कंचन
गया : एक दौर था, जब महिलाएं केवल पुरुषों की सुविधा के हिसाब से ही सब कुछ करने को विवश थीं. पर, अब उनकी दुनिया में काफी कुछ बदल चुका है. अब वे अपने फैसले खुद कर सकती हैं, अपनी जरूरत, सुविधा व पसंद के हिसाब से. बिहार के गया शहर में रहनेवाली उषा राज की रोजमर्रा की जिंदगी में इन तथ्यों की झलक मिलती है. आज वह वे सभी काम करती हैं, जो उन्हें पसंद हैं, जो उनकी जरूरत हैं और जिसमें उन्हें सुविधा है.
उषा शहर की स्थापित महिला उद्यमियों में से एक हैं. इसका प्रमाण इनर व्हील क्लब ऑफ गया सिटी का उनका उपाध्यक्ष होना भी है. ऐसी संस्थाओं में आमतौर पर उन्हीं महिलाओं को जगह मिली होती है, जो किसी न किसी रूप में उद्यमिता व समाज सेवा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रही होती हैं.
मूलत: रांची की रहनेवाली
मूलत: उषा रांची की रहनेवाली हैं, लेकिन 1988 में वन विभाग में काम कर रहे अपने पति के तबादले के बाद वह गया पहुंचीं. रांची व चाईबासा की तुलना में गया का जीवन उन्हें थोड़ा कठिन लगा. इस चुनौती को अपनाते हुए उन्होंने अपनी दुनिया को अपने हिसाब से रचने का फैसला किया. अपने ही बल-बूते. वह खुद की निजी पहचान को बनाना चाहती थीं.
ब्यूटीशियन के तौर पर पहली शुरुआत
उषा को पता था कि निजी पहचान स्थापित करने में धन की बड़ी भूमिका है. इस दृष्टि से उनके सामने आर्थिक स्वावलंबन हासिल करने की चुनौती थी. उन्होंने ब्यूटीशियन का कोर्स किया और फिर अपना एक ब्यूटी पार्लर खोला. इस काम में उनका मन भी लगता था इसलिए इसे ही अपने रोजगार का जरिया भी बनाया. आज वह शहर की सर्वाधिक लोकप्रिय ब्यूटीशियंस में से एक हैं. पर, इन सबके बीच ही एक कमी खलती रहती थी. वह थी उनके प्रकृति प्रेम की प्यास बुझाने के लिए किसी और उपक्रम की.
बनीं नर्सरी की मालकिन
1988 में जब उषा चाईबासा से गया पहुंची थीं, तब वह अपने साथ करीब 100 की संख्या में गमले में लगे पौधे भी ले गयी थीं.
दरअसल, पेड़-पौधों से उन्हें बेहद लगाव रहा है. धीरे-धीरे इनकी संख्या भी बढ़ती गयी. देखते ही देखते उनके ठिकाने के पास एक नर्सरी ने आकार ले लिया था. उषा ने इस नर्सरी का नाम रखा हैप्पी नर्सरी. आज उनकी नर्सरी में हजारों पौधे हैं. इनमें फल, फूल, टिंबर और सजावटी पौधे बड़ी संख्या में हैं.
प्रकृति प्रेम से आर्थिक लाभ
उषा राज व्यवसायिक सफलता हासिल करने के साथ ही अपने सामाजिक दायित्वों को भी समझती हैं. शहर की तमाम सामाजिक गतिविधियों में भाग लेती हैं. एक बड़े क्लब की उपाध्यक्ष हैं. वह कहती हैं, ‘जिस समाज ने हमें सब कुछ दे रखा है, उसे हमें कुछ तो लौटाना भी तो चाहिये.’ उन्होंने अपने साथ काम कर रहे कर्मचारी की बेटियों को पढ़ा-लिखा कर स्वावलंबन की राह दिखायी है. उन्होंने अपने सहयोग से अपने संपर्क में रहनेवाली कई अन्य महिलाओं को भी स्वावलंबी बनाया है. ऐसी महिलाएं अब स्वतंत्र रूप से अपना रोजगार कर रही हैं. उषा राज को जाननेवाली दूसरी महिलाएं उनकी इस उपलब्धि को समाज की एक बड़ी मदद मानती हैं. साथ ही महिला सशक्तीकरण का एक श्रेष्ठ उदाहरण भी.