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हाय रे बदनसीबी ! मांगा मां होने का सरकारी प्रमाणपत्र

जिगर के तीन टुकड़ों से मिलने के लिए तरस रही है ममता आसनसोल : आर्थिक विपन्नता की मार ङोलती जिस मां ने कभी अपने जिगर के टुक ड़ेको बेच कर अन्य दो बच्चों को मौत से बचाने की कोशिश की थी, वहीं मां लक्खी हाजरा बर्दवान स्थित चेतना होम में रह रही अपनी तीन संतानों […]

जिगर के तीन टुकड़ों से मिलने के लिए तरस रही है ममता
आसनसोल : आर्थिक विपन्नता की मार ङोलती जिस मां ने कभी अपने जिगर के टुक ड़ेको बेच कर अन्य दो बच्चों को मौत से बचाने की कोशिश की थी, वहीं मां लक्खी हाजरा बर्दवान स्थित चेतना होम में रह रही अपनी तीन संतानों से इस कारण मिल नहीं सकी कि उसके पास उसके मां होने का कोई प्रमाण पत्र नहीं था. तमाम मिन्नतें बेकार गयी और ममता तड़पती रही. बिना मिले ही उसे निराश लौटना पड़ा.
उन बच्चों को पाने के लिए वह विभिन्न प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष गुहार लगा रही है. बर्दवान पहुंचने के लिए भी उसने क्या-क्या न सितम सहे?
दूसरों के घर में नौकरानी का कार्य कर के कुछ पैसे बचाये. दो वर्षीय पुत्र देवदास, नौ वर्षीय पुत्र विष्णु और सात वर्षीय पुत्र शनि के लिए बिस्कुट, बाला आदि लेकर वह गयी थी. बच्चों को देखे एक साल हो चुका था. काफी खुश थी कि बच्चों को अपने साथ घर ले आयेगी, लेकिन होम वालों ने एक ही झटके में उसकी भावनाओं को तार-तार कर दिया. उसे उसके बच्चों से नहीं मिलने दिया. कहा -‘पहले कोई पहचान पत्र लाओ. फिर बच्चों से मिलना.’ मिन्नतें की, हाथ जोड़े, ममता की दुहायी दी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. बिस्कुट ले कर खाली हाथ लौट आयी.
क्या है मामला
धनबाद की निवासी लक्खी हाजरा का विवाह 18 साल पहले काजोड़ा निवासी राजेश दास के साथ हुआ. लक्खी बेटी कुसुम, बेटा विष्णु और शनि की मां बनी. इन तीनों के जन्म के बाद उसके पति राजेश की मौत हो गयी. कुछ दिनों बाद उसने संतोष दास से विवाह कर लिया तथा आसनसोल बाइपास के तपसी बाबा के पास क्लब में आकर रहने लगी. संतोष दिहाड़ी मजदूर है. दूसरे पति से छोटे पुत्र देवदास को जन्म हुआ.
उसके जन्म के दो माह बाद ही लक्खी टीबी (यक्ष्मा) रोग से पीड़ित हो गयी. पति काम के कारण बाहर रहने लगा और घर आना कम होने लगा. उसकी आर्थिक हालत काफी दयनीय हो गयी थी. इस स्थिति में क्लब के नि:संतान सदस्य ने उससे उसके छोटे बेटे को गोद लेने का प्रस्ताव दिया. लेकिन उसने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. परिणामस्वरूप लक्खी को क्लब छोड़ना पड़ा और वह पास में स्थित स्कूल के परित्यक्त कमरे में बच्चों के साथ रहने लगी. खाने-पीने की कमी के कारण टीबी बढ़ता गया और उसकी स्थिति काफी खराब हो गयी.
उसे आसनसोल जिला अस्पताल और फिर बर्दवान मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भरती कराया गया. बच्चों का दूसरा कोई सहारा नहीं था, इसलिए उन्हें भी अपने साथ रखती थी. अस्पताल अधीक्षक व प्रशासनिक अदिकारियों ने उसके चारों बच्चों को चेतना चाइल्ड होम में रख दिया गया.
बच्चों के गायब होने की आशंका
कुछ स्थानीय नागरिकों ने आशंका जतायी है कि संभवत: उसके बच्चे होम से गायब हो गये हैं. इस तथ्य को छिपपाने के लिए होम वाले तरह-तरह के बहाने बना कर लक्खी को बच्चों से नहीं मिलने दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर आंदोलन भी किया जा सकता है.
अस्पताल प्रबंधन ने भेजा होम
काफी दिनों तक चले इलाज के बाद लक्खी स्वस्थ हो गयी. वह अपने बच्चों से मिलने होम गयी. जब उसने अपने बच्चों की मांग की तो उसे कहा गया कि उसके पूरी तरह से स्वस्थ होने तथा आर्थिक स्थिति ठीक होने पर उसे उसके बच्चे सौंप दिये जायेंगे. बेटी कुसुम बलपूर्वक उसके साथ धाधका (आसनसोल) के चिपड़िया मोहल्ला में आ गयी.
दो माह पहले उसने अपनी बेटी का विवाह किया. दामाद के एक परिचित ने उसे वार्ड नंबर 24 के दीपू पाड़ा प्लास बागान में घर भाड़े पर दिला दिया. लक्खी दूसरे के घर में नौकरानी का कार्य कर अपना पेट पालने लगी और जब थोड़ी स्थिति सुधरी तो बर्दवान चाइल्ड होम गयी. लेकिन चाइल्ड होम वालों ने कहा कि वह कोई प्रमाण पत्र लाये, जिससे यह प्रमाणित हो कि बच्चे उसके हैं. लक्खी आसनसोल के पूर्व उपमेयर अमरनाथ चटर्जी से मिली.
उन्होंने सिफारशी पत्र लिख कर दिया. पत्र मिलने के बाद उसे विश्वास हो गया कि अब उसके बच्चों से मिलने से उसे कोई रोक नहीं सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. चाइल्ड होम वालों ने श्री चटर्जी के पत्र को प्रमाण मानने से इनकार कर लक्खी को उसके बच्चों से नहीं मिलने दिया. इससे लक्खी काफी हताश है.

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