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मनमोहन राज के दागदार चेहरे

मौजूदा यूपीए-2 सरकार के शासनकाल में न सिर्फ आये दिन नये-नये और गंभीर घोटालों की खबरें सुर्खियां बटोरती रही हैं, बल्कि सरकार को लगातार कैग की रिपोर्टो, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों और अब सीबीआइ के हलफनामों ने शर्मिदा होने के लिए मजबूर किया है. यूपीए सरकार पर अगर नेता विपक्ष अब तक की सबसे भ्रष्ट […]

मौजूदा यूपीए-2 सरकार के शासनकाल में न सिर्फ आये दिन नये-नये और गंभीर घोटालों की खबरें सुर्खियां बटोरती रही हैं, बल्कि सरकार को लगातार कैग की रिपोर्टो, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों और अब सीबीआइ के हलफनामों ने शर्मिदा होने के लिए मजबूर किया है. यूपीए सरकार पर अगर नेता विपक्ष अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार होने का आरोप लगा रही हैं, तो इसकी जड़ में हैं वे दागदार चेहरे, जिन्होंने यूपीए सरकार की नैतिक आभा उससे छीन ली है. सरकार के इन दागदार चेहरों पर आज का विशेष नॉलेज..

।। अवधेश कुमार ।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
हमारे देश के लिए घूसखोरी, दलाली तथा पैसे, पद और प्रभाव से ठेके या खनन अधिकार हथियाने, सरकारी खरीद आदेश, सरकारी पदों पर नियुक्ति, प्रोन्नति आदि के आरोप नये नहीं हैं. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल जैसी एनजीओ हर वर्ष अपनी रिपोर्ट जारी करती है.

हालांकि उसकी रिपोर्टो में ऐसा कुछ नहीं होता, तो हमारे-आपके जीवन में घटित न होता हो, पर उससे हमारे गाल पर तमाचा तो लगता ही है. शीर्ष स्तर पर भ्रष्ट आचरण के प्रमाण आजादी के पूर्व से ही मिलने लगे थे और आजादी के बाद तो मानो भ्रष्टाचार की महाकथा लिखने के लिए कागज और स्याही तक की कमी पड़ जाये. किंतु ऐसा कभी नहीं हुआ, जब पूरी सरकार ही भ्रष्टाचार के ठोस और प्रमाणजनक आरोपों के वृत्त के अंदर नजर आने लगे.

इस समय तो ऐसा लग रहा है मानो केंद्र सरकार भ्रष्टाचार का कोई धारावाहिक हो और उसके मंत्री, अधिकारी आदि उस धारावाहिक के पात्र. इनमें कुछ पात्र की भूमिका समाप्त हो जाती है तो फिर कुछ नए पात्र अवतरित हो जाते हैं. 1987 में बोफोर्स तोप दलाली प्रकरण सामने आने के बाद राजनीतिक बवंडर अवश्य खड़ा हुआ, पर उस समय भी ऐसी स्थिति नहीं थी.

नरसिंह राव सरकार के दौरान 1992 में शेयर और प्रतिभूति घोटाला से भ्रष्टाचार की कथा आरंभ हुई, और झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड, फिर यूरिया घोटाला…गेहूं खरीद घोटाला आदि सामने आये और उसे असाधारण स्थिति माना गया. किंतु तब भी इस तरह की धारावाहिक कथा और इतने अधिक दागदार दामन की भूमिका के साथ सामने आने वाले पात्र नहीं थे. आइए जरा, एक संक्षिप्त नजर उन दागदार चेहरों पर डालें और फिर फैसला करें..

* प्रधानमंत्री तक कोयला घोटाले की आंच
कैग की रिपोर्ट से कोयला घोटाला सामने आया. कैग के अनुसार 2004 से 2009 के दौरान निजी कंपनियों को 155 कोयला खदानों का आवंटन बिना नीलामी के ही किया गया. इससे सरकारी खजाने को कम से कम 1 लाख 86 हजार करोड़ का नुकसान हुआ. इस मामले में कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल के साथ-साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भूमिका भी शक के दायरे में हैं.

