।। दक्षा वैदकर ।।
एक कंपनी के कर्मचारियों ने पिछले दिनों बहुत बड़ी गलती की. गलती सभी कर्मचारियों की बराबर थी. बॉस ने सभी को मीटिंग रूम में बुलाया और जोरदार डांट लगायी. कई कर्मचारी बीच में उन्हें रोक कर सफाई देने की कोशिश करते. उनकी सफाई सुन कर बॉस और भड़क जाते और उसके बाद अधिक जोर–जोर से डांटना शुरू कर देते.
करीब एक घंटे तक यह सिलसिला चला. जब सब मीटिंग रूम के बाहर आये, तो गौर करनेवाली चीज थी उन सभी का व्यवहार. हर कर्मचारी अलग–अलग तरह से व्यवहार कर रहा था. कुछ हंस रहे थे, तो कुछ की शकल रोने वाली हो गयी थी. कोई पांच मिनट में सामान्य हो कर काम में लग गया, तो कोई पांच दिनों तक उसी डांट को लेकर बड़बड़ाता रहा. कुछ लोग ऐसे भी थे, जो इस डांट को जिंदगीभर भूलने वाले नहीं थे. ये लोग वही थे, जिन्होंने बॉस को बीच में रोकने की सबसे बड़ी गलती की थी.
आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इन सभी कर्मचारियों में किसका जीवन आनंद से गुजरेगा. निश्चित रूप से उसका, जो डांट को भूल गया और अपने काम में तुरंत लग गया. सबसे बुरा असर उस व्यक्ति पर पड़ेगा, जो घटना को सालों याद रखेगा.
दोस्तों, हम सभी के सामने ऐसी परिस्थितियां आती है. कोई हमें डांट रहा होता है और हम उसे रोकने की कोशिश करते हैं. उसकी बातों को दिल से लगा लेते हैं. ऐसे समय में जब कोई हमें डांट रहा हो, अपना गुस्सा बाहर निकाल रहा हो, हमें शांत होकर उसे बोलने देना चाहिए. जब सामनेवाला अपनी बात पूरी कर ले, तब हमें अपनी बात रखनी चाहिए.
साधारण–सी बात है कि अगर किसी गाड़ी का ब्रेक फेल हो गया है, वह नियंत्रण से बाहर हो गयी है, तो क्या हम उस गाड़ी को रोकने के लिए उसके सामने हाथ अड़ा कर खड़े हो जायेंगे? इस तरह तो हम भी घायल हो जायेंगे. ठीक उसी तरह जब कोई गुस्से में होता है, तो उसका खुद पर से नियंत्रण खो जाता है. ऐसे वक्त में उसे टोकना कि ‘आपने मुझे ऐसा कैसे कह दिया, आपको यह नहीं कहना चाहिए, मैंने कोई गलती नहीं की, आप मुझे गाली नहीं दे सकते’.. बोलना बेकार है.
– बात पते की
* जब भी कोई इनसान गुस्से में होता है, उसका दिमाग सोचने–समझने की क्षमता खो देता है. ऐसे व्यक्ति को बीच में रोकना हमारी बेवकूफी है.
* गुस्से या आवेश में कहीं गयी बातों को दिल से न लगायें क्योंकि सामनेवाला अगर अपने होश में होता, तो वह आपके साथ ऐसा व्यवहार नहीं करता.