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दान भाव को पुनर्स्‍थापित करता सेवा कैफे

* अतिथि देवो भव:– ‘अतिथि देवो भव:’, भारतीय परंपरा है. तभी तो यहां लेने की अपेक्षा देने का सुख ज्यादा है. लेकिन वक्त के साथ पूंजी का आकर्षण बढ़ा और सामाजिक सरोकार घटा. स्वाभाविक है हम भी इसकी गिरफ्त में आये, संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ी और दानशीलता घटी. लेकिन कहते हैं न परंपरा को कुछ […]

* अतिथि देवो भव:
– ‘अतिथि देवो भव:’, भारतीय परंपरा है. तभी तो यहां लेने की अपेक्षा देने का सुख ज्यादा है. लेकिन वक्त के साथ पूंजी का आकर्षण बढ़ा और सामाजिक सरोकार घटा. स्वाभाविक है हम भी इसकी गिरफ्त में आये, संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ी और दानशीलता घटी. लेकिन कहते हैं न परंपरा को कुछ पल के लिए बिसार तो सकते हैं, लेकिन मुक्त कैसे हो सकते. यही वजह है कि ‘गिफ्ट इकोनॉमी’, ‘लीविंग इज गीविंग’ जैसे आधुनिक नामों के साथ भारतीय परंपरा एक बार फिर हमारे सामने है. देश में ‘सेवा कैफे’ जैसी संस्थाएं समाज में उदारता का भाव बढ़ाने में जुटी है. इस संस्था से बड़ी संख्या में युवा भी जुट रहे हैं, उन्हीं में से एक हैं आइआइएम ग्रेजुएट सिद्धार्थ साठेलकर, जिन्होंने एडिलविस की नौकरी छोड़ सेवा कैफे चुना. –

सिद्धार्थ साठेलकर आइआइएम, अहमदाबाद से ग्रेजुएट हैं और अहमदाबाद स्थित गांधी आश्रम के ‘सेवा कैफे’ से जुड़े हुए हैं. सेवा कैफे में प्रत्येक सप्ताह गुरुवार से लेकर रविवार तक स्वयंसेवक आगंतुकों के लिए खाने पकाते हैं. जो भी कैफे आते हैं, स्वागत के साथ उन्हें खाना सर्व किया जाता है. पर बिल नहीं दिया जाता. आगंतुक अपनी इच्छा से जो रकम देते हैं, रख लिया जाता है. इसे ‘पे एज यू विश’ या ‘पे इट फॉरवर्ड’ का नाम दिया गया है.

यानी आप जो देंगे, उसी से दान के इस क्रम को बरकरार रखने की कोशिश होगी. हालांकि, साठेलकर कहते हैं, सेवा कैफे का अंतिम लक्ष्य इसे बंद करना है, लेकिन तभी जब लोग पूंजी जमा करने का लोभ छोड़ कर देने के भाव से सराबोर हो जायें. तभी हम मानेंगे कि हमारा मिशन पूरा हुआ. साठेलकर इस बात पर जोर देते हैं कि दानशीलता का यह प्रयोग केवल इस कैफे तक ही नहीं सिमटना चाहिए, बल्कि इसे लोग अपने सामान्य जीवन में भी इस्तेमाल करें. चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, माहौल कैसा भी हो. जब यह होगा, तब सेवा कैफे का लक्ष्य पूरा होगा.

* शानदार नौकरी छोड़ी
तीन साल पहले सिद्धार्थ साठेलकर एडेलविस कैपिटल फर्म में डेरिवेटिव ट्रेडिंग डेस्क के को-हेड और एल्गोरिथ्म ट्रेडिंग के हेड के रूप में कार्यरत थे. उनके दिन की शुरुआत दलाल स्ट्रीट की गतिविधियों के आकलन से होती थी. वह सीएनबीसी चैनल पर स्टॉकों को खरीदने-बेचने पर विशेषज्ञ के रूप में निवेशकों को सलाह देते.

वह बताते हैं कि जब वह एडिलविस में थे, तो कैसे वह अपने क्लाइंट को फाइव स्टार होटलों में डिनर पर ले जाते. उन्हें महंगी शराब पिलाते. यह सब इसलिए कि उनसे बड़ी डील हो सके. लेकिन जब वह सड़कों पर भूखे लोगों को भीख मांगते देखते, तो नैतिकता सामने खड़ी हो जाती. एक दिन उन्होंने तय किया कि वह पता लगायेंगे कि आखिर पैसे का लोभ किसी को ‘कॉरपोरेट दुनिया’ में कैसे धकेलता है.

वह अपनी पत्नी लहर के साथ भारत की यात्रा पर निकल पड़े. वह इंटीरियर डिजाइनर हैं और सेंटर फॉर इंवायरमेंट प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी, अहमदाबाद से ग्रेजुएशन किया है. साठेलकर छह माह तक घूमते रहे. कई गैर सरकारी संगठनों के काम को देखा. उनसे प्रभावित हुए. फिर अंतत: अहमदाबाद के सेवा कैफे ने उनका ध्यान आकर्षित किया. साठेलकर ने तय किया, यही उनका लक्ष्य है. देने का काम.

* टूटने का भय नहीं : साठेलकर बताते हैं कि वह भी आम लोगों की तरह सोचते हैं. कभी यह भी ख्याल आता है कि आज वह ट्रेनों में सफर कर रहा है, जबकि उसके मित्र बीएमडब्लू कारों में घूमते हैं. शंका भी होती है कि क्या ‘दान पर जीवन चलाने का सिद्धांत’ सचमुच व्यावहारिक है? लेकिन इन सब आशंकाओं को दूर कर साठेलकर कहते हैं इस प्रयोग का लिटमस टेस्ट यह है कि यदि मैं समाज के लिए मूल्य गढ़ता हूं, तो समाज भी मेरी मदद करेगा.

जब साठेलकर ने सब कुछ छोड़ कर सेवा का भाव अपनाने का फैसला किया, तो इसके पीछे उनके दिमाग में गहन मंथन का दौर चला. साठेलकर बताते हैं कि एक बार एडिलविस में उन्होंने अपने बॉस से इस बारे में चर्चा की. इससे फैसला लेने में आसानी हुई. वे यह मानते हैं कि दानशीलता तो मनुष्य की प्रकृति में है, पर वे जिन परिस्थितियों में रहते हैं, उसी के अनुरूप प्रतिक्रिया करते हैं और उसी पर दान का भाव निर्भर करता है.

– एक नजर
* सेवा कैफे गांधी आश्रम अहमदाबाद का प्रोजेक्ट है.
* यह मुंबई, बेंगलुरू, पुणो सहित कई शहरों में है.
* दान उद्यम पर आधारित है यह कैफे
* ‘पे एज यू विश’ सिद्धांत पर आधारित

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