मनमोहन सिंह 2006 से 2009 तक कोयला मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे थे. 23 अप्रैल 2013 कोयला एवं इस्पात संबंधी संसद की स्थायी समिति ने संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में साल 1993 से साल 2008 तक हुए कोयला खानों के सभी आवंटनों को गैरकानूनी करार देकर पूरी सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है. समिति ने आवंटन प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की सिफारिश करते हुए कहा है कि यूपीए सरकार ने जनता से विश्वासघात किया है. नरसिंह राव सरकार से लेकर वाजपेयी सरकार तक केवल 41 आवंटन हुए जबकि 175 आवंटन मनमोहन सरकार के दौरान हुआ.

1. पवन कुमार बंसल (रेल मंत्री)
यूपीए सरकार को सबसे ताजा कालिख रेल मंत्री पवन कुमार बंसल के तौर पर लगी है. मामला रेलवे में प्रोन्नति के लिए घूस का है. सीबीआइ ने प्रोन्नति और बेहतर विभाग दिलाने के नाम पर रेलवे बोर्ड के सदस्य से 90 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में पवन कुमार बंसल के भांजे विजय सिंगला को गिरफ्तार किया है.

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बताया जा रहा है कि सिंगला ने रेल अधिकारी महेश कुमार से पहले 10 करोड़ रुपये की मांग की थी, यह राशि बाद में 2 करोड़ रुपये तय हुई. इसकी पहली किस्त 90 लाख रुपये की थी. सीबीआइ के मुताबिक वेस्टर्न रेलवे के महाप्रबंधक महेश कुमार को 2 मई को ही रेलवे बोर्ड का सदस्य (स्टाफ) बनाया गया है. वह सदस्य (इलेक्ट्रिकल) बनना चाहते थे. बिचौलिये ने महेश को भरोसा दिलाया था कि रेलवे बोर्ड के मौजूदा अध्यक्ष विनय मित्तल जून में सेवानिवृत्त हो रहे हैं, इसके बाद मौजूदा सदस्य (इलेक्ट्रिकल) कुलभूषण बोर्ड के चेयरमैन होंगे और यह पद खाली हो जायेगा. उस समय महेश को सदस्य (इलेक्ट्रिकल) बनवा दिया जायेगा.

महेश ने सदस्य (इलेक्ट्रिकल) के साथ-साथ पश्चिमी रेलवे में महाप्रबंधक सिग्नल ऐंड कॉम्युनिकेशन का भी अतिरिक्त प्रभार दिलाने की मांग की थी. हालांकि बंसल कहते हैं कि उनका परिवार उनके निर्णय पर कभी प्रभाव नहीं डालता और भांजा केवल उनका रिश्तेदार है. लेकिन तथ्य बता रहे हैं कि बंसल के पुत्र, भतीजे और भांजा की साझी कंपनियां हैं, साझा कारोबार हैं और इनके व्यावसायिक, वित्तीय और आर्थिक हित जुड़े हुए हैं.

* मौजूदा स्थिति : कांग्रेस की कोर समिति ने फैसला किया है कि फिलहाल बंसल को इस्तीफा देने की आवश्यकता नहीं है.

2. अश्विनी कुमार
(कानून मंत्री)

रेल मंत्री पवन कुमार बंसल से पहले कानून मंत्री अश्विनी कुमार सुर्खियों में थे. सुप्रीम कोर्ट 8 मई को जब कोयला आवंटन घोटाले के मामले में सुनवाई करेगा, जब उनकी किस्मत का फैसला हो सकता है.

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कोयला खदान आवंटन घोटाले में सीबीआइ ने 26 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय में शपथ पत्र देते हुए माना कि स्टेटस रिपोर्ट को कानून मंत्री तथा प्रधानमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी एवं कोयला मंत्रालय के एक अधिकारी को दिखाया गया था. सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा ने माना कि उच्चतम न्यायालय में दाखिल करने से पहले ड्राफ्ट रिपोर्ट का मसौदा केंद्रीय कानून और न्यायमंत्री के कहने पर उनसे साझा किया गया. उनके अलावा प्रधानमंत्री कार्यालय और कोयला मंत्रालय के एक-एक संयुक्त सचिव के साथ भी इसे साझा किया गया.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार छह मई को हलफनामा दाखिल करके सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा ने ड्राफ्ट रिपोर्ट में हुए बदलावों के बारे में भी जानकारी दी है. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि यह बता पाना मुमकिन नहीं है कि किस अंश में किसके कहने पर संशोधन किया गया.

