24.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

यह सरकार का नहीं, कांग्रेस का फैसला है

।।रामबहादुर राय।।(वरिष्ठ पत्रकार)अलग तेलंगाना राज्य की मांग बहुत पुरानी है. राज्य पुनर्गठन आयोग ने 1955 में अपनी रिपोर्ट दी थी और सिफारिश की थी कि तेलंगाना राज्य का गठन आंध्र के हित में होगा. उस समय आयोग ने कहा था कि इसे तेलंगाना नहीं, बल्कि हैदराबाद स्टेट कहना चाहिए. तेलंगाना का इतिहास पुराना है और […]

।।रामबहादुर राय।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
अलग तेलंगाना राज्य की मांग बहुत पुरानी है. राज्य पुनर्गठन आयोग ने 1955 में अपनी रिपोर्ट दी थी और सिफारिश की थी कि तेलंगाना राज्य का गठन आंध्र के हित में होगा. उस समय आयोग ने कहा था कि इसे तेलंगाना नहीं, बल्कि हैदराबाद स्टेट कहना चाहिए. तेलंगाना का इतिहास पुराना है और इसकी एक अलग पहचान भी है. निजाम के शासन ने आंध्र प्रदेश में तेलंगाना को एक अलग पहचान दी थी.

जिस तरह से गोवा को पुर्तगालियों ने महाराष्ट्र और बंबई से अलग पहचान दी थी. इस बात को 1955 में आयोग ने अपनी सिफारिश में कही थी. 1956 में तेलंगाना की मांग तेज हुई और तब से समय-समय पर कई हिंसात्मक आंदोलन भी हुए. कांग्रेस सरकारों ने, कांग्रेस नेताओं ने कभी इस मांग को महत्व नहीं दिया. यही वजह है कि कांग्रेस से निकल कर चंद्रशेखर राव की तेलंगाना राष्ट्र समिति’ बनी, जिसने बड़े पैमाने पर तेलंगाना के गठन की मांग की. आज फैसला आपके सामने है.

तेलंगाना को लेकर अब जो फैसला आया है, उसका एक मात्र आधार 2014 में कांग्रेस की डूबती नैया को पार लगाना माना जा सकता है. ऐसे में यह गलत समय पर गलत तरीके से लिया फैसला है. कांग्रेस की मानें तो इसका आधार छोटे राज्यों के बनने से होनेवाले उनके विकास की अवधारणा को माना गया है. लेकिन 2000 में बने तीन राज्यों- झारखंड, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ में विकास को देखते हुए यह अवधारणा ध्वस्त हो जाती है. इस फैसले से छोटे राज्यों के गठन की मांग बढ़ेगी. इस मांग का नतीजा यह हो सकता है कि कांग्रेस पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को सबक सिखाने के लिए गोरखालैंड बना दे, बिहार में मिथिलांचल बना दे और उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड बना दे.

तेलंगाना के फैसले में जनता की इच्छा को भी आधार माना गया है. यह सच है कि जनता की इच्छा सर्वोपरि है, पर राज्य गठन को लेकर इसका आर्थिक और प्रशासनिक आधार जरूर होना चाहिए. यहां ऐसा नहीं है, इसलिए लगता है कि यह फैसला भारत सरकार का नहीं, बल्कि सिर्फ कांग्रेस का है. बीते कुछ दिनों में कांग्रेस की कोर कमिटी से लेकर वर्किग कमिटी तक की बैठकों और फैसलों पर गौर करें तो यही पता चलता है कि इसमें यूपीए तो कहीं है ही नहीं. यह फैसला यूपीए सरकार को करना चाहिए था. इस नाते यह तरीका गलत लगता है और बहुत संभव है कि इसके बाद यह एक गलत परंपरा के रूप में विकसित हो जाये.

कांग्रेस को आंध्र में सबसे बड़ी चुनौती वाइएस राजशेखर रेड्डी के बेटे जगन मोहन रेड्डी से मिल रही है. कांग्रेस ने पहले पूरी कोशिश की कि वह जगन को समझा ले, लेकिन कामयाब नहीं हो पायी. अब जगन जेल में हैं, फिर भी उनके राजनीतिक प्रभाव पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा है. आंध्र की राजनीति का इतिहास सामंती प्रवृत्ति का रहा है. उनका नेतृत्व रेड्डी कर रहे हैं. चाहे वह मुगलों का शासन रहा हो, या अंगरेजों का या फिर आजादी के बाद कांग्रेस का, सबमें बड़े जमींदार फले-फूले. आज भी उनके प्रभाव में कोई कमी नहीं आयी है. दिवंगत वाइएसआर ने अपने उसी प्रभाव के दम पर कांग्रेस को 33 सीटें दिलवायी. पर अब कांग्रेस को इसकी उम्मीद नहीं रही और इसी के मद्देनजर अलग राज्य फैसला लिया गया है. पर कांग्रेस को इससे फायदा होने की बजाय उसकी मुश्किलें और बढ़ जायेंगी.

जो लोग ऐसा मान रहे हैं कि यूपीए को तेलंगाना राष्ट्र समिति या जगन मोहन की पार्टी का साथ मिल सकता है, इसका कोई ठोस आधार नहीं है. अब मामला इतना आगे बढ़ गया है कि जगन कांग्रेस में नहीं जायेंगे. वे राष्ट्रीय पार्टियों के साथ आकर अपना राजनीतिक अस्तित्व नहीं खोना चाहेंगे. हां, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आगामी चुनाव में क्या नतीजा आता है और किसकी सरकार बनती है, इस आधार पर समर्थन लेने-देने की बात हो सकती है. फिलहाल दोनों पार्टियां अलग चुनाव लड़ेंगी और नतीजों के बाद ही तय करेंगी कि किसे किसके साथ जाना है. अभी इन सब की संभावना मात्र है, कुछ ठोस बात नहीं.

तेलंगाना के गठन से क्षेत्रीय राजनीति को बढ़ावा मिलेगा. अब अन्य नये राज्यों की मांगें भी जोर पकड़ेगी, क्षेत्रीय राजनीति हावी होगी. यह अवधारणा विफल भले रही हो, लेकिन छोटे राज्यों के विकास की हवा बहेगी और इस हवा के साथ लोग बहेंगे. आज के राजनीतिक दलों में ऐसी राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं कि वे इस हवा के विपरीत खड़े हो सकें.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें