* स्टेट टॉपर की कलम से
– सफलता और असफलता, जीवन के पहलू हैं. एक जहां और जिम्मेवार बनाती है, तो दूसरा और प्रयास करने के लिए प्रेरित करती है. इसलिए न अति उत्साहित होने की जरूरत है और न ही निराश. पर सवाल है कि एक को जीत और एक को हार क्यों मिलती है. जवाब है आसान है सफल व्यक्ति अलग कार्य नहीं करते हैं बल्कि कार्यो को अलग तरह से करते हैं. जी हां! कुछ ऐसे ही विचार हैं झारखंड बोर्ड (मैट्रिक) में राज्य भर में पहला स्थान प्राप्त करनेवाले शुभम सुमित के. उन्हीं की जुबानी पेश है यह विशेष आलेख. –
।। शुभम सुमित ।।
दोस्तों! यकीन मानिए मैं कोई विशेष नहीं हूं. एक साधारण-सा लड़का हूं. बिल्कुल आप-सा, जिसे ईश्वरीय कृपा से अपने आप को व्यक्त करने का अवसर मिला है और निश्चित रूप से मैं दिल से यही चाहता हूं कि खुद को माध्यम बना कर आपको अभिव्यक्त करूं. बेशक जब भावनाएं प्रबल होती हैं, तो शब्द अवरुद्ध हो जाते हैं. भले ही मैंने झारखंड में प्रथम स्थान प्राप्त किया है, पर यकीन माने सिर्फ प्रथम होना ही प्रतिभावान होने की पहचान नहीं है.
सदी के सबसे दो बड़े वैज्ञानिक आइंस्टीन और न्यूटन दोनों में से किसी ने भी अपनी कक्षा तक में प्रथम स्थान प्राप्त नहीं किया. मैं आपसे कभी भी भिन्न नहीं हूं और जहां मैं हूं निश्चित रूप से आप भी हो सकते थे. मैं तो बस महज एक उदाहरण हूं जिसे बड़ी शिद्दत और मुद्दत से यह मंजिल मिली है. मैंने महसूस किया है परीक्षा से पहले के तनाव को – जब पलकें बोझिल रहती थीं मगर नींद नहीं आती थी. इच्छा होती थी कि खेलूं मगर खुद ही लिप्साहंता बन गया था. पढ़ने की इच्छा नहीं होती थी मगर हाथ थीं कि किताब छोड़ने का नाम ही नहीं लेती थी.
इच्छाओं की दोहरी अभिव्यक्ति और फिर एक-एक करके उन्हें निरस्त करने की क्रूर यातनाओं के बीच बोर्ड परीक्षा की समाप्ति हुई और हृदय से एक बोझ उतर गया. फिर कल जब परिणाम निकला तो यह जान कर निश्चित रूप से अत्यंत ही खुशी हुई कि मैंने परीक्षा में प्रथम स्थान पाया है. दिन भर चहल-पहल रही परंतु फिर रात के एकांत में चेतना का आत्मसंघर्ष शुरू हुआ और उन असंख्य के बारे में सोचकर मन व्यथित हो गया कि कितने लोगों के ख्वाब टूट गये.
निश्चित रूप से नये सपने बुने भी गये होंगे. मगर कितनी ऐसी आंखें होंगी जिन्होंने छिन गये सपनों के बाद नींद से नाता तोड़ लिया होगा.
दोस्तों, पीड़ा के आंतरिक उन्मेष से बाहर आकर जीवन और सफलता को संयोजित करने का प्रयास करते हैं चूंकि जीवन यथार्थ है और सफलता उसका निरुपण. ‘सफल व्यक्ति अलग कार्य नहीं करते हैं’ बल्कि कार्यो को अलग तरह से करते हैं. उत्तर पत्रों के बारे में भी यही बात सही है. चूंकि परीक्षा में सम्मिलित होनेवाले कम से कम 75} लड़कों को सही उत्तर का पता रहता है, मगर अपने उत्तर को अभिव्यक्ति के तरीके से अंकों में अंतर पड़ता है. हम उत्तर पत्र में क्या लिखते हैं, यह निश्चित तौर पर महत्वपूर्ण है, मगर उससे भी अधिक यह महत्वपूर्ण है कि हम कैसे लिखते हैं.