* मौजूदा स्थिति : चूंकि यह अकेले अश्विनी कुमार का फैसला नहीं था और चूंकि उनके इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग मजबूत होगी, इसलिए फिलहाल उनकी सरकार एवं कांग्रेस पार्टी उनकी ढाल बन रही है.

3. सुबोधकांत सहाय
(पूर्व केंद्रीय पर्यटन मंत्री)

सुबोध कांत सहाय का मंत्रीपद भी कोयला खदानों की आग की भेंट चढ़ गया. सहाय ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 2007 में चिट्ठी लिख कर एसकेएस इस्पात एंड पावर को छत्तीसगढ़ और झारखंड में दो कोयला ब्लॉक अलॉट करने की सिफारिश की थी. उस वक्त कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के जिम्मे था. ये खदान आवंटित भी हो गये.

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हालांकि यह साबित करना कठिन है कि पत्र के कारण ब्लॉक आवंटित हुआ या दूसरे आधारों पर, किंतु एक मंत्री अपने हस्ताक्षर से सरकारी लेटर हेड पर इस तरह का सिफारिशी पत्र लिखे, तो यह नैतिकता और वैधानिकता दोनों कसौटियों पर अपने पद के प्रभाव से किसी को गलत तरीके से लाभ पहुंचाने का मामला बनता है. कोयला खदान आवंटन मामले में यह अपनी तरह का अकेला मामला था, जिसमें एक केंद्रीय मंत्री ने इस तरह कोयला ब्लॉक अलॉटमेंट के लिए लिखित सिफारिश की थी. शायद सुबोधकांत सहाय को इसकी गंभीरता का आभास नहीं रहा होगा. हो सकता है कि उन्होंने इसे सामान्य वैधानिक सिफारिश की तरह मान कर ऐसा किया होगा, लेकिन इसके बाद उनको पद पर बनाये रखना मुश्किल हो गया.

अंतर मंत्रालय समूह (आइएमजी) की सिफारिश पर जिन कोयला खदानों का आवंटन रद्द हो गया, उनमें से एक सुबोधकांत सहाय के भाई का भी था, जिसके लिए उन्होंने सिफारिश की थी. कुछ कंपनियों के खिलाफ जुर्माना भी लगाया गया, जिनमें एक कांग्रेस सांसद की कंपनी भी शामिल थी.

* मौजूदा स्थिति : सुबोधकांत सहाय को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.

4. सलमान खुर्शीद
(विदेश मंत्री)

सलमान खुर्शीद जब देश के कानून मंत्री थे, तब उन पर उनके ट्रस्ट में घोटाले के खुलासे के बाद उनका दामन भी दागदार नजर आने लगा. सलमान और उनकी पत्नी डॉक्टर जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट चलाते हैं. इस ट्रस्ट के खिलाफ एक टीवी चैनल ने स्टिंग ऑपरेशन किया था.

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बताया गया कि जिन विकलांग लोगों के नाम पर गाड़ियां आवंटित हुईं, या तो वे थे ही नहीं या उन्हें मिली ही नहीं. आवंटित राशि एवं खर्च के बीच की अनियमितता के भी आरोप लगे. उ. प्र. सरकार ने कहा कि उनके ट्रस्ट की जांच की जायेगी, पर किसी को नहीं पता कि जांच हो रही है या नहीं. जब यह आरोप सामने आया ऐसा लगा खुर्शीद की कुर्सी जाने ही वाली है.

* मौजूदा स्थिति : खुर्शीद को प्रमोशन देकर देश का विदेश मंत्री बना दिया गया.

