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अनुदान और ज्ञानदान दोनों की व्यवस्था

राज्य में दूध उत्पादन और गव्य विकास के लिए सरकार किसानों और पशुपालकों को केवल दुधारू पशुधन, अनुदान और बैंक ऋण की सुविधा ही नहीं दे रही है, बल्कि उन्हें एक कुशल, पेशेवर और डेयरी विशेषज्ञ पशुपालक बनाने के भी कार्यक्रम चला रही है. यह जरूरी भी है. डेयरी के क्षेत्र में संचालन और प्रबंधन […]

राज्य में दूध उत्पादन और गव्य विकास के लिए सरकार किसानों और पशुपालकों को केवल दुधारू पशुधन, अनुदान और बैंक ऋण की सुविधा ही नहीं दे रही है, बल्कि उन्हें एक कुशल, पेशेवर और डेयरी विशेषज्ञ पशुपालक बनाने के भी कार्यक्रम चला रही है. यह जरूरी भी है. डेयरी के क्षेत्र में संचालन और प्रबंधन का तकनीकी ज्ञान उतना ही जरूरी है, जितना कि दूसरे व्यावसायिक और उत्पादन क्षेत्रों में. इसके बिना न तो दुधारू पशुओं का सही-सही रख-रखाव हो सकता है, न ही उत्पादित दूध का सटीक व्यवसाय ही. इसलिए डेयरी स्थापित करने वाले लाभुकों को प्रशिक्षण दिया जाता है. दुग्घ उत्पादक समितियों और इन समितियों के संघों को भी सरकारी मदद दी जाती है.

शिक्षा और प्रशिक्षण
डेयरी विकास कार्यक्रम के तहत आपको डेयरी प्रबंधन का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. इसके लिए बड़े पैमान पर पशु प्रबंधन और डेयरी संचालन को लेकर शिक्षा और प्रशिक्षण का अलग से कार्यक्रम चलाया जाता है. इसका लाभ डेयरी कर्मी, दुग्ध उत्पादक और ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगार उठा सकते हैं. यह कार्यक्रम उन्हीं के लिए है. इसमें डेयरी फार्मिग, दूध परीक्षण समिति प्रबंधन, साफ एवं स्वच्छ दूध उत्पादन, डेयरी संचालन की आधुनिक तकनीक आदि के बारे में व्यावहारिक ज्ञान दिया जाता है. सरकार के लिए यह कार्यक्रम इसलिए जरूरी है कि इसके बगैर डेहरी विकास कार्यक्रम को सफल नहीं बनाया जा सकता है. आपके लिए यह इसलिए जरूरी है कि इस व्यावहारिक प्रशिक्षण के बाद आप ज्यादा कुशलता से डेयरी का संचालन कर सकते हैं.

तकनीकी इनपुट कार्यक्रम को जानें
इस योजना के तहत सरकार डेयरी सहकारी समिति को आधारभूत सुविधा उपलब्ध कराती है. आप डेयरी पशु विकास केंद्र भी खोल सकते हैं. वाएफ डेवलपमेंट रिसर्च फाउंडेशन, पुणो की मदद से यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है. इसके तहत आपको हरा चारा उत्पादन के प्रदर्शन, संतुलित पशु आहार पर सिब्सडी, डेयरी पशु विकास केंद्र की स्थापना, खनिज युक्त पूरक चारा का वितरण, टीकाकरण व स्वच्छता किट का वितरण आदि की मद सरकार देती है. इसका मकसद डेयरी के क्षेत्र में पशुपालकों को तकनीकी रूप से सहायता देना है. यह तकनीकी सहायता यंत्र, दवा, चारा और ज्ञान सभी रूपों में मिलती है.

सोसाइटी स्तर पर उत्पादन प्रतियोगिता
सरकार दुग्ध उत्पादन को लेकर राज्य में प्रतिस्पर्धा का वातावरण बनाना चाहती है. इसके लिए दुग्ध उत्पादक समितियों के बीच प्रतियोगिता भी आयोजित की जाती है. इस प्रतियोगिता का पहले प्रचार-प्रसार किया जाता है. फिर दुग्ध उत्पादन में बेहतर करने का दावा करने वाले पशुपालकों और दुग्ध उत्पादक समितियों के बीच उनके दावों का परीक्षण किया जाता है. प्रतियोगिता के विजेताओं को प्रमाण-पत्र और सम्मान के अलावा पांच दुधारू पशु दिये जाते हैं. इस योजना के तहत रियायती दर पर पशु चारा की ब्रिकी भी की जाती है. यह दर एक रुपया प्रति किलो होती है. इसके अलावा पशुओं के रख-रखाव एवं दूध उत्पादन की दर में वृद्धि को लेकर जानकारी भी दी जाती है.

दुग्ध शीतलक केंद्रों को भी आर्थिक मदद
हम उन योजनाओं, कार्यक्रमों और प्रस्तावों की भी यहां चर्चा कर रहे हैं, जो दुग्ध उत्पादन से जुड़े सरकारी-सहकारी संस्थानों के लिए हैं, ताकि हमारे किसान और पशुपालक यह जान सकें के दुग्ध विकास के लिए सरकार के स्तर पर कैसी-कैसी व्यवस्थाएं हैं. इस कड़ी में दुग्ध शीतलक केंद्रों को आर्थिक मदद का कार्यक्रम भी शामिल है. इन केंद्रों के दैनिक खर्च के लिए उन्हें करीब तीन लाख रुपये तक की सहायता देने का सरकार का प्रस्ताव है. इस राशि को इन केंद्रों पर रसायन (केमिकल), डिटर्जेट, गैस, ईंधन, डीजल, मोबिल, पार्ट-पुजरें, दूध के डिब्बे की खरीद, डेयरी सहकारी समिति से शीतलन केंद्रों तक दूध के परिवहन आदि पर खर्च किया जाना है. इन केंद्रों को यह सहायता शुरू के तीन साल तक ही दी जानी है. उसके बाद उसे अपने आंतरिक स्नेत से इसकी व्यवस्था करनी है. आपके आसपास अगर दुग्ध शीतलक केंद्र है, तो उसे यह सहायता मिली या नहीं और मिली, तो सहायता राशि का खर्च सही-सही हुआ या नहीं, आप इसकी पड़ताल कर सकते हैं. इसके लिए आप सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

हरा चारा बीज वितरण
दुधारू पशुओं के लिए सरकार की हरा चारा बीज वितरण योजना भी है. इस का उद्देश्य राज्य में हरा चारा के उत्पादन को बढ़ावा देना है, ताकि पशुओं के गुणवत्तापूर्ण चारा उपलब्ध हो सके. यह चारा किसानों को अपनी जमीन में खुद उगाना है. सरकार की ओर उन्हें उसके बीज दिये जाते हैं. बीज वितरण मुफ्त होता है. इस बीज के लिए आपको कोई पैसा नहीं देन है. यह कार्यक्रम वाएफ के जरिये चलाया जा रहा है और राज्य के सभी जिलों के लिए अलग-अलग मात्र तय कर बीजों की आपूर्ति की जाती है. वाएफ उन्हें किसानों के बीज वितरित करता है. इसके तहत मकई, सुडान, बाजरा, बोदी आदि के बीज बांटे जाते हैं.

दुग्ध संघ को वर्किग कैपिटल
सामान्य तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में दूध का उत्पादन डेयरी सहयोग समितियां करती हैं. वहां से दूध को दुग्ध शीतलक केंद्र तथा दुग्ध प्रसंकरण व विपणन केंद्रों तक पहुंचाने का काम जिला जिला सहकारी दुग्ध संघ करता है. ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादित दूध के प्रबंधन एवं नियंत्रण की जिम्मेवारी इसी संघ की है. कुछ दूध नकद में बेचा जाता है, जबकि कुछ दूध विभिन्न संस्थानों और प्रतिष्ठानों को उधार बेचा जाता है. ऐसे संस्थान और प्रतिष्ठान दूध की कीमत का भुगतान साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक आधार पर की जाती है. इसमें दूध की कुल लागत दर में अंतर आता है. इसकी भरपाई, दुग्ध उत्पादकों को थोक भाव में चारा खरीदने एवं अन्य जरूरतों के लिए पैसे की व्यवस्था आदि का भार संघ पर होता है. सरकार के पास ऐसी योजना है, जिसके तहत दुग्ध संघों को पांच लाख रुपया तक वर्किग कैपिटल के रूप में मिल सकते हैं.

चारा कटिंग मशीन पर 75 फीसदी अनुदान
राज्य सरकार किसानों और पशुपालकों को अनुदानित दर पर चारा कटिंग मशीन उपलब्ध करा रही है. यह मशीन प्राप्त करने के लिए आप जिला गव्य विकास पदाधिकारी के कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं. इसके तहत दो तरह की मशीन दी जाती है. एक हस्त चालित और दूसरी पावर चालित. दोनों प्रकार की मशीन पर 75 प्रतिशत अनुदान सरकार देती है. इसमें एक तकनीकी पहलू भी है. दोनों तरह की मशीनों की कीमत का सरकार ने एक आकलन किया है, जिसके आधार पर अनुदान की राशि मिलती है. यह आकलन इन मशीनों के बाजार मूल्य से कम है. ऐसे में सरकार अनुदान उसी दर पर देती है, जो उसके आकलन में शामिल है. जैसे हस्त चालित मशीन की बाजार में अभी कीमत 6500 रुपये है, लेकिन सरकार ने अनुदान के लिए इसका मूल्य पांच हजार रुपया तय किया है. इस मशीन पर सरकार 3750 रुपये का अनुदान देगी. शेष 2750 रुपये आपको देने होंगे. उसी प्रकार पावर चारा कटिंग मशीन की कीमत अभी 23395 रुपये है. सरकार ने अनुदान के लिए इस मशीन की कीमत 20,000 माना है. अगर आप यह मशीन लेते हैं, तो सरकार 15000 रुपये का अनुदान देगी. शेष 8395 रुपये आपको चुकाने होंगे.

झारखंड में दुधारू पशु

गाय : 87.81 लाख

भैंस : 15.05 लाख

क्रॉस ब्रिड : 4%

राज्य में दुग्ध उत्पादन
झारखंड दूध उत्पादन के क्षेत्र में काफी पीछे है. अलग राज्य बनने के बाद इस स्थिति में सुधार के लिए डेयरी विकास कार्यक्रम शुरू किया गया. इसके जरिये डेयरी फारमिंग एवं किसानों-पशुपालकों को आर्थिक विकास पर जोर दिया जा रहा है. पशुधन की स्थिति राज्य में कमजोर है. इसमें सुधार का भी लक्ष्य तय किया गया है और पशुओं के नस्ल में सुधार की योजना चल रही है. इसी प्रकार प्रतिव्यक्ति दूध की उपलब्धता की दर को राष्ट्रीय औसत दर क करीब लाने पर जोर है. बेरोजगार को रोजगार मुहैया कराने से भी डेयरी विकास कार्यक्रम को जोड़ा गया है.

दूध उत्पादन दर में सुधार

वर्ष उत्पादन (लाख मैट्रिक टन में)

2001-02 : 7.74

2006-07 : 14.01

2008-09 : 14.66

2010-11 : 15.56

2011-12 : 16.43

झारखंड में ज्यादातर देसी गायें हैं, जो छोटे कद और कम वजन की हैं. आम तौर पर ऐसी गायों को पालना लाभदायक नहीं है. ऐसी गाये 200-250 ग्राम दूध देती हैं. वह भी साल में दो माह. बाकी दस माह ऐसी गायें किसानों के लिए भार होती हैं.

दूध की उपलब्धता
राज्य में दूध की उपलब्धता की दर बेहद कमजोर है. दूध की प्रति व्यक्ति-प्रतिदिन उपलब्धता की औसत राष्ट्रीय दर 263 ग्राम है, जबकि झारखंड में यह दर 159 ग्राम से भी कम है.

सूचनाधिकार का करें इस्तेमाल
आप गव्य विकास की योजनाओं का लाभ लेने के लिए जिला गव्य विकास पदाधिकारी या गव्य विकास निदेशालय, रांची से संपर्क कर सकते हैं. आप जरूरत पड़ने पर सूचनाधिकार का भी इस्तेमाल कर सकते हैं और दस रुपया सूचना शुल्क के साथ कार्यालय से सूचना मांग सकते हैं.

यहां से मांगें सूचना
लोक सूचना पदाधिकारी-सह-
जिला गव्य विकास पदाधिकारी

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