दोस्तों, हमारे पास 100 अंक रहते हैं और परीक्षक को यह अधिकार रहता है कि हमसे अंकों को छीने. हमारी उत्तर पुस्तिका हमारा प्रतिनिधि बन कर उससे जिरह करती है और एक बिंदु ऐसा होता है जहां परीक्षक को मजबूर होकर रुकना पड़ता है. जिस बिंदु पर वह रुकता है वही हमारा प्राप्तांक होता है. मैं आपसे इतना ही कहता हूं कि नियमित रहो, नियमितता सफलता की पहली सीढ़ी है.
खूब खेलिए और खूब खाइए और खूब पढ़िए
अभिभावकों से बच्चों को सहयोग की अपेक्षा होती है. अत: अभिभावक दबाव न दें, चूंकि यह उम्र है जब हम बच्चे समझ जाते हैं कि हम पर कितनी जिम्मेदारी है. हमें अपने कर्तव्यों का एहसास रहता है. जीवन की शुरुआत बेशक यहां से होती तो है, लेकिन जीवन का अंत कदापि नहीं है.
सफलता के लिए निरंतर प्रयास जरूरी है. मैंने निरंतरता में प्रयास किया और सफलता प्राप्त की. सफलता एवं असफलता जिंदगी के दो पहलू हैं और जो छात्र सफल हुए उन्हें उल्लास एवं हर्ष अवश्य महसूस हो रहा होगा, पर यह एक पड़ाव है, मंजिल नहीं.असफल छात्रों से मेरा अनुरोध है कि वह अपनी निराशा को अपनी ताकत बनायें, आत्मावलोकन करें, क्यूंकि ‘असफलता सफलता से ज्यादा सबक’ देती है.
माता-पिता से अनुरोध है कि वे बच्चों पर अत्यधिक दबाव न डालें, बल्कि उनके दैनिक दिनचर्या में स्वाध्याय की महत्ता को उनके जीवन में उतारने के लिए प्रोत्साहित करें.
श्रेय माता-पिता को : मेरी सफलता का प्रथम श्रेय मेरे माता-पिता को जाता है. उसके बाद सारा श्रेय नेतरहाट विद्यालय को जाता है. मैं अपने आश्रमाध्यक्ष अनिल कुमार मिश्र जी के प्रति चिर कृतज्ञ हूं. वे एक बेहतरीन शिक्षक और आदर्श आश्रमाध्यक्ष हैं. उसके बाद मैं अपने भूतपूर्व आश्रमाध्यक्ष विधुशेखर देव के प्रति भी आभारी हूं.
दसवीं परीक्षा का इस वर्ष का परिणाम भी यही दर्शाता है कि मुश्किल वक्त में भी, आदर्श विद्यालय की परिकल्पना. जो ऋ ने की थी, वो आज भी अभिपूरित हो रही है. नेतरहाट विद्यालय आज भी प्रांत एवं राष्ट्र स्तर पर अपनी पहचान, बनाये हुए हैं. मैं नेतरहाट विद्यालय के पूर्व छात्र वर्तमान छात्र एवं शिक्षकगण को धन्यवाद ज्ञापित करता हूं. अपने विद्यालय के माध्यम से बस यही कहूंगा.
असतो मां सद्गमय, तमसो मां ज्योतिर्गमय.
– नेतरहाट विद्यालय की दिनचर्या
* 4.00 बजे प्रात: जागरण
* 5.00 बजे – पीटी
* 6.45 बजे – स्वाध्याय
* 8.15 से 1.30 बजे – कक्षाएं
* 3.00 बजे से 5.00 बजे सायं – स्वाध्याय
* 5.00 से 6.00 बजे – खेल
* 6.30 से 8.30 बजे रात्रि – स्वाध्याय