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ईंट भट्ठे की मजूदर आज मुखिया

कुडू ( लोहरदगा ) :कुडू प्रखंड के उडुमुडू पंचायत सचिवालय भवन निर्माण में मजदूरी करनेवाली ललिता उरांव के सपने परवान चढ़ चुके हैं. इसके पीछे उनकी कठिन मेहनत, लगन और सपनों को हकीकत में बदलने का जज्बा हैं. ललिता ईंट ढोने का काम करती थीं. तब उसने सपनों का महल बनाया था कि काश मैं […]

कुडू ( लोहरदगा ) :कुडू प्रखंड के उडुमुडू पंचायत सचिवालय भवन निर्माण में मजदूरी करनेवाली ललिता उरांव के सपने परवान चढ़ चुके हैं. इसके पीछे उनकी कठिन मेहनत, लगन और सपनों को हकीकत में बदलने का जज्बा हैं. ललिता ईंट ढोने का काम करती थीं. तब उसने सपनों का महल बनाया था कि काश मैं इस पंचायत सचिवालय में बैठ कर आम लोगों की समस्या, विशेष कर महिलाओं के उत्थान में सहयोग करती! आज ललिता का यह दिवा स्वप्नहकीकत बन चुका है. बतौर मुखिया वह अपनी जिम्मेवारियों को बखूबी निभा रही हैं.

कभी आत्महत्या करनेवाली थीं

मैट्रिक पास होने के बाद ललिता की शादी लोहरदगा रामपुर निवासी राजू उरांव के साथ वर्ष 2002 में कर दी गयी. शादी के बाद ललिता की जिंदगी काफी अच्छे तरीके से चल रही थी. राजू एवं ललिता उरांव की दो बेटियां महिमा व करिश्मा के साथ काफी खुश थे. इसी बीच वर्ष 2008 में ललिता के जीवन में ऐसा भूचाल आया कि उसकी पूरी जिंदगी उजड़ गयी. उसके पति राजू उरांव की वर्ष 2008 में मौत हो गयी. पति की मौत के बाद ललिता को ससुरालवाले ताना मारने लगे. आलम यह हुआ कि ललिता के समक्ष दोनों मासूम बेटियों एवं स्वयं का पेट पालना मुश्किल हो गया.

वर्ष 2008 के सितंबर माह में ललिता ने ससुरालवालों की प्रताड़ना से तंग आकर आत्महत्या का मन बनाया, लेकिन दोनों बेटियों के मोह ने उसे बांध दिया और वर्ष 2008 अक्तूबर में ससुराल छोड़ मायके उडुमुडू आ गयी. यहां आकर दोनों बेटियों की परवरिश के लिए पहले ईंट-भट्ठे में काम किया. वर्ष 2009 में उडुमुडू पंचायत सचिवालय का भवन निर्माण कार्य प्रारंभ हुआ. ललिता मजदूरी करने गयी. हाड़तोड़ मेहनत की. जैसे-जैसे भवन निर्माण का दीवार बन रही थी, ललिता के सपने परवान चढ़ रहे थे. महिलाओं के साथ हो रहे अन्याय से वह चिंतित थी. इसी बीच वर्ष 2010 में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव का ऐलान किया गया और उसने नामांकन परचा दाखिल किया.

मुखिया पद के लिए भरा नामांकन

ललिता उरांव ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में उडुमुडू पंचायत के मुखिया पद के लिए नामांकन भरा. पंचायत के लोगों का सहयोग मिला एवं अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को लगभग 1200 मतों से पराजित करते हुए मुखिया चुनी गयी. तीन वर्ष पहले तक जिस ललिता उरांव को कोई पहचानता नहीं था. दो वर्ष पहले दिहाड़ी मजदूरी करती थी. आज वही ललिता सशक्त होकर सामने आयी है. पति की मौत के बाद बेसहारा ललिता को सहारा मिला.

सबको अधिकार दिलाऊंगी

ललिता उरांव ने बताया कि पति की मौत के बाद जब वह मजदूरी करती थीं, दलाल एवं बिचौलिये काफी परेशान करते थे. पूरी मजदूरी नहीं देते थे. महिलाओं को काफी दुत्कारते थे. अब ऐसा नहीं चलेगा. पंचायत के तमाम व्यक्ति को उनका हक दिलाना पहली प्राथमिकता है. उन्होंने बताया कि दोनों बेटियों को बेहतर शिक्षा दिलाना लक्ष्य है.

बेबाकी से रखती हैं अपनी बात

ललिता उरांव तमाम बैठकों में अपनी मांगों को काफी बेबाकी से सबके सामने रखती हैं. नतीजा वर्तमान में ललिता की पहचान एक सशक्त एवं जागरूक मुखिया के रूप में होती है.

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