पंचायती राज मंत्रालय, भारत सरकार ने पोषण पर विशेष ग्राम सभा करने का आग्रह किया है. इसमें आइसीडीएस, स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता इत्यादि के कार्यकर्ता प्रभारियों को भी शामिल होना है. झारखंड में पंचायती राज व्यवस्था के सुदृढ़ीकरण में ग्राम सभा को सशक्त बनाने की आवश्यकता है. पोषण संबंधी मामलों पर भी ध्यान देना जरूरी है. आइए, हम हर पंचायत में विशेष ग्राम सभा करके पोषण का महत्व समङों, इसके तरीके जानें और उन्हें लागू करने का संकल्प लें.
नवजात शिशु को एक घंटे के भीतर स्तनपान
बच्चे को जन्म के एक घंटे के अंदर अपनी मां का दूध पिलाना बेहद जरूरी है. इससे नवजात शिशु को बीमारियों एवं मौत के खतरे से बचाया जा सकता है. बच्चे को मां के दूध के सिवाय कुछ भी ना दें. शहद, गाय-भैंस या बकरी का दूध, पानी, कोई भी जड़ी-बूटी या जन्मघूंटी इत्यादि पिलाने से नुकसान होगा. नवजात शिशु अपनी मां के दूध के सिवाय किसी भी चीज को पचा नहीं सकेगा. जन्म के तत्काल बाद मां के दूध के साथ पीले रंग का खीसा निकलता है. यह देखने में भले गंदा लगे लेकिन बच्चे के लिए यह एक दवा के समान है जो बच्चे को किसी भी रोग से बचाता है.
छह माह तक केवल मां का दूध
बच्चे को छह माह तक केवल अपनी मां का दूध मिलना चाहिए. यहां तक कि गर्मी में भी पानी तक पिलाने की जरूरत नहीं है. मां के दूध में ही बच्चे को पानी भी मिल जाता है. हर मां के पास अपने बच्चे के लिए पर्याप्त दूध होता है. यह सोचना गलत है कि किसी मां को दूध कम होता है. छह माह तक शिशु को सिर्फ मां का दूध मिलने पर बीमारियों एवं मृत्यु का खतरा कम होता है. इसके कारण मां के पुन: गर्भधारण में भी विलंब होता है.
सातवें माह से ऊपरी आहार
छह महीने के बाद ही बच्चे का मुंह-जुठी या अन्नप्रासन कार्यक्रम आंगनबाड़ी केंद्र में करें. सातवें महीने से बच्चे को मां के दूध के साथ ही ऊपरी आहार भी देना शुरू करें और दो साल की उम्र तक जारी रखें. केले को चूरकर, हलवा, खीर, दाल-चावल, खिचड़ी इत्यादि दे सकते हैं. वयस्क को जितना भोजन चाहिए, उससे आधा भोजन बच्चा ले सकता है. बच्चे को थोड़ी-थोड़ी देर में खुराक देते रहें. बाजार में उपलब्ध दुग्ध-पदार्थ न दें.
गर्भवती महिलाओं और किशोरियों को आयरन टेबलेट
गर्भवती महिलाओं को तीन महीने तक हर दिन एक आयरन टेबलेट अवश्य दें. इस तरह उसे कम-से-कम 100 आयरन टेबलेट मिलनी चाहिए. यह लाल रंग की टेबलेट है जो ग्राम स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस पर एएनएम द्वारा दी जाती है. स्कूल न जानेवाली किशोरी बालिकाओं को हर सप्ताह आयरन की एक नीली टेबलेट अवश्य दें. यह आंगनबाड़ी सेविका के द्वारा दी जाती है. यह टेबलेट स्कूल में छठी क्लास से 12 वीं तक के सभी लड़के-लड़कियों को दी जाती है.
आयरन टेबलेट खाने पर किसी को मितली हो सकती है या चक्कर जैसा लग सकता है. लेकिन इससे डरने की कोई बात नहीं है. भरपेट भोजन करने के बाद आयरन टेबलेट लेना चाहिए. टेबलेट खाने के साथ एक ग्लास पानी जरूर पीयें. आयरन टेबलेट खाने के एक घंटे पहले एवं एक घंटे बाद तक चाय या दूध नहीं पीना चाहिए. शरीर में आयरन के बेहतर अवशोषण के लिए नींबू, संतरा इत्यादि लेना चाहिए.
साबुन से हाथ धोना
भोजन करने से पहले हमेशा साबुन से हाथ धोना चाहिए. शौचालय जाने के बाद भी साबुन से हाथ अवश्य धोना चाहिए. बिना धुले हाथ में एक करोड़ से भी ज्यादा कीटाणु होते हैं. साबुन से हाथ नहीं धोने पर ऐसे कीटाणु शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और बीमारियां हो सकती हैं. स्कूल में दोपहर के भोजन तथा आंगनबाड़ी में भोजन के पहले बच्चों को साबुन से हाथ अवश्य धोना चाहिए. अगर साबुन उपलब्ध न हो तो ग्राम स्वास्थ्य समिति के दस हजार रुपये के फंड में से साबुन खरीदा जा सकता है. पीने के लिए सिर्फ उबला हुआ पानी इस्तेमाल करें.
डायरिया का इलाज करें
बच्चों को डायरिया होने पर ओआरएस का घोल अवश्य दें तथा भोजन बंद न करें. इस दौरान मां का दूध बंद न करें. एक माह तक के शिशु को इलाज हेतु सरकारी अस्पताल ले जाना हो तो ममता वाहन की सेवा लें. इसका कोई किराया नहीं लगता है. यह सेवा निशुल्क उपलब्ध है.
प्रथम वर्ष में बच्चे को पांच टीके मिलना
बच्चे को पहले साल पांच बार टीके लगना जरूरी है. जन्म के बाद, डेढ़ महीने बाद, ढाई महीने बाद, साढ़े तीन महीने बाद और नौंवे महीने में.
अति गंभीर कुपोषित बच्चे
छह माह से लेकर पांच साल तक तिरंगे टेप से बच्चे की बांह की माप ली जाती है. इस जांच से जो बच्चे अति गंभीर कुपोषित पाये जायें, उन्हें कुपोषण उपचार केंद्र (एमटीसी) भेज दें. हर जिले में ऐसे कम-से-कम दो केंद्र हैं. हमारे जिले में यह केंद्र कहां है, इस पर भी चर्चा हो.
गर्भवती की देखभाल
हर गर्भवती को आराम मिलना चाहिए. उसे पोषक भोजन, 100 आयरन टेबलेट मिले और स्वास्थ्य की नियमित जांच हो. गर्भवती का बेहतर ख्याल रखने और सम्मान बढ़ाने के लिए आंगनबाड़ी केंद्र में गोद भराई करें. हर गर्भवती का नाम आंगनबाड़ी में अवश्य लिखवाएं. उन्हें आयोडीन युक्त नमक का ही सेवन करना चाहिए.
कुपोषण रोकने के अन्य उपाय
खुले में शौच पर रोक लगे क्योंकि इससे जल एवं भोजन दूषित होता है.
बाल विवाह का सामाजिक बहिष्कार करें क्योंकि कुपोषण एवं जच्चा-बच्चा की मौत का एक प्रमुख कारण कम उम्र में विवाह है.
लड़कियों की शिक्षा पर जोर दें-
अगर एक महिला शिक्षित होगी, तो पूरे परिवार और समाज को लाभ होगा.