून के मुताबिक, हिरासत या कैद में होने के बावजूद कोई व्यक्ति मतदाता बना रहेगा. उसके मतदान के अधिकार को महज अस्थायी रूप से स्थगित किया गया है. इस विधेयक के तहत जेल में बंद होने के दौरान चुनाव लड़ने तथा अपील के लंबित होने के दौरान सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता बरकरार रखने की अनुमति देने की व्यवस्था की गयी है, लेकिन इस दौरान उन्हें मतदान और वेतन प्राप्त करने का अधिकार नहीं होगा.

सिर पर मैला ढोने पर पाबंदी

मॉनसून सत्र के दौरान राज्यसभा ने हाथ से मैला उठाने और सिर पर मैला ढोने की प्रथा के निवारण तथा सफाई कर्मियों के पुनर्वास के लिए हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का निषेध और उनका पुनर्वास विधेयक, 2012 को पारित कर दिया.

लोकसभा में भी इसे एक दिन पहले ही पारित किया जा चुका है. यह विधेयक में इन तथ्यों का प्रावधान किया गया हैसूखे शौचालयों पर रोक लगाने, सिर पर मैला ढोने की प्रथा को खत्म करना, मैला उठानेवाले कर्मियों के पुनर्वास एवं रोजगार और इन्हें सम्मान के साथ जीवन जीने का हक प्रदान करना. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री कुमारी शैलजा के मुताबिक, वर्ष 1993 में इस संबंध में कानून बनाया गया था, लेकिन यह राज्य सरकारों के लिए अनिवार्य नहीं था. इसी वजह से यह कारगर तरीके से लागू नहीं हो पाया था.

वक्फ (संशोधन) विधेयक-2010

लोकसभा ने वक्फ (संशोधन) विधेयक-2010 को बीते मॉनसून सत्र में पारित कर दिया है. इसका मकसद वक्फ संपत्तियों के अतिक्रमण को रोकने और ऐसी संपत्तियों को कारोबारी इस्तेमाल के लायक बनाने के लिए उनके लीज की अधिकतम अवधि को बढ़ाना है. यह विधेयक राज्यसभा में भी पारित किया जा चुका है.

इस विधेयक के प्रमुख तथ्य इस प्रकार हैंवक्फ परिषद को वक्फ बोर्ड को निर्देश देने का प्रावधान. वक्फ संपत्तियों के किसी भी हालात में बेचने की व्यवस्था. वक्फ संपत्ति को बाजार कीमत पर 30 वर्ष के लीज देने और इसका फैसला बोर्ड में दो तिहाई बहुमत से किये जाने की व्यवस्था. विवादों के निपटारे के लिए पंचाट में नियुक्त अधिकारी का स्तर बढ़ाना.

मुख्य कार्यकारी अधिकारी को कब्जा हटाने का अधिकार दिये जाने की व्यवस्था और वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण करने की जिम्मेवारी केंद्र राज्य सरकारों को दिये जाने का प्रावधान.

संसद के मॉनसून सत्र से संबंधित प्रमुख तथ्य

– संसद के मॉनसून सत्र, 2013 के लिए 16 बैठकें तय की गयी थीं, लेकिन विभिन्न महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित करने के लिए लोकसभा की कार्यअवधि को पांच दिन और राज्यसभा की कार्यअवधि को छह दिन बढ़ाया गया. इस दौरान खाद्य सुरक्षा, भूअधिग्रहण और कंपनी मामलों समेत कई अहम विधेयक पारित किये गये.

– लोकसभा में निर्धारित समय का 58 फीसदी और राज्यसभा में 80 फीसदी का सदुपयोग हो पाया. सदन की कार्यवाही में व्यवधान पैदा करने पर 12 सांसदों को लोकसभा अध्यक्ष ने अगले कुछ बैठकों में भाग लेने से निलंबित कर दिया.

– प्रश्नकाल का संचालन संसद के लिए अब भी बड़ी चुनौती है. 15वीं लोकसभा के आरंभ से यह ऐसा तीसरा सत्र रहा, जिसमें प्रश्नकाल के दौरान सर्वाधिक व्यावधान पैदा किये गये.

– प्रत्येक सदन में कुल 300 प्रश्न जवाब दिये जाने के लिए निर्धारित किये गये थे. हालांकि, लोकसभा में महज 11 सवालों के जवाब दिये गये, जबकि राज्यसभा में भी केवल 28 प्रश्नों के ही जवाब दिये गये.

– राजीव गांधी नेशनल एविएशन यूनिवर्सिटी बिल, 2013 राज्यसभा में बिना किसी चरचा के पारित हो गया.

– कुछ अध्यादेशों को पारित करने के लिए इसे बतौर विधेयक प्रस्तुत तो किया गया, लेकिन वे पारित नहीं हो पाये, जैसेइंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट, प्रतिभूति कानून संशोधन आदि.

(स्नेत : पीआरएस)

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