5. प्रफुल्ल पटेल
(केंद्रीय मंत्री)

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दिल्ली हवाई अड्डा बनाने का ठेका जीएमआर को दिया गया. तत्कालीन नागर विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल पर आरोप लगा कि उन्होंने जानबूझकर कंपनी को 3,415 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया और इसके एवज में कई प्रकार के लाभ उठाये. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि दिल्ली एयरपोर्ट संचालित करनेवाली यह कंपनी नियमों के विपरीत विकास शूल्क वसूलती रही और यह मंत्री को और उनके अधिकारियों को पता था. करीब 239 एकड़ अतिरिक्त जमीन सिर्फ 31 लाख रुपये के भुगतान और महज 100 रुपये सालाना की लीज पर जीएमआर को दी गयी.

6. जीइ वाहनवती
(भारत के महान्यायवादी)

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कोयला आवंटन मामले में अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल हरीन रावल ने अपने लंबे पत्र में आरोप लगाया है कि भारत के महान्यायवादी जीइ वाहनवती को रिपोर्ट साझा करने की पूरी जानकारी थी, पर उन्होंने इसे बताया नहीं. छह मई को सीबीआइ निदेशक रंजीत सिन्हा ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दाखिल किया, उसमें कहा गया है कि ड्राफ्ट रिपोर्ट को देखने के लिए हुई बैठक में वाहनवती भी मौजूद थे.

हालांकि उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में बदलाव कराने में उनकी भूमिका नहीं थी. ध्यान रहे कि 2 जी मामले में भी ए राजा ने नियमों में बदलाव पर कहा था कि वाहनवती ने उसकी वैधानिकता की हामी भरी थी.

* मौजूदा स्थिति : अपने पद पर बने हुए हैं.

7. ए राजा
(पूर्व केंद्रीय टेलीकॉम मंत्री)

हाल के वर्षों में घोटालों के आरोपों में सबसे ज्यादा चर्चित नाम पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा का है. 2008 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में यह निष्कर्ष दिया कि ए राजा के मनमाने और भ्रष्ट रवैये के चलते 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन से देश को 1.76 लाख करोड़ रुपये का घाटा हुआ. स्पेक्ट्रम आवंटन 2001 की पुरानी कीमतों के आधार पर आवंटन किये गये. बोली प्रक्रिया की जगह पहले आओ पहले पाओ नीति पर अमल किया गया. विपक्ष के लगातार हंगामे के बाद राजा को इस्तीफा देना पड़ा.

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सीबीआइ ने उन्हें गिरफ्तार किया और उन्हें 15 महीने जेल में रहना पड़ा. इस मामले में पीएम मनमोहन सिंह और वित्त मंत्री पी चिदंबरम की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं. राजा ने लगातार यह बयान दिया है, न्यायालय के समक्ष भी कहा है कि उन्होंने जो भी फैसले किये, उनसे प्रधानमंत्री और तत्कालीन वित्त मंत्री, दोनों को अवगत कराया था.

हालांकि इस मामले में महालेखा परीक्षक के आकलन से सीबीआइ ने असहमति व्यक्त की है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी 122 लाइसेंस रद्द करने के बाद जो नयी निविदा जारी हुई, उसमें 40 हजार करोड़ का लक्ष्य भी न प्राप्त हो सका. किंतु इस मामले में ए राजा, कुछ सरकारी अधिकारी तथा निजी कंपनियों के कुछ अधिकारी कानून के कठघरे में खड़े हुए.

* मौजूदा स्थिति : ए राजा को अपने मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और जेल की सजा भी काटनी पड़ी. फिलहाल ए राजा कई महीने जेल मे बिताने के बाद जमानत पर बाहर हैं.

8. दयानिधि मारन
(पूर्व केंद्रीय मंत्री)

2006 में दूरसंचार मंत्री रहते हुए दयानिधि मारन ने चेन्नई की टेलीकॉम कंपनी एयरसेल के प्रमोटर पर दबाव डाला कि वह अपनी फर्म मलयेशियाई कंपनी मैक्सिस को बेच दें. मैक्सिस के मालिक आनंद कृष्णन के मारन परिवार के सन टीवी से व्यावसायिक रिश्ते हैं.

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जैसे ही एयरसेल को बेचा गया, उसे 2जी लाइसेंस मिल गया. मैक्सिस समूह की कंपनी एस्ट्रो को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति द्वारा सन टीवी में 675 करोड़ रुपया निवेश करने का हरी झंडी मिली. डिशनेट वायरलेस को भी लाइसेंस मिला. इसका अनुमोदन उस समय हुआ जब मारन संचार एवं सूचना उद्योग मंत्री थे.

* मौजूदा स्थिति : 2011 में उनको कपड़ा मंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा.

9. सुरेश कलमाडी
(आइओसी के पूर्व अध्यक्ष व कांग्रेसी सांसद)

2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान कई परियोजनाओं में धांधली की बात सामने आयी. इसमें करीब 70 हजार करोड़ रुपये के घोटाले का अनुमान लगाया गया. 28 जुलाई 2010 को केंद्रीय सतर्कता आयोग ने एक रिपोर्ट जारी किया, जिसमें राष्ट्रमंडल खेलों से संबंधित 14 परियोजनाओं में अनियमितता एवं भ्रष्टाचार की बात थी. 71 संगठनों व 129 कार्यों की जांच की गयी थी. इसमें ऊंचे दामों पर संविदा देने, सामान खरीदने, कमजोर गुणवत्ता के प्रबंधन, सेवाओं के कार्य को अयोग्य कंपनियों को सौंपने की बात सामने आयी. कई ऐसी कंपनियों को भुगतान किया गया, जो अस्तित्व में ही नहीं थीं.

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मामले के तूल पकड़ने पर कांग्रेसी नेता और आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. उन पर भ्रष्टाचार, धोखाधड़ी, जालसाजी एवं आपराधिक साजिश जैसे आरोप लगाये गये हैं. उन पर तथा उनके साथी अधिकारियों पर मनमाने तरीके से कंपनियों को उंचे दामों पर निर्माण व सेवा के ठेके के आरोप हैं. इनमें स्विस कंपनी को टाइमिंग स्कोरिंग रिजल्ट प्रणाली का ठेका प्रमुख है, जिनमें 95 करोड़ रुपये की हानि का आरोप सीबीआइ ने लगाया है. साथ ही लंदन में 2009 में क्विन्स बेटन रिले में अनियमितता का भी आरोप है.

* मौजूदा स्थिति : कलमाडी को 26 अप्रैल, 2011 को भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष पद से हटाया गया. इससे एक दिन पहले ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. दस महीने जेल में रहने के बाद फिलहाल जमानत पर हैं.

* टूजी में जीरो लॉस : कपिल सिब्ब्ल
कैग का टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन में नुकसान के आकलन का तर्क गलत है. सरकारी नीतियां लोगों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने के मकसद से तैयार की जाती है, न कि अधिक से अधिक सरकारी राजस्व हासिल करने के लिए. प्राकृतिक संसाधनों की कीमतों का निर्धारण इसी को ध्यान में रखकर किया जाता है. कैग ने नुकसान की बात कहकर खुद से अन्याय किया है. इससे सरकारी राजस्व को कोई नुकसान नहीं हुआ है.

– इनकी सुनिए
* 71 लाख क्या है! : बेनी प्रसाद
एक केंद्रीय मंत्री के लिए 71 लाख की रकम काफी कम होती है. सलमान खुर्शीद जैसा व्यक्ति 71 लाख का घोटाला नहीं कर सकता है. अगर यह रकम 71 करोड़ होती, तो मैं इसे गंभीरता से लेता.

* मेरा जीवन खुली किताब : मनमोहन सिंह
मेरे खिलाफ लगाये गये आरोपों में अगर थोड़ी भी सच्चई निकली, तो मैं सार्वजनिक जीवन से संन्यास ले लूंगा. देश मुझे कोई भी सजा दे सकता है. वित्त मंत्री, राज्य सभा में विपक्ष का नेता और अब प्रधानमंत्री के तौर पर मेरा लंबा सार्वजनिक जीवन खुली किताब की तरह रहा है. बिना तथ्यों को परखे मेरे खिलाफ दुर्भाग्यपूर्ण और गैर जिम्मेदार आरोप लगाये जा रहे हैं.

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