नयी दिल्ली : दिल्ली की एक अदालत ने नाबालिग बच्चे की मरजी के खिलाफ उसे किसी के संरक्षण में सौंपने को बच्चे के लिये ‘अवसादग्रस्त और हतोत्साहित’ करनेवाला कदम करार देते हुए बच्चे के संरक्षण की मांग कर रही महिला की याचिका खारिज कर दी. अदालत ने यह पाया कि उनका बेटा अपनी बुद्धिमता से प्राथमिकता तय कर सकता है और वह अपनी मां से मिलना या उसके साथ जाने के लिए बिल्कुल इच्छुक नहीं है.
जिला एवं सत्र न्यायाधीश विनोद गोयल ने कहा कि नि:संदेह, वह करीब दस वर्ष की उम्र का छठी कक्षा में पढ़नेवाला छात्र है और अपनी मां से भविष्य में कभी नहीं मिलना चाहता. न्यायाधीश ने अपना फैसला सुनाने से पहले अपने कक्ष में इस नाबालिग बच्चे से उसके माता पिता की मौजूदी में बातचीत की थी.