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चीन में सौर ऊर्जा पर ग्रहण

।। रविदत्तबाजपेयी ।। चीन सौर ऊर्जा उपकरणों का सबसे बड़ा उत्पादक देश चीन वैकल्पिक ऊर्जा के उपकरणों के उत्पादों का सबसे बड़ा निर्माता था और आज भी है, लेकिन बाकी औद्योगिक उत्पादन की तरह ही चीन को हर उत्पादन से महत्तम लाभ उठाने की बहुत जल्दी रहती है, सो केवल पांच–छह सालों में चीन ने […]

।। रविदत्तबाजपेयी ।।

चीन सौर ऊर्जा उपकरणों का सबसे बड़ा उत्पादक देश

चीन वैकल्पिक ऊर्जा के उपकरणों के उत्पादों का सबसे बड़ा निर्माता था और आज भी है, लेकिन बाकी औद्योगिक उत्पादन की तरह ही चीन को हर उत्पादन से महत्तम लाभ उठाने की बहुत जल्दी रहती है, सो केवल पांचछह सालों में चीन ने सौर ऊर्जा पैनल अन्य उपकरणों से दुनिया के सारे बाजार पाट दिये. नतीजा, यूरोप अमेरिका के सौर ऊर्जा उपकरण बनानेवाले कारखाने बंद हो गये.

चीन के आर्थिक विकास में वृहत औद्योगिकीकरण ने सबसे अहम भूमिका निभायी है, लेकिन इस द्रुत औद्योगिकीकरण की रफ्तार को बनाये रखने के लिए चीन को अपनी ऊर्जा की आपूर्ति के लिए बाहरी स्नेतों से कोयला, कच्च तेल अन्य ईंधन जुटाना पड़ा. ऊर्जा स्नेतों की पर निर्भरता और इसके खर्च को घटाने के लिए चीन ने ऊर्जा के वैकल्पिक स्नेत तलाशने शुरू किये.

इसी बीच पर्यावरण सुरक्षा के प्रति बढ़ती जागरूकता के कारण वैकल्पिक ऊर्जा का एक बड़ा वैश्विक बाजार भी तैयार हो गया और अपनी औद्योगिक उत्पादन क्षमता के बल पर चीन, पूरे विश्व में सौर ऊर्जा संबंधित उपकरणों का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया. वैश्विक बाजार पर नियंत्रण की महत्वाकांक्षा के चलते चीन ने अन्य उद्योगों की तरह ही वैकल्पिक ऊर्जा उपकरणों का निर्माण इतना ज्यादा बढ़ा दिया कि विश्व के अन्य देशों के पास उत्पादन का काम ही नहीं बचा.

चीन के वैकल्पिक ऊर्जा में उत्पादन के अतिरेक से वैश्विक बाजार में इनके दाम लगातार गिरते गये और कुछ ही दिनों में इस उद्योग से जुड़े चीन के अत्यंत लाभप्रद व्यापार, गंभीर घाटे में गये. सौर ऊर्जा के क्षेत्र में चीन के कुछ उद्यमियों के उत्कर्ष और पराभव का मुख्य कारण वहां की पूंजीवादी अर्थव्यवस्था और उसके साम्यवादी राजनीतिक नियंत्रण का विरोधाभास ही है.

इस रस्साकशी में दुनिया की सौर ऊर्जा पैनल बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी सनटेक ही बंद हो गयी. सनटेक और इसके संस्थापक शी झेन्गरंग की कहानी, एक ओर चीनी उद्यमिता के प्रेरणास्पद उद्देश्यों और दूसरी ओर चीनी नेतृत्व के संदेहास्पद उद्देश्यों का वृत्तांत है.

1963 में चीन के एक निर्धन किसान परिवार में दो जुड़वां लड़कों में से छोटे शी झेन्गरंग को उनके मातापिता ने अपने पड़ोसी परिवार को गोद दे दिया, अपने विद्यार्थी जीवन में मेधावी छात्र के रूप में उन्होंने मंचूरिया विश्वविद्यालय से ऑप्टिक्स (प्रकाश विज्ञान) में स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई पूरी की.

1988 में शी झेन्गरंग सिडनी ऑस्ट्रेलिया आये और यहां के न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में सोलर फोटो वोल्टिक पर अनुसंधान कर रहे प्रोफेसर मार्टिन ग्रीन के पास काम मांगने गये, प्रो ग्रीन ने उन्हें नौकरी के स्थान पर अपने साथ अनुसंधान करने के लिए छात्रवृत्ति का प्रस्ताव दिया. शी झेन्गरंग ने बहुत तेजी से अपनी पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और एक स्थानीय बिजली कंपनी तथा न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय के एक संयुक्त उपक्र में सौर ऊर्जा भंडारण के बेहतर विकल्पों के शोध में लग गये. वर्ष 1995 से 2000 के बीच शी झेन्गरंग इस नये उद्यम से जुड़े रहे, लेकिन इसी बीच शी को केवल अनुसंधान के स्थान पर इस तकनीक के बड़े पैमाने पर उत्पादन का ख्याल आया.

यह निश्चित कर पाना संभव नहीं है कि यह विचार खुद शी झेन्गरंग का था अथवा यह नयी तकनीक में कार्यरत चीनी मूल के वैज्ञानिकों की तलाश में लगे चीन के अधिकारियों का. नवंबर 2000 में चीन के झयिंग्सू प्रांत के कुछ अधिकारी शी झेन्गरंग से मिलने उनके सिडनी स्थित घर पहुंचे.

अधिकारियों ने शी को वापस चीन चल कर सौर ऊर्जा में व्यापार स्थापित करने का प्रस्ताव दिया, वुक्सि नगर प्रशासन उन्हें एक सरकारी उपक्र के साथ साझेदारी करने के लिए 60 लाख डॉलर देने को तैयार था, शी झेन्गरंग ने अपनी ऑस्ट्रेलिया की नौकरी छोड़ दी और वापस चीन लौट गये.

2001 में शी झेन्गरंग ने सनटेक नाम की एक कंपनी शुरू की और बहुत कम समय के भीतर बहुत बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा पैनल बनाने में महारत हासिल कर ली. जर्मनी और अमेरिका के अत्यधिक मशीनीकरणरोबोटिक्स के विपरीत शी झेन्गरंग के चीन स्थित कारखाने में अधिकतर काम श्रमिकों द्वारा किया जाता था और चीन के सस्ते श्रम के कारण सनटेक के उत्पाद अपने प्रतियोगी उत्पादों से सस्ते भी थे.

2008 में सनटेक, सौर ऊर्जा पैनल बनाने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी थी और साल भर में इनके बनाये फोटो वोल्टिक सेल से करीब 2400 मेगावाट की बिजली बनायी जा सकती थी, तुलनात्मक रूप से भारत में टिहरी बांध 1400 मेगावाट और भाखड़ा की 1475 मेगावाट की प्रस्तावित क्षमता है.

2005 में शी झेन्गरंग ने सनटेक के चीनी साझेदार का हिस्सा भी खरीद लिया और इसी साल सनटेक न्यूयॉर्कस्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होनेवाली चीन की पहली निजी कंपनी बनी, 2008 में शी झेन्गरंग चीन के चौथे सबसे अमीर आदमी थे, 2009 में टाइम पत्रिका में शी झेन्गरंग की उपलब्धियों पर एक लेख छापा गया था.

यूरोप अमेरिका में वैकल्पिक ऊर्जा की बढ़ती मांग को देखते हुए चीन को इस उद्योग में भी अंतहीन लाभ उठाने की जल्दी हो गयी. 2008-2012 के बीच चीन ने सिर्फ सौर ऊर्जा पैनल का उत्पादन 10 गुना बढ़ा दिया.

चीन की सरकारी सब्सिडी के चलते वैकल्पिक ऊर्जा के सारे उत्पादक अपना सामान लागत से कम मूल्य पर बेचने को तैयार हैं और इस क्षेपण (डंपिंग) के चलते यूरोप अमेरिका में चीनी उत्पाद पर प्रतिबंध लगाने की मांग होने लगी. उत्पादन के इस अतिरेक ने बाजार में सौर पैनल का दाम कई गुना घटा दिया.

2013 में सनटेक कंपनी अपने 200 करोड़ डॉलर के कर्ज चुकाने में असमर्थ हो गयी और इसके दिवालिया होने की कार्यवाही शुरू कर दी गयी. शी झेन्गरंग को कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद से हटा दिया गया और जैसा कि चीन में बहुत आम परिपाटी है किसी भी अप्रिय स्थिति में अपनी संलिप्तता से बचने के लिए अधिकारियों ने सारी जिम्मेदारी केवल एक व्यक्ति पर डाल दी. अभी सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने के आरोप में शी झेन्गरंग की जांच चल रही है.

भ्रष्टाचार का रोग केवल भारत में नहीं है, चीन भी इससे अछूता नहीं है, जब राजनेता और व्यापारी एक ही सिक्के के दो पहलू हो जाएं, तो राजनीति और अर्थनीति दोनों का अध:पतन निश्चित है. सनटेक की विफलता और पूरे सौर ऊर्जा उद्योग में चीन की कशमकश इस बात को प्रमाणित करती है कि चीन की साम्यवादी राजनीति और पूंजीवादी अर्थनीति, वैश्विक बाजार को कठपुतली बनाने के चक्कर में खुद ही काठ का उल्लू साबित हो रही है.

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