13 वर्षीय सुषमा ने लिया एमएससी में एडमिशन, करेगी पीएचडी
शिक्षकों का मिला सहयोग
सुषमा ने अपनी स्कूली शिक्षा लखनऊ के सेंट मिराज इंटर कॉलेज से प्राप्त की थी. उस कॉलेज की प्राचार्या, श्रीमति अनीता रात्र ने बताया कि सुषमा ने 10वीं की परीक्षा सात साल की उम्र में तथा बारहवीं नौ साल की उम्र में पास कर ली थी. जब वह सातवीं कक्षा में पढ़ती थी, तो हमने महसूस किया कि वह कुछ सीखने या याद करने में किसी दूसरे बच्चे की तुलना में काफी आगे थी. तब हमने उसे अगली कक्षा में प्रोमोट कर दिया.
सेंट्रल डेस्क
13 साल की उम्र में जहां आमतौर पर बच्चे खेल के करीब और पढ़ाई से दूर भागते दिखते हैं, वहीं लखनऊ की सुषमा वर्मा ने इस उम्र में लखनऊ यूनवर्सिटी में एडमिशन लिया है. यहां वह माइक्रोबायोलॉजी से एमएससी करेगी. उसका नाम दूसरी मेरिट लिस्ट में है. यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ एसबी निम्से ने एडमिशन कॉर्डिनेटर को कहा है कि उम्र की वजह से उसे एडमिशन से न रोका जाये. सुषमा ने 2007 में सात साल की उम्र में 10वीं और नौ साल में 12वीं की परीक्षा पास की थी, जिसके लिए उसका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस में भी दर्ज है.
सुषमा वर्मा ने 66 प्रतिशत अंकों के साथ बीएससी की परीक्षा पास की है. एक दिहाड़ी मजदूर की बेटी सुषमा अब डॉक्टर या वैज्ञानिक बनने की तैयारी कर रही है. इस बारे में सुषमा ने कहा कि वह एमबीबीएस कोर्स ज्वाइन करना चाहती थी, लेकिन, 17 वर्ष की उम्र से पहले वह ऐसा नहीं कर सकती. अत: वह लखनऊ विश्वविद्यालय में एमएससी कोर्स ज्वॉइन कर रही है.
भाई भी है मेधावी
सुषमा के माता-पिता कहते हैं कि उसका भाई, शैलेंद्र भी उतना ही तेज है. शैलेंद्र कभी स्कूल नहीं गया और घर पर पढ़ाई करके ही उसने नेशनल ओपन स्कूल से मात्र सात साल की उम्र में ही 55 प्रतिशत अंकों के साथ दसवीं की परीक्षा पास कर ली थी.
मां को सरकारी मदद की आस
सुषमा के पिता तेज बहादुर और माता छाया देवी दिहाड़ी मजदूर हैं. छाया देवी ने कहा कि विदेशी विश्वविद्यालयों के कुछ सदस्यों ने हमारे साथ संपर्क साधकर कहा है कि हम अपने बच्चों को उनके सपनों के अनुसार पढ़ाई करने के लिए विदेश भेज दें. लेकिन, वे उम्मीद करते हैं कि सरकार उनके बच्चों को भारत में ही रहकर पढ़ाई करने में मदद करेगी.
संतुलित आहार भी न दे पाने का अफसोस
सुषमा का परिवार लखनऊ शहर के बरिगवां क्षेत्र में एक पुराने मकान में एक ही कमरे में गुजारा करता है. सुषमा के पिता तेज बहादुर अपनी बेटी की इस अनोखी उपलब्धि पर फूले नहीं समाते और खुद को दुनिया का सबसे भाग्यशाली पिता मानते हैं. लेकिन उन्हें इस बात का भी अफसोस सालता है कि वे अपने बच्चों को एक संतुलित आहार भी नहीं दे पाते हैं.