मुंबई:वक्त बलवान है, कब किसको महलों में बैठा दे और कब फुटपाथ पर ला दे कौन जानता है. 65 वर्षीय सुनीता नायक ने भी कभी नहीं सोचा था कि उन्हें फुटपाथ पर सोना पड़ेगा और खाने के लिए वे गुरुद्वारे के लंगर पर निर्भर हो जायेंगी. एक दशक पहले मराठी की एक महिला मैगजीन की संपादक सुनीता ने पिछले दो माह से वर्सोवा स्थित गुरुद्वारा सचखंड दरबार के बाहर बने फुटपाथ को ही अपना घर बनाया हुआ है.
पांच भाषाओं की ज्ञाता सुनीता आज मैले कपड़ों, टूटे हुए सेलफोन और अपने पालतू कुत्ते के साथ अपना जीवन बिता रही है. एक अंगरेजी दैनिक समाचार को दिये साक्षात्कार में सुनीता ने बताया कि बहुत छोटी उम्र में मैंने माता-पिता को खो दिया था, लेकिन दोस्तों के प्रोत्साहन से मैंने पुणो यूनिवर्सिटी से स्नातक की पढ़ाई पूरी की. दिन रात मेहनत कर मैं गृहलक्ष्मी मैगजीन की संपादक बनी. मैगजीन का दफ्तर गिरगांव में था, लेकिन कुछ साल पहले बंद हो गया.
कभी अच्छे दिन भी गुजारे थे
नायक हमेशा से इतनी गरीब नहीं थी.1980 के दशक में सुनीता के पास वर्ली में दो अपार्टमेंट थे और वह यहां वर्ष 2007 की शुरुआत तक रहती थीं. यही नहीं सुनीता के पास पुणो में पुश्तैनी बंगला भी था और उनके पास दो कारें थीं. नायक ने बताया, कि मैंने 1984 में पुणो वाला बंगला छह लाख रुपये में बेच दिया था. वर्ष 2007 में मैंने वर्ली वाले दोनों फ्लैट और दोनों कारें बेचीं. मुङो इससे 80 लाख रुपये मिले, जिससे मैं ठाणो में किराये के बंगले में शिफ्ट हो गयी. फिर अचानक मुङो पता चला कि मेरे सारे पैसे रहस्यमयी तरीके से खत्म होते जा रहे थे. तब मैंने वर्सोवा में सस्ता किराये पर फ्लैट लिया और रहने लगी और उसके बाद हाल यह हुआ कि फुटपाथ पर आ गयी. मैं यहां गुरुद्वारे से मिला लंगर खा कर गुजारा कर रही हूं. यह भले लोग हैं, इन्होंने मुङो यहां फुटपाथ पर रहने की इजाजत दी.
नहीं पता कहां गया बैंक बैलेंस
फुटपाथ पर जीवन के लिए संघर्ष कर रहीं सुनीता नहीं जानती कि उनका बैंक बैलेंस कैसे उड़ गया, या इसके पीछे कोई गुनाह छिपा है. सुनीता ने कहा, मुङो इस बारे में कुछ नहीं पता. हो सकता है कि मेरे पूर्व कर्मचारी कमल रेकर को इस बारे में कुछ पता हो. कमल बाई महालिन में एक छोटे से कमरे के मकान में रहती है और वह मेरे बैंक अकाउंट संभाला करती थी. उसने 15 साल तक मेरी देखभाल भी की है, लेकिन अब मैं उससे संपर्क नहीं कर पा रही हूं क्योंकि बारिश में भीगने से मेरा फोन खराब हो गया है.
दोस्तों ने बढ़ाया हाथ पर शर्त के साथ
नायक के पास कुछ दोस्त और शुभचिंतक हैं. इनमें से कुछ ने मदद का हाथ भी बढ़ाया और उन्हें अपने घर में रहने का न्यौता दिया, लेकिन एक शर्त पर. शर्त यह थी कि वे अपने साथ अपने बीमार पालतू कुत्ते को नहीं ला सकतीं, लेकिन नायक कहती हैं कि वह उसे कैसे छोड़ दे, जिसने उनका साथ 12 सालों तक निभाया. सुनीता ने कहा, मैं पढ़ी-लिखी हूं, पांच भाषाएं जानती हूं. मुङो कोई नौकरी मिले तो मैं अपना जीवन फिर से शुरू करना चाहती हूं. सुनीता के पुराने पड़ोसी विनोद पारकर ने पुष्टि की है कि सुनीता के पास दो फ्लैट